Sunday, December 22, 2024
Homeकृषि समाचारपंजाब में उठी धान की इस किस्म पर बैन लगाने की मांग,...

पंजाब में उठी धान की इस किस्म पर बैन लगाने की मांग, वैज्ञानिकों ने भी जताई चिंता

पूर्व नौकरशाह काहन सिंह पन्नू ने बताया कि वे घटते जल स्तर और राज्य के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने पर इसके प्रभाव को लेकर बेहद चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि हमने देखा है कि खड़े पानी में धान की खेती, खासकर मानसून की शुरुआत से पहले, जल संसाधनों के लिए एक आपदा है.

पंजाब में गिरते भूजल स्तर पर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना के पूर्व छात्रों ने चिंता जताई है. ऐसे में पूर्व छात्रों ने पंजाब सरकार से धान की रोपाई की तारीख को स्थगित करने का अनुरोध किया है. साथ ही धान की पूसा-44 किस्म पर प्रतिबंध लगाने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा है. छात्रों का कहना है कि पूसा-44 किस्म की खेती में पानी की बहुत अधिक खपत होती है. चूंकि पंजाब में अधिकांश किसान ट्यूबवेल से ही धान की सिंचाई करते हैं. इसलिए भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय भूजल बोर्ड की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में भूजल स्तर हर साल दो फीट की दर से घट रहा है और अगले कुछ वर्षों में 1,000 फीट की गहराई तक सभी तीन जलभृतों में भूजल पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा. यही वजह है कि 15 साल बाद, पंजाब जल संरक्षण पहल समूह ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र लिखकर उनसे तत्काल ध्यान देने की मांग की है. इस समूह में कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस जोहल, डॉ. गुरदेव सिंह खुश, डॉ. रतन लाल और डॉ. बीएस ढिल्लों सहित अन्य विश्व स्तर पर प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ शामिल हैं.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

पूर्व नौकरशाह काहन सिंह पन्नू ने द ट्रिब्यून को बताया कि वे घटते जल स्तर और राज्य के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने पर इसके प्रभाव को लेकर बेहद चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि हमने देखा है कि खड़े पानी में धान की खेती, खासकर मानसून की शुरुआत से पहले, जल संसाधनों के लिए एक आपदा है. पंजाब उप मृदा जल संरक्षण अधिनियम, 2009, जिसके तहत धान बोने की तारीख 10 जून से तय की गई थी, कुछ हद तक जल संकट को दूर करने में आधारशिला थी. उन्होंने कहा कि पिछले 15 वर्षों के दौरान, कृषि वैज्ञानिक धान की ऐसी किस्में विकसित करने में सक्षम हुए हैं जो पकने में 20-30 दिन कम लेती हैं, और इन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

20 जून से होगी धान की रोपाई

समूह ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि उनका अंतिम लक्ष्य जुलाई के पहले सप्ताह में मॉनसून की शुरुआत के साथ ही धान की रोपाई करना होना चाहिए. लेकिन तब तक सरकार को तुरंत धान रोपाई का शेड्यूल 20 जून से आगे कर देना चाहिए. इसी प्रकार 7 जून से धान की सीधी बिजाई की अनुमति दी जाए. इसके अलावा समूह ने आग्रह किया है कि राज्य सरकार को लंबी अवधि वाली पूसा-44, पीली पूसा और डोग्गर पूसा इन किस्मों की सरकारी खरीद पर रोक लगाकर इनकी बुआई पर रोक लगानी चाहिए. यह एक तथ्य है कि ये किस्में न केवल पानी की खपत करती हैं, बल्कि धान के भारी अवशेषों के मामले में पर्यावरणीय खतरे भी हैं.

समूह ने बताया कि इन किस्मों के आधार बीज का उत्पादन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली (पूसा किस्मों की मूल संस्था) द्वारा लगभग पांच साल पहले बंद कर दिया गया था. इन वैज्ञानिकों ने कहा कि अधिकांश किसान पहले ही कम अवधि वाली किस्मों की ओर स्थानांतरित हो चुके हैं.

 

Bhumika

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments