Friday, October 18, 2024
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Nano Fertilizer: धान की खेती में नैनो फर्टिलाइजर का प्रयोग कब और कैसे करें, कृषि वैज्ञानिकों का पढ़ें सुझाव

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अब यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए भारत तेजी से लिक्विड नैनो फर्टिलाइजर की तरफ बढ़ रहा है, जिसमें नैनो यूरिया और नैनो डीएपी के प्रयोग की सलाह दी जा रही है. सरकार का दावा है कि नैनो यूरिया और नैनो डीएपी से कम खर्च में अधिक उत्पादन हो सकता है. हालांकि, इन दावों को लेकर किसानों और कृषि विशेषज्ञों के बीच विवाद है. सरकार कह रही है कि एक बोरी यूरिया की जगह अब नैनो यूरिया की एक छोटी बोतल काफी होगी. तकनीक के इस कमाल से किसानों को यूरिया के बोरे लाने-ले जाने, मेहनत, ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा और घर में रखने के लिए जगह जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी. जब आप बाजार जाएं, तो दस चीजों के साथ नैनो फर्टिलाइजर की एक बोतल भी ले सकते हैं. इसके लिए अलग से बाजार जाने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, नैनो फर्टिलाइजर के उपयोग के तरीके को लेकर अभी किसानों में जानकारी का अभाव है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के पूर्वी क्षेत्र पटना के वैज्ञानिकों ने नैनो फर्टिलाइजर के सही उपयोग के सुझाव दिए हैं.

धान में नैनो यूरिया का प्रयोग कब और कैसे?

ICAR RCER पटना के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि धान की टॉप ड्रेसिंग में यूरिया की जगह नैनो यूरिया का प्रयोग करें. पहला छिड़काव धान की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद करें और अगर सीधी बुवाई कर रहे हैं, तो 35 से 40 दिन बाद करें. दूसरा छिड़काव 40 से 50 दिन बाद और तीसरा फसल की जरूरत के अनुसार करें.

ICAR के वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ खेत के लिए बैट्री चालित स्प्रेयर मशीन का उपयोग करते समय 1.5 से 3 ढक्कन नैनो यूरिया प्रति टंकी में मिलाकर छिड़काव करें. इसके लिए 8 से 10 टंकी पानी की जरूरत होती है. अगर पावर स्प्रेयर का उपयोग कर रहे हैं, तो प्रति टंकी 3 से 4 ढक्कन नैनो यूरिया की जरूरत होगी और 4 से 6 टंकी पानी की जरूरत पड़ेगी.ड्रोन से छिड़काव करते समय, फसल की जरूरत के अनुसार प्रति एकड़ 250 से 500 मिलीलीटर नैनो यूरिया का उपयोग करें. इसमें ड्रोन में 1 से 3 टंकी पानी की जरूरत होती है. एक ढक्कन में 25 मिलीलीटर नैनो यूरिया होता है.

नैनो डीएपी का धान में प्रयोग का तरीका

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अनुसंशित मात्रा की डीएपी का आधा हिस्सा खेत की तैयारी के समय प्रयोग करें और शेष आधी मात्रा नैनो डीएपी के माध्यम से डालें. इससे लागत में कमी और बेहतर परिणाम मिलेंगे. धान की नर्सरी डालने से पहले नैनो डीएपी से बीज उपचार करें. इसके लिए 3 से 5 मिलीलीटर नैनो डीएपी प्रति किलो बीज में मिलाकर उपचारित करें. इसके बाद, रोपाई से पहले 3 से 5 मिलीलीटर नैनो डीएपी को प्रति लीटर पानी में घोलकर धान की जड़ों को उपचारित करें और फिर धान की रोपाई करें.नैनो डीएपी का छिड़काव धान की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद या सीधी बुवाई के 30 से 35 दिन बाद 2 से 4 मिलीलीटर नैनो डीएपी प्रति लीटर पानी में मिलाकर करें. सामान्यत: नैनो डीएपी की एक एकड़ खेत के लिए 250 से 500 मिलीलीटर जरूरत होती है.

किस मशीन से करें नैनो फर्टिलाइजर का प्रयोग

ICAR के वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ खेत के लिए बैट्री चालित स्प्रेयर मशीन से 1 से 2 ढक्कन (यानि 25 से 50 मिलीलीटर) नैनो डीएपी प्रति टंकी में मिलाकर छिड़काव करें. इसके लिए 8 से 10 टंकी पानी की जरूरत होती है. पावर स्प्रेयर से करते समय प्रति टंकी 2 से 3 ढक्कन (यानि 50 से 75 मिलीलीटर) नैनो डीएपी की जरूरत होती है और इसके लिए 4 से 6 टंकी पानी की जरूरत पड़ती है. ड्रोन से छिड़काव करते समय, फसल की जरूरत के अनुसार प्रति एकड़ 250 से 500 मिलीलीटर नैनो डीएपी की जरूरत होती है. इसमें ड्रोन के लिए 1 से 2 टंकी पानी की जरूरत होती है, जो कुल मिलाकर 10 से 20 लीटर पानी होता है.

इन बातों का किसान खास ध्यान दें

• नैनो तरल उर्वरक का घोल बनाने के लिए साफ पानी का प्रयोग करें.
• स्प्रेयर से छिड़काव करने के लिए फ्लैट फैन या कट नोजल का प्रयोग करें.
• सुबह या शाम के समय छिड़काव करें जब पत्तियों पर ओस के कण न हों और अच्छे से अवशोषण हो सके. अगर छिड़काव के 12 घंटे के भीतर बारिश हो जाए तो पुनः छिड़काव करें.

नैनो उर्वरक के कई फायदे

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि नैनो उर्वरकों को समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के मौजूदा ढांचे में निर्वाध रूप से समाहित किया जा सकता है. नैनो उर्वरकों का प्रयोग जब जैविक संशोधनों के साथ किया जाता है, तो यह अपने उन्नत पोषक तत्व रिलीज गुण के साथ मिट्टी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों के लाभों को पूरा कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पौधे की वृद्धि और उत्पादकता पर सह-क्रियात्मक प्रभाव पड़ता है. इसलिए समेकित पोषक तत्व प्रबंधन में नैनो उर्वरक की शुरुआत टिकाऊ कृषि के लक्ष्यों के अनुरूप है. पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता में सुधार करके और उर्वरक अनुप्रयोग की कुल मात्रा को कम करके नैनो उर्वरक पोषक तत्वों के अपवाह, भूजल प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान देते हैं.

बारिश से पहले ट्रैक्टर की बिक्री में जबर्दस्त उछाल, मई में 120 फीसद तक दिखी तेजी

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गुजरात में मॉनसून की दस्तक से पहले ही कृषि कार्य में उपयोग आने वाले ट्रैक्टरों की बिक्री में बहुत अधिक वृद्धि आई है. हालांकि, जानकारों का कहना है कि ट्रक्टरों की बिक्री में ये वृद्धि सब्सिडी के कारण आई है. राज्य सरकार अभी खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए कृषि उपकरणों की खरीद पर किसानों को अनुदान दे रही है. फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (FADA) के अनुसार, मई 2024 में ट्रैक्टरों की बिक्री दोगुनी होकर 4,675 इकाई हो गई, जो मई 2023 में 2,128 इकाई थी. यानी ट्रैक्टरों की बिक्री में 119.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, उद्योग विशेषज्ञ इस वृद्धि का श्रेय खरीफ सीजन की शुरुआत और मॉनसून के अनुमानित आगमन को देते हैं. इस बार, IMD ने बेहतर मॉनसून की भविष्यवाणी की है. खास बात यह है कि इस बार अभी तक बेमौसम बारिश भी अधिक नहीं हुई है, जिससे फसलों को नुकसान पहुंचे. उद्योग विशेषज्ञ के मुताबिक, इसने सामूहिक रूप से ट्रैक्टर खरीद को बढ़ावा दिया है. किसान लगातार मशीनीकरण की ओर बढ़ रहे हैं, जैसा कि साल दर साल बढ़ती ट्रैक्टर बिक्री में साफ दिखता है.

इस वजह से बढ़ी ट्रैक्टरों की मांग

FADA के गुजरात चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष प्रणव शाह ने बताया कि हम आने वाले दिनों में मजबूत मांग जारी रहने की उम्मीद करते हैं. किसानों को मसाले और अन्य गर्मियों की फसलों से अच्छी कमाई का फायदा हुआ है, जिससे मांग में वृद्धि हुई है. उच्च कृषि आय और तेजी से सब्सिडी प्रसंस्करण ने बिक्री को काफी हद तक बढ़ावा दिया है. भूमि के घटते आकार ने 35-40 हॉर्स पावर वाले छोटे ट्रैक्टरों की मांग को भी बढ़ा दिया है. नाम न बताने की शर्त पर एक कृषि अधिकारी ने कहा कि इस साल ट्रैक्टरों की बिक्री उम्मीद से ज़्यादा रही, जिसका मुख्य कारण रबी और खरीफ की सफल फसलें हैं.

छोटे किसान भी कर रहे हैं ट्रैक्टरों में निवेश

राज्य कृषि विभाग के एक सूत्र ने कहा कि किसान मॉनसून से पहले ट्रैक्टर खरीद रहे हैं, जिसमें छोटे ट्रैक्टरों को प्राथमिकता दी जा रही है. ट्रैक्टरों के लिए सब्सिडी के आवेदनों को तुरंत मंज़ूरी दी जा रही है, चाहे वह कृषि विभाग से हो या बागवानी विभाग से. उन्होंने कहा कि कम आय के समय में, किसानों के समूह ट्रैक्टर खरीदने के लिए संसाधनों को इकट्ठा करते थे. अब, छोटी इकाइयों के लिए सब्सिडी के साथ, छोटे किसान भी ट्रैक्टरों में निवेश कर रहे हैं, जिससे मांग बढ़ रही है.

हरियाणा के सिरसा में धान की सीधी बुवाई का बढ़ा रकबा, 77000 एकड़ में किसानों ने अपनाया DSR तकनीक

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हरियाणा के सिरसा जिले के ऐलनाबाद, रानिया और सिरसा ब्लॉक में पिछले वर्षों की तुलना में धान की सीधी बिजाई (डीएसआर) का रकबा बढ़ने की उम्मीद है. पिछले वर्ष डीएसआर तकनीक अपनाने वाले किसान पूरी तरह से संतुष्ट हैं और अब वे अन्य उत्पादकों को भी इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. डीएसआर धान की रोपाई की एक तकनीक है, जिसमें मैन्युअल या मशीनी तरीकों से सीधे मिट्टी में बीज बोए जाते हैं.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, डीएसआर तकनीक में नर्सरी में पौधे उगाने और फिर उन्हें खेत में रोपने की जरूरत नहीं होती. यदि चावल की खेती के लिए परिस्थितियां अनुकूल हों तो डीएसआर की पैदावार रोपे गए धान से ज्यादा हो सकती है. उत्पादकों के अनुसार पिछले वर्ष डीएसआर की पैदावार रोपे गए धान से आठ से 10 क्विंटल प्रति एकड़ ज्यादा थी, जिससे उन्हें इस वर्ष अपने सभी खेतों में यह तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार जिले में 2,90,000 एकड़ में धान की बिजाई की गई है, जिसमें 77,000 एकड़ में डीएसआर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. पिछले साल 70,000 एकड़ में इसी विधि से चावल की रोपाई की गई थी.

हरियाणा में भूजल स्तर में गिरावट

किसान विजय कुमार ने कहा कि चावल को अन्य फसलों की तुलना में काफी अधिक पानी की आवश्यकता होती है और पानी की आपूर्ति ट्यूबवेल से की जाती है. इस तरह की निकासी से भूजल स्तर कम हो गया है, जो एक दशक पहले 40-50 फीट से गिरकर अब 150 फीट से अधिक हो गया था. डीएसआर तकनीक से पानी की काफी बचत हो सकती है. अमृतसर कलां के किसान सुमित सिंह विर्क ने कहा कि पिछले साल कुछ किसानों ने डीएसआर तकनीक आजमाई थी, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए और रोपाई वाले चावल की तुलना में अधिक उपज प्राप्त हुई. इस सफलता के कारण किसानों में डीएसआर के प्रति रुचि बढ़ी है.

77,000 एकड़ में धान की सीधी बुवाई

सिरसा के कृषि उपनिदेशक सुखदेव कंबोज ने कहा कि डीएसआर से कई लाभ मिलते हैं, जिसमें अधिक उपज और कम पानी का उपयोग शामिल है. इसके अलावा, सरकार ने इस तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रति एकड़ 4,000 रुपये का प्रोत्साहन भी दिया है. कंबोज ने बताया कि सिरसा में रानिया, ऐलनाबाद और कालांवाली ब्लॉक समेत करीब 77,000 एकड़ जमीन पर डीएसआर का इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह तरीका बहुत बढ़िया है, लेकिन यह मिट्टी की स्थिति पर निर्भर करता है.

क्या कहते हैं अधिकारी

तकनीकी कृषि अधिकारी (ऐलनाबाद ब्लॉक) राम चंद्र ने बताया कि पिछले साल की तुलना में ऐलनाबाद ब्लॉक में इस तरीके को अपनाने वालों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. अब तक किसानों ने 15,000 एकड़ में डीएसआर का इस्तेमाल कर फसलें बोई हैं, जिसका इस्तेमाल इस साल अतिरिक्त 10,000 एकड़ में भी किया जाएगा. इससे कुल अनुमानित रकबा 25,000 एकड़ से अधिक हो जाता है. घटते भूजल स्तर को नियंत्रित करने के लिए डीएसआर तकनीक जरूरी है. इस तरीके में पानी की खपत कम होती है और चावल की पारंपरिक रोपाई की तुलना में प्रति एकड़ उत्पादन लागत कम होती है. इससे मजदूरी की लागत भी बचती है.

धान की फसल में लगते हैं ये खतरनाक रोग, जानिए क्या हैं इनके लक्षण और कैसे होगा ईलाज

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धान खरीफ सीजन की प्रमुख फसल है. इसकी खेती देश के लगभग सभी भागों में होती है. देश में इसका रकबा लगभग 400 लाख हेक्टेयर होता है, जो किसी भी और फसल से अधिक है. इस समय अधिकांश राज्यों में इसकी रोपाई के लिए खेत तैयार कर लिए गए हैं. नर्सरी लगभग तैयार है. धान की खेती किसानों को अच्छा मुनाफा देती है, लेकिन अगर इसमें लगने वाले रोगों और कीटों का सही तरीके से मैनेजमेंट करें तब. हम धान की फसल में लगने वाले कीटों के बारे में जानकारी दे चुके हैं. आज इसमें लगने वाले रोगों के बारे में विस्तार से बताएंगे, जिससे कि किसानों को पता हो कि कौन-कौन से रोग किस वजह से लगते हैं और प्रमुख रोगों का निदान क्या है.

सफेदा रोग

यह रोग लौह तत्व यानी आयरन की कमी के कारण नर्सरी में अधिक लगता है. इसमें नई पत्तियां कागज के समान सफेद रंग की निकलती हैं.

खैरा रोग

यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है. इस रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, जिन पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं.

शीथ ब्लाइट

इस रोग में पत्र केंचुल (शीथ) पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं, जिनका किनारा गहरा भूरा तथा मध्य भाग हल्के रंग का हो जाता है.

झोंका रोग

इस रोग में पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं, जो मध्य में राख के रंग के तथा किनारे गहरे कत्थई रंग के होते हैं. पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डंठलों, पुष्प शाखाओं एवं गांठों पर काले भूरे धब्बे बनते हैं.

भूरा धब्बा

इस रोग में पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अथवा अंडाकार धब्बे बन जाते हैं. इन धब्बों के चारों तरफ पीला घेरा बन जाता है तथा मध्य भाग पीलापन लिए हुए कत्थई रंग का होता है.

मिथ्या कण्डुआ

इस रोग में बालियों के कुछ दाने पीले रंग के पाउडर में बदल जाते हैं, जो बाद में काले हो जाते हैं.

जीवाणु झुलसा

इस रोग में पत्तियां नोंक अथवा किनारे से एकदम सूखने लगती हैं. सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं.

प्रमुख रोगों के नियंत्रण के उपाय

जीवाणु झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा से प्रति 28 किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करनी चाहिए.

झोंका एवं भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए थीरम 75 प्रतिशत डब्ल्यूएस की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा काबेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करनी चाहिए.

शीथ ब्लाइट एवं मिथ्या कण्डुआ रोग के नियंत्रण के लिए काबेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करनी चाहिए.

PM मोदी आज कृषि सखियों को देंगे सर्टिफिकेट, जानिए कहां से ले सकते हैं ट्रेनिंग और कितनी होगी कमाई

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज वाराणसी में कृषि सखियों के रूप में 30,000 से अधिक स्वयं सहायता समूहों को प्रमाण पत्र जारी करेंगे. इसके साथ ही इन कृषि सखियों के लिए खेती-किसानी में रोजगार के लिए अवसर भी खुल जाएंगे. ये कृषि सखी अपनी कौशल और ट्रेनिंग के बदौलत साल में अच्छी कमाई कर सकती हैं. केंद्र सरकार को उम्मीद है कि उसकी इस पहल से महिलाओं को रोजगार मिलेगा और वे आत्मनिर्भर बनेंगी.

दरअसल, कृषि में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान को महसूस करते हुए ग्रामीण महिलाओं के कौशल को बढ़ावा देने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पिछले साल 30 अगस्त को एक MOU पर हस्ताक्षर किए थे. इस MOU के तहत कृषि सखी सर्टिफिकेशन कार्यक्रम एक महत्वाकांक्षी पहल है.

कृषि सखी सर्टिफिकेशन कार्यक्रम क्या है?

‘लखपति दीदी’ कार्यक्रम के तहत 3 करोड़ लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. उसी का एक आयाम है कृषि सखी. कृषि सखी सर्टिफिकेशन कार्यक्रम का उद्देश्य कृषि सखियों को प्रशिक्षण और सर्टिफिकेट देने के साथ-साथ ‘कृषि सखी’ को कृषि पैरा-एक्सटेंशन सहायक बनाना है. कृषि सखी सर्टिफिकेशन कार्यक्रम ‘लखपति दीदी’ कार्यक्रम के उद्देश्यों को भी पूरा करता है. खास बात यह है कि कृषि सखियों को कृषि पैरा-एक्सटेंशन कार्यकर्ता प्रशिक्षिण के लिए भी चुना गया है, क्योंकि वे विश्वसनीय सामाजिक कार्यकर्त्ता और अनुभवी किसान हैं. कृषक समुदाय की उनकी गहरी समझ के कारण ही इस समुदाय में उनका स्वागत और सम्मान भी किया जाता है.

कृषि सखियों को कैसे मिलता है प्रशिक्षण

  • कृषि सखियों को 56 दिनों के लिए विभिन्न विस्तार सेवा पर पहले ही प्रशिक्षित किया जा चुका है.
  • भूमि की तैयारी से लेकर फसल काटने तक कृषि पारिस्थितिक अभ्यास
  • किसान फील्ड स्कूलों का आयोजन
  • बीज बैंक + स्थापना एवं प्रबंधन
  • मृदा स्वास्थ्य, मृदा और नमी संरक्षण प्रथाएं
  • एकीकृत कृषि प्रणाली
  • पशुधन प्रबंधन की मूल बातें
  • बायो इनपुट की तैयारी, उपयोग एवं बायो इनपुट दुकानों की स्थापना
    बुनियादी संचार कौशल

प्रशिक्षण के बाद कृषि सखियों को कैसे मिलेंगे रोजगार

प्रशिक्षण के बाद, कृषि सखियां एक दक्षता परीक्षा देंगी. जो सखियां उत्तीर्ण होंगी, उन्हें पैरा-विस्तार कार्यकर्ता के रूप में प्रमाणित किया जाएगा, जिससे वे निर्धारित संसाधन शुल्क पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं की गतिविधियां करने में सक्षम होंगी. औसत कृषि सखी एक वर्ष में 60 हजार से 80 हजार रुपये तक कमा सकती हैं.आज तक 70,000 में से 34,000 कृषि सखियों को पैरा-विस्तार कार्यकर्ता के रूप में प्रमाणित किया जा चुका है. वर्तमान में कृषि सखी प्रशिक्षण कार्यक्रम गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा, झारखंड, आंध्र प्रदेश और मेघालय में चल रहा है.

कृषि सखियां कैसे आजीविका कमा रही हैं?

वर्तमान में MOVCDNER (पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन) की योजना के तहत 30 कृषि सखियां Local Resource Person (LRP) के रूप में काम कर रही हैं, जो हर महीने में एक बार प्रत्येक खेत पर जाकर कृषि गतिविधियों की निगरानी करती हैं और किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझती हैं. वे किसानों को प्रशिक्षित करने, किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों, (FPO) के कामकाज एवं विपणन गतिविधियों को समझने और किसान डायरी रखने के लिए हर हफ्ते किसान हित समूह (FIG) स्तर की बैठकें भी आयोजित करती हैं. उन्हें उल्लिखित गतिविधियों के लिए प्रति माह 4500 रुपये का संसाधन शुल्क मिल रहा है.

 

पंजाब में कपास के रकबे में गिरावट के संकेत, जानें कितने हेक्टेयर में किसान करेंगे इसकी खेती

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इस साल पंजाब में धान की खेती का रकबा रिकॉर्ड 32 लाख हेक्टेयर तक पहुंचने की उम्मीद है. हालांकि, इस बार सिर्फ 1 लाख हेक्टेयर में ही कपास की बुवाई होने की बात कही जा रही है. इससे राज्य में इतने बड़े क्षेत्र में धान की रोपाई की चर्चा जोर पकड़ रही है. कहा जा रहा है कि कपास के रकबे में कमी से धान के रकबे में बढ़ोतरी हो सकती है. इससे भूजल का दोहन भी बढ़ेगा.

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में 14.5 लाख से अधिक ट्यूबवेल हैं. अधिकांश किसान ट्यूवबेल से ही धान की सिंचाई करते हैं. इससे भूजल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. ऐसे में भूजल में गिरावट सरकार के लिए चिंता का विषय बन गया है. 2023 के भूजल संसाधन आकलन के अनुसार, पंजाब अपने निकाले जाने योग्य भूजल संसाधनों का लगभग 164 फीसदी भूजल निकाल रहा है. हरियाणा और राजस्थान ही ऐसे राज्य हैं जहां निष्कर्षण 100 फीसदी से अधिक है, जबकि राष्ट्रीय औसत निकाले जाने योग्य संसाधनों का 59 प्रतिशत है.

76 फीसदी ब्लॉकों में भूजल का अधिक दोहन

भूजल के अधिक दोहन के कारण इन राज्यों में अधिकांश ब्लॉकों का अत्यधिक दोहन हो रहा है. देश में जहां केवल 11.23 फीसदी ब्लॉकों का अत्यधिक दोहन हो रहा है, वहीं पंजाब में यह आंकड़ा 76 फीसदी ब्लॉकों का है. राजस्थान में यह आंकड़ा 71 प्रतिशत और हरियाणा में 61 फीसदी है. चिंता का एक और कारण यह है कि पंजाब के वार्षिक दोहन योग्य भूजल संसाधन और वार्षिक पुनर्भरण में लगातार गिरावट आ रही है, जबकि राज्य सरकार सिंचाई के लिए सतही जल की उपलब्धता बढ़ाकर इस प्रवृत्ति को रोकने का दावा कर रही है.

क्या कहती है रिपोर्ट

साल 2023 की मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब के वार्षिक निष्कर्षण योग्य भूजल संसाधन 2022 में 17.07 बीसीएम से घटकर 2023 में 16.98 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) हो गए, जबकि पुनर्भरण 2022 में 18.94 बीसीएम से घटकर 2023 में 18.84 बीसीएम हो गया. कुछ राहत की बात यह है कि निष्कर्षण भी 2022 में 28.02 बीसीएम से घटकर 2023 में 27.8 बीसीएम हो गया है. राज्य के 153 भूजल ब्लॉकों में से 117 का अत्यधिक दोहन किया गया. सिंचाई भूजल संसाधनों पर सबसे बड़ा बोझ है. 2023 में निकाले गए 27.80 बीसीएम में से 26.39 बीसीएम सिंचाई के लिए निकाला गया, जो कुल निष्कर्षण का 94.91 फीसदी निकला. घरेलू निष्कर्षण 1.18 बीसीएम (4.23 फीसदी) और औद्योगिक निष्कर्षण 0.24 बीसीएम (0.86 फीसदी) था.

कृषि विभाग की स्कीम का लाभ लेना चाहते हैं एमपी के किसान? इस पोर्टल पर आज की कराएं रजिस्ट्रेशन

मध्य प्रदेश में किसानों के लिए एक नई व्यवस्था की गई है. इस नई व्यवस्था के तहत किसानों को कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ लेने के लिए पोर्टल एमपी किसान पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा. इसके जरिए ही अब राज्य के किसानों को विभाग की विभिन्न योजनाओं जैसे बीज वितरण योजना, सिंचाई उपकरणों में सब्सिडी का लाभ और अन्य योजनाओं का लाभ ले सकते हैं. रजिस्ट्रेशन करने के लिए किसान www.kisan.mp.gov.in की वेबसाइट पर जा सकते हैं या फिर अपने नजदीकी एमपी ऑनलाइन सुविधा केंद्र पर जाकर आवेदन कर सकते हैं. इस वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करा के किसान प्रदेश में संचालित सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकते हैं.

रजिस्ट्रेशन कराने के लिए किसानों को सबसे पहले इसकी वेबसाइट पर जाना होगा. इस वेबसाइट को खोलने के बाद होम पेज पर रजिस्ट्रेशन का लिंक खुल जाएगा जिसमें आपको रजिस्ट्रेशन से संबंधित सभी दस्तावेजों की जानकारी भरनी होगी. इसमें किसान का आधार कार्ड, किसान की जमीन से संबंधित जानकारी, किसान की समग्र आईडी और किसान का जाति प्रमाण पत्र जैसी जानकारी देनी होगी. यदि आवेदक एससी और एसटी वर्ग से संबंधित है तो उसे जाति प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं होती है. यहां पर किसानों को इस बात का ध्यान देना जरूरी है कि पोर्टल पर जहां किसान पंजीकरण फॉर्म दिखता है, वहां दो विकल्प दिखाई देते हैं.

रजिस्ट्रेशन कराने पर मिलेगा योजनाओं का लाभ

यहां किसी भी एक माध्यम पर क्लिक करके किसान अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. इसके लिए किसान अपना आधार नंबर या जमीन के कागजात से पंजीकरण करा सकते हैं. या अपने नजदीकी एमपी ऑनलाइन कियोस्क पर जाकर भी पंजीयन कराकर आवेदन कर सकते हैं. जो किसान इस वर्ष कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ लेना चाहते हैं उन्हें पंजीयन कराना अनिवार्य है क्योंकि ऑनलाइन पोर्टल एमपी किसान पर अपना आवेदन दर्ज कराने पर ही योजना का लाभ मिलेगा. इसलिए किसानों से कहा गया है कि वो एमपी किसान पोर्टल पर अपना आवेदन दर्ज कराएं.

जिले के किसानों को मिलेगा पीएम किसान का लाभ

बता दे कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी ने पीएम किसान योजना की 17वीं किस्त जारी कर रहे हैं. यह सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर की जाएगी. इंदौर जिले के भी 86,749 किसानों को करीब 17.35 करोड़ रुपए सीधे उनके बैंक खातों में मिलेंगे. इस अवसर पर मंगलवार को कलेक्टर कार्यालय में कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. जिले में 86,749 किसानों को 17वीं किस्त के रूप में 17,34,98,000 रुपये की धनराशि मिलेगी. उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को तीन बराबर किस्तों में साल में 6 हजार रुपये की सम्मान निधि दी जाती है.

Weather News Today: दिल्ली में कब आएगा मॉनसून? पढ़िए IMD की वैज्ञानिक का जवाब

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दक्षिण पश्चिम मॉनसून लगातार आगे बढ़ रहा है. भारत मौसम विज्ञान विभाग यानी कि IMD की मौसम वैज्ञानिक सोमा सेन रॉय ने बताया है कि मॉनसून आने वाले दिनों में आगे बढ़ेगा. यह फ़िलहाल महाराष्ट्र और गुजरात में दस्तक दे चुका है और धीरे-धीरे छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल, झारखंड और बिहार के कुछ हिस्सों की तरफ़ अगले चार से पांच दिनों में बढ़ने की संभावना है. उन्होंने कहा, देश के उत्तर पूर्व हिस्से में भी बारिश का रेड अलर्ट है. अगले 4-5 दिनों के लिए इस हिस्से में भारी बारिश होगी. वहां मॉनसून ने दस्तक दे दी है और ज़ोरदार बारिश हो रही है.

सोमा सेन ने कहा, ⁠फ़िलहाल मॉनसून अभी कहीं भी कमज़ोर पड़ता नहीं दिख रहा है क्योंकि जब तक पूरा देश कवर नहीं होता तब तक कमज़ोर नहीं पड़ेगा. ⁠दिल्ली में अभी मॉनसून के जल्दी आने की कोई संभावना नहीं है. ⁠गर्मी की बात करें तो दिल्ली में मंगलवार को रेड अलर्ट है, लेकिन दो से तीन दिनों के बाद तापमान थोड़ा कम होगा. वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के चलते दिल्ली का मौसम बदलेगा. धूल भरी आंधी के साथ हल्की प्री मॉनसून बारिश हो सकती है.

⁠पंजाब, हरियाणा में भी अगले दो दिन बाद रेड अलर्ट हटा दिया जाएगा क्योंकि अरब सागर से आने वाली हवाओं के बाद तापमान कम होगा. ⁠पहाड़ी इलाकों में भी अभी लू से गंभीर लू चल रही है, लेकिन एक दो दिन बाद वहां भी येलो अलर्ट कर दिया जाएगा और तापमान में कमी आएगी.

हिमाचल प्रदेश का मौसम

हिमाचल में बढ़ते तापमान और कम बारिश होने से पहाड़ों पर जल संकट की स्थिति पैदा हो गई है. ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शिमला शहर में भी लोगों को पानी की किल्लत से जूझना पड़ रहा है. गर्मी बढ़ने और बरसात न होने से जल स्रोतों में पानी घट गया है. ऐसे में शिमला में पानी की क़िल्लत पेश आ रही है. शहर के कई इलाकों में चार-पांच दिनों के बाद पानी की सप्लाई दी जा रही है जिससे शहर के लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है.

इसके अलावा शहर के उपनगरों में लोग पांच दिनों से पानी का इंतजार कर रहे हैं. शिमला शहर के लिए रोजाना 40 एम एल डी पानी चाहिए होता है, लेकिन इन दिनों 30 एम एल डी पानी ही उपलब्ध हो पा रहा है. इससे शहर में जल संकट जैसे हालात बन गए हैं.

शिमला शहर के लोगों का कहना है कि हर साल गर्मी के मौसम में ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं. नगर निगम शिमला शहर में 24 घंटे पानी देने का दावा करता है, लेकिन हर बार ये सभी दावे हवा हो जाते हैं. यही नहीं शहर के साथ-साथ शिमला के साथ लगते ग्रामीण इलाकों में भी कुछ इसी तरह के हालात बने हुए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि कई कई हफ्तों तक पानी नहीं मिल रहा है. हालांकि शिमला जल प्रबंधन निगम का दावा है कि शहर में 2 दिन बाद पानी की सप्लाई आएगी.

वहीं शिमला के मेयर सुरेंद्र चौहान ने कहा कि लोगों को तीसरे चौथे दिन पानी दिया जा रहा है. पिछले कुछ दिनों से पड़ रही भयंकर गर्मी के कारण जल परियोजनाओं में पानी का स्तर कम हो गया है. अगले साल तक सतलुज से शिमला में पानी आ जाएगा तो पानी की समस्या काफ़ी हद तक कम हो जाएगी. इसके आलावा शिमला के शौचालय में भी पीने का ही पानी उपयोग में लाया जाता है. इस पर भी नगर निगम अलग से पाइप बिछाने की योजना बना रहा है.

 

मॉनसून आने से पहले ही सब्जियां महंगी, दोगुनी हुई लौकी की कीमत, जानें आलू, टमाटर, प्याज का रेट

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मॉनसून आने से पहले ही पंजाब के लुधियाना में प्याज से लेकर हरी सब्जियां तक महंगी हो गई हैं. महंगाई का आलम यह है कि दो हफ्ते पहले तक थोक मार्केट में जो प्याज 18 रुपये किलो था अब उसका रेट 30 रुपये हो गया है. इसी तरह आलू की कीमत में भी बढ़ोतरी हुई है. पिछले हफ़्ते तक आलू के 50 किलो का बैग 600 में मिल रहा था, अब उसका रेट 1,000 से ज़्यादा हो गया है. वहीं, टमाटर की कीमत भी क्वालिटी और किस्म के हिसाब से हफ़्ते भर में 20 से 30 रुपये तक बढ़ गई है.

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सप्ताह 17 से 18 रुपये में बिकने वाली भिंडी का रेट 25 रुपये हो गया है. इसी तरह लौकी की कीमत पिछले सप्ताह 18 रुपये के मुकाबले बढ़कर 40 रुपये प्रति किलो हो गई है. शिमला मिर्च की भी यही स्थिति है, जिसकी कीमत इसी अवधि में 20 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 36 रुपये प्रति किलो हो गई है. पिछले सप्ताह तक 200 रुपये प्रति किलो बिकने वाला लहसुन अब 250 रुपये पर पहुंच गया है.

इस वजह से बढ़ी कीमतें

बाजार में सामान खरीद रही 40 वर्षीय गृहिणी रितु ने कहा कि हमने पहले भी प्याज के दाम 100 रुपये प्रति किलो से ऊपर जाते देखे हैं. जिस तरह से कीमतें इतनी तेजी से बढ़ रही हैं, उससे लगता है कि जल्द ही ऐसी ही स्थिति बन सकती है. मंडी में थोक विक्रेताओं का कहना है कि कीमतें और बढ़ने की संभावना है. एक व्यापारी ने बताया कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता गया, उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा और मांग जस की तस बनी रही. इससे कीमतें बढ़ती गईं.

खीरा भी हुआ महंगा

मंडी के थोक विक्रेता रचिन अरोड़ा ने बताया कि औसतन हर सब्जी के दाम में कम से कम 15 रुपये प्रति किलो की दर से बढ़ोतरी हुई है. पुरानी सब्जी मंडी में दुकान चलाने वाले वीरेंद्र कुमार ने बताया कि थोक दाम तो बढ़ गए हैं, लेकिन ग्राहक छूट पर जोर दे रहे हैं, जिससे उनका मुनाफा कम हो गया है. मैं पिछले हफ्ते खीरा 12 रुपये प्रति किलो खरीदकर 20 रुपये में बेच रहा था. अब मुझे इसकी कीमत 20 रुपये प्रति किलो पड़ रही है और ग्राहक 25 रुपये से ज्यादा देने को तैयार नहीं हैं.

क्या कहते हैं व्यापारी

थोक विक्रेताओं के मुताबिक, शहर भर में खुदरा कीमतों पर सब्जियां बेचने वाले विक्रेता सब्जी के हिसाब से 5 से 15 रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. इससे आम लोगों की जेब पर और बोझ बढ़ रहा है. प्रवासी मज़दूर संदीप ने दुख जताते हुए कहा कि इस गर्मी में मज़दूरी के लिए बाहर जाना बहुत मुश्किल है. आधे दिन की मज़दूरी के बदले में मुश्किल से 200 से 300 रुपये मिल पाते हैं. और जब सब्ज़ियों के दाम लगभग दोगुने हो गए हैं, तो मेरे जैसे ग़रीब आदमी को अपने परिवार का पेट भरना मुश्किल हो गया है.

 

यूपी के पशुपालन और वेटनरी विभाग में जल्द आएंगी भर्तियां, सैकड़ों पोस्ट पर होगी बहाली

बेरोजगारी सरकार के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है. बेरोजगारी की बढ़ती संख्या को कम करने के लिए सरकार आए दिन कई कदम उठाती नजर आ रही है. इसी कड़ी में यूपी सरकार ने बेरोजगारी की समस्या को कम करने के लिए विभिन्न विभागों में रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. बुधवार को पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने घोषणा की कि वह जल्द ही भर्ती शुरू करेगा और लंबित पदोन्नति (Pending promotion) में तेजी लाएगा. विभाग ने घोषणा की है कि पशुपालन विभाग में पशु चिकित्सा सेवाओं के लिए 424 और पशुधन विकास अधिकारियों के 1,083 पद रिक्त हैं.

209 पद खाली

डेयरी विभाग में मुख्य डेयरी विकास अधिकारी के दो, डेयरी विकास अधिकारी के तीन, वरिष्ठ डेयरी निरीक्षक के 26 और राजकीय डेयरी निरीक्षक के 209 पद रिक्त हैं. इसके अतिरिक्त ग्रुप डी के पदों को आउटसोर्स किया जाएगा. पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह ने संबंधित अधिकारियों को विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित धनराशि शीघ्र जारी करने और बजट का समुचित उपयोग करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करने के निर्देश दिए. मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेश को दोहराते हुए मंत्री ने कहा कि गौ संरक्षण केंद्रों की स्थापना और जिला योजनाओं के लिए धनराशि शीघ्र जारी की जाए.

रोका जाए भुगतान

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में संचालित सचल पशु चिकित्सा इकाइयों के संचालन को लेकर मिल रही शिकायतों पर योगी सरकार ने अब गंभीर रुख अपनाया है. सरकार ने विभागीय अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि ऐसे मामलों की तत्काल जांच कर प्रभावी कार्रवाई की जाए और लापरवाही बरतने पर कार्यदायी संस्थाओं का भुगतान रोका जाए. शासन की ओर से विभागीय अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश हैं कि ऐसे मामलों की तत्काल जांच कर प्रभावी कार्रवाई की जाए और लापरवाही पाए जाने पर क्रियान्वयन एजेंसियों का भुगतान रोक दिया जाए.

अर्थव्यवस्था में योगदान

इसके अलावा कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम, राजकीय पशुधन फार्म, चारा विकास कार्यक्रम और पशुधन बीमा योजना पर भी विशेष ध्यान देने के निर्देश दिए गए हैं. आपको बता दें कि सीएम योगी के यूपी को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य में पशुधन और दुग्ध उत्पादन का प्रदेश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है.

 

PM Modi will launch : पीएम मोदी 18 जून को करेंगे वर्चुअल किसान क्रेडिट कार्ड लॉन्च

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PM Modi will launch :पीएम मोदी वाराणसी दौरा: प्रधानमंत्री वर्चुअल किसान क्रेडिट कार्ड जैसी किसानों के कल्याण में सुधार के उद्देश्य से कई योजनाओं का शुभारंभ करेंगे और लाभार्थियों को पहले से चल रही योजनाओं का लाभ भी वितरित करेंगे। लगातार तीसरी जीत के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 जून को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी का दौरा करेंगे। लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी का पहला दौरा किसानों को समर्पित होगा। प्रधानमंत्री वर्चुअल किसान क्रेडिट कार्ड जैसी किसानों के कल्याण में सुधार के उद्देश्य से कई योजनाओं का शुभारंभ करेंगे और लाभार्थियों को पहले से चल रही योजनाओं का लाभ भी वितरित करेंगे।

प्रधानमंत्री 17वीं किस्त जारी करेंगेएक तरफ प्रधानमंत्री किसानों से संवाद करेंगे और देशभर के किसानों के खातों में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की अगली किस्त जमा करेंगे। वह किसान डिजिटल क्रेडिट कार्ड लॉन्च करेंगे, जिससे किसानों को केसीसी की रकम निकालने के लिए बैंकों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। 18 जून को प्रधानमंत्री मेहंदीगंज में आयोजित किसान सम्मेलन में kisan को संबोधित करेंगे। 2,000 रुपये की 17वीं किस्त डीबीटी के जरिए करोड़ों किसानों के खातों में जमा की जाएगी। 2019 से प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 2,74,615 किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ मिला है। पीएम किसान योजना के तहत किसानों को हर साल 6,000 रुपये की आर्थिक मदद मिलती है।

किसान क्रेडिट कार्ड के फायदे किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) कार्यक्रम किसानों को कई तरह केbenifits देता है, जिससे उनकी कई तरह की वित्तीय जरूरतें पूरी होती हैं। यह फसल कटाई के बाद के खर्चों और पंप और मवेशियों जैसे कृषि उपकरणों की खरीद सहित सभी प्रकार की कृषि गतिविधियों के लिए ऋण प्रदान करता है। किसानों को 3 लाख रुपये तक का ऋण मिल सकता है, जिससे उनके कार्यों के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित हो सके। इसके अतिरिक्त, इस योजना में स्थायी विकलांगता या मृत्यु के लिए 50,000 रुपये तक का बीमा कवरेज शामिल है। पात्र किसानों को डेबिट कार्ड और बचत बैंक खाता भी मिलेगा, जिससे वित्तीय लेन-देन आसान हो जाएगा। यह कार्यक्रम विभिन्न और लचीले पुनर्भुगतान विकल्प प्रदान करता है, जिन्हें कटाई का मौसम समाप्त होने के बाद पूरा किया जा सकता है। किसानों को उर्वरकों और कीटनाशकों की खरीद में सहायता के साथ-साथ व्यापारियों से नकद छूट का भी लाभ मिल सकता है। केसीसी कार्यक्रम के तहत ऋण तीन साल तक के लिए सुलभ है, जो लगातार वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

आम की गुठली और पत्तियों से रायपुर के स्टूडेंट्स ने तैयार किए झूमर और तोरण, नेशनल मैंगो फेस्टिवल में मिली तारीफ – National Mango Festival in Raipur

रायपुर: रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में 12 जून से लेकर 14 जून तक तीन दिवसीय राष्ट्रीय आम महोत्सव का आयोजन किया गया है. इस आम महोत्सव में छत्तीसगढ़ सहित प्रदेश के दूसरे जिलों के किसान आम की अलग-अलग वैरायटी लेकर आए हैं. इसमें आम की विदेशी किस्म भी शामिल है. राष्ट्रीय आम महोत्सव कार्यक्रम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के फल विज्ञान विभाग में पीएचडी कर रहे छात्र-छात्राओं ने कमाल किया है. उन्होंने वेस्ट इज बेस्ट की थीम पर आम की पत्ती और आम की गुठलियों से कई सामान तैयार कर लोगों को दंग कर दिया.

स्टूडेंट्स ने तैयार किए सजावट के सामान: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स ने घर डेकोरेट करने के लिए झूमर-तोरण सहित दूसरे सजावट के सामान बनाए हैं. आमतौर पर लोग आम को खाने के बाद उसकी गुठली फेंक देते हैं, लेकिन इसका बखूबी उपयोग इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं ने किया है. सस्ते और कम दाम में सजावट के समान आम की पत्ती और आम की गुठली से बनाई गई.

इस तरह के सामान किए तैयार: इस बारे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में फल विज्ञान विभाग में पीएचडी कर रहे स्टूडेंट निशांत वर्मा ने कहा, “जब भी हम घर में आम खरीद कर लाते हैं तो आम की गुठलियों को बाहर फेंक देते हैं, लेकिन हमने एक नया प्रयोग किया है. आम की गुठली और उनकी पत्तियों से घर के लिए सजावट का सामान तैयार किया है, जिसमें झूमर है, तोरण है, आम की गुठलियों को सुखाकर उसको पेंट करने के बाद उसको अलग-अलग आकार और रंगों में सजाया गया है. इन सजावट के सामानों में एक्वेरियम झूमर और तमाम फैंसी चीजें शामिल हैं. इस काम को पीएचडी कर रहे लगभग 17 छात्र-छात्राओं ने तैयार किया है, जो इस राष्ट्रीय आम महोत्सव में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

आम को फलों का राजा कहा जाता है. घर में जब भी आम आता है तो लोग आम को खाने के बाद उसके छिलके और गुठलियों को फेंक देते हैं, लेकिन वेस्ट मटेरियल से यहां के स्टूडेंट्स ने सजावट के समान तैयार किए हैं. इसके साथ ही आम का पेड़ धार्मिक कार्यों में भी उपयोग होता है. जब भी कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है, उसमें आम की पत्ती, आम की लकड़ी का भी महत्व बढ़ जाता है. आम की गुठली और उनकी पत्तियों से छात्र-छात्राओं ने बुके भी तैयार किया है. यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं ने एक मैंगो रोबोट भी बनाया है. -डॉक्टर घनश्याम दास साहू, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय

बता दें कि राजधानी रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में 12 से 14 जून तक राष्ट्रीय आम महोत्सव का आयोजन किया गया. इस दौरान यहां आम से जुड़े कई उत्पाद पेश किए गए.

 

‘चमत्कार’ जशपुरा जनपद के तुमला गांव में मिले हीरे के भंडार, धान के कटोरा में ‘कोहिनूर’ के उगने से गदगद छत्तीसगढ़

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रायपुर: छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है। यहां के किसान मुख्यरूप से धान की फसल उगाते हैं। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ खनिज अयस्क को लेकर अपार संपदा वाला राज्य माना जाता है। प्रदेश की धरती के अंदर कोयला, बॉक्साइट, सोना और हीरे की एक बड़ी मात्रा है। इसी में एक और जनपद जशपुरा का नाम जुड़ गया है। यहां के तुमला गांव में हीरे का भंडार मिले हैं। बताया जा रहा है कि यहां 25 वर्ग किलोमीटर के दायरे में हीरे के मिलने की पुष्टि हुई है। पूरे क्षेत्र में मौजूद संकेतक खनिजों क्रोमाइट, पाइरोप, इल्मेनाइट व अन्य भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं। संकेतक खनिज उच्च ताप व दाब में ही मिलते हैं। हीरा भी उच्च ताप व दाब में मिलता है।

खनन के लिए हाल ही में ई टेंडर जारी किया

दरअसल, छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के विकासखंड मैनपुर के बेहराडीह, पायलीखंड में विश्वस्तरीय गुणवत्ता के हीरे पाए जाते हैं। यहां की खदान देश की सबसे बड़ी हीरा खदानों में एक है। गरियाबंद के अलावा महासमुंद, जांजगीर-चांपा में अलग-अलग जगहों पर हीरों के भंडार की मौजूदगी की पुष्टि हो चुकी है। महासमुंद और कांकेर में सोने के छोटे-बड़े भंडार भी मिले हैं। खनिज विभाग ने महासमुंद और कांकेर जिलों के तीन खनिज ब्लाकों में सोने और हीरे के खनन के लिए हाल ही में ई टेंडर जारी किया है।

हीरा खनन के लिए ई-आक्शन जारी

अब जशपुर जिले के तुमला गांव में भी हीरे के भंडार की पुष्टि हुई है। खनिज विभाग के अतिरिक्त संचालक डी महेश बाबू ने बताया कि भौमिकी एवं खनिकर्म संचालनालय छत्तीसगढ़, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसलटेंसी के संयुक्त सर्वे में हीरे का यह ब्लाक खोजा गया है। जल्द ही राज्य भौमिकी एवं खनिकर्म विभाग हीरा खनन के लिए ई-आक्शन जारी करेगा। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि यहां पर हीरे हैं। जिसको लेकर ग्रामीणा शासन-प्रशासन को पहले भी अवगत करा चुके हैं।

सोने और हीरे होने की संभावना

छत्तीसगढ़ के महासमुंद और कांकेर जिले में भी हीरे के भंडार मिले थे। जिसमें से लगभग 7205 एकड़ में कई बहुमूल्य धातुओं की खोज खनन विभाग की तरफ से की जा रही है। कुछ माह पहले डायरेक्टर ऑफ जियोलॉजी एंड माइनिंग छत्तीसगढ़, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसलटेंसी जेसी सर्वे कंपनी ने इन तीनों ब्लॉकों में सोने और हीरे होने की संभावना जताई थी। इसके बाद छत्तीसगढ़ खनिज विभाग ने इन खनिज अयस्क के खनन के लिए ईदृटेंडर जारी कर दिया था।

एक लाख करोड़ से ज्यादा की राशि का राजस्व

दरअसल, पूरे विश्व में कीमती खनिज की मांग वक्त के साथ काफी तेजी से बढ़ रही है। इसके बाद लगातार खनिज विभाग रिसर्च के माध्यम से बहुमूल्य धातुओं की खोजबीन में लगा रहता है। छत्तीसगढ़ खनिज विभाग के अधिकारियों की माने तो जो कंपनियां सफल बोली लगाएंगी, सबसे पहले उसे काम दिया जाएगा। जिसमें कंपनी विस्तृत पूर्वेक्षण का कार्य करेगी। जब भंडारण प्रमाणित हो जाएगा, उसके बाद उन्हें खनिज का पट्टा दिया जाएगा। खनिज अधिकारियों का मानना है कि 32 खनिज ब्लॉक से राज्य सरकार को एक लाख करोड़ से ज्यादा की राशि के राजस्व का फायदा होगा।

12,941 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड राजस्व प्राप्त हुआ

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में खनिजों से वर्ष 2022-23 में 12,941 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड राजस्व प्राप्त हुआ है। यह राशि वर्ष 2021-22 की तुलना में 636 करोड़ रुपए अधिक है। वर्ष 2021-22 में कुल खनिज राजस्व 12,305 करोड़ रुपए प्राप्त हुआ था। वर्ष 2017-18 में खनिज राजस्व आय लगभग 4911 करोड़ रुपए थी, जिसकी तुलना में वर्ष 2022-23 में खनिज राजस्व आय ढाई गुना से ज्यादा है।

PM-किसान योजना की 17वीं किस्त का पैसा इस तारीख को खाते में आएगा, 9.26 करोड़ किसानों को होगा फायदा

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सत्ता संभालने के बाद पहली बार 18 जून को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी का दौरा करेंगे। इस दौरान वह देश भर के 9.26 करोड़ लाभार्थी किसानों के लिए 20,000 करोड़ रुपये से अधिक की पीएम-किसान योजना की 17वीं किस्त जारी करेंगे। यानी 18 जून को पीएम किसानी की 17वीं किस्त जारी की जाएगी। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पीएम मोदी ने सबसे पहले पीएम-किसान योजना की 17वीं किस्त जारी करने से जुड़ी फाइल पर हस्ताक्षर किए।”

साल 2019 में शुरू की गई पीएम-किसान एक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) पहल है। इसके तहत लाभार्थी किसानों को उनकी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए तीन समान किस्तों में 6,000 रुपये की वार्षिक राशि प्राप्त होती है। चौहान ने कहा कि योजना की शुरूआत के बाद से केंद्र ने देश भर में 11 करोड़ से अधिक किसानों को 3.04 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि वितरित की है।

100 दिन का रोड मैप हो रहा तैयार

सरकार कृषि क्षेत्र के लिए 100 दिवसीय योजना तैयार कर रही है, जिसमें किसानों के कल्याण और देश में कृषि परिदृश्य के समग्र विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया गया है। अब तक, लक्षित 70,000 में से 34,000 से अधिक कृषि सखियों को 12 राज्यों- गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा, झारखंड, आंध्र प्रदेश और मेघालय में पैरा-विस्तार कार्यकर्ता के रूप में प्रमाणित किया जा चुका है।

प्रमाण पत्र भी प्रदान करेंगे

मोदी स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के 30,000 से अधिक सदस्यों को प्रमाण पत्र भी प्रदान करेंगे, जिन्हें कृषि सखियों के रूप में प्रशिक्षित किया गया है, ताकि वे पैरा-विस्तार कार्यकर्ता के रूप में काम कर सकें और साथी किसानों को खेती में मदद कर सकें। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संवाददाताओं से बात करते हुए कृषि क्षेत्र के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई। चौहान ने कहा, “पिछले दो कार्यकालों में कृषि हमेशा से ही प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकता रही है। उन्होंने किसानों के हित में कई अहम फैसले लिए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी हो सकते हैं शामिल

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्य के विभिन्न मंत्री वाराणसी में होने वाले कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं। कृषि मंत्री ने कृषि सखी योजना पर भी प्रकाश डाला, जो ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ एक सहयोगात्मक प्रयास है। इस योजना का उद्देश्य स्वयं सहायता समूहों की 90,000 महिलाओं को अर्ध-विस्तार कृषि श्रमिकों के रूप में प्रशिक्षित करना है, ताकि कृषक समुदाय की सहायता की जा सके तथा अतिरिक्त आय अर्जित की जा सके।

Kisan Career: एग्रीकल्चर से पढ़ाई दिलाएगी सरकारी नौकरी, घर बैठे एमबीए कर MNC में बन सकते हैं अफसर

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एग्रीकल्चर सेक्टर में तेजी से हो रहे विकास ने इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रोफेशनल्स की मांग को बढ़ा दिया है. खाद्य उत्पादों के बढ़ते निर्यात संभावनाओं ने एग्रीकल्चर से हायर एजूकेशन लेने वाले युवाओं के लिए मल्टीनेशनल कंपनियों (MNCs) से लेकर सरकारी नौकरी तक के रास्ते खोल दिए हैं. अब बड़ी संख्या में युवा एग्रीकल्चर कोर्सेस में एडमिशन लेकर पढ़ाई की ओर आकर्षित हो रहे हैं. यही नहीं, सरकारी से लेकर निजी विश्वविद्यालय एग्रीकल्चर से जुड़े नए-नए कोर्स भी ला रहे हैं. इसी कड़ी में घर बैठे पढ़ाई करने का मौका देने वाला देश का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय ओपेन यूनिवर्सिटी (IGNOU) एग्रीकल्चर में एमबीए कोर्स लेकर आया है. जबकि, पहले से ही यूनिवर्सिटी एग्री बिजनेस में पोस्ट ग्रेजुएशन भी करा रही है. आइये इन दोनों कोर्स की फीस, समय और बाकी जरूरी बिंदुओं को समझते हैं.

एग्री बिजनेस मैनेजमेंट एमबीए डिग्री कोर्स

सेंट्रल यूनिवर्सिटी इग्नू (IGNOU) के पीआरओ राजेश शर्मा के अनुसार इग्नू ने अपने एग्रीकल्चर स्कूल के जरिए ओपन एंड डिस्टेंस मोड (ओडीएल) के तहत कई कोर्स में प्रवेश ले रहा है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय ओपेन यूनिवर्सिटी (IGNOU) का एग्रीकल्चर स्कूल ने मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन इन एग्रीकल्चर बिजनेस मैनेजमेंट कोर्स की शुरूआत की है. इसका उद्देश्य कृषि व्यवसाय और किसान अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सक्षम व्यावसायिक पेशेवरों को तैयार करना है. इग्नू डिस्टेंस लर्निंग के तहत पढ़ाई कराती है, इसलिए युवा घर बैठे पढ़ाई कर सकते हैं.

  • कोर्स का नाम – मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन इन एग्रीकल्चर बिजनेस मैनेजमेंट (MBAABM)
  • कोर्स की अवधि– यह कोर्स 2 साल की अवधि का है और इसे अधिकतम 4 वर्ष की पूरा किया जा सकता है.
  • प्रवेश योग्यता – किसी भी विषय में ग्रेजुएट छात्र एमबीए एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट (MBAABM) में दाखिला लेने के लिए पात्र हैं.
  • कोर्स की फीस – पहले, दूसरे और चतुर्थ सेमेस्टर के लिए 15,500 रुपये प्रति सेमेस्टर फीस और तीसरे सेमेस्टर के लिए 17,500 रुपये फीस देनी होगी.
  • प्रवेश के लिए अंतिम तिथि– कोर्स में आवेदन की अंतिम तिथि 30 जून 2024 है.

    एग्री बिजनेस में डिप्लोमा कोर्स

    इग्नू (IGNOU) के पीआरओ राजेश शर्मा के मुताबिक यूनिवर्सिटी युवाओं को पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एग्री बिजनेस (PGDAB) करने का मौका भी दे रही है. इस कोर्स के लिए एडमिशन शुरू हो चुके हैं और डिस्टेंस लर्निंग के तहत घर से पढ़ाई की जा सकती है. खास बात ये है कि एडमिशन के लिए कोई उम्र सीमा नहीं है.

  • कोर्स का नाम – पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एग्री बिजनेस (Post Graduate Diploma in Agribusiness (PGDAB)
  • कोर्स अवधि – पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एग्री बिजनेस (PGDAB) की अवधि 1 साल है. स्टूडेंट अधिकतम 3 साल में कोर्स को पूरा कर सकते हैं.
  • प्रवेश योग्यता– आर्ट, कॉमर्स या किसी भी स्ट्रीम के ग्रेजुएट युवा इस कोर्स में प्रवेश के लिए योग्य हैं. किसी भी उम्र के ग्रेजुएट आवेदन कर सकते हैं.
  • कोर्स में प्रवेश के लिए कोई भी टेस्ट नहीं देना है.
  • कोर्स फीस- पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एग्री बिजनेस (PGDAB) की टोटल फीस 7,100 रुपये है.
  • प्रवेश के लिए अंतिम तिथि- कोर्स में आवेदन की अंतिम तिथि 30 जून 2024 है.

    हेल्पलाइन नंबर

    कोर्स से संबंधित जानकारी के लिए छात्र फोन नंबर 91-011-29537067, 29573091 पर कॉल कर सकते हैं या Email- Id: pkjain@ignou.ac.in, dinkar_soa@ignou.ac.in, chaithranr@ignou.ac.in पर लिखकर जानकारी हासिल कर सकते हैं.

पढ़ाई के बाद बिजनेस और रोजगार के अवसर

ऊपर बताए गए दोनों कोर्स को करने के बाद युवा खुद का कारोबार शुरू कर सकते हैं या निजी क्षेत्र की मल्टीनेशनल कंपनियों में जॉब कर सकते हैं और सरकारी विभागों में अधिकारी बनने का मौका भी उनके पास रहता है.

बिजनेस– इस सेक्टर की पढ़ाई के बाद युवा सीधे किसानों से जुड़कर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जैसे काम कर सकते हैं. कृषि उपज और उत्पादों बिक्री-खरीद को लेकर व्यापारी और बिचौलिए और किसान के बीच पुल की तरह काम करके अपना बिजनेस खड़ा कर सकते हैं.

एग्रीकल्चर इनपुट और आउटपुट से जुड़ी कंपनियों में टेक्नीशियन, क्रॉप मैनेजर, एक्सपोर्ट मैनेजर, क्वालिटी कंट्रोल सेक्शन में बड़े पदों पर नौकरी कर सकते हैं. इसके अलावा मार्केट रिसर्चर समेत तरह के पदों और विभागों में निजी और सरकार के कृषि मंत्रालय और विभागों में नौकरी कर सकते हैं.

एमएनसी में नौकरी- जुड़ा कोर्स करने वाले युवाओं के लिए फूड प्रोसेसिंग, रिटेल, वेयर हाउसिंग, बैंकिंग, इंश्योरेंस, फर्टिलाइजर और पेस्टीसाइड कंपनियों में नौकरी के बढ़िया अवसर होते हैं. इसके अलावा एग्रीकल्चर रिलेटेड इंडस्ट्रीज में कंसल्टेंसी और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस में भी जॉब कर सकते हैं.

सरकारी नौकरी- गवर्नमेंट सेक्टर में कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), कृषि अनुसंधान केंद्र, कृषि प्रबंधन संस्थानों, कृषि बैंकों, केंद्र और राज्य सरकार के विभागों आदि में कृषि विकास अधिकारी समेत अन्य पदों पर नियुक्त हो सकते हैं.

PM Kisan: 18 जून को जारी होगी पीएम किसान की 17वीं किस्त, इस तरह घर बैठे करें ई-केवाईसी

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केंद्र सरकार ने 2018 में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना शुरू की. इस योजना के तहत, किसानों को हर चार महीने में 2000 रुपये की तीन किस्तों में सालाना 6000 रुपये मिलते हैं. सरकार ने अब तक 16 किस्तें जारी की हैं. अब केंद्र सरकार 18 जून को 17वीं किस्त जारी करेगी. लेकिन 17वीं किस्त का लाभ सिर्फ वह किसान उठा पाएंगे, जिनकी ई-केवाईसी प्रक्रिया पूरी हो गई है. यानी जिन किसानों ने अभी तक ई-केवाईसी नहीं की है, वे लाभ से वंचित रह जाएंगे.

भारत सरकार ने इन किसानों से कहा है कि वे बिना किसी परेशानी के 17वीं और आगामी किस्तें प्राप्त करने के लिए जल्द से जल्द अपनी ई-केवाईसी पूरा करें. हालांकि, इन खातों के लिए ई-केवाईसी प्रक्रिया आम लोगों के लिए अक्सर जटिल और भ्रमित करने वाली होती है. लेकिन किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. वे नीचे बताए गए तीरके से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लिए अपनी ई-केवाईसी प्रक्रिया कैसे पूरी कर सकते हैं.

  ई-केवाईसी का प्रोसेस

  • अगर किसान को ओटीपी-आधारित ई-केवाईसी करनी है, तो उन्हें ई-केवाईसी के लिए पीएम किसान योजना की आधिकारिक वेबसाइट (https://pmkisan.gov.in/) पर जाना होगा.
  • इसके बाद किसान कॉर्नर सेक्शन में जाएं और ई-केवाईसी विकल्प पर क्लिक करें.
  • फिर अपना आधार नंबर और पंजीकृत मोबाइल नंबर दर्ज करें.
  • सत्यापन के बाद, आपके मोबाइल नंबर पर एक ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) भेजा जाएगा.

इसके बाद ई-केवाईसी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए ओटीपी दर्ज करें.

बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के लिए ई-केवाईसी प्रोसेस

  • बायोमेट्रिक तरीके से ई-केवाईसी करने के लिए अपने नजदीकी सीएससी (कॉमन सर्विस सेंटर) पर जाएं.
  • सीएससी ऑपरेटर को पीएम-किसान ई-केवाईसी पूरा करने के अपने इरादे के बारे में सूचित करें.
  • सत्यापन के लिए अपना आधार कार्ड और पंजीकृत मोबाइल नंबर प्रदान करें.
  • सीएससी ऑपरेटर फिंगरप्रिंट या आईरिस स्कैन के माध्यम से बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण की सुविधा प्रदान करेगा.
    सफल प्रमाणीकरण के बाद, आपका ई-केवाईसी पूरा हो जाएगा.

UP News: लखनऊ में नकली खाद बनाने वाली फैक्ट्री का भंडाफोड़, ब्रांडेड पैकेट में करते थे पैकेजिंग, 3 गिरफ्तार

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Lucknow News: राजधानी लखनऊ में नकली खाद (Fake Fertilizer) बनाने वाली फैक्ट्री का खुलासा हुआ है. पुलिस ने छामेमारी के दौरान मौके से तीन लोगों को गिरफ्तार किया है. मिली जानकारी के अनुसार, यूपी एसटीएफ को लखनऊ में अवैध रूप से संचालित खाद बनाने की फैक्ट्री संचालित होने की सूचना कृषि विभाग से मिली. इसी सूचना पर इंटौजा-कुर्सी रोड पर स्थित कन्हईपुर गांव में चल रही अवैध रूप से नकली खाद की फैक्टी पर छामेमारी की. जहां से संदिग्ध उर्वरक, सूक्ष्य तत्व, सल्फर समेत अन्य खाद बनाने के उपकरण बरामद किया गया. टीम ने गोदाम और फैक्टी को सीज करते हुए मौके से 6 सैंपल को इकट्ठा करके प्रयोगशाला जांच के लिए भेजा है. फैक्टी से तीन लोगों को गिरफ्तार किया है.

एसटीएफ के पुलिस उपाधीक्षक अवनीश्वर चंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि लखनऊ में नकली खाद बनाने एवं लखनऊ सहित आस-पास के जनपदों में बिक्री करने वाले गिरोह के सक्रिय होने की सूचना मिल रही थी. इस संबंध में एसटीएफ की विभिन्न इकाईयो/टीमों को अभिसूयना संकलन एवं कार्रवाई के लिए निर्देशित किया गया था. इसी सूचना पर एसटीएफ टीम द्वारा उक्त सूचना से जिला कृषि अधिकारी तेग बहादुर सिंह को अवगत कराते हुए उनको साथ लेकर महिगयां थाना क्षेत्र अन्तर्गत ग्राम कन्हाईपुर कुम्हरावा, बीकेटी स्थित राजू पुत्र रामनाथ के मकान में संचालित हो रहे अवैध खाद फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया गया. अवैध फैक्ट्री में राजू पुत्र रामनाथ एवं संजय कुमार पुत्र राधेश्याम एवं नीरज पुत्र राधेश्याम अवैध खाद बनाते हुए मौके से धर दबोचे गए हैं.

नकली खाद फैक्ट्री से भारी मात्रा में उपकरण बरामद

अवनीश्वर चंद्र श्रीवास्तव ने आगे बताया कि आरोपियों के कब्जे से 640 बैग सूक्ष्म तत्व (फसल शक्ति) बुंदेलखंड बायो क्रॉप साइंस), 470 बैग सूक्ष्म तत्व, 55 बैग फेरस सल्फेट, 35 बैग सूक्ष्म तत्व (फसल बलवान गोल्ड) 1300 बैग सल्फर (शक्तिमान), 500 बाल्टी जायिम (श्री राम बाण), 600 बैग कच्चा माल, 155 बैग सल्फर शक्तिमान, 60 बैग मैथा स्पेशल, दो वजन मशीन इलेक्ट्रिक, एक सीविंग मशीन, एक जनरेटर, 15 खाली बोरी आईपीएल ब्रांड बरामद किया है. कच्चे माल की कीमत लाखों रुपये में है.

लखनऊ के आसपास जिलों में करते थे सप्लाई

पुलिस उपाधीक्षक एसटीएफ अवनीश्वर चंद्र श्रीवास्तव के मुताबिक, जिस पर इनके द्वारा आईपीएल ब्रांड के नाम से अवैध खाद तैयार कराकर लखनऊ एवं आसपास के जनपदों में सप्लाई किया जाता है. जिला कृषि अधिकारी तेग बहादुर सिंह द्वारा उक्त अवैध खाद फैक्ट्री को सील करके अभियोग पंजीकृत कराये जाने की कार्रवाई की गई है. मौके से 6 सैंपल विश्लेषण हेतु लैब को भेजा गया है.

सीतापुर का सागर शुक्ला हैं मास्टरमाइंड

जिला कृषि अधिकारी तेग बहादुर सिंह ने बताया कि अवैध खाद बनाते हुए व्यक्तियों राजू पुत्र रामनाथ, संजय कुमार पुत्र राधेश्याम एवं नीरज पुत्र राधेश्याम ने पूछताछ पर बताया कि यह अवैध खाद फैक्ट्री का मालिक सागर शुक्ला पुत्र बृज कुमार निवासी सिविल लाइंस सीतापुर है. सागर शुक्ला द्वारा ही नकली खाद तैयार कराने का सारा सामान उपलब्ध कराया जाता है. फिलहाल पुलिस आरोपियों के पूछताछ के आधार पर जांच कर रही है.

बिहार में धान के बीज पर 90 फीसदी सब्सिडी, अब किसानों को असानी से मिलेगा KCC, जानें सरकार की पूरी तैयारी

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बिहार के कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने पटना के बमेती भवन में राज्य स्तरीय खरीफ कार्यशाला का उद्घाटन किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि इस वर्ष राज्य में खरीफ सीजन में धान की खेती का लक्ष्य 36.54 लाख हेक्टेयर रखा गया है. किसानों को खरीफ सीजन में पानी और बिजली की दिक्कत न हो, इसको लेकर विभाग पूरी कोशिश कर रही है. वहीं किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ राज्य के अधिक किसान ले सकें, इसको लेकर एक स्पेशल बैठक कृषि विभाग और एसएलबीसी के साथ किया जाएगा. साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड पर खुलकर बातचीत किया जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि राज्य में खरीफ मौसम में किसानों को उचित मूल्य पर गुणवत्तायुक्त बीज उपलब्ध करना प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है. इसके लिए मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार योजना तहत 5069.52 क्विंटल धान का बीज किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध कराया जा रहा है.

बता दें कि खरीफ सीजन में सरकार द्वारा विभिन्न फसलों की खेती को लेकर एक सीमा तय की जाती है. वहीं इस साल मक्का का 2.93 लाख हेक्टेयर, अरहर का 0.56 लाख हेक्टेयर, मूंग का 0.17 लाख हेक्टेयर, जबकि मोटे अनाज में बाजरा का 0.15 लाख हेक्टेयर, ज्वार का 0.16 लाख हेक्टेयर, मड़ुआ का 0.29 लाख हेक्टेयर तथा अन्य दलहन का 0.11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. वहीं धान की खेती 36.54 लाख हेक्टेयर के अनुपात में 3.65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बिचड़ा गिराने का लक्ष्य है.

नाले पर बनेगा पक्का चेक डैम

मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि खरीफ सीजन में फसल उत्पादन बढ़िया हो, पानी की कोई किल्लत न हो, इसके लिए भूमि संरक्षण निदेशालय तथा बिहार जलछाजन विकास समिति द्वारा भूमि एवं जल संरक्षण संबंधित योजनाओं पर कार्य किया जाएगा. इसके साथ ही सात निश्चय-2 योजना के तहत हर खेत तक सिंचाई का पानी उपलब्ध कराने के लिए छोटी-छोटी नदियों से निकलने वाले नाले पर 30 फीट तक का 212 पक्का चेक डैम का निर्माण होगा. वहीं जिन स्थलों पर चेक डैम निर्माण नहीं हो सकेगा, उन स्थलों पर राज्य योजना मद से तालाब एवं कूप निर्माण कराया जाएगा. इसके लिए 207 तालाब एवं 100 कूप निर्माण की योजना अलग से स्वीकृत जाएगी.

आगे उन्होंने कहा कि इस साल खरीफ सीजन में यूरिया 9.87 लाख मीट्रिक टन, डीएपी 2.50 लाख मीट्रिक टन, एमओपी 0.35 लाख मैट्रिक टन और एनपीके 02 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता है.

राज्य में बागवानी को दिया जाएगा बढ़ावा

कृषि मंत्री ने कहा कि खरीफ मौसम में राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत के सूबे के अंदर 7079 हेक्टेयर में वैज्ञानिक तरीके से बागवानी करने के लिए फलदार वृक्षों का क्षेत्र विस्तार किया जाएगा. इस योजना के तहत 5379 हेक्टेयर में टिश्यू कल्चर केला, 800 हेक्टेयर में आम, 50 हेक्टेयर में लीची, 400 हेक्टेयर में अमरूद, 450 हेक्टेयर में आंवला का नया बागान लगाने के लिए किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान पर पौध-सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी. इसके अलावा शुष्क बागवानी योजना के जरिये 2000 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए किसानों को 50 प्रतिशत सहायता अनुदान पर फलदार वृक्ष के पौधे और सामग्री उपलब्ध कराने का लक्ष्य विभाग का है. जबकि विशेष उद्यानिकी फसल योजना के अंतर्गत 100 हेक्टेयर में चाय की खेती के क्षेत्र विस्तार के लिए किसानों को 4.94 लाख/हेक्टेयर इकाई लागत का 50 प्रतिशत अनुदान सरकार देगी.

गांव-गांव में होगा किसान चौपाल का आयोजन

कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि खरीफ कार्यशाला के बाद गांव-गांव में किसान चौपाल का आयोजन किया जाएगा. वहीं बदलते मौसम को देखते हुए वर्षाश्रित जिलों क्लस्टर में खरीफ मक्का एवं मोटे/पोषक अनाज की खेती के लिए किसानों का चयन कर लिया गया है. खरीफ मक्का के लिए जिलों को ऊंची भूमि में क्लस्टर चयन करने का निर्देश दिया गया है. वहीं इस साल गरमा मौसम में हरी चादर योजना के तहत मूंग तथा ढ़ैंचा की खेती को बढ़ावा दिया गया है.

 

UP: छोटी गंडक नदी से बदली गोरखपुर और देवरिया के 60 हजार ग्रामीणों की तस्वीर, अब बाढ़ का कहर भी होगा कम

Uttar Pradesh News: विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रही नदियों को पर्यावरण संरक्षण के लिए पुनर्जीवित करने में जुटी योगी सरकार का प्रयास छोटी गंडक नदी को लेकर फलीभूत होता दिख रहा है. वहीं इसके अलावा सीएम योगी के निर्देश पर सिंचाई विभाग द्वारा गुर्रा नदी के ढाल को कम करके ग्रीष्म ऋतु में राप्ती नदी में निरंतर प्रवाह बनाकर गोरखपुर के 27 तथा देवरिया के 6 गावों सहित कुल 33 गांव की लगभग 60 हजार की आबादी तथा पशु, पक्षियों को लाभान्वित किया गया है. इस क्रम में गाजियाबाद की हिंडन, मुरादाबाद की रामगंगा और वाराणसी की असि नदी को पुनर्जीवित करने के लिए कार्रवाई तेज हो गई है. वहीं लखनऊ में कुकरैल नदी को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार ने हाल ही में कड़ा कदम उठाते हुए अवैध निर्माणों को ध्वस्त कराने का कार्य किया है.

समाप्त हो चुका था छोटी गंडक का अस्तित्व

प्रदेश सरकार में जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप सिंचाई विभाग ने छोटी गंडक नदी को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास किये, जिसके क्रम में नदी के सेक्शन की पुनर्स्थापना का कार्य प्रारम्भ किया गया है. नदी को मूल स्वरूप में लाने की प्रक्रिया के दौरान ही भूजल स्तर नदी में आने लगा और सिंचाई विभाग द्वारा की गई पहल कारगर व सफल साबित हुई है. उन्होंने बताया कि छोटी गंडक एक घुमावदार भूजल आधारित नदी है जो नेपाल के परसौनी जनपद-नवलपरासी से उद्गमित होकर भारत में लक्ष्मीपुर खुर्द ग्राम सभा (महराजगंज, यूपी) में प्रवेश करती है. यह नदी महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया जनपदों में 250 किमी की लंबाई में बहती हुई अंत में बिहार के सीवान जिले के गोठानी के पास घाघरा नदी में मिल जाती है.

छोटी गंडक के भारत में प्रवेश करने के उपरान्त प्रारम्भ के लगभग 10 किमी लंबाई में अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका था, जिसके कारण नदी सेक्सन में पूणर्तः सिल्टेड व संकुचित होकर कृषि कार्य किया जाने लगा. इस नदी को पुनजीवित करने के लिये कार्य तेजी से किया गया है. छोटी गंडक नदी को पुनर्जीवित करने के साथ ही भू-गर्भ जल को भी बढ़ाने में मदद मिली है.

गुर्रा के बाढ़ से मिलेगी निजात

इसके अलावा गुर्रा नदी से बाढ़ के समय होने वाली क्षति को कम करके गोरखपुर के 20 एवं देवरिया के 6 ग्रामों सहित कुल 26 गांवों की 35 हजार आबादी को सुरक्षित करने का भी सराहनीय कार्य किया गया है. बता दें कि गुर्रा नदी का उद्गम स्थल जनपद गोरखपुर में प्रवाहित राप्ती नदी से ग्राम-रूदाइन मझगंवा, तहसील-बांसगांव एवं ग्राम सेमरौना, तहसील-चौरी चौरा है. उद्गम स्थल से गुर्रा नदी का ढाल राप्ती नदी के ढाल से अधिक होने के कारण बाढ़ एवं ग्रीष्म ऋतु में पानी का बहाव समानुपातिक नहीं होने से बाढ़ अवधि में गुर्रा नदी से भारी तबाही की सम्भावना बनी रहती थी, वहीं दूसरी ओर ग्रीष्म ऋतु में राप्ती नदी के सूख जाने के कारण आबादी एवं पशु पक्षियों एवं जीव-जन्तुओं को कृषि कार्य एवं पीने का पानी नहीं मिलने से जन-जीवन प्रभावित होता था.

 

छत्तीसगढ़ के किसान होंगे हाईटेक: डिजिटल क्रॉप सर्वे की जानकारी एग्री स्टैक पोर्टल में होगी दर्ज, जानिये क्या होगा किसानों को फायदा

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में फसल आच्छादन का अब डिजिटल सर्वे होगा। सर्वे में किसानों की फसलों की सभी जानकारियां एग्री स्टैक पोर्टल में दर्ज होंगी। किसानों को फसल उत्पादकता के लिए जरूरी इनपुट जैसे फसल ऋण, विशेषज्ञो की सलाह से लेकर बाजार उपलब्ध कराने में भारत सरकार का एग्री स्टैक पोर्टल से मदद मिलेगी।

कृषि विभाग दिल्ली से आये अधिकारियों ने नया रायपुर इंद्रावती भवन में राजस्व विभाग के मास्टर ट्रेनरों को डिजिटल क्रॉप सर्वे 2024 प्रशिक्षण देते हुए बताया कि जिओ रेफ्रेंसिंग तकनीक के माध्यम से इस वर्ष से डिजिटल क्रॉप सर्वे किया जाना है। डिजिटल सर्वे की जानकारी एग्री स्टैक पोर्टल में ऑनलाइन उपलब्ध रहेगी।

एग्री स्टैक पोर्टल में किसानों का पंजीयन होने के बाद उन्हें एक फार्मर आईडी दी जाएगी। इस पोर्टल में किसानों द्वारा लगाई गई फसल के साथ-साथ उन्हें आवश्यक खाद और पानी की मात्रा की भी जानकारी मिलेगी। इस पोर्टल के माध्यम से राज्य के किसानों को अब न केवल जमीन अपितु जमीन में लगाये फसल और उत्पादन के लिए आवश्यक बाज़ार उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।

संचालक भू-अभिलेख श्री रमेश शर्मा ने प्रशिक्षण में कहा कि इस पोर्टल के जरिए किसानों को केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं से लाभान्वित किया जाएगा। इस पोर्टल का उद्देश्य कृषि उत्पादकों (किसानों) और नीति निर्माताओं-केंद्र सरकार और राज्य सरकार को एक डिजिटल छतरी के नीचे लाना है।

अपर आयुक्त भू-अभिलेख डॉ. संतोष देवांगन ने बताया कि इस प्रशिक्षण से राज्य के किसानों को लाभ मिलेगा। एग्री स्टेक में किसान का पंजीयन हो जाने से उन्हें जरूरत का खाद और बीज मिल सकेगा। इसके साथ ही किसानों को आवश्यकतानुसार बैंक ऋण लेने की भी सुविधा मिलेगी। प्रशिक्षण में सभी जिलों के भू-अभिलेख अधिकारी और भू-अभिलेख अधीक्षक शामिल हुए।