इस साल पंजाब में धान की खेती का रकबा रिकॉर्ड 32 लाख हेक्टेयर तक पहुंचने की उम्मीद है. हालांकि, इस बार सिर्फ 1 लाख हेक्टेयर में ही कपास की बुवाई होने की बात कही जा रही है. इससे राज्य में इतने बड़े क्षेत्र में धान की रोपाई की चर्चा जोर पकड़ रही है. कहा जा रहा है कि कपास के रकबे में कमी से धान के रकबे में बढ़ोतरी हो सकती है. इससे भूजल का दोहन भी बढ़ेगा.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में 14.5 लाख से अधिक ट्यूबवेल हैं. अधिकांश किसान ट्यूवबेल से ही धान की सिंचाई करते हैं. इससे भूजल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. ऐसे में भूजल में गिरावट सरकार के लिए चिंता का विषय बन गया है. 2023 के भूजल संसाधन आकलन के अनुसार, पंजाब अपने निकाले जाने योग्य भूजल संसाधनों का लगभग 164 फीसदी भूजल निकाल रहा है. हरियाणा और राजस्थान ही ऐसे राज्य हैं जहां निष्कर्षण 100 फीसदी से अधिक है, जबकि राष्ट्रीय औसत निकाले जाने योग्य संसाधनों का 59 प्रतिशत है.
76 फीसदी ब्लॉकों में भूजल का अधिक दोहन
भूजल के अधिक दोहन के कारण इन राज्यों में अधिकांश ब्लॉकों का अत्यधिक दोहन हो रहा है. देश में जहां केवल 11.23 फीसदी ब्लॉकों का अत्यधिक दोहन हो रहा है, वहीं पंजाब में यह आंकड़ा 76 फीसदी ब्लॉकों का है. राजस्थान में यह आंकड़ा 71 प्रतिशत और हरियाणा में 61 फीसदी है. चिंता का एक और कारण यह है कि पंजाब के वार्षिक दोहन योग्य भूजल संसाधन और वार्षिक पुनर्भरण में लगातार गिरावट आ रही है, जबकि राज्य सरकार सिंचाई के लिए सतही जल की उपलब्धता बढ़ाकर इस प्रवृत्ति को रोकने का दावा कर रही है.
क्या कहती है रिपोर्ट
साल 2023 की मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब के वार्षिक निष्कर्षण योग्य भूजल संसाधन 2022 में 17.07 बीसीएम से घटकर 2023 में 16.98 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) हो गए, जबकि पुनर्भरण 2022 में 18.94 बीसीएम से घटकर 2023 में 18.84 बीसीएम हो गया. कुछ राहत की बात यह है कि निष्कर्षण भी 2022 में 28.02 बीसीएम से घटकर 2023 में 27.8 बीसीएम हो गया है. राज्य के 153 भूजल ब्लॉकों में से 117 का अत्यधिक दोहन किया गया. सिंचाई भूजल संसाधनों पर सबसे बड़ा बोझ है. 2023 में निकाले गए 27.80 बीसीएम में से 26.39 बीसीएम सिंचाई के लिए निकाला गया, जो कुल निष्कर्षण का 94.91 फीसदी निकला. घरेलू निष्कर्षण 1.18 बीसीएम (4.23 फीसदी) और औद्योगिक निष्कर्षण 0.24 बीसीएम (0.86 फीसदी) था.