Thursday, November 21, 2024
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धान की फसल में लगते हैं ये खतरनाक रोग, जानिए क्या हैं इनके लक्षण और कैसे होगा ईलाज

धान खरीफ सीजन की प्रमुख फसल है. इसकी खेती देश के लगभग सभी भागों में होती है. देश में इसका रकबा लगभग 400 लाख हेक्टेयर होता है, जो किसी भी और फसल से अधिक है. इस समय अधिकांश राज्यों में इसकी रोपाई के लिए खेत तैयार कर लिए गए हैं. नर्सरी लगभग तैयार है. धान की खेती किसानों को अच्छा मुनाफा देती है, लेकिन अगर इसमें लगने वाले रोगों और कीटों का सही तरीके से मैनेजमेंट करें तब. हम धान की फसल में लगने वाले कीटों के बारे में जानकारी दे चुके हैं. आज इसमें लगने वाले रोगों के बारे में विस्तार से बताएंगे, जिससे कि किसानों को पता हो कि कौन-कौन से रोग किस वजह से लगते हैं और प्रमुख रोगों का निदान क्या है.

सफेदा रोग

यह रोग लौह तत्व यानी आयरन की कमी के कारण नर्सरी में अधिक लगता है. इसमें नई पत्तियां कागज के समान सफेद रंग की निकलती हैं.

खैरा रोग

यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है. इस रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, जिन पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं.

शीथ ब्लाइट

इस रोग में पत्र केंचुल (शीथ) पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं, जिनका किनारा गहरा भूरा तथा मध्य भाग हल्के रंग का हो जाता है.

झोंका रोग

इस रोग में पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं, जो मध्य में राख के रंग के तथा किनारे गहरे कत्थई रंग के होते हैं. पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डंठलों, पुष्प शाखाओं एवं गांठों पर काले भूरे धब्बे बनते हैं.

भूरा धब्बा

इस रोग में पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अथवा अंडाकार धब्बे बन जाते हैं. इन धब्बों के चारों तरफ पीला घेरा बन जाता है तथा मध्य भाग पीलापन लिए हुए कत्थई रंग का होता है.

मिथ्या कण्डुआ

इस रोग में बालियों के कुछ दाने पीले रंग के पाउडर में बदल जाते हैं, जो बाद में काले हो जाते हैं.

जीवाणु झुलसा

इस रोग में पत्तियां नोंक अथवा किनारे से एकदम सूखने लगती हैं. सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं.

प्रमुख रोगों के नियंत्रण के उपाय

जीवाणु झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा से प्रति 28 किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करनी चाहिए.

झोंका एवं भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए थीरम 75 प्रतिशत डब्ल्यूएस की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा काबेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करनी चाहिए.

शीथ ब्लाइट एवं मिथ्या कण्डुआ रोग के नियंत्रण के लिए काबेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करनी चाहिए.

Bhumika

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