सब्जियां आमतौर पर विटामिन्स, मिनरल्स, और फाइबर का अच्छा स्रोत होती हैं, जो हमारे शरीर के लिए आवश्यक होते हैं. इनमें विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन के, पोटैशियम, और फोलेट शामिल हैं. सब्जियों में लो-कैलोरी होती हैं और उनमें फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जिससे आपका भोजन संतुलित और भरपूर महसूस होता है. इतना ही नहीं इससे वजन नियंत्रण में मदद मिलती है. सब्जियों में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो पाचन क्रिया को सुधारने में मदद कर सकती है और कब्ज से राहत दिला सकती है. ऐसे में आइए जानते हैं सब्जी की किस्म को ‘NSC Queen’ कहा गया है और क्यों? साथ ही यह भी जानेंगे की किस सीजन में ‘NSC Queen’ की खेती कर सकते हैं.
देसी और हाइब्रिड किस्म में अंतर
करेले की दो किस्में होती हैं एक देशी और दूसरी हाइब्रिड. करेले की हाइब्रिड किस्म तेजी से बढ़ती है और देशी किस्म की तुलना में जल्दी तैयार हो जाती है. इसमें फलों का आकार सामान्य किस्म के करेले से बड़ा होता है. बाजार में इसकी कीमतें भी अच्छी हैं. इसलिए ज्यादातर किसान हाइब्रिड करेले के बीज का इस्तेमाल करते हैं. हालाँकि, हाइब्रिड करेले के बीज स्थानीय बीजों की तुलना में थोड़े अधिक महंगे हैं. आपको बता दें NSC Queen एक हाइब्रिड किस्म है.
NSC Queen किस्म की खासियत
आपको बता दें NSC करेला को NSC Queen का दर्जा दिया गया है. किसान फसलों की खेती के अलावा सब्जियों की खेती करके भी आसानी से अपनी आय बढ़ा सकते हैं. अगर आप भी सब्जियों की खेती करने की सोच रहे हैं तो इस महीने में करेले की खेती कर सकते हैं. करेले की खेती भारत के लगभग सभी राज्यों में की जाती है. करेले में कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं, जिसके कारण इसकी मांग बाजारों में हमेशा बनी रहती है. करेले की खेती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि करेले की खेती में लागत से अधिक आय होती है. करेले की उन्नत किस्म ‘NSC Queen’ की खेती करके किसान प्रति एकड़ 60 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं करेले की इस उन्नत किस्म के बारे में.
बुवाई के लिए खेत की तैयारी
बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार किया जाना चाहिए और उसमें खरपतवार नहीं होने चाहिए. साथ ही जल निकास की अच्छी सुविधा होनी चाहिए. 1-2 गहरी जुताई, मिट्टी को सूरज की रोशनी में रखना चाहिए, बारीक जुताई के लिए 3 से 4 बार हैरो से जुताई करें. अंतिम हैरो से पहले, मिट्टी में पैदा होने वाले कवक को नियंत्रित करने के लिए 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा के साथ 8 – 10 मीट्रिक टन अच्छी तरह से विघटित एफवाईएम/एकड़ का प्रयोग करें.
कब करें करेला की बुवाई
भारत में अधिकतर किसान साल में दो बार करेले की खेती करते हैं. जहां सर्दी के मौसम में किसान करेले की किस्मों की बुआई जनवरी-फरवरी में करते हैं और इसकी पैदावार मई-जून में प्राप्त करते हैं. वहीं गर्मी के मौसम में करेले की बुआई जून और जुलाई में करने के बाद दिसंबर तक इसकी पैदावार प्राप्त की जा सकती है.