अब यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए भारत तेजी से लिक्विड नैनो फर्टिलाइजर की तरफ बढ़ रहा है, जिसमें नैनो यूरिया और नैनो डीएपी के प्रयोग की सलाह दी जा रही है. सरकार का दावा है कि नैनो यूरिया और नैनो डीएपी से कम खर्च में अधिक उत्पादन हो सकता है. हालांकि, इन दावों को लेकर किसानों और कृषि विशेषज्ञों के बीच विवाद है. सरकार कह रही है कि एक बोरी यूरिया की जगह अब नैनो यूरिया की एक छोटी बोतल काफी होगी. तकनीक के इस कमाल से किसानों को यूरिया के बोरे लाने-ले जाने, मेहनत, ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा और घर में रखने के लिए जगह जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी. जब आप बाजार जाएं, तो दस चीजों के साथ नैनो फर्टिलाइजर की एक बोतल भी ले सकते हैं. इसके लिए अलग से बाजार जाने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, नैनो फर्टिलाइजर के उपयोग के तरीके को लेकर अभी किसानों में जानकारी का अभाव है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के पूर्वी क्षेत्र पटना के वैज्ञानिकों ने नैनो फर्टिलाइजर के सही उपयोग के सुझाव दिए हैं.
धान में नैनो यूरिया का प्रयोग कब और कैसे?
ICAR RCER पटना के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि धान की टॉप ड्रेसिंग में यूरिया की जगह नैनो यूरिया का प्रयोग करें. पहला छिड़काव धान की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद करें और अगर सीधी बुवाई कर रहे हैं, तो 35 से 40 दिन बाद करें. दूसरा छिड़काव 40 से 50 दिन बाद और तीसरा फसल की जरूरत के अनुसार करें.
ICAR के वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ खेत के लिए बैट्री चालित स्प्रेयर मशीन का उपयोग करते समय 1.5 से 3 ढक्कन नैनो यूरिया प्रति टंकी में मिलाकर छिड़काव करें. इसके लिए 8 से 10 टंकी पानी की जरूरत होती है. अगर पावर स्प्रेयर का उपयोग कर रहे हैं, तो प्रति टंकी 3 से 4 ढक्कन नैनो यूरिया की जरूरत होगी और 4 से 6 टंकी पानी की जरूरत पड़ेगी.ड्रोन से छिड़काव करते समय, फसल की जरूरत के अनुसार प्रति एकड़ 250 से 500 मिलीलीटर नैनो यूरिया का उपयोग करें. इसमें ड्रोन में 1 से 3 टंकी पानी की जरूरत होती है. एक ढक्कन में 25 मिलीलीटर नैनो यूरिया होता है.
नैनो डीएपी का धान में प्रयोग का तरीका
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अनुसंशित मात्रा की डीएपी का आधा हिस्सा खेत की तैयारी के समय प्रयोग करें और शेष आधी मात्रा नैनो डीएपी के माध्यम से डालें. इससे लागत में कमी और बेहतर परिणाम मिलेंगे. धान की नर्सरी डालने से पहले नैनो डीएपी से बीज उपचार करें. इसके लिए 3 से 5 मिलीलीटर नैनो डीएपी प्रति किलो बीज में मिलाकर उपचारित करें. इसके बाद, रोपाई से पहले 3 से 5 मिलीलीटर नैनो डीएपी को प्रति लीटर पानी में घोलकर धान की जड़ों को उपचारित करें और फिर धान की रोपाई करें.नैनो डीएपी का छिड़काव धान की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद या सीधी बुवाई के 30 से 35 दिन बाद 2 से 4 मिलीलीटर नैनो डीएपी प्रति लीटर पानी में मिलाकर करें. सामान्यत: नैनो डीएपी की एक एकड़ खेत के लिए 250 से 500 मिलीलीटर जरूरत होती है.
किस मशीन से करें नैनो फर्टिलाइजर का प्रयोग
ICAR के वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ खेत के लिए बैट्री चालित स्प्रेयर मशीन से 1 से 2 ढक्कन (यानि 25 से 50 मिलीलीटर) नैनो डीएपी प्रति टंकी में मिलाकर छिड़काव करें. इसके लिए 8 से 10 टंकी पानी की जरूरत होती है. पावर स्प्रेयर से करते समय प्रति टंकी 2 से 3 ढक्कन (यानि 50 से 75 मिलीलीटर) नैनो डीएपी की जरूरत होती है और इसके लिए 4 से 6 टंकी पानी की जरूरत पड़ती है. ड्रोन से छिड़काव करते समय, फसल की जरूरत के अनुसार प्रति एकड़ 250 से 500 मिलीलीटर नैनो डीएपी की जरूरत होती है. इसमें ड्रोन के लिए 1 से 2 टंकी पानी की जरूरत होती है, जो कुल मिलाकर 10 से 20 लीटर पानी होता है.
इन बातों का किसान खास ध्यान दें
• नैनो तरल उर्वरक का घोल बनाने के लिए साफ पानी का प्रयोग करें.
• स्प्रेयर से छिड़काव करने के लिए फ्लैट फैन या कट नोजल का प्रयोग करें.
• सुबह या शाम के समय छिड़काव करें जब पत्तियों पर ओस के कण न हों और अच्छे से अवशोषण हो सके. अगर छिड़काव के 12 घंटे के भीतर बारिश हो जाए तो पुनः छिड़काव करें.
नैनो उर्वरक के कई फायदे
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि नैनो उर्वरकों को समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के मौजूदा ढांचे में निर्वाध रूप से समाहित किया जा सकता है. नैनो उर्वरकों का प्रयोग जब जैविक संशोधनों के साथ किया जाता है, तो यह अपने उन्नत पोषक तत्व रिलीज गुण के साथ मिट्टी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों के लाभों को पूरा कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पौधे की वृद्धि और उत्पादकता पर सह-क्रियात्मक प्रभाव पड़ता है. इसलिए समेकित पोषक तत्व प्रबंधन में नैनो उर्वरक की शुरुआत टिकाऊ कृषि के लक्ष्यों के अनुरूप है. पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता में सुधार करके और उर्वरक अनुप्रयोग की कुल मात्रा को कम करके नैनो उर्वरक पोषक तत्वों के अपवाह, भूजल प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान देते हैं.