Friday, July 26, 2024
Home Blog

छत्तीसगढ़ में Green Gold के रूप में तेंदूपत्ता भर रहा बस्तर के आदिवासियों की जिंदगी में खुशहाली के रंग

छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता के जंगलों की बहुलता वाले बस्तर इलाके में आदिवासी समुदायों के लिए तेंदूपत्ता संग्रह करना Source of Extra Income का जरिया है. तमाम आदिवासी परिवारों के लिए तेंदूपत्ता संग्रह आजीविका का मुख्य साधन भी रहा है. मगर, इन्हें बाजार में मेहनत का सही दाम न मिल पाने के कारण इनकी मेहनत का सही लाभ कारोबारी ही उठा पा रहे थे. राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने आदिवासियों के लिए Green Gold माना गया तेंदूपत्ता के बस्तर में संग्रह करने वालों को बैंक मित्र एवं बैंक सखियों के माध्यम से मजदूरी दिलाने की योजना के सफल प्रयोग को अंजाम दिया है. इसके तहत सरकार की ओर से 2024 में 36 हजार से अधिक आदिवासी परिवारों को लगभग 12 करोड़ रुपये से ज्यादा मेहनताना दिया है. सरकार का दावा है कि अब सही मायने में तेंदूपत्ता इन आदिवासियों के लिए ‘हरा सोना’ साबित हो पा रहा है. तेंदूपत्ता संग्रह के मेहनताने से इनके घर परिवार की जरूरतें पूरी हो पा रही हैं.

गर्मी में आजीविका का सहारा

छत्तीसगढ़ में बस्तर के वनांचल में आदिवासी समुदायों के पास गर्मी के दिनों में जब खेतों में कोई काम नहीं होता है, तब इसी तेंदूपत्ता के संग्रह से इन परिवारों को भरण पोषण का सहारा मिलता है. राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने वनांचल में रहने वाले ग्रामीणों के लिये तेंदूपत्ता के संग्रहण की मजदूरी में प्रति मानक बोरा की दर से इजाफा करने की योजना शुरू की है.

सीएम साय के निर्देश पर तेंदूपत्ता की कीमत 5500 रुपये प्रति मानक बोरा कर दी गई है. इस योजना के लागू होने के बाद तेंदूपत्ता एकत्र करने वालों को मेहनताने का पैसा स्थानीय स्तर पर बैंक सखियों के माध्यम से भुगतान करना प्रारंभ किया गया है. इससे दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों को बहुत सहूलियत हुई है. सरकार ने इसके सफल प्रयोग के बाद जिले के अन्य गांवों में भी तेंदूपत्ता संग्राहकों को पारिश्रमिक का भुगतान बैंक मित्र और बैंक सखियों के माध्यम करना शुरू कर दिया है.
सरकार द्वारा जारी बयान के अनुसार चालू सीजन 2024 में तेंदूपत्ता का एकत्र करने वाले 36 हजार 229 परिवारों को पारिश्रमिक के रूप में 12 करोड़ 43 लाख 95 हजार 749 रुपये का भुगतान उनके अपने ही गांव के बैंक मित्र एवं बैंक सखियों द्वारा किया जा रहा है.

मेहनताने में हुआ 1500 रुपये का इजाफा

बस्तर जिले के दूरदराज के गांव कुथर में रहने वाले तेंदूपत्ता संग्राहक आयतू और बैसू का परिवार पीढ़ियों से इसी काम में लगा है. आयतू और बैसू का कहना है कि अब तक उन्हें एक सीजन में तेंदूपत्ता संग्रह से 3 से 5 हजार रुपये तक की कमाई होती थी. सरकार ने तेंदूपत्ता का खरीद मूल्य 5500 रुपये प्रति मानक बोरा कर दिया है. पहले यह 4000 रुपये प्रति मानक बोरा था. उन्होंने कहा कि कीमत में इजाफा होने के बाद उनकी आय 8 हजार रुपये से ज्यादा हो गई है. इससे उसके जैसे अनेक परिवारों को भी अच्छा लाभ मिलने लगा है.

उन्होंने बताया कि वह खेती-किसानी के साथ-साथ तेंदूपत्ता संग्रह का काम कई सालों से कर रहे हैं. गर्मी में खेती का काम नहीं होने पर तेंदूपत्ता संग्रह से अतिरिक्त कमाई हो जाती है. उन्हें इस काम में एक-एक पत्ता तोड़कर पत्तों के बंडल बनाने पड़ते हैं. इस काम में काफी मेहनत होती है. साय सरकार ने उनके परिश्रम को समझते हुए मेहनताने में इजाफा किया है. यह सराहनीय है.

बैंक मित्र और बैंक सखी बने मददगार

साय सरकार ने इस योजना के तहत बैंक मित्र और बैंक सखियों के माध्यम से आदिवासी परिवारों को तेंदूपत्ता के संग्रह का मेहनताना देने की शुरुआत की है. बस्तर की बैंक मित्र पखनार रामो कुंजाम ने बताया कि वह 5 ग्राम पंचायतों के 250 से ज्यादा तेंदूपत्ता संग्राहकों को मेहनताने का भुगतान करते हैं. गांव की बैंक सखियां भी इस काम में अहम भूमिका निभा रही हैं.

लोहण्डीगुड़ा ब्लॉक में कस्तूरपाल गांव के बैंक मित्र सामू कश्यप 50 से अधिक संग्राहकों तथा बस्तर विकासखण्ड के भानपुरी गांव की बैंक सखी जमुना ठाकुर 56 से ज्यादा संग्राहकों को भुगतान करती हैं. डिमरापाल गांव की बैंक सखी तुलेश्वरी पटेल अब तक डिमरापाल एवं छिंदगांव के 90 से अधिक तेंदूपत्ता संग्राहकों को 1.5 लाख रुपये से ज्यादा का भुगतान कर चुकी हैं.

बस्तर के वन मंडल अधिकारी एवं जगदलपुर के जिला सहकारी यूनियन के प्रबंध संचालक उत्तम गुप्ता ने बताया कि जिले के सभी 07 विकासखण्डों के अंतर्गत 15 प्राथमिक वन उपज सहकारी समितियों के कुल 36 हजार 229 तेंदूपत्ता संग्राहकों को अब तक 12.43 करोड़ रुपये मेहनताने के रूप में दिया जा चुका है. इनमें सबसे ज्यादा बकावंड विकासखंड के 86 ग्राम पंचायतों के 16 हजार 510 संग्राहकों को 05 करोड़ 45 लाख 47 हजार 614 रुपये मेहनताने का भुगतान स्थानीय बैंक सखियों द्वारा किया जा रहा है. इस योजना के दोहरे लाभ के रूप में एक ओर, तेंदूपत्ता संग्राहकों को मेहनताना पाने में सहूलियत हुई है, वहीं, बैंक सखियों को भी अच्छी कमीशन राशि मिलने से इनकी भी आय में इजाफा हुआ है.

किसानों के पक्ष में उतरे ये पूर्व क्रिकेटर, बजट पर कह डाली ये बड़ी बात

पूर्व भारतीय स्पिनर और राज्यसभा सांसद हरभजन सिंह ने पिछले दिनों आए आम बजट पर अपनी निराशा व्यक्त की है. सिंह ने बजट की आलोचना करते हुए दावा किया कि इससे सिर्फ कुछ चुनिंदा राज्यों को ही फायदा हुआ है. पूर्व स्पिनर ने खुलासा किया कि उनके नोटिस देने के बाद भी उन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया जो उन्‍होंने उठाए थे. साथ ही उन्हें बोलने की भी अनुमति नहीं दी गई. 44 साल के हरभजन सिंह राज्‍यसभा में आम आदमी पार्टी (आप) से राज्‍य सभा सांसद हैं.

प्रश्‍नकाल में नहीं बोलने दिया गया

हरभजन ने अमृतसर हवाई अड्डे पर टर्मिनल का विस्तार करने का प्रस्ताव दिया था क्योंकि बहुत से लोग अपने भविष्य के लिए अमेरिका और कनाडा जाते हैं. अमृतसर से डायरेक्‍ट फ्लाइट न होने के वजह से लोगों को अपनी उड़ान पकड़ने के लिए दिल्ली आना पड़ता है. हरभजन ने कहा, ‘पिछले तीन दिनों में, मैंने प्रश्‍नकाल के दौरान बोलने का अनुरोध किया है, लेकिन मुझे मौका नहीं दिया गया. मुझे अमृतसर के हवाई अड्डे के विस्तार का मुद्दा उठाने की उम्मीद थी.’

डायरेक्‍ट फ्लाइट न होने से परेशानी

उन्‍होंने कहा कि वर्तमान में, अमृतसर से अमेरिका या कनाडा के लिए कोई सीधी उड़ान नहीं है, जिससे पंजाब के लोगों को पहले दिल्ली आना पड़ता है. भारत और कनाडा के बीच हाल ही में हुए एविएशन एग्रीमेंट में अमृतसर के लिए या वहां से उड़ानें बढ़ाने का कोई जिक्र नहीं है. हरभजन का कहना था कि यह गलत है क्योंकि इमरजेंसी की स्थिति में लोगों के अपने घर पंजाब पहुंचने की संभावना नहीं है. इसके साथ ही उन्‍होंने बजट पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की.

बजट में किसानों के लिए कुछ नहीं

हरभजन ने कहा कि बजट में किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं किया गया है. इस वजह से ही विपक्ष ने नीति आयोग की मीटिंग का बायकॉट किया है. पंजाब के सीएम भगवंत मान जैसे नेताओं के बयानों से इसकी पुष्टि होती है कि बजट असंतोषजनक है. उन्‍होंने कहा कि वह इस मसले पर पार्टी के साथ खड़े हैं. उन्‍होंने बताया कि उन्‍हें बजट में ऐसा कुछ नजर नहीं आया जिससे प्रदर्शनकारी किसानों की चिंताओं को दूर किया जा सके.

उनका मानना है कि इस बजट का फायदा प्रभावशाली होने के बजाय सिर्फ एक या दो राज्यों तक ही सीमित है. उनकी मानें तो बजट में कई सकारात्मक बदलाव हो सकते थे. शिक्षा और गैस सेक्‍टर में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं किया गया. सब कुछ किफायती करने की बजाय, सरकार ने सब कुछ बढ़ा दिया है.

 

FMD: पशुपालकों के लिए आई खुशखबरी, बढ़ेगा डेयरी प्रोडक्ट एक्सपोर्ट, सरकार उठा रही ये कदम

डेयरी पशुपालकों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है. जल्द ही सरकार एक ऐसा काम करने जा रही है जिससे दूध उत्पादन और उसकी खपत दोनों ही बढ़ेंगे. और ये सब मुमकिन होगा डेयरी प्रोडक्ट एक्सपोर्ट से. अभी तक कुछ अड़चन के चलते डेयरी प्रोडक्ट एक्सपोर्ट रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है. इसके पीछे एक सबसे बड़ी वजह है पशुओं की बीमारी खुरपका-मुंहपका (FMD). लेकिन अब सरकार एफएमडी को लेकर एक बड़ा कदम उठाने जा रही है. इसी तरह का कदम सरकार ने प्रोल्ट्री सेक्टर में भी उठाया है. इसके बाद अंडों का एक्सपोर्ट बढ़ गया है. केन्द्रीय डेयरी और पशुपालन मंत्रालय में आयोजित बैठक के दौरान इस प्लान पर चर्चा की गई है.

मंत्रालय में सचिव अलका उपाध्याय का कहना है कि एफएमडी डिजिज फ्री कंपार्टमेंट जोन बनाकर डेयरी एक्सपोर्ट को बढ़ावा दिया जाएगा. इसके लिए देश के नौ राज्यों के साथ मिलकर काम किया जाएगा. इसके लिए कुछ ऐसे पाइंट भी तैयार किए गए हैं जिनका पालन कर एफएमडी को कंट्रोल किया जाएगा. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो सरकार के इस कदम का असर मीट एक्सपोर्ट पर भी पड़ेगा. क्योंकि यूरोपियन समेत कई ऐसे देश हैं जो भारतीय बफैलो मीट को पसंद तो करते हैं, लेकिन एफएमडी के चलते उसकी खरीद नहीं करते हैं.

ऐसे बनाए जाएंगे FMD डिजिज फ्री कंपार्टमेंट जोन

मंत्रालय से जुड़े जानकारों की मानें तो मंत्रालय पोल्ट्री की तरह से ही एफएमडी डिजिज फ्री कंपार्टमेंट जोन बनाने पर काम करेगा. जोन के लिए पशुपालक अपना हलफनामा देंगे कि उनके पशुओं में एफएमडी बीमारी नहीं है. इस पर मंत्रालय भी काम करेगा और फिर उसे वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) को भेजा जाएगा. डब्ल्यूएचओ इसकी जांच करने के बाद उस पर अपनी मुहर लगाएगा. इसके बाद उस एफएमडी डिजिज फ्री कंपार्टमेंट जोन में आने वाले राज्य या फिर शहर और ब्लॉक के पशुपालक अपना दूध उन डेयरी प्लांट को बेच सकेंगे जो एक्सपोर्ट के लिए डेयरी प्रोडक्ट तैयार करते हैं. ऐसा होने के बाद जहां दूध की डिमांड बढ़ेगी तो उसका उत्पादन भी बढ़ेगा. मीटिंग के दौरान NIFMD के निदेशक डॉ. आरपी सिंह भी मौजूद थे.

गौरतलब रहे मंत्रालय ने इसी तरह से देश के अलग-अलग राज्यों में पोल्ट्री के 26 डिजिज फ्री कंपार्टमेंट जोन बनाए हैं. इन्हें डब्ल्यूएचओ से भी मान्यता मिली हुई है. इसका मतलब ये है कि इन 26 इलाकों के पोल्ट्री प्रोडक्ट में वो बीमारियां नहीं हैं जिनके चलते अंडों का एक्सपोर्ट नहीं हो पा रहा था. और अच्छी बात ये है कि ऐसा होने के बाद अंडों के एक्सपोर्ट में तेजी आई है.

नौ राज्यों संग मिलकर ऐसे काम करेगी सरकार

एनिमल हसबेंडरी कमिश्नर अभीजीत मित्रा की मानें तो मंत्रालय ने एफएमडी डिजिज फ्री कंपार्टमेंट जोन बनाने के लिए पहले देश के नौ राज्यों आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तराखंड को चुना है. ये वो राज्य हैं जहां एफएमडी को कंट्रोल करने के लिए तेजी से काम चल रहा है. इसमे ये भी शामिल है कि अब यहां एफएमडी का असरदार अटैक नहीं होता है, यहां एफएमडी का वैक्सीनेशन कार्यक्रम तेजी से चल रहा है. यहां बायो सिक्योरिटी पर काम होता है.

Jharkhand News: उग्रवाद का जवाब मछली पालन से! बोकारो के युवाओं ने ऐसे बदली तकदीर

मछलीपालन के क्षेत्र में झारखंड काफी आगे बढ़ रहा है. कई नए युवा इसे रोजगार के तौर पर अपना रहे हैं और अच्छी कमाई कर रहे हैं. इन मछली पालकों में राज्य और केंद्र द्वारा चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का भी लाभ मिल रहा है. योजनाओं का लाभ पाकर एक बड़े जलाशय में कई युवा एक साथ मछली पालन कर रहे हैं. इससे कई लोगों को रोजगार मिल रहा है और पलायन में कमी आ रही है. अब मछली पालन के जरिए युवा अपने गांव में ही अच्छी कमाई कर रहे हैं. राज्य के मछली उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर रहे हैं.

झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत गोमिया प्रखंड के कोदवाटांड़ पंचायत के युवा मछली पालन के जरिए सफलता की नई कहानी लिख रहे हैं. गोमिया प्रखंड का यह इलाका पहले कभी उग्रवाद प्रभावित था और यहां खेती भी ठीक से नहीं हो पाती थी. क्षेत्र के अधिकांश युवा रोजगार की तलाश में पलायन कर जाते थे. लेकिन उस कमाई से घर का खर्च चलाना मुश्किल था और घर से दूर भी रहना पड़ता था. इसलिए युवाओं ने रोजगार के अन्य विकल्प के बारे में सोचा और मछली पालन का मन बनाया. अपने गांव में ही तेनुघाट डैम उनके लिए पानी का एक बेहतर स्रोत था जहां युवा अच्छा मछली उत्पादन कर सकते थे.

हर दिन दो क्विंटल मछली उत्पादन

इसके बाद यहां के युवाओं ने मिलकर एक सहयोग समिति बनाई जिसका नाम सिदो कान्हू मत्स्यजीवी सहयोग समिति लिमिटेड, कोदवाटांड़ रखा गया. आज इस समिति के साथ 80- 100 लोग जुड़े हुए हैं. सरकारी योजनाओं के जरिए समिति को केज मिला है जिसमें वो मछली पालन करते हैं. उनके पास चार केज और 16 बैटरी है. प्रतिदिन इससे लगभग दो क्विटंल मछली का उत्पादन होता है. यहां पर अधिकांश पंगास प्रजाति की मछलियां पाल जाती हैं. इन मछलियों के स्थानीय बाजारों के अलावा बोकारो, हजारीबाग, रामगढ़ और रांची में बेचा जाता है जिससे उन्हें अच्छी कमाई हो जाती है.

पलायन में आई कमी

समिति के अध्यक्ष बताते हैं कि उनका उत्पादन बढ़ाने की योजना है. इसके बाद मछलियों को वहां से पश्चिम बंगाल के बाजारों में भेजने की योजना है. मछली पालन में मिल रही सफलता से वे काफी खुश हैं और अब काफी संख्या में उनके साथ लोग जुड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले जो लोग रोजगार के अभाव में पलायन करते थे, अब उन्हें यही पर काम मिल रहा है. वो भी मछली पालन से जुड़ रहे हैं और अच्छी कमाई कर रहे हैं. इस तरह से पलायन में बहुत कमी आई है. उन्होंने कहा कि समिति को आर्थिक तौर पर और मजबूत करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और जल्द ही इसका फायदा इससे जुड़े लोगों को मिलेगा.

धान छोड़कर शुरू की मक्का की खेती, 30000 की लागत पर हुआ 70,000 रुपये का प्रॉफिट, मिसाल बना आंध्र प्रदेश का किसान

बढ़ते भू-जल संकट की वजह से पूरे देश में इस बात की चर्चा है कि कैसे धान की खेती कम की जाए. उसकी जगह ऐसी फसल लगाई जाए जिसमें लागत कम हो, मुनाफा अच्छा हो और पानी की खपत कम हो. ऐसी फसलों में मक्का पहले स्थान पर है. आंध्र प्रदेश के एक किसान ने धान की खेती छोड़कर मक्के की खेती शुरू की और इसमें होने वाले प्रॉफिट से वो क्षेत्र में अन्य किसानों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं. इस किसान का नाम बंडारू श्रीनिवास राव है, जो आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के वट्टीचेरुकुरु गांव के रहने वाले हैं. यह किसान 30000 रुपये की लागत लगाकर एक सीजन में एक लाख रुपये कमा रहा है. मतलब प्रति एकड़ 70,000 रुपये का मुनाफा मिल रहा है. रबी मक्का की फसल चार से पांच महीने के अंदर-अंदर तैयार हो जाता है.

मक्का की खेती कर जीते कई पुरस्कार

किसान ने बताया कि वो 2000 से पहले धान और मूंग की खेती करता थे, लेकिन उसके बाद उन्होंने मक्के की खेती शुरू की, जिसमें अच्छा खासा लाभ होने लगा. इसलिए अब तक वो इसकी खेती कर रहे हैं. आज ऐसे ही किसानों की बदौलत आंध्र प्रदेश का देश के कुल मक्का उत्पादन में अहम योगदान है. यहां मक्का की उत्पादकता भी अन्य राज्यों से अधिक है. राव तकनीकी और अन्य सहायता के लिए भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के संपर्क में रहते हैं. राव ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अन्य संगठनों से कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार भी जीते हैं.

मक्का की बुवाई के लिए बनाई मशीन

राव ने मक्का की बुवाई के लिए मशीनें भी विकसित की हैं, जिनसे बहुत जल्दी किसान बुवाई का काम निपटा सकते हैं. यह किसान सीड ड्रिल मशीन का उपयोग करके बुवाई का काम करता है. मक्के की खेती में फायदा को देखते राव ने 22 एकड़ में इसकी खेती की हुई है, जिसमें से 10 एकड़ उनकी खुद की है और बाकी लीज पर ली है. लीज पर ली गई जमीन का वो 20,000 रुपये एकड़ प्रति फसल का किराया देते हैं. खास बात है कि काफी खेत में उन्होंने जीरो टिलेज तकनीक से खेती की है, जो न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि इसमें किसानों को अच्छी बचत भी होती है.

क्या है जीरो टिलेज तकनीक

पिछली फसल की कटाई के बाद बिना जुताई किए ही मशीन द्वारा मक्का की बुवाई करने की प्रणाली को जीरो टिलेज कहते हैं. इस विधि से बुवाई करने पर खेत की जुताई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है और खाद और बीज की एक साथ बुवाई की जा सकती है. जीरो टिलेज मशीन साधारण ड्रिल की तरह ही है, लेकिन इसमें टाइन चाकू की तरह होता है. यह टाइन मिट्टी में नाली के आकार की दरार बनाता है, जिसमें खाद और बीज उचित मात्रा में सही गहराई पर पहुंच जाता है. राव ने इनोवेटिव तरीके से मक्का की खेती करके इसे धान के मुकाबले ज्यादा लाभकारी बना लिया है. किसानों ने इस तकनीक को अपनाने के लिए शुरुआती दौर में साइकिल रिंग, पहिया आधारित होल मेकर आदि का उपयोग करके मक्का की बुवाई के लिए विभिन्न कृषि उपकरण विकसित किए.

जीरो टिलेज तकनीक का लाभ

आईसीएआर-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शंकर लाल जाट भी शून्य जुताई आधारित यानी जीरो टिलेज फसल उत्पादन तकनीक पर काम कर रहे हैं. उन्होंने शून्य जुताई खेती के लाभों को गिनाया है. जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के साथ ऐसी खेती से लागत में कमी, मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर होना, मल्चिंग से पानी का वाष्पीकरण कम होना, समय पर फसल लगाना, मिट्टी में बची हुई नमी और पोषक तत्वों का प्रभावी उपयोग होता है.

आंध्र प्रदेश में मक्का उत्पादन

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उच्च उपज देने वाली सिंगल क्रॉस हाइब्रिड मक्का के विकास के साथ, जीरो टिलेज तकनीक को अपनाने की भी जरूरत है. वर्तमान में आंध्र प्रदेश में मक्का की औसत उत्पादकता 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक है. पिछले कुछ वर्षों में मूल्य प्राप्ति न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम थी, लेकिन हाल ही में बायोएथेनॉल के लिए मक्का के उपयोग से इसमें सुधार होने की संभावना है और जीरो टिलेज की तकनीक के लाभ और बढ़ेगा. अब ज्यादातर मंडियों में मक्का का दाम एमएसपी से ज्यादा मिलने लगा है.

यूपी में फलों-सब्जियों और फूलों की खेती को मिलेगा बढ़ावा, ऐसे बढ़ेगी किसानों की आय..

UP News: किसानों की खुशहाली शुरू से ही यूपी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है. इस खुशहाली का मूलमंत्र है किसानों की आय में वृद्धि. यह कृषि विविधिकरण से ही संभव है. इसमें परंपरागत खेती के साथ बागवानी, सब्जी की खेती की सबसे अहम भूमिका है. 9 एग्रो क्लाइमेटिक जोन के कारण उत्तर प्रदेश में इसकी भरपूर संभावना भी है. योगी सरकार इन संभावनाओं को परवान चढ़ाने की हर संभव कोशिश भी कर रही है. इसी क्रम में चंद रोज पहले राज्य मंडी परिषद की बैठक में मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि बागवानी फसलों के गुणवत्ता पूर्ण रोपण के लिए प्रदेश के चारों कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयों में टिशू कल्चर प्रयोगशाला की स्थापना की जाए. इसके लिए धनराशि की व्यवस्था मंडी परिषद द्वारा की जाएगी. इसी प्रकार, रायबरेली में एक उद्यान महाविद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए.

उद्यान महाविद्यालय के लिए जमीन चिन्हित- उद्यान मंत्री

उद्यान मंत्री दिनेश सिंह ने बताया कि उद्यान महाविद्यालय के लिए रायबरेली के हरचरनपुर के पडेरा गांव में जमीन चिन्हित की जा चुकी है. कृषि विभाग इसे उद्यान विभाग को ट्रांसफर भी कर चुका है. पहले चरण के काम के लिए पैसा भी रिलीज किया जा चुका है. इसमें डिग्री कोर्स के साथ अल्पकालीन प्रशिक्षण के कोर्स भी चलेंगे. उल्लेखनीय है कि योगी सरकार के लगातार प्रयास के नाते यहां के किसानों किसानों के लिए फलों एवं सब्जियों की खेती संभावनाओं की खेती बन रही है. सरकार की इस नई पहल से इस क्षेत्र की संभावनाएं और परवान चढ़ेगी.

फलों और सब्जियों की खेती का बढ़ा रकबा

2023 की कृषि वानिकी रिपोर्ट के अनुसार फलों एवं सब्जियों की खेती में एक दशक में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 7.2 फीसद से बढ़कर 9.2 हो गई. इसी कड़ी में इनसे प्राप्त ग्रास वैल्यू आउटपुट (जीवीओ) 20.6 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 38 हजार करोड़ रुपये हो गया. दरअसल, इसमें योगी सरकार द्वारा कृषि विविधीकरण एवं बाजार की मांग के अनुरूप खेती करने की अपील, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एवं मिनी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में गुणवत्तापूर्ण पौधों का उत्पादन कर किसानों को न्यूनतम रेट में देना, संरक्षित तापमान एवं नमी नियंत्रित कर संरक्षित खेती को बढ़ावा एवं मंडियों के आधुनिकरण आदि का महत्वपूर्ण योगदान है.

हर जिले में बनेंगे हॉर्टिकल्चर के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस

मालूम हो कि फल एवं सब्जियों (शाकभाजी) की खेती और इनका प्रसंस्करण व्यापक संभावनाओं का क्षेत्र है. इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर योगी सरकार अपने पहले कार्यकाल से ही लगातार इनकी खेती को हर संभव प्रोत्साहन दे रही है. करीब दो साल पहले लगातार दूसरी बार योगी बनने के बाद ही अगले 5 साल के लिए इनकी खेती के क्षेत्रफल में विस्तार, उपज में वृद्धि और प्रसंस्करण के बाबत महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी विभाग के सामने रख दिया गया था. उसी के अनुरूप काम भी हो रहा है.

2027 तक बागवानी फसलों का रकबा बढ़ाने का लक्ष्य

लक्ष्य के मुताबिक 2027 तक बागवानी फसलों का क्षेत्रफल 11.6 फीसद से बढ़ाकर 16 फीसद तथा खाद्य प्रसंस्करण 6 फीसद से बढ़ाकर 20 फीसद किया जाना है. इसके लिए लगने वाली प्रसंस्करण इकाइयों के लिए बड़े पैमाने पर कच्चे माल के रूप में फलों एवं सब्जियों की जरूरत होगी.

2027 तक हर जिले में होगी हॉर्टिकल्चर की बुनियादी

हॉर्टिकल्चर में तय लक्ष्य प्राप्त करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका गुणवत्तापूर्ण प्लांटिंग मैटिरियल (पौध एवं बीज) की है. इसके लिए सरकार तय समयावधि में हर जिले में एक्सीलेंस सेंटर, मिनी एक्सीलेंस सेंटर या हाईटेक नर्सरी की स्थापना करेगी. इस बाबत काम भी जारी है. 2027 तक इस तरह की बुनियादी संरचना हर जिले में होगी. ऐसी सरकार की मंशा है.

बागवानी के रकबे और उपज में वृद्धि

सरकार से मिले प्रोत्साहन एवं इन्हीं संभावनाओं के चलते पिछले 7 वर्षों में किसानों को प्रोत्साहित कर फलों एवं सब्जियों की खेती के रकबे में 1.01 लाख हेक्टेयर से अधिक और उपज में 0.7 फीसद से अधिक की वृद्धि की गई. किसानों को गुणवत्ता पूर्ण पौध मिलें, इसके लिए फलों एवं सब्जियों के लिए क्रमशः बस्ती एवं कन्नौज में इंडो इजराइल सेंटर फॉर एक्सीलेंस की स्थापना हुई.

बेमौसम सब्जियां को मिलेगा बढ़ावा

नमी और तापमान नियंत्रित कर बेमौसम गुणवत्तापूर्ण पौध और सब्जियां उगाने के लिए इंडो इजराइल तकनीक पर ही संरक्षित खेती को बढ़ावा देने का काम भी लगातार जारी है.

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक

सब्जी वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश में किसानों की आय बढ़ाने का सबसे प्रभावी जरिया फलों, सब्जियों और मसालों की ही खेती है. 9 तरह का कृषि जलवायु क्षेत्र होने के नाते अलग-अलग क्षेत्रों में हर तरह के फल, सब्जियों और फूलों की खेती संभव है. इसमें लघु-सीमांत किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. इनकी संख्या कुल किसानों की संख्या में करीब 90 फीसद है. अमूमन ये धान, गेहूं, गन्ने आदि की परंपरागत खेती ही करते हैं. अगर सरकार की मंशा के अनुसार इनकी आय बढ़ानी है तो इनको फलों, सब्ज़ियों एवं फूलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करना होगा.

ड्रोन खरीद के लिए 3.65 लाख रुपये की सब्सिडी दे रही बिहार सरकार, तुरंत करें अप्लाई

0

कुछ समय पहले तक फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता था, ताकि फसल नष्ट न हो. ऐसे में किसान खुद खेतों में जाकर कीटनाशकों का इस्तेमाल करते थे. जिसका किसानों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता था. इतना ही नहीं आज भी ज्यादातर किसान इसी पद्धति का इस्तेमाल कर खेतों में कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन अब तकनीक की मदद से किसानों को इस समस्या से राहत मिल सकती है. आपको बता दें कि किसान अब ड्रोन तकनीक की मदद से आसानी से खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते हैं. इतना ही नहीं बिहार सरकार इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए किसानों को ड्रोन खरीद पर सब्सिडी भी दे रही है. आइए जानते हैं क्या है ये योजना.

60% अनुदान देगी सरकार

कृषि क्षेत्र में ड्रोन की उपयोगिता लगातार बढ़ती जा रही है. कृषि ड्रोन से जहां किसान कम समय और कम लागत में दवाओं और उर्वरकों का छिड़काव कर सकते हैं वही इससे उत्पादन में भी वृद्धि होती है. जिसको देखते हुए बिहार सरकार ने राज्य में किसानों को ड्रोन खरीदने के लिये सब्सिडी देने का निर्णय लिया है. खेतों में कीटनाशक और खाद के छिड़काव के लिए सरकार ड्रोन खरीदने पर 60 प्रतिशत अनुदान देगी. इसके लिए अधिकतम राशि 3.65 लाख रुपये तय की गई है. कृषि विभाग की ओर से राज्य के सभी 101 अनुमंडलों में चयनित लाभार्थी को एक-एक ड्रोन खरीदने के लिये पात्रता संबंधित प्रावधान तय कर दिए गए हैं.

लेना होगा प्रशिक्षण

चयनित लाभार्थी को भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्रावधानों के अनुरूप मान्यता प्राप्त संस्थान डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, बिहार कृषि विश्वविद्यालय से ड्रोन पायलट सर्टिफिकेट के लिए प्रशिक्षण लेना होगा. प्रशिक्षण पर खर्च होने वाली राशि का भुगतान कृषि विभाग करेगा. ड्रोन खरीदने के लिए लाभार्थी का चयन जिला स्तर पर किया जाएगा. सरकार ने तत्काल अनुदान के लिए 4 करोड़ रुपये भी उपलब्ध कराए हैं. इसमें केंद्र सरकार 60 फीसदी और राज्य सरकार 40 फीसदी राशि वहन करेगी. योजना का लाभ लेने के लिए कृषि विभाग की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा. कृषि विभाग का दावा है कि ड्रोन से कीटनाशक और खाद का छिड़काव करने से 30 से 35 फीसदी फसल की क्षति रुक ​​जाती है.

कौन कर सकता है आवेदन?

योजना के तहत किसानों के अलावा एफपीओ (FPO), कृषि यंत्र बैंक संचालन संगठन, एसएचजी (स्वयं सहायता समूह), एनजीओ (स्वैच्छिक संगठन), लाइसेंसी खाद-बीज विक्रेता दुकानदार के साथ ही निजी कंपनी और निबंधित संस्था भी सब्सिडी पर ड्रोन खरीद के लिए आवेदन कर सकती है. खास बात यह है कि खरीदार को बातचीत कर तय मानक का ड्रोन खरीदने की छूट दी गई है. कृषि विभाग संबंधित ड्रोन बेचने वाली कंपनी या एजेंसी के खाते में सीधे सब्सिडी की राशि का भुगतान करेगा. वहीं ड्रोन बेचने वाली कंपनी को बेचे गए ड्रोन से संबंधित पूरी जानकारी देनी होगी. चयनित लाभुक को डीजीसीए (नागर विमानन महानिदेशालय) से एनओसी भी लेना होगा. साथ ही डिजिटल स्काई प्लेटफार्म पर निबंधन कराना होगा. रेड जोन में ड्रोन उड़ाने पर रोक लगा दी गई है. इसके तहत अगर किसी जिले के अनुमंडल के सभी प्रखंड डीजीसीए की ओर से रेड जोन में चिह्नित किए गए हैं, तो यह अनुदान दूसरे अनुमंडल या जिले को ट्रांसफर कर दिया जाएगा.

जामुन की खेती से बमबम हुए पंजाब के इन दो जिलों के किसान, जीरो लागत में बंपर हो रही कमाई

पंजाब के फाजिल्का और मुक्तसर जिलों के करीब पांच गांवों के किसान इन दिनों जामुन की खेती की वजह से चर्चा में है. यहां पर किसानों के एक समूह ने जामुन की खेती से एक्स्‍ट्रा इनकम कमाई है और अब यह बागवानी मॉडल के तौर पर उभरे हैं. कृषि विशेषज्ञ जामुन को एक ऐसा फल मानते हैं जिसके लिए शायद ही किसी निवेश की जरूरत होती है. यह बदलाव किसानों, बावरिया समुदाय के कटाई करने वालों और फलों की नीलामी में बिचौलियों के तौर पर जाने जाने वाले बाकी गांव वालों की अर्थव्यवस्था में काफी योगदान दे रहा है. अब सबका ध्‍यान इसकी खेती की तरफ बढ़ रहा है.

लगने लगी जामुन की मंडी

हिन्दुस्‍तान टाइम्‍स ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है कि इस जल्दी खराब होने वाले फल के फायदेमंद बाजार को देखते हुए कुछ किसानों ने पंजाब में जामुन के बाग भी लगाने शुरू कर दिए हैं जिसे ब्लैक प्लम भी कहा जाता है. फाजिल्का में जामुन की खेती के केंद्र मुलिनवाली और ढिप्पियांवाली में इस साल गर्मियों में उगाए जाने वाले फलों ने फल व्यापारियों के बीच इतनी लोकप्रियता हासिल कर ली है कि पंजाब की इकलौती जामुन मंडी मुक्तसर जिले के पन्नीवाला फत्ता में लगती है. जंडवाला और झोतेंवाला के किसान भी बड़े पैमाने पर जामुन उगा रहे हैं. कई लोग अपनी फसल स्थानीय मंडी में ले जाते हैं, जबकि बाकी और ज्‍यादा फायदे के लिए इसे बाकी स्थानों पर ले जाते हैं.

कई राज्‍यों के व्‍यापारी करते संपर्क

मुक्तसर जिला मंडी अधिकारी (डीएमओ) रजनीश गोयल के अनुसार, इस साल 20 जुलाई तक व्यापारियों को 65 रुपये प्रति किलोग्राम की औसत कीमत पर 2,400 क्विंटल जामुन बेचा गया है. बिक्री से पता चलता है कि कई राज्यों और पंजाब के अलग-अलग हिस्सों के व्यापारियों से एक अनुमान के अनुसार 1.56 करोड़ रुपये का फल खरीदा गया था. साल 2022 में, गांव वालों ने मंडी में 776 क्विंटल जामुन बेचे, जो 2023 में बढ़कर 1,626 हो गए. गोयल ने बताया कि इस बार दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बाकी जगहों के फल व्यापारियों से संपर्क करना शुरू कर दिया है ताकि वे मलौट-फाजिल्का रोड पर स्थित जामुन मंडी का दौरा कर सकें.

जामुन की बिक्री में इजाफा

उनका कहना था कि इस साल जामुन की बिक्री में काफी इजाफा हुआ है और इसे देखकर खुशी हो रही है. उम्मीद है कि बिक्री पिछले साल की तुलना में दोगुनी होगी. पन्नीवाला फत्ता के सुखमंदर सिंह ने बताया कि उन्होंने 2018 में खेतों की सीमा पर 20 पौधे लगाए थे और आज वह‍ जामुन से 60,000 रुपये से ज्‍यादा की एक्‍स्‍ट्रा इनकम कमा रहे हैं. उन्‍होंने बताया कि करीब आठ साल पहले, भूजल स्तर में बढ़ोतरी के चलते उन्‍हें किन्नू का बाग उखाड़ना पड़ा था. चूंकि मलौट क्षेत्र एक पुराना जलभराव वाला क्षेत्र है, इसलिए मैंने छह साल पहले झिझकते हुए जामुन की खेती करने की कोशिश की.

एक पेड़ से कितनी कमाई

एक जामुन के पेड़ को फल लगने में लगभग चार साल लगते हैं और वह एक फल कटाई ठेकेदार के साथ सौदे से करीब 3,000 प्रति पेड़ कमाता हूं. उन्‍होंने बताया कि वह अपने खेतों के आसपास और पेड़ लगाने की योजना बना रहे हैं. मुक्तसर-फाजिल्का बेल्ट के निकट मलौट और अरनीवाला क्षेत्र के आसपास के इलाकों का एक आकस्मिक दौरा जामुन और जामुनी की एक बड़ी उपस्थिति को दर्शाता है, जो एक जंगली किस्म है.

 

कोरिया में कमजोर मानसून, अब खेती पर पड़ा नुकसान… सिर्फ 3% धान की हुई रोपाई

Chhattisgarh News : छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कोरिया (Koriya) जिले में मानसून फिर से कमजोर पड़ने लगा है, जिससे धान की खेती पर असर पड़ रहा है. इस बार मानसून जिले में 7 दिन देर से आया था. बारिश की कमी के कारण जिले में धान रोपनी का बुरा हाल है. सामान्य से कम बारिश होने के कारण नियत समय पर धान की बुवाई भी पूरी नहीं हो सकी है. अब तक केवल 34 फीसदी धान की बुवाई ही हुई है और 3 फीसदी खेतों में ही रोपा लगा है. जिले भर में धान की बुवाई में इस बार 15 दिनों का विलंब हुआ है. जुलाई माह की शुरुआत में बारिश ने किसानों के चेहरे पर रौनक ला दी थी…. लेकिन पहले डेढ़ हफ्ता बीतने के बाद मानसून की बेरुखी से किसान परेशान हैं.

कोरिया जिले में इस बार कम हुई बारिश

सोमवार शाम जिले में घने बादल छाने के साथ बारिश हुई…. लेकिन रुक-रुक कर हो रही बारिश से खेतों में पानी नहीं भर पा रहा है जिससे धान की बुवाई पिछड़ गई है. जिले के बैकुंठपुर, पोड़ी बचरा, और सोनहत में कम बारिश के कारण खेती पीछे है. जबकि पटना तहसील क्षेत्र में अच्छी बारिश को देखकर किसानों ने धान बीज डालने का काम शुरू कर दिया है.

पानी की कमी के चलते फसल बोने में परेशानी

अब तक जिलेभर में 95.97 प्रतिशत बिचड़ा गिराया जा चुका है. वहीं, MCB जिले में पानी की कमी के कारण सभी क्षेत्रों में धान की रोपनी शुरू भी नहीं हुई है. कृषि विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, इस साल जिले में अब तक महज 3 प्रतिशत ही धान की रोपनी हुई है. विभाग का भी कहना है कि बारिश की कमी के चलते मन मुताबिक, धान की रोपनी नहीं हो पा रही है.

बंगाल की खाड़ी में चक्रवात बनने की संभावना

मौसम विभाग के मुताबिक, एक निम्न दाब का क्षेत्र उत्तर-पश्चिम बंगाल की खाड़ी और उससे लगे पश्चिम-मध्य बंगाल की खाड़ी-तटीय ओडिशा के ऊपर बना हुआ है. वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक एचपी चंद्रा ने कहा कि प्रदेश में अनेक स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश व गरज-चमक की संभावना है.

छत्तीसगढ़ में जैविक तरीके से उगाई जा रही सुगंधित धान, जानिए किसानों को कितना होगा लाभ – Chhattisgarh paddy farming

कोरबा : कोरबा जिले के आदिवासी और वनांचल क्षेत्र पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड में जैविक खेती मिशन एवं परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत 1200 हेक्टेयर में सुगंधित धान की खेती की जाएगी. इस योजना के तहत 423 किसानों को निशुल्क बीज, जैविक खाद उपलब्ध कराए जाएंगे.साथ ही साथ खरीदी के लिए प्रति एकड़ 10 हजार रुपए भी दिए जा रहे हैं.

उर्वरकता बढ़ेगी दाम भी मिलेगा अधिक : इस योजना से एक तहत जहां किसान सुगंधित धान की पैदावार लेंगे तो वहीं दूसरी तरफ जैविक खाद परंपरा भी जारी रहेगी. यहां रासायनिक खाद का उपयोग नहीं होगा. कुछ साल पहले तक अकेले पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड के पाली-तानाखार क्षेत्र में 600 हेक्टेयर से भी अधिक रकबा में किसान सुगंधित धान की व्यवायिक खेती कर रहे थे. सामान्य धान की कीमत 3100 रूपए है. वहीं सुगंधित धान का बाजार मूल्य पांच हजार रूपये यानी 1900 रूपये अधिक होता है.राज्य सरकार दे रही ऐसी खेती को बढ़ावा : कृषि विभाग के सहायक संचालक डीपीएस कंवर का कहना है कि राज्य सरकार की ओर से परंपरागत धान की जगह अन्य फसलों को बढ़ावा देने हर संभव प्रयास किया जा रहा है. चीनी-शक्कर, जवाफूल, रामजीरा, लोहंदी, विष्णुभोग जैसे विशेष प्रजाति के धान की फसल के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है. जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए नए किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके पहले भी किसानों को प्रशिक्षित किया जा चुका है.

” जैविक खेती करने वाले किसानों का पंजीयन पृथक रूप से किया गया है. इसके तहत इन किसानों को शहर में अलग से बाजार उपलब्ध कराया जाएगा. साथ ही ट्रेडिंग कंपनियों से संपर्क कर सुगंधित चावल की खपत में प्रशानिक सहयोग दिया जाएगा। इससे अन्य किसान भी जैविक खेती की ओर आकर्षित होंगे. अधिक मुनाफा भी होगा.”- डीपीएस कंवर, सहायक संचालक कृषि विभाग

रासायनिक खाद से भी मिलेगा छुटकारा : जानकारों की माने तो किसानों में खेती को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है. प्रति एकड़ धान की अधिक से अधिक उपज पाने के लिए किसानों ने रासायनिक खाद की उपयोगिता बढ़ा दी है. जरूरत से ज्यादा रासायनिक खाद का उपयोग मिट्टी के लिए हानिकारक होता है. पहले खेतों में फसल परिवर्तन किया जाता था. अब धान के दाम बाजार में बढ़ने की वजह से किसान खरीफ के साथ रबी में भी इसकी खेती करने लगे. गेहूं और कोदो की तुलना में धान फसल में अधिक पानी लगता है. सुगंधित धान की खेती को बढ़ावा मिलने रासायनिक खाद की उपयोगिता में कमी आएगी. कम से कम एक सीमित क्षेत्र के किसानों के खेत रासायनिक खाद से मुक्त होंगे.

 

सफल किसान : छत्तीसगढ़ की Drone Didi जागृति साहू मशरूम की खेती कर बनीं लखपति किसान

वैसे तो छत्तीसगढ़ धान की खेती के लिए मशहूर है, लेकिन इस इलाके के Small and Marginal Farmers के लिए बागवानी भी आय बढ़ाने का जरिया बन रही है. इतना ही नहीं, गांव की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह (SHG) से जुड़कर खेती में कामयाब बनने का विकल्प भी तरक्की का रास्ता मुहैया करा रहा है. छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की Successful Farmer जागृति साहू इसका सटीक उदाहरण बनकर उभरी हैं. उन्होंने SHG से जुड़कर मशरूम की खेती को अपनी कामयाबी का जरिया बनाया. साथ ही सरकार की मदद से मिले तकनीकी कौशल को हासिल कर उन्होंने फसलों में दवा छिड़कने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करना सीख लिया है. अब वह ड्रोन दीदी बन कर इलाके के किसानों की फसलों का कीट प्रबंधन करने में मदद करती हैं. उन्होंने इस कामयाबी को अपने परिवार की हसरतें पूरा करने का जरिया बना लिया है. इसके बलबूते उन्होंने अपनी कमाई एक लाख रुपए से ज्यादा करके लखपति दीदी भी बन गई हैं.

मशरूम की खेती से शुरू हुआ सफर

दुर्ग जिले के छोटे से गांव मतवारी की रहने वाली जागृति साहू की कहानी प्रेरणा से भरी हुई है. उच्च शिक्षा प्राप्त जागृति ने दो विषयों में Post Graduation और B.Ed की डिग्री हासिल की है. टीचिंग को अपना करियर बनाने की चाहत रखने वाली जागृति की नियति को कुछ और ही मंजूर था. परिवार के हालात जब जागृति के सपनों की उड़ान में बाधक बने तो वह कुछ समय के लिए निराश जरूर हुईं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.

उनके पति चंदन साहू बताते है कि शिक्षक न बन पाने से जागृति के व्यवहार में बदलाव आया और वह गुमसुम रहने लगीं. इस स्थ‍िति से बाहर लाने के लिए उन्होंने अपनी और अपनी बेटी की पसंदीदा मशरूम की सब्जी उगाने का सुझाव जागृति को दिया. पति और बेटी की मनपसंद सब्जी उगाने के ख्याल ने जागृति के मन में एक नई उम्मीद जगाई और वह इस काम में जुट गईं.

चंदन बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2019 में जागृति ने स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर 33 लाख रुपये का मशरूम बेचने का कमाल कर दिखा. इस काम से जागृति ने अपने साथ दूसरी महिलाओं को भी मुनाफ़ा कमाने का मौका दिया. अब उन्होंने अपने आस पास के गांव की महिलाओं को भी मशरूम की खेती का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलंबन की राह दिखाई है. मशरूम की खेती से नई ऊँचाइयाँ प्राप्त करने पर उन्हें “Mushroom Lady of Durg” कहा जाने लगा है. इस बीच उन्होंने अपनी रुचि को बढ़ाते हुए एसएचजी के माध्यम से हर्बल गुलाल और घरेलू वस्तुएं भी बनानी शुरू कर दी हैं.

अब बनी ड्रोन दीदी

जागृति ने बताया कि उन्होंने अपने सफर काे मशरूम की खेती तक ही सीमित नहीं रखा. उन्होंने Govt Schemes का लाभ उठाकर तकनीकी कौशल भी हासिल करने का प्रयास किया. इस कड़ी में जागृति ने एक सामान्य महिला से लेकर लखपति दीदी बनने के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए ड्रोन उड़ाने का प्रशिक्षण लिया. इस संकल्प को साधने का माध्यम PM Narendra Modi के नाम से शुरू किया गया Namo App बना.

प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर शुरू हुए नमो ड्रोन दीदी अभ‍ियान में चयनित होकर उन्होंने ड्रोन चलाने का प्रशिक्षण लिया. आज वह Certified Drone Pilot हैं और ‘ड्रोन दीदी’ के नाम से जानी जाती हैं. ड्रोन के माध्यम से वह खेतों में दवाइयों का छिड़काव करती हैं और इस नई तकनीक का लाभ किसानों तक पहुंचाती हैं. इससे किसानों का समय तो बचता ही है, साथ में श्रम और खेती की लागत में भी कमी आई है.

पत्नी की कामयाबी के इस सफर के बारे में चंदन ने बताया कि जागृति शिक्षक तो नहीं बन पाईं, लेकिन आज वह कई महिलाओं के लिए व्यावसायिक शिक्षक की मिशाल जरूर बन गई हैं. अब वह कई महिलाओं को ड्रोन उड़ाने, मशरूम की खेती करने एवं घरेलू वस्तुओं के उत्पादन संबंधित तकनीकी एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण दे रही हैं. इससे उनके साथ अन्य महिलाएं भी स्वावलंबन की ओर अग्रसर हो रही हैं.

 

 

छत्तीसगढ़ के किसान 31 जुलाई तक करा सकेंगे फसल बीमा:धान, उड़द, मक्का, कोदो और कुटकी का इंश्योरेंस, फसल नुकसान पर मिलेगा मुआवजा

छत्तीसगढ़ के किसान अपनी फसल का बीमा करवा सकते हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना मौसम खरीफ साल 2024 के लिए ये बीमा किया जा रहा है। इस योजना में योजना में धान, उड़द, मूंग, मूंगफली, कोदो, कुटकी, मक्का, अरहर /तुअर, रागी और सोयाबीन को शामिल किया गया है।

इस बीमा योजना से किसानों को मौसम की मार से राहत मिल सकती है। किसानों को सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसलों को होने वाले नुकसान की भरपाई में मदद मिलेगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए 31 जुलाई तक का समय दिया गया है।

ये दस्तावेज लगेंगे

किसान अपने जिले के कलेक्टर, पंचायत या फिर कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि याेजना का फायदा लेने के लिए किसानों को अपना आधार कार्ड 31 जुलाई से पहले बैंक अपडेट करवाना होगा। फसल बीमा पोर्टल पर इसके बीना बीमा नहीं दिया जाएगा।

किसानों को आधार कार्ड की फोटो कॉपी, नवीनतम भूमि प्रमाण-पत्र (बी-1, खसरा) की कॉपी, बैंक पासबुक के पहले पन्ने की कॉपी जिस पर अकाउंट, IFSC कोड, बैंक का पता साफ-साफ दिख रहा हो। फसल बुवाई प्रमाण-पत्र, किसान का वैध मोबाइल नंबर और बटाईदार, कास्तकार, साझेदार किसानों के लिए फसल साझा, कास्तकार का घोषणा पत्र लगेगा।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की राशि

फसल का नाम बीमा राशि प्रीमियम
धान सिंचित 60 हजार प्रति हेक्टेयर 1200 रुपए
असिंचित फसल 43 हजार प्रति हेक्टेयर 860 रुपए
उड़द-मूंग 22 हजार प्रति हेक्टेयर 460 रुपए
मूंगफली 42 हजार प्रति हेक्टेयर 840 रुपए
कोदो 16 हजार प्रति हेक्टेयर 320 रुपए
कुटकी 36 हजार प्रति हेक्टेयर 720 रुपए
अरहर 15 हजार प्रति हेक्टेयर 700 रुपए
रागी 15 हजार प्रति हेक्टेयर 300 रुपए
सोयाबीन 41 हजार प्रति हेक्टेयर 820 रुपए

सरकार दे रही खाद बीज

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के निर्देश पर प्रदेश के किसानों को उनकी मांग के अनुसार खाद-बीज दिया जा रहा है। कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने अफसरों को इस पर निगरानी रखने को कहा है। प्रदेश के किसानों को अब तक 8 लाख 61 हजार मीट्रिक टन खाद और 7 लाख 85 हजार क्विंटल प्रमाणित बीज दिया जा चुका है।

48 लाख 63 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फसल बोनी का लक्ष्य

कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में मानसून की बौछारों के साथ शुरू हुए खेती-किसानी में बोनी का रकबा भी निरंतर बढ़ते जा रहा है। राज्य में अब तक 23.02 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न फसलों की बोनी हो चुकी है। राज्य सरकार द्वारा इस खरीफ सीजन में 48 लाख 63 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न फसलों की बोनी का लक्ष्य रखा गया है।

 

भेड़-बकरियों को जलभराव से बचाएगा ये रेडीमेड दो मंजिला मकान, जानें कीमत और फायदे

0

मॉनसून यानि बरसात के मौसम में पशुओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसमे सबसे बड़ी परेशानी है बारिश होने के बाद फैलने वाली बीमारियां. और इसके बाद अगर कुछ है तो वो है शेड यानि बाड़े में पानी भरने की परेशानी. बाड़े में पानी भरने यानि जलभराव होने के बाद गाय-भैंस की बात तो छोडि़ए भेड़-बकरियां भी ना तो ठीक से खड़ी ही हो पाती हैं और ना ही जमीन पर बैठ पाती हैं. दिन तो दिन उन्हें पूरी-पूरी रात खड़े होकर गुजारती पड़ती है. ऐसे में खुरपका और मुंहपका जैसी जानलेवा बीमारी के साथ ही और दूसरी बीमारियों का खतरा भी बना रहता है.

पेट में कीड़े होने की परेशानी भी इसी दौरान सामने आती है. खासतौर पर भेड़-बकरी पालकों को बरसात के दौरान होने वाली इन सारी परेशानियों को देखते हुए केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने एक खास तरीके का मकान तैयार किया है. ये दो मंजिला मकान है. इसे बकरियों का डुप्लेक्स भी कहा जाता है.

इस मकान में बकरी के बच्चों को जल्दी नहीं लगती हैं बीमारियां

सीआईआरजी के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अरविंद कुमार ने किसान तक को बताया कि बेशक दो मंजिला मकान से जगह की कमी और बचत होती है. लेकिन इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि बकरी के बच्चे बीमारियों से बच जाते हैं. वो बीमारियां जिन पर अच्छी खासी रकम खर्च हो जाती है. इस तरह के मकान में नीचे बड़ी बकरियां रखी जाती हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर छोटे बच्चे रखे जाते हैं. ऊपरी मंजिल पर रहने के चलते बच्चे मिट्टी के संपर्क में नहीं आ पाते हैं तो इससे वो मिट्टी खाने से बच जाते हैं. वर्ना छोटे बच्चे मिट्टी खाते हैं तो इससे उनके पेट में कीड़े हो जाते हैं. बड़े बकरे-बकरियों के खुर भी जलभराव में नहीं भीगते हैं तो उन्हें बीमारियां नहीं लगती हैं.

1.80 लाख रुपये में तैयार होता है दो मंजिला मकान

डॉ. अरविंद कुमार का कहना है कि एक बड़ी बकरी को डेढ़ स्क्वायर मीटर जगह की जरूरत होती है. हमने दो मंजिला मकान का जो मॉडल बनाया है वो 10 मीटर चौड़ा और 15 मीटर लम्बा है. इस मॉडल के मकान में नीचे 10 से 12 बड़ी बकरी रख सकते हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर 17 से 18 बकरी के बच्चों को बड़ी ही आसानी से रख सकते हैं. और इस साइज के मकान की लागत 1.80 लाख रुपये आती है. इस मकान को बनाने में इस्तेमाल होने वाली लोहे की एंगिल और प्लास्टिक की शीट बाजार में आसानी से मिल जाती है. रहा सवाल ऊपरी मंजिल पर बनाए गए फर्श का तो कई कंपनियां इस तरह का फर्श बना रही हैं और आनलाइन मिल भी रहा है. एक बार बनाने के बाद 18 से 20 साल तक यह मकान चल जाते हैं.

 

Apple Farming: गोरखपुर के किसान ने पहली बार की ‘शिमला सेब’ की खेती, बोले- कुछ नया करना मेरा जुनून

Gorakhpur News: शिमला का सेब (Shimla Apple) तराई में! है न चौंकाने वाली बात. पर चौंकिए मत. यह मुकम्मल सच है. ठंडे और ऊंचे पहाड़ों से शिमला के सेब को तराई में लाने की पहल हो चुकी है. ये पहल की है गोरखपुर जनपद के बेलीपार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) ने. तीन साल पहले (2021) केंद्र ने सेब की कुछ प्रजातियां हिमाचल से मंगाकर लगाईं. 2023 में इनमें फल आने लगे. इससे प्रेरित होकर पिपराइच स्थित उनौला गांव के प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र सिंह ने 2022 में हिमाचल से मंगाकर सेब के 50 पौधे लगाए. इस साल उनके भी पौधों में फल आए. इससे उत्साहित होकर वह इस साल एक एकड़ में सेब के बाग लगाने की तैयारी कर रहे हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र से जरूरी सलाह

प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि 2022 में उन्होंने हिमाचल से लाकर सेब के 50 पौधे लगाए. प्रजातियां थीं अन्ना और हरमन 99. इस साल उनमें फल भी आए. सेब की खेती के बाबत कैसे सोचे? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कुछ नया करना मेरा जुनून है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में खेतीबाड़ी पर खासा फोकस है. आसानी से पारदर्शी तरीके से तय अनुदान मिल जाता है. साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र से जरूरी सलाह भी. इन सबकी वजह से सेब की खेती शुरू की. सिंह ने बताया कि शिमला सेब की खेती के लिए अब इसे विस्तार देने की तैयारी है. पौधों का ऑर्डर दे चुका हूं. रोपण के लिए हिमाचल से उनके आने की प्रतीक्षा है.

अन्ना, हरमन-99 और डोरसेट गोल्डन प्रजातियां तराई क्षेत्र के अनुकूल

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के अनुसार जनवरी 2021 में सेब की तीन प्रजातियों अन्ना, हरमन- 99, डोरसेट गोल्डन को हिमाचल प्रदेश से मंगाकर केंद्र पर पौधरोपण कराया गया. 2 वर्ष बाद ही इनमें फल आ गए. यही तीनों प्रजातियां पूर्वांचल के कृषि जलवायु क्षेत्र के भी अनुकूल हैं.

कैसे करें सेब की खेती

धर्मेंद्र सिंह ने आगे बताया कि संस्तुत प्रजातियों का ही चयन करें. अन्ना, हरमन – 99, डोरसेट गोल्डन आदि का ही प्रयोग करें. बाग में कम से कम दो प्रजातियां का पौध रोपण करें. उन्होंने बताया कि इससे परागण अच्छी प्रकार से होता है एवं फलों की संख्या अच्छी मिलती है. फल अमूमन 4/4 के गुच्छे में आते हैं. शुरुआत में ही कुछ फलों को निकाल देने से शेष फलों की साइज और गुणवत्ता बेहतर हो जाती है.

नवंबर से फरवरी रोपण का उचित समय

पौधों के रोपण का उचित समय नवंबर से फरवरी है. जनवरी-फरवरी में पौध लगाना सर्वोत्तम होता है.

लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी 10/12 फीट रखें

पौधों का रोपण लाइन से लाइन व पौधे से पौधा 10 से 12 फीट की दूरी पर करें. इस प्रकार प्रति एकड़ लगभग 400 पौधे का रोपण किया जा सकेगा.

3-4 वर्ष में ही 80 फीसद पौधों में आने लगते फल

रोपाई के तीन से चार वर्ष में 80 फीसद पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं. 6 वर्ष में पूरी फलत आने लगती है. इस तरह कम समय की बागवानी के लिए भी सेब अनुकूल है.

सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए इस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी, जानें स्टेप बाय स्टेप प्रोसेस

मध्य प्रदेश सरकार राज्य के किसानों के विकास के लिए लगातार कार्य कर रही है. किसानों को सरकार की तरफ से चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है और उनके लिए सरकारी लाभ लेना आसान हो सके, इसलिए प्रक्रिया को और आसान बनाया जा रहा है. प्रदेश के किसानों के सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने में आसानी कएमपी किसान पोर्टल तैयार किया गया है. इतना ही नहीं किसानों को राज्य में चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए राज्य के किसानों को इस किसान पोर्टल पर रजिस्टर कराना होगा. रजिस्ट्रेशन कराने के बाद किसान बीज, सिंचाई संबंधित योजनाओं का लाभ आसानी से ले सकते हैं.

किसान पोर्टल पर रजिस्टर कराने के लिए किसान अपने नजदीकी एमपी ऑनलाइन केंद्र में जाकर रजिस्टर कर सकते हैं. किसान Kisan.mp.gov.in की वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं या फिर खुद से भी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं. पंजीकरण कराने के लिए किसानों को कृषि योजना का लाभ लेने के लिए पंजीकरण लिंक पर क्लिक करना होगा. पंजीकरण करने के लिए कई जरूरी दस्तावेजों की जरूरत होती है. किसान ध्यान रखें की उससे पहले अपने पास सभी कागजात रख लें. इस खबर में हम आपको बताएंगे की रजिस्ट्रेशन करने का पूरा प्रोसेस क्या है.

यहां समझे प्रोसेस

  • सबसे पहले किसान Kisan.mp.gov.in की अधिकारिक वेबसाइट पर जाएं.
  • जैसे ही इस पोर्टल का होम पेज खुलेगा स्क्रिन पर एक पॉप अप आएगा. जिसमें यह लिखा रहेगा की किसान 12 मिनट के अंदर अपना रजिस्ट्रेशन पूरा कर लें.
  • होम पेज पर लिखी तमाम जानकारी को अच्छे से पढ़ें
  • होम पेज पर ही आप रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी दस्तावेज की जानकारी हासिल कर सकते हैं.
  • होम पर नीचे कृषि योजना पर पंजीयन करने का विकल्प आएगा.
  • इस विकल्प पर क्लिक करने के बाद एक नया पेज खुल जाएगा, जिसमें लिखा रहेगा की आप आधार कार्ड के जरिए रजिस्ट्रेशन करना चाहते हैं या फिर जमीन के कागजात की जानकारी के जरिए रजिस्टर करना चाहते हैं.
  • अगर आप आधार पंजीयन का विकल्प चुनते हैं को ओटीपी पंजीयन या बॉयोमिट्रीक पंजीयन का विकल्प आएगा.
    अगर आप आधार पंजीयन का विकल्प चुनते है तो आपको आधार नंबर डालने के लिए कहा जाएगा, फिर आपके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर एक ओटीपी आएगा. इसे भरने के बाद रजिस्ट्रेशन के लिए पेज खुल जाएगा, जहां पर आपको पूरी जानकारी भरनी होगी .
  • अगर आप बॉयोमेट्रिक पंजीयन का विकल्प चुनते हैं तो आपको अपना बॉयोमेट्रिक देना होगा, फिर पूरी जानकारी भरनी होगी.
  • जो किसान भू अभिलेख के जरिए पंजीयन कराना चाहते हैं वो भू अभिलेख द्वारा पंजीयन पर क्लिक कर सकते हैं.
  • इसके बाद एक पेज खुलेगा जहां किसान को अपनी जमीन से संबंधित जानकारी भरनी होगी. इस तरह से किसान इस पोर्टल पर रजिस्टर कर सकते हैं.

रजिस्ट्रेशने के लिए दस्तावेज

  • किसान का आधार कार्ड
  • जमीन से संबंधित कागजात
  • किसान का जाति प्रमाण पत्र
  • फोटो

छत्तीसगढ़ में यहां है इकलौता किसान स्कूल, धरोहर के तौर रखा गया है पुराने कृषि यंत्र, जानिए इसका मकसद

जांजगीर चांपा: छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिला स्थित बहेराडीह ग्राम में प्रदेश का एक मात्र किसान स्कूल है, जहां किसानों को खेती से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी दी जाती है. साथ ही विलुप्त हो हरे कृषि औजार को धरोहर के तौर पर सहेजकर रखा गया है. ये ऐसे कृषि औजार हैं, जिसका 80 से 90 के दशक के बीच किसान खेती में उपयोग करते थे. इन कृषि औजारों को नई पीढ़ी के लिए सहेजकर रखा गया है. इसमें किसान स्कूल संचालक दीनदयाल यादव का अहम याेगदान है.

प्रदेश का एकमात्र किसान स्कूल यहां होता है संचालित

संचालक दीनदयाल ने बताया कि बहेराडीह किसान स्कूल प्रदेश का पहला ऐसा स्कूल है जो पूरी तरह से किसानों को समर्पित है. जिले के पत्रकार स्व. कुंज बिहारी के नाम पर इस किसान स्कूल का नाम रखा गया है. यहां छत्तीसगढ़ का अलावा अलग-अलग राज्यों के किसान सहित अन्य लोग मिलकर भारत की जो परंपरागत कृषि है, उसको बचाने के लिए अभियान चला रहे हैं. इस अभियान को नाम “पुरखा का सुरक्षा” रखा गया है. इस पुरखा का सुरक्षा अभियान में पुरानी चीजें जो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया है, उसका संरक्षण और संवर्धन नई पीढ़ी के लिए किया जा रहा है. वहीं इस संग्रहालय का नाम धरोहर रखा है.

संग्रहालय में सहेजकर रखा गया है पुराने कृषि यंत्र

संचालक दीनदयाल ने बताया कि बहेराडीह किसान स्कूल में पुरानी कृषि पद्धति और पुराने यंत्र को सहेजकर रखा गया है. उन्होंने बताया कि किसान स्कूल में धरोहर अपने आप में एक मात्र ऐसा संग्रहालय होगा, जहां पुराने कृषि यंत्रों को सहेज कर रखा जा रहा है. कृषि यंत्र में दौरी, नागर हल, बेलन श्सीामिल है. वहीं जब बिजली का आविष्कार नहीं हुआ था तो उस समय कंडील और गैस (मेंटल युक्त) चिमनी (मिट्टी तेल से जलने वाला) जाटा (सुखा अनाज पीसने वाला आटा चक्की), लकड़ी से खाना बनाने वाला दुकलहा चूल्हा, धान से चावल कूटने के लिए ढेकी, धान को नापने के लिए काठा, कोनी जैसे कई पुराने चीजों को सहेजकर रखा गया है. इस धरोहर में सेल्फी जोन है, क्योंकि लोग घूमने के ख्याल से पुरानी चीजों को देखने आते हैं.यहां खुमरी (बांस से बनी टोपी) पहनकर लोग सेल्फी लेते है.

 

छत्तीसगढ़ के बाजार में आ गई बगैर खेती के उगने वाली सब्जी, 2000 रुपये प्रति किलो है कीमत

मॉनसून की बारिश के साथ ही छत्तीसगढ़ और झारखंड के जंगलों से एक खास प्रकार की सब्जी बाजारों में आने लगती है. जो बेहद महंगी बिकती है. इसकी खासियत यह होती है कि इसकी खेती करने के लिए किसानों को ना कोई बीज डालना पड़ता है और ना ही मेहनत करनी पड़ती है. यह जंगलों में प्राकृतिक रूप से तैयार होती है, जिसे जमीन से निकालकर बाजार में लाकर बेचा जाता है. यह सिर्फ बरसात के सीजन में एक महीने के लिए मिलता है. इसलिए इसकी कीमत बहुत अधिक रहती है. बरसात के सीजन में खास कर नॉनवेज खाने वाले लोग इस सब्जी को खूब पसंद करते हैं. इस खास सब्जी को पुटू कहा जाता है.

छत्तीसगढ़ के सरगुजा और बस्तर जिले के जंगलों में बरसात के दिनों में यह पाई जाती है. स्थानीय ग्रामीण जंगल में जाकर उस सब्जी को जमीन से निकालते हैं और बाजार में लाकर बेचते हैं. फिलहाल बाजार में इसकी कीमत 2000 रुपये प्रति किलोग्राम है.स्थानीय भाष में पु्ट्टू कही जाने यह सब्जी मशरूम की एक प्रजाति होती है. दिखने में यह सफेद और छोटी गोली की तरह गोल-गोल होती है. बारिश का मौसम आते ही सरगुजा , बस्तर जिलें के अलावा राज्य के अन्य जिलों में भी यह सब्जी बिकती है. यह ट्राइबल संस्कृति और खानपान का हिस्सा है. यह से इस खास सब्जी की सप्लाई देश के और भी दूसरे राज्यों में होती है.

भूरे रंग की होती है यह सब्जी

यह सब्जी इसलिए भी महंगी बिकती है क्योंकि लोग इसे खाने के लिए पूरे साल इंतजार करते हैं. इस सब्जी के हो जाने के बाद इसे खाने और बेचने वाले दोनों की खुश हो जाते हैं. पुटू जमीन में उगने वाली एक जंगली खाद्य सब्जी है. यह सब्जी साल पेड़ के नीचे से निकलती है. बारिश से होने वाली उमस में यह सब्जी जमीन के अंदर आकर ले लेती है ,जो कि आलू से भी छोटा होता है. पुटू सब्जी के दो प्रकार होते हैं. इस सब्जी का रंग भूरा होता है. जिसमें ऊपर की परत पतली रहती है और अंदर का गुदा सफ़ेद रंग का होता है. सरगुजा संभाग में साल वृक्ष क्षेत्र ज्यादा है इसलिए यहां यह सब्जी होती है.

औषधीय गुणों से भरपूर है सब्जी

बारिश की शुरूआत में जब यह सब्जी बाजार में आती है उस वक्त यह 2000 रुपये प्रति किलो की दर से बिकती है. पर उसके बाद धीरे-धीरे इसकी कीमत कम होती है और यह 200-300 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकती है. पुटू में प्रोटीन और विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं. डाइटीशियन अक्सर वजन संतुलित रखने के लिए पुटू के इस्तेमाल की सलाह देते हैं. क्योंकि इसमें कैलोरी काफी कम होती है. इसमें औषधीय गुण होते हैं जो हृदय की समस्याओं और हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती हैं. साथ ही यह अन्य बीमारियों को ठीक करने में भी मदद कर सकता है

पूरे साल इस सब्जी का होता है इंतजार

पुटू खरीद रहे एक ग्राहक ने कहा कि इस सब्जी का इंतजार हम लंबे समय से करते हैं. साल भर इंतजार करने के बाद बारिश के मौसम में यह सब्जी बाजार में आता है. खास बात यह है कि इसकी खेती नहीं है. यह जंगलों में मिलता है. पुटू देश की इकलौती ऐसी सब्जी है जो सरगुजा और बस्तर के जंगलों में मिलती है. कीमत भी अच्छी खासी महंगी होने के बावजूद हम यह सब्जी खरीद कर खाते हैं. इस सब्जी के स्वाद के आगे नॉनवेज भी फेल है.

Seeds Distribution : छत्तीसगढ़ सरकार हुई नकली खाद बीज के वितरण पर सख्त, पर्याप्त उपलब्धता का दिया भरोसा

छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय सरकार ने किसानों को खरीफ सीजन में खाद और बीज आदि संसाधन जुटाने के लिए छोटे ऋण बिना किसी परेशानी के वितरित कराने के पुख्ता इंतजाम करने का दावा किया है. इसके समानांतर सरकार ने किसानों को Cooperative Societies के माध्यम से Seeds, Pesticides and Chemical Fertilizer के वितरण का काम भी तेज कर दिया है. वहीं, बाजार में खाद बीज की बढ़ती मांग को देखते हुए किसानों को नकली खाद बीज वितरित किए जाने के खतरे के मद्देनजर निगरानी तंत्र को चाक चौबंद कर दिया है. सरकार की तरफ से भरोसा दिलाया गया है कि चालू खरीफ सीजन में खाद वितरण के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, उसकी तुलना में आधे से ज्यादा हिस्सा किसानों को वितरित किया जा चुका है. साथ ही खरीफ सीजन की फसलों को बोने के लिए किसानों को जिन अन्य संसाधनों की जरूरत होती है, उन्हें पूरा करने के लिए किसानों को अब तक 5 हजार करोड़ रुपये का Agriculture Loan सरकार से दिया जा चुका है.

खूब बंट रही खाद

छत्तीसगढ़ में खरीफ सीजन के लिए किसानों को विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों की कमी न हो, इसके लिए सरकार ने पुख्ता इंतजाम करने का दावा किया है. कृष‍ि विभाग की ओर से बताया गया कि गत 8 जुलाई तक किसानों को 8 लाख 61 हजार 606 मीट्रिक टन रासायनिक खाद का वितरण किया जा चुका है.

विभागीय आंकड़ों के मुताबिक इसमें 4 लाख 10 हजार 199 मीट्रिक टन Urea, 2 लाख 5 हजार 397 मीट्रिक टन DAP, 98 हजार 329 मीट्रिक टन NPK, 39 हजार 40 मीट्रिक टन पोटाश तथा एक लाख 8 हजार 662 मीट्रिक टन Super Phosphate शामिल है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक किसानों को इस सीजन में जितना खाद उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया गया है, उसका 63 फीसदी खाद अब तक वितरित किया जा चुका है.
गौरतलब है कि चालू खरीफ सीजन के लिए राज्य में सहकारिता एवं निजी क्षेत्र के माध्यम से किसानों को 13 लाख 68 हजार मीट्रिक टन खाद वितरि‍त करने का लक्ष्य निर्धारित है. इसके मुताबिक अब तक 12 लाख 79 हजार 915 मीट्रिक टन का खाद का भंडारण करा लिया गया है. सहकारिता एवं निजी क्षेत्र में अभी भी 4 लाख 18 हजार 308 मीट्रिक टन रासायनिक उर्वरक किसानों के लिए उपलब्ध है.

कृष‍ि ऋण भी हो रहा वितरित

विभाग की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक सरकार ने चालू खरीफ सीजन में किसानों को 7 हजार 300 करोड़ रुपये का कृषि ऋण वितरित किए जाने का लक्ष्य तय किया है. इसकी तुलना में अब तक 4 हजार 965 करोड़ 70 लाख रुपये का ऋण किसानों को दिया जा चुका है. यह निर्धारित लक्ष्य का 68 प्रतिशत है.

आसान शर्तों पर मिलने वाले इस इस ऋण की मदद से किसान खरीफ सीजन की फसलों के लिए जरूरी संसाधन जुटा सकते है. सरकार का कहना है कि पिछले साल की तुलना में इस साल किसानों को ज्यादा कृष‍ि ऋण वितरित किया गया है. पिछले साल इसी अवधि में राज्य के किसानों को 4 हजार 762 करोड़ रुपये का कृष‍ि ऋण दिया गया था. खरीफ वर्ष 2023 में किसानों को कुल 7 हजार 40 करोड़ 7 लाख रुपये का कृषि ऋण दिया गया था. सरकार ने दावा किया है कि चालू खरीफ सीजन में कृष‍ि ऋण पिछले साल की सीमा को पीछे छोड़ देगा.

खाद-बीज की गुणवत्ता पर सख्त निगरानी

सीएम विष्णु देव साय ने किसानों को नकली या खराब खाद बीज और कीटनाशक दवाओं के वितरण पर सख्ती से रोक लगाने का निर्देश दिया है. इस पर अमल करते हुए कृष‍ि विभाग ने पूरे राज्य में रासायनिक खाद, बीज एवं फसल की दवाओं की गुणवत्ता पर सख्त निगरानी रखने का दावा किया है. कृषि विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी अपने-अपने इलाकों में लगातार छापेमारी करके बीज, खाद और कीटनाशक औषधियों के Sample Collect कर रहे हैं. इसकी जांच Quality Control Lab में की जा रही है. इस कार्रवाई में अब तक बीज के 71 नमूने, रासायनिक खाद के 18 नमूने तथा दवाओं के 19 नमूने जांच में नाकाम साबित हुए हैं. इनके विक्रय पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाकर संबंधित फर्मों को कृषि विभाग ने नोटिस जारी किया है.

विभाग की ओर से बताया गया कि रासायनिक खाद के 2638 नमूने एकत्र कर जांच के लिए प्रयोगशाला भेजे गए हैं. अभी तक प्राप्त रिपोर्ट में 896 नमूने मानक स्तर पर खरे उतरे हैं और 18 नमूने मानकों की कसौटी पर नाकाम साबित हुए हैं. इनमें से 1664 नमूने अभी जांच की प्रक्रिया में हैं, जबकि 60 नमूने किन्हीं कारणों से निरस्त कर दिए गए हैं. खाद, बीज और कीटनाशक आदि दवाओं के मानकों का पालन सुनिश्चित कराने की दिशा में की गई कार्रवाई के आधार पर Legal Action लिया गया है. विभाग ने इस दिशा में आगे भी इसी तरह की कार्रवाई जारी रखने का भरोसा दिलाया है.

इन महिलाओं को सरकार दे रही 450 रुपये में गैस सिलेंडर, महंगाई से मिली राहत

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि देश के लगभग सभी राज्यों में सामान्य गैस सिलेंडर की कीमत 800 रुपये से अधिक हो गई है. उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्य हैं जहां वर्तमान में गैस सिलेंडर 1120 रुपये की कीमत पर उपलब्ध है. वहीं दूसरी ओर सरकार ने अब गैस सिलेंडर की कीमत घटाकर मात्र 450 रुपये कर दी है. इससे कई नागरिकों को राहत मिली है.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मध्य प्रदेश सरकार ने अपने नागरिकों को गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमत से राहत दिलाने के लिए एक बहुत बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है. मध्य प्रदेश सरकार ने उस योजना का नाम मुख्यमंत्री गैस सिलेंडर योजना रखा है जिसके तहत वह मध्य प्रदेश के नागरिकों को कम कीमत पर सिलेंडर उपलब्ध कराएगी.

मुख्यमंत्री गैस सिलेंडर सब्सिडी योजना

हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मध्य प्रदेश की महिलाओं के लिए एक नई योजना शुरू की गई है. मध्य प्रदेश सरकार ने इस नई योजना का नाम मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री गैस सिलेंडर सब्सिडी योजना रखा है. इस योजना के तहत मध्य प्रदेश सरकार अब मध्य प्रदेश की महिलाओं को बहुत ही कम कीमत पर गैस सिलेंडर उपलब्ध कराएगी.

यह मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है. इस महत्वपूर्ण कदम का मुख्य उद्देश्य नारी शक्ति को मजबूत करना है. इस योजना के तहत मध्य प्रदेश की महिलाएं अब मात्र 450 रुपये में गैस सिलेंडर प्राप्त कर सकती हैं.

इन महिलाओं को मिलेगा लाभ

इस योजना के तहत जो महिला लाडली बहन योजना के लिए आवेदन कर रही है, वह इस योजना के तहत लाभ प्राप्त कर सकती है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस योजना के तहत सब्सिडी का पैसा उन महिलाओं के बैंक खाते में जाएगा, जिन्होंने अपना गैस कनेक्शन बैंक खाते से लिंक करा रखा है. इस योजना के तहत एक महिला 1 साल में कुल 12 गैस सिलेंडर ले सकती है. प्रत्येक गैस सिलेंडर की कीमत मात्र 450 रुपये होगी.

गैस सिलेंडर सब्सिडी योजना के लाभ

  • मध्य प्रदेश सरकार इस योजना का लाभ उन महिलाओं को देगी जिनके नाम पर गैस कनेक्शन है.
  • इस योजना के तहत अब महिलाओं को गैस सिलेंडर के लिए मात्र 450 रुपये देने होंगे.
  • इस योजना के तहत महिलाओं को साल में 12 गैस सिलेंडर मिलेंगे और वो भी 450 रुपये की कीमत पर.
  • सामान्य तौर पर देखा जाए तो मध्य प्रदेश में एक गैस सिलेंडर की कीमत 900 रुपये है. इस हिसाब से इस योजना के तहत महिलाओं को काफी राहत मिल रही है.
  • इतना ही नहीं इस योजना के तहत अगर कोई महिला महीने में एक गैस सिलेंडर की मरम्मत कराती है तो उस महिला को सीधे उसके बैंक खाते में 300 रुपये की सब्सिडी भी मिलेगी.
  • इस योजना के तहत मध्य प्रदेश सरकार में 1200 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है.

इन योजना के लिए पात्रता

  • इस योजना में आप तभी आवेदन कर पाएंगे जब आप मध्य प्रदेश के स्थायी निवासी होंगे.
  • यानी इस योजना में केवल मध्य प्रदेश के स्थायी निवासी ही आवेदन कर सकते हैं.
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत लाभ पाने वाली महिला भी इस योजना के लिए पात्र मानी जाएगी.
  • इस योजना के लिए केवल वही महिलाएं पात्र हैं जिनका बैंक खाता आधार कार्ड से जुड़ा है और जिनके नाम पर गैस कनेक्शन है.
  • इस योजना के लिए केवल मध्य प्रदेश में रहने वाली गरीब महिलाएं ही पात्र हैं.