हरियाणा के सिरसा जिले के ऐलनाबाद, रानिया और सिरसा ब्लॉक में पिछले वर्षों की तुलना में धान की सीधी बिजाई (डीएसआर) का रकबा बढ़ने की उम्मीद है. पिछले वर्ष डीएसआर तकनीक अपनाने वाले किसान पूरी तरह से संतुष्ट हैं और अब वे अन्य उत्पादकों को भी इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. डीएसआर धान की रोपाई की एक तकनीक है, जिसमें मैन्युअल या मशीनी तरीकों से सीधे मिट्टी में बीज बोए जाते हैं.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, डीएसआर तकनीक में नर्सरी में पौधे उगाने और फिर उन्हें खेत में रोपने की जरूरत नहीं होती. यदि चावल की खेती के लिए परिस्थितियां अनुकूल हों तो डीएसआर की पैदावार रोपे गए धान से ज्यादा हो सकती है. उत्पादकों के अनुसार पिछले वर्ष डीएसआर की पैदावार रोपे गए धान से आठ से 10 क्विंटल प्रति एकड़ ज्यादा थी, जिससे उन्हें इस वर्ष अपने सभी खेतों में यह तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार जिले में 2,90,000 एकड़ में धान की बिजाई की गई है, जिसमें 77,000 एकड़ में डीएसआर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. पिछले साल 70,000 एकड़ में इसी विधि से चावल की रोपाई की गई थी.
हरियाणा में भूजल स्तर में गिरावट
किसान विजय कुमार ने कहा कि चावल को अन्य फसलों की तुलना में काफी अधिक पानी की आवश्यकता होती है और पानी की आपूर्ति ट्यूबवेल से की जाती है. इस तरह की निकासी से भूजल स्तर कम हो गया है, जो एक दशक पहले 40-50 फीट से गिरकर अब 150 फीट से अधिक हो गया था. डीएसआर तकनीक से पानी की काफी बचत हो सकती है. अमृतसर कलां के किसान सुमित सिंह विर्क ने कहा कि पिछले साल कुछ किसानों ने डीएसआर तकनीक आजमाई थी, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए और रोपाई वाले चावल की तुलना में अधिक उपज प्राप्त हुई. इस सफलता के कारण किसानों में डीएसआर के प्रति रुचि बढ़ी है.
77,000 एकड़ में धान की सीधी बुवाई
सिरसा के कृषि उपनिदेशक सुखदेव कंबोज ने कहा कि डीएसआर से कई लाभ मिलते हैं, जिसमें अधिक उपज और कम पानी का उपयोग शामिल है. इसके अलावा, सरकार ने इस तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रति एकड़ 4,000 रुपये का प्रोत्साहन भी दिया है. कंबोज ने बताया कि सिरसा में रानिया, ऐलनाबाद और कालांवाली ब्लॉक समेत करीब 77,000 एकड़ जमीन पर डीएसआर का इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह तरीका बहुत बढ़िया है, लेकिन यह मिट्टी की स्थिति पर निर्भर करता है.
क्या कहते हैं अधिकारी
तकनीकी कृषि अधिकारी (ऐलनाबाद ब्लॉक) राम चंद्र ने बताया कि पिछले साल की तुलना में ऐलनाबाद ब्लॉक में इस तरीके को अपनाने वालों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. अब तक किसानों ने 15,000 एकड़ में डीएसआर का इस्तेमाल कर फसलें बोई हैं, जिसका इस्तेमाल इस साल अतिरिक्त 10,000 एकड़ में भी किया जाएगा. इससे कुल अनुमानित रकबा 25,000 एकड़ से अधिक हो जाता है. घटते भूजल स्तर को नियंत्रित करने के लिए डीएसआर तकनीक जरूरी है. इस तरीके में पानी की खपत कम होती है और चावल की पारंपरिक रोपाई की तुलना में प्रति एकड़ उत्पादन लागत कम होती है. इससे मजदूरी की लागत भी बचती है.