मछली पालन आज के दौर में किसानों के लिए एक मुनाफे का सौदा बन कर उभर रही है. फिलहाल हमारे देश में अधिकांश मछली पालक पारंपरिक तरीके से मछली पालन करते हैं जिसमें तालाब और टैंक विधि शामिल है. हालांकि खेत में मछली पालन भी एक पारंपरिक तरीका है. इसमें जबतक खेत में पानी रहता है तबतक किसान मछली पालन कर सकते हैं. धान के खेत में मछली पालन करने से धान की खेती को भी फायदा होता और मछलियों की ग्रोथ भी तेजी से होती है. धान की खेती में मछली पालन की पद्धति को चक्रीय खेती कहा जाता है. इसमें धान के खेत में मछली के बच्चे डाल दिए जाते हैं. इसके बाद धान की कटाई करने बाद खेत को अस्थायी तालाब के रूप में बदल दिया जाता है.
इसके अलावा संयुक्त विधि से भी धान के खेत में मछली पालन किया जाता है. इन दोनों की पद्धति में मछली का संग्रहण, घनत्व और मछली का उत्पादन अलग-अलग होता है. संयुक्त खेती की तुलना में चक्रीय खेती ज्यादा फायदेमंद मानी जाती है. देश में धान के खेतों में मुख्य तौर पर कॉमन कार्प (तालाब की बड़ी मछली) प्रजाति की मछली का पालन किया जाता है. यह मछलियों की एक प्रमुख प्रजाति होती है. हालांकि यह किसान पर निर्भर करता है कि किसान खेत में सिर्फ मछली पालन करता है या उसके साथ में मछली की मिश्रित खेती भी करता है. हालांकि एशियाई देशों में धान के खेतों में अलग-अलग तरीके से मछली पालन किया जाता है.
खेत में मछलियों की स्टॉकिंग
खेत में मछली पालन करने के लिए आम तौर पर खेत के मेड़ के पास 30-45 सेंटीमीटर गहरी ट्रेंच खोदी जाती है. इसके बगल में बाहरी तरफ 25 सेंटीमीटर ऊंचा तटबंध बनाया जाता है जिससे पानी के खेत में आने जाने का मार्ग बनता है. खेत में धान की रोपाई करने के एक सप्ताह पर खेत में मछली की स्टॉकिंग की जा सकती है. मछली की स्टॉकिंग की मात्रा मछली की उम्र जगह और खेत के प्रकार पर निर्भर करता है. खेत में मछलियों की स्टॉकिंग करने के लिए एक सेंटीमीटर आकार की फ्राय या फिंगरलिंग मछली उपयुक्त मानी जाती है. ध्यान रहे कॉमन कार्प या तिलापिया की स्टॉकिंग करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं. एक हेक्टेयर खेत में मछलियों की संख्या 3000-4000 तक हो सकती है. अगर किसान धान के खेत में मछली पालन करते हैं तो खेत में पानी की मात्रा 7 से 18 सेंटीमीटर के बीच बनाए रखना चाहिए.
एक हेक्टेयर में होने वाली पैदावार
खेत में मछली पालन करने पर प्रतिदिन खेत में कुल मछलियों की बॉयोमास का पांच प्रतिशत चारा खेत में डालना चाहिए. मछलियों का चारा सोयाबीन, गरी आटा और चावल की भूसी से मिलाकर बनाया जा सकता है. 30 दिनों के बाद मछलियों की सैंपलिग की जानी चाहिए. इस दौरान पानी बाहर निकाल देना चाहिए. सैंपलिग करने के बाद फिर से खेत में पानी भर देना चाहिए. आम तौर पर मछली के बढ़ने की अवधि 70 से 100 दिन के बीच की होती है. इसलिए धान की कटाई से एक सप्ताह पहले मछलियों को निकाल लेना चाहिए. अगर 100 दिन तक खेत में मछली को छोड़ दिया जाए तो प्रति हेक्टेयर 200-300 किलो मछली की पैदावार हासिल की जा सकती है.