Friday, October 18, 2024
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एकीकृत खेती से बढ़ेगी किसानों की कमाई, पशुपालन विभाग बता रहा खेत में एक साथ 10 काम करने के तरीके

झारखंड में किसानों की आय बढ़ाने के लिए पशुपालन विभाग की तरफ से विशेष पहल की जा रही है. इसके तहत किसानों को उन्नत खेती करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. झारखंड में पशुपालन विभाग की तरफ से किसानों को एकीकृत खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. अलग-अलग कार्याशाल के माध्यम से किसानों को यह प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसे सीख जाने के बाद ना सिर्फ किसानों का उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि कृषि में उनकी लागत भी कम होगी. इससे उनका मुनाफा बढ़ेगा और कमाई बढ़ेगी. इस कार्यशाला में शामिल होकर किसान कई प्रकार की फसलों की खेती करने के अलावा विभिन्न प्रकार की कृषि से जुड़ी गतिविधियों के बारे में भी जानकारी हासिल करेंगे.

जिला पशुपालन अधिकारी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि विभाग की तरफ से किसानों को जागरूक करने के लिए नियमित रूप से कार्यशालाओं का आय़ोजन किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि एकीकृत खेती एक विश्वसनीय तरीका है, और इसलिए, किसान इसके माध्यम से अपने मुनाफे को दोगुना या तिगुना कर सकते हैं. इतना ही नहीं इसमें फायदा यह है कि अगर किसी प्राकृतिक आपदा के कारण एक फसल पूरी तरह से नष्ट हो जाती है तब भी किसानों के पास दूसरी चीजों से पैसे कमाने का विकल्प मौजूद रहेगा. इससे किसानों को पूरी तरह से नुकसान कभी नहीं होगा.

क्या होती है एकीकृत खेती

किसानों को एकीकृत खेती के बारे में जानकारी दे रहे अशोक कुमार ने कहा कि एकीकृत खेती कृषि का एक ऐसा मॉडल है जो किसानों को खेतों में 10 अलग-अलग कार्य करने का मौका देती है. इसके तहत किसान गाय पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन, बतख पालन और मछली पालन करते हैं. साथ ही अलग अलग प्रकार के सब्जियों और फसलों की खेती की जाती है. इसमें अगर फसल बर्बाद भी हो जाती है तो दूध, पनीर अंडा मुर्गी या बकरी बेचकर किसान पैसा कमा सकते हैं. यह एक ऐसा मॉडल है जिसमें किसान को पूरे साल भर खेत से कुछ ना कुछ मिलता रहता है. इसके तहत किसान मोटे अनाज की भी खेती कर सकते हैं.

विभाग की तरफ से चलाई जा रही योजनाएं

इसके साथ ही जिला अधिकारी ने बताया कि राज्य के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभाग की तरफ से कई योजनाएं भी चलाई जा रही है. इसके तहत बैल जोड़ी वितरण योजना, सुअर पालन विकास योजना और अन्य शामिल हैं. योजनाओं के तहत सरकार दूध निकालने के लिए विशेष मशीनें भी मुहैया कराती है. इसका लाभ किसान उठा रहे हैं. आज के दौर में एकीकृत खेती इसलिए अच्छी मानी जाती है क्योंकि मौसम में हमेशा उतार चढ़ाव होते रहते हैं और किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है. पर अगर किसान एकीकृत खेती करते हैं तो वो मौसम की मार से बच सकते हैं. इस प्रशिक्षण और विभाग की योजनाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए रांची स्थित पशुपालन और मत्स्य पालन विभाग से संपर्क कर सकते हैं.

बड़ी खुशखबरी: विदा हो गया अल नीनो, इस साल मॉनसून में झमाझम होगी बारिश

किसानों के लिए खुशखबरी है. अल नीनो (el nino) अब विदा हो गया है. बहुत जल्द उसकी जगह ला नीना लेने वाला है. जान लें कि अल नीनो और ला नीना दोनों ऐसी मौसम घटनाएं हैं जिनके बीच छत्तीस का आंकड़ा रहता है. यानी अल नीनो जहां सूखा लाता है, तो वहीं ला नीना बारिश कराता है. दुनिया की कई वेदर एजेंसियों का दावा है कि अल नीनो की विदाई हो चुकी है और उसकी जगह ला नीना (la nina) आने वाला है. सबसे अच्छी बात ये है कि मॉनसून के दौरान ला नीना एक्टिव होगा. इसलिए मान कर चलें कि इस दफे मॉनसून में झमाझम बारिश होगी. पिछली बार तो अल नीनो ने बारिश को नॉर्मल से भी कम पर रोक दिया था.

भू विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव और भारत के आला मौसम वैज्ञानिकों में एक एम राजीवन ने ‘डेक्कन हेराल्ड’ को इस बारे में जानकारी दी है. एम राजीवन कहते हैं, अल नीनो चला गया है और मौसम का ठंडा फेज आने वाला है. इससे अच्छे मॉनसून की संभावनाएं बन सकती हैं. अगले मॉनसून सीजन में किसी भी तरह के सूखे की आशंका को नकारा जा सकता है. मई का इंतजार कीजिए, आपको कुछ अच्छी खबर मिल सकती है.

पिछले साल का हाल

पिछले साल के मॉनसून को याद करें तो आपको अल नीनो के खतरे का एहसास हो जाएगा. भरे मॉनसून के सीजन में अल नीनो ने बारिश का काम खराब कर दिया था. अगस्त में इसका असर सबसे अधिक दिखा और देश में बारिश की मात्रा 36 फीसद से भी कम पर अटक गई. आपको ये भी ध्यान होगा कि अगस्त में जब पूरे देश में झमाझम बारिश होती है, पिछले साल तीन हफ्ते तक एक भी बूंद का नामो-निशान नहीं दिखा.

इस साल की संभावना

हालांकि तभी भारत में मौसम की एक बड़ी घटना हुई जिसे इंडियन ओशन डाइपोल या IOD कहते हैं. आईओडी के बारे में कहा जाता है कि जब यह अपना असर दिखाता है, तो बड़े-बड़े अल नीनो भी घुटके टेक देते हैं. पिछले साल सितंबर में भी यही हुआ. अगस्त जहां भयंकर सूखे की चपेट में गया, तीन हफ्ते बारिश नहीं हुई. वहीं सितंबर में पॉजिटिव आईओडी ने अल-नीनो को धूल चटा दिया और 94 फीसद तक मॉनसून की बारिश हो गई. ध्यान रखें कि आईओडी अपना लोकल मौसम परिवर्तन है, जबकि अल नीनो वैश्विक घटनाक्रम है.

क्या कहती है रिपोर्ट?

इस दफे अगर ला नीना समय पर आता है तो 1987-88 की तरह भारत में एक रिकॉर्ड बनेगा. उस साल भी अल नीनो के विदा होते ही ला नीना एक्टिव हो गया था, बारिश अच्छी दर्ज हुई थी. दुनिया की तमाम वेदर एजेंसियों की रिपोर्ट देखें तो ला नीना के एक्टिव होने की संभावना बेहतर है. लिहाजा, इस बार मॉनसून में बारिश की कमी का रोना नहीं होगा. किसान खरीफ फसलों के लिए नहीं जूझेंगे. अच्छी बारिश होगी तो फसलें भी अच्छी होंगी और देश की महंगाई भी काबू में रहेगी. बस नजर इस बात पर टिकी है कि कितनी जल्दी ला नीना एक्टिव होता है.

Onion Export Ban: प्याज एक्सपोर्ट बैन जारी रहने के बाद क्या करेंगे किसान, कैसे बचेगी खेती?

किसानों की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए केंद्र सरकार ने प्याज एक्सपोर्ट बैन को 31 मार्च 2024 से आगे भी जारी रखने का फैसला लिया है. निर्यातबन्दी जारी रखने के निर्णय से किसानों की परेशानी और चिंता काफी बढ़ गई है, क्योंकि जब तक एक्सपोर्ट नहीं होगा तब तक उन्हें बाजार में बहुत कम दाम मिलेगा. ऐसे में प्याज उत्पादक किसान आखिर क्या करेंगे. बड़ा सवाल यही है कि कैसे वह निर्यातबन्दी की पॉलिसी से होने वाले नुकसान से बचेंगे. किसानों का कहना है कि वह निर्यातबन्दी खत्म होने तक प्याज का स्टोर करेंगे. उम्मीद है कि सरकार लोकसभा का चुनाव खत्म होते ही निर्यात ख़ोल देगी.

महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि अगर रबी सीजन का भी पयाज उन्होंने औने-पौने दाम पर बेचा तो फिर उनके ऊपर काफी कर्ज बढ़ जाएगा और इससे उनकी खेती प्रभावित होगी. इसलिए कोशिश यह रहेगी कि ज्यादा से ज्यादा वक्त तक प्याज को स्टोर करके रखा जाए, ताकि समय आने पर अच्छा दाम मिले. इसके अलावा किसानों के पास कोई और विकल्प नहीं है. क्योंकि सरकार ने वह सारे रास्ते बंद कर दिए हैं जिससे दाम बढ़ने की संभावना होती है.

स्टोर होता है रबी सीजन का प्याज

खरीफ सीजन में निकलने वाला प्याज स्टोर करने लायक नहीं होता, इसलिए खेत से निकलते ही उसकी आनन-फानन में बिक्री करना किसानों की मजबूरी होती है. लेकिन रबी सीजन के प्याज के साथ ऐसा नहीं है. रबी सीजन का प्याज स्टोर किया जा सकता है. इसलिए अभी किसानों के पास यह विकल्प मौजूद है कि वह चुनाव तक किसी भी तरह से अपना प्याज स्टोर में रोक कर रखें और उसके बाद उसे बेचें. रबी सीजन का स्टोर किया हुआ प्याज दिवाली के त्योहार तक चलता है. किसानों को उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव के बाद सरकार प्याज एक्सपोर्ट बैन का फैसला वापस ले सकती है.

अगस्त 2023 से जारी है हस्तक्षेप

प्याज उत्पादक किसानों के नेता भारत दिघोले का कहना है सरकार प्याज किसानों जितना किसी को भी परेशान नहीं कर रही है. सरकार प्याज किसानों के हितों पर लगातार चोट पर चोट कर रही है..इसकी वजह से किसान प्याज की खेती काम कर रहे हैं.

अगस्त 2023 में जब प्याज का दाम बढ़ना शुरू हुआ तब सरकार ने उसे घटाने के लिए 40% एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई. उसके बाद भी दाम नहीं कम हुआ तो नवंबर 2023 में 800 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य तय कर दिया गया. उसके बाद भी दाम नहीं घटा तो 7 दिसंबर की देर रात एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया. यह बैन 31 मार्च 2024 तक लागू था. लेकिन अब इसे अनिश्चितकालीन के लिए बढ़ा दिया गया है. जिससे किसान हैरान हैं कि आखिर सरकार उन्हें कब तक परेशान करती रहेगी. कब तक वो घाटा सहकर प्याज बेचते रहेंगे.

असम चाय के उत्पादन में 50 फीसदी तक गिरावट की संभावना, क्या कीमतों में भी आएगी उछाल?

असम में कम बारिश के कारण नए चाय सीजन की शुरुआत बुरी तरह प्रभावित हुई है. देश के शीर्ष उत्पादक राज्य में चाय उत्पादक किसान अब चिंतित हैं. क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि पिछले साल की तुलना में इस साल असम फर्स्ट फ्लश चाय का उत्पादन लगभग 30-50 प्रतिशत कम होगा. अब तक असम में स्थिति बहुत खराब है. हालांकि, बागवानों के लिए राहत की बात यह है कि अब तक पहली फसल की गुणवत्ता काफी अच्छी रही है. अमलगमेटेड प्लांटेशन के प्रबंध निदेशक और सीईओ विक्रम सिंह गुलिया ने कहा कि हमें उम्मीद है कि बाजार में इसका अच्छा रेट मिलेगा.

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, टी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रभात कमल बेजबोरुआ ने बताया कि अब तक पिछले साल की एक-चौथाई बारिश हो चुकी है. इस साल पहली फ्लश फसल पिछले साल की तुलना में लगभग 30-50 प्रतिशत कम होगी. वहीं, विक्रम सिंह गुलिया ने कहा कि असम में मार्च के महीने में अब तक कोई बारिश नहीं हुई है. उत्तर भारत में, पिछले साल मार्च में चाय का कुल उत्पादन 65 मिलियन किलोग्राम से अधिक था. टी रिसर्च एसोसिएशन (टीआरए) के अनुमान के अनुसार, इस साल यह कम से कम 40 प्रतिशत कम होगा.

इस वजह से उत्पादन में आएगी गिरावट

विक्रम सिंह गुलिया ने कहा कि अगर बारिश नहीं हुई तो असम चाय का उत्पादन 50 फीसदी तक भी नीचे गिर सकता है. अगर बारिश होती है, तो यह पिछले साल की तुलना में लगभग 35 प्रतिशत कम हो सकती है. टी बोर्ड इंडिया के आंकड़ों के अनुसार, असम ने मार्च 2023 में 34.04 मिलियन किलोग्राम चाय का उत्पादन किया, जबकि पिछले कैलेंडर वर्ष में राज्य का कुल उत्पादन 674.89 मिलियन किलोग्राम था. असम चाय उद्योग के लिए, पहली फ्लश फसल आम तौर पर मार्च और अप्रैल में उत्पादित की जाती है.

अच्छी क्वालिटी वाली होती है असम चाय

हालांकि, दूसरा फ्लश अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली असम चाय माना जाता है. दूसरी फ़्लश फसलें, जो प्रीमियम कीमतों पर बिकती हैं. आम तौर पर मई और जून में उत्पादित होती हैं. नॉर्थ ईस्टर्न टी एसोसिएशन (NETA) के सलाहकार बिद्यानंद बरकाकोटी ने कहा कि असम के सभी जिलों में फसल तोड़ने का काम कमोबेश शुरू हो गया है. मार्च में चाय का उत्पादन कम रहेगा. लेकिन अप्रैल में क्या होगा ये कहना मुश्किल है. इसलिए, अप्रैल में तस्वीर और अधिक स्पष्ट होगी. वहीं, जानकारों का कहना है कि यदि असम चाय के उत्पादन में 50 फीसदी की गिरावट आती है, तो इसकी कीमतों में भी बढ़ोतरी हो सकती है.

बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने मचाई तबाही, झारखंड-ओडिशा में किसानों को हुआ भारी नुकसान

ओडिशा और झारखंड में पिछले दिनों बारिश, तेज हवा और ओलावृष्टि की गतिविधियां देखी गई. इसके कारण खेती को काफी नुकसान हुआ है. ओडिशा और झारंखड में कई जगहों पर किसानों की खड़ी फसल नष्ट हो गई है. झारखंड में जहां सब्जियों की फसल खास कर तरबूज और मटर को नुकसान हुआ है. वहीं ओडिशा में भारी बारिश से किसानो के खेतों में पानी भर गया और किसानों की फसल बर्बाद हो गई है. झारखंड में इसके अलावा तैयार गेहूं की खड़ी फसल को कई जगहों पर नुकसान हुआ है. अब किसान मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि झारखंड में फसल क्षतिपूर्ति का मुआवजा किसानों को ना के बराबर मिलता है. ऐसे में किसानों की परेशानी बढ़ गई है.

ओडिशा के केंद्रपाड़ा और जाजपुर में भारी बारिश हुई है. बेमौसमी बारिश के कारण दोनों ही जिलों में फसलों को काफी नुकसान हुआ है. ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर के अनुसार केंद्रपाड़ा के तटीय इलाके औल, महाकालपाड़ा, राजनगर, मर्सघाई, राजकनिका और गारदपुर ब्लॉक के कई गांवों से बेमौसम बारिश के कारण फसलों के बर्बाद होने की शिकायत मिली है. बारिश के कारण किसानों की सब्जी और मूंग की खेती को नुकसान पहुंचा है. भरतपुर के एक 40 वर्षीय किसान प्रह्लाद जेना ने बताया कि तेज हवा के साथ मूसलाधार बारिश हुई. इसके कारण बड़े हिस्से में मूंग और सब्जियों की खेती को नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि अगर बारिश नहीं होती तो अभी किसान मूंग की फसल की कटाई कर रहे होते. पर अब उनके सामने कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है.

बंपर फसल की उम्मीद में थे किसान

किसान नेता और कृषक सभा की जिला इकाई के अध्यक्ष उमेश चंद्र सिंह ने कहा कि बारिश ने पूरी तरह से किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है जो मूंग की बंपर फसल की उम्मीद कर रहे थे. केंद्रपाड़ा के मुख्य जिला कृषि अधिकारी (सीडीएओ) मनोज चंद ने कहा कि विभाग के अधिकारियों को हर ब्लॉक में फसल क्षति का आकलन करने के लिए कहा गया है. फसल क्षति रिपोर्ट मिलने के बाद प्रभावित किसानों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाएगा. जाजपुर में भी विभिन्न हिस्सों में मौसम बिगड़ने से से सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ और फसलें क्षतिग्रस्त हो गई हैं. यहां पर कई प्रखंडों में बारिश के कारण मूंग और मूंगफली की खेती प्रभावित हुई है.

ओलावृष्टि से गेहूं को नुकसान

इधर झारखंड में भी कई स्थानों पर बारिश और ओलावृष्टि ने कहर बरपाया है. खूंटी जिले के तोरपा और रनिया प्रखंड में बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ दी है. ओलावृष्टि के कारण खेत में उनकी खड़ी फसल बर्बाद हो गई है. गुटुहातू गांव के एक किसान हेरमन गुड़िया ने बताया कि उनके गांव के अधिकांश किसानों ने सब्जी की खेती की थी. उन्होंने बताया कि इससे पहले हाथियों ने फसल को नुकसान पहुंचाया था. अब प्राकृतिक आपदा ने किसानों की कमर तोड़ दी है. चंपाबादा गांव के किसान विजय पाहन ने बताया कि उनके गांव में चना, गेहूं और सब्जी की फसल को ओलावृष्टि के कारण नुकसान हुआ है.

तरबूज किसानों को भारी घाटा

रांची के ओरमांझी प्रखंड में भी तरबूज की खेती करने वाले किसानों को ओलावृष्टि और बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ है. ओरमांझी के किसान आदित्य कुमार साहू ने बताया कि प्रखंड के कई गांवों में ओलावृष्टि के कारण किसानों को काफी नुकसान हुआ है. यह तरबूज की खेती का मौसम है. अधिकांश किसान प्रखंड में तरबूज की खेती करते हैं. ऐसे में ओलावृष्टि के कारण सिर्फ उनके गांव और आसपास के गांवों में लगभग 300-400 एकड़ खेत में तरबूज की फसल बर्बाद हो गई है. आदित्य ने बताया कि उनके चार एकड़ खेत में तरबूज की फसल बर्बाद हो गई. इससे उन्हें लगभग तीन लाख रुपये का नुकसान हुआ है.

Gehu Katne Ki Machine : 30 किसानों का काम 1 घंटे मे निपटा देगी यह Reaper Binder Machine

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रीपर बाइंडर (Reaper Binder Machine – Gehu Katne Ki Machine) एक कृषि मशीन है जो अनाजों की कटाई और बाँध काम के लिए उपयोग की जाती है। यह Gehu Katne Ki Machine, धान, और अन्य अनाजों को काटकर उन्हें बाँधने के काम में सहायक होती है। इसका उपयोग अनाजों की कटाई को तेजी से और प्रभावी ढंग से करने के लिए किया जाता है।

रीपर बाइंडर मशीन (Reaper Binder Machine – Gehu Katne Ki Machine) में एक कटाई यंत्र होता है जो किसान की मांग के हिसाब से ऊंचाई और कटाई की गहराई को समायोजित करने में मदद करता है। यह मशीन गहरी घास और अन्य रोकटों को काटने में सक्षम होती है।

उन्हें साइकलिंडर के माध्यम से ऊपर उठा लेती है। फिर, इसके बाद, अनाज को बाँधने की प्रक्रिया के लिए एक अलग यंत्रिक सिस्टम का उपयोग किया जाता है।

रीपर बाइंडर मशीन (Reaper Binder Machine – Gehu Katne Ki Machine)

रीपर बाइंडर मशीन Reaper Binder Machine की एक और महत्वपूर्ण विशेषता है कि यह अनाज को बाँधने के लिए भी सक्षम होती है। इसके लिए, यह मशीन बिंदिंग सिस्टम का उपयोग करती है जो धागा या धरा को अनाज के बंडल्स में बाँधने के लिए जिम्मेदार होता है। यह सिस्टम बाँधे गए अनाज के बंडल्स को स्थिर रखता है ताकि वे खेत से सुरक्षित रूप से हटाए जा सकें।

रीपर बाइंडर मशीन Reaper Binder Machine का उपयोग कृषि कार्यों को तेजी से पूरा करने में मदद करता है और किसानों को काम के समय और लागत में बचत करने में सहायक होता है। इसके उपयोग से किसान अपनी उत्पादनता को बढ़ा सकते हैं और अपने कृषि उत्पादों की गुणवत्ता को बनाए रख सकते हैं।

रीपर बाइंडर मशीन क्या है? (What is Reaper Binder Machine?)

रीपर बाइंडर मशीन Reaper Binder Machine फसल की कटाई के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई है। इसमें 1.2 मीटर चौड़ा कटर बार होता है। यह मशीन 10.5 एचपी डीज़ल इंजन के द्वारा चलाई जाती है। Gehu Katne Ki Machine में चार आगे और एक पिछले गियर होता है। इस मशीन का उपयोग न केवल फसल की कटाई के लिए किया जाता है, बल्कि यह उन फसलों के बंडल भी बनाती है जिन्हें कटा गया है।

इस Gehu Katne Ki Machine की मदद से 5 से 7 सेमी ऊपर फसल की कटाई आसानी से की जा सकती है। इस मशीन से भूसे का कोई नुकसान नहीं होता है। यह मशीन गेहूं के अलावा जौ, धान, और जेई जैसी कई अन्य फसलों की कटाई और बंडल बनाने के लिए उपयोग की जाती है।

रीपर बाइंडर की विशेषताएं (Features of Reaper Binder – Gehu Katne Ki Machine)

  • रीपर बाइंडर का उपयोग 10.5 एचपी के एकल सिलेंडर एयर कूल्ड डीजल इंजन द्वारा किया जाता है।
  • इस मशीन में आगे की ओर दो चालक पहिये होते हैं।
  • रीपर बाइंडर में क्लच, ब्रेक, स्टीयरिंग, पावर ट्रांसमिशन और ऑपरेटर की सीट शामिल होती है।
  • कटर बार की चौड़ाई 1.2 मीटर होती है।
  • यह मशीन कटाई के श्रम को कम करती है और अनाज को नुकसान से बचाती है।

    रीपर बाइंडर मशीन के होते है 4 प्रकार (Types of Reaper Binder Machine)

रीपर बाइंडर मशीन (गेहूं काटने की मशीन) के प्रकार:

  • ट्रैक्टर संचालित रीपर बाइंडर गेहूं काटने की मशीन (फ्रंट और बैक माउंट): यह Reaper Binder Machine ट्रैक्टर के साथ जोड़ी जाती है और अनाज की कटाई और बाँधने का काम करती है। इसमें ट्रैक्टर के फ्रंट या बैक में माउंट किया जा सकता है।
  • स्ट्रॉ रीपर बाइंडर गेहूं काटने की मशीन: यह Reaper Binder Machine मशीन स्वतंत्रता से चलती है और फसल की कटाई और बंडलिंग का काम करती है। इसमें स्ट्रॉ यूनिट होती है जो फसल को काटती है और फिर उसे बंडल्स में बाँधती है।
  • स्वचालित रीपर बाइंडर गेहूं काटने की मशीन: यह Reaper Binder Machine मशीन आपरेटर के निर्देशानुसार स्वचालित रूप से काम करती है। यह अधिकतर बड़े खेतों में उपयोग की जाती है जहाँ ज्यादा प्रदर्शन की आवश्यकता होती है।
  • पीछे से चलने वाली रीपर बाइंडर गेहूं काटने की मशीन: यह मशीन एक ट्रैक्टर के पीछे जोड़ी जाती है और फसल की कटाई और बंडलिंग का काम करती है। इसका प्रमुख फायदा यह है कि यह ट्रैक्टर की प्रदर्शन को कम अवधि में ज्यादा काम करती है।

गेहूं काटने की मशीन की कीमत (Gehu Katne Ki Machine Price)

रीपर बाइंडर मशीन कीमत विभिन्न कारणों पर निर्भर करती है, जैसे कि मशीन की क्षमता, टेक्नोलॉजी, ब्रांड और बाजार के परिस्थितियों। आमतौर पर, रीपर बाइंडर मशीन की कीमत (Reaper Binder Machine Price) 80,000 से 5,00,000 रुपये के बीच हो सकती है। यह आपके खेतों के आकार, उत्पादन की मात्रा और अन्य आवश्यकताओं के आधार पर भी बदल सकती है।

भारत मे ट्रैक्टर की बम्पर बिक्री मे ये रही Top 10 Tractor Companies in India

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Top 10 Tractor Companies in India : भारत में कृषि का अद्वितीय महत्व है, जिसमें ट्रैक्टर का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। ट्रैक्टर किसानों को विभिन्न खेती के कामों में सहायक होता है, जैसे कि खेत में हल चलाना, बीज बोना, फसल काटना, और उत्पादों को बाजार तक पहुंचाना।

भारत में कई ट्रैक्टर निर्माता कंपनियाँ हैं, जो विभिन्न प्रकार के और आकार के ट्रैक्टर उत्पन्न करती हैं। यहाँ पर कुछ विदेशी भी हैं, और कुछ देशी भी।

लेकिन भारत में कौनसी कंपनी सबसे अधिक ट्रैक्टरों की बिक्री करती है? आइए, हम जानते हैं भारत के Top 10 Tractor Companies in India के बारे में।

1. महिंद्रा एंड महिंद्रा

महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड भारत की अग्रणी ट्रैक्टर कंपनी है, जो 1963 से ट्रैक्टरों का निर्माण कर रही है। इन ट्रैक्टरों की प्रस्तुति किसानों में विशेष पसंद है, क्योंकि वे टिकाऊ, मजबूत, और ईंधन दक्ष होते हैं। महिंद्रा के ट्रैक्टरों की शक्ति 15 से 75 HP तक की होती है।

कुछ प्रमुख मॉडलों में :

  • Mahindra Tractor 275 DI,
  • Mahindra 575 DI,
  • Mahindra युवो 575 DI,
  • Mahindra अर्जुन नोवो 605 DI, और
  • Mahindra जियो 25 DI शामिल हैं।

महिंद्रा ने जनवरी 2024 में 20,474 ट्रैक्टरों की बिक्री की।

2. महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड की स्वराज डिविजन

महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड भारत की अग्रणी ट्रैक्टर कंपनी है, जो 1963 से ट्रैक्टरों का निर्माण कर रही है। इन ट्रैक्टरों की प्रस्तुति किसानों में विशेष पसंद है, क्योंकि वे टिकाऊ, मजबूत, और ईंधन दक्ष होते हैं। महिंद्रा के ट्रैक्टरों की शक्ति 15 से 75 HP तक की होती है।

कुछ प्रमुख मॉडलों में :

  • Mahindra Tractor 275 DI,
  • Mahindra 575 DI,
  • Mahindra युवो 575 DI,
  • Mahindra अर्जुन नोवो 605 DI, और
  • Mahindra जियो 25 DI शामिल हैं।

महिंद्रा ने जनवरी 2024 में 20,474 ट्रैक्टरों की बिक्री की।

2. महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड की स्वराज डिविजन

महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड की स्वराज डिविजन भी एक विशेष ब्रांड है, जो 1974 से ट्रैक्टरों का निर्माण कर रही है। स्वराज के ट्रैक्टर Swaraj Tractors भी किसानों के बीच में बहुत लोकप्रिय हैं, क्योंकि इनमें भी उसी प्रकार की गुणवत्ता होती है। Top 10 Tractor Companies in India ली list में महिंद्रा का यह दूसरा डिवीजन है।

स्वराज के ट्रैक्टर 15 से 60 HP तक की शक्ति वाले होते हैं। कुछ प्रमुख Swaraj Tractor मॉडल शामिल हैं:

  • Swaraj 744 FE,
  • Swaraj 855 FE,
  • Swaraj 735 XT,
  • Swaraj 963 FE,
  • Swaraj 717, आदि।
  • स्वराज ने जनवरी 2024 में 16,456 ट्रैक्टरों की बिक्री की।

3. इंटरनैशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड

भारतीय कंपनी इंटरनैशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड का नाम Sonalika Tractors है, जो 1995 से ट्रैक्टरों का उत्पादन कर रही है। यह कंपनी भारत में एक बड़ा ट्रैक्टर निर्माता है और इसका नाम उच्च गुणवत्ता और विश्वसनीयता के साथ जुड़ा है। सोनालिका ट्रैक्टर किसानों के लिए उपयुक्त, प्रदर्शनशील, और आर्थिक होते हैं।

इनके ट्रैक्टर 20 से 120 HP तक की शक्ति के बीच होते हैं और इसमें कई प्रसिद्ध मॉडल्स शामिल हैं, जैसे कि :

  • Sonalika 745 DI III,
  • Sonalika 750 III,
  • Sonalika 60 RX,
  • Sonalika 42 DI Sikander,
  • Sonalika WT 90, आदि।
  • सोनालिका ने पिछले महीने 11515 ट्रैक्टर बेचे हैं।

चौथे स्थान पर टैफे लिमिटेड रही, जिन्होंने जनवरी में 11003 ट्रैक्टर्स बेचे। और पांचवें स्थान पर एस्कॉर्ट्स लिमिटेड रही, जिनकी बिक्री में 8185 ट्रैक्टर्स गिनी गई।

ये भी रहीं Top 10 Tractor Companies in India की लिस्ट में

टॉप Top 10 Tractor Companies in India की बिक्री रिपोर्ट में आइशर ट्रैक्टर्स Eicher Tractor छठे स्थान पर रही, जिन्होंने पिछले महीने 6226 ट्रैक्टर्स बेचे।

उसके बाद, जॉन डीयर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड आया, जिन्होंने 5739 ट्रैक्टर्स बेचे।

8वें स्थान पर सीएनएच इंडस्ट्रियल प्राइवेट लिमिटेड रही, जिन्होंने 3501 ट्रैक्टर्स बेचे।

उसके बाद, कुबोटा एग्रीकल्चरल मशिनरी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 1732 और कैप्टन ट्रैक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड ने 921 ट्रैक्टर्स बेचे। जनवरी महीने में लगभग 89 हजार ट्रैक्टर्स बिके।

किसान भाईयों, हमे उम्मीद है की आपको हमारी यह जानकारी Top 10 Tractor Companies in India पसंद आई होगी।

गर्मियों में सब्जियों के बीज लगाने के लिए टिप्स- Tips For Planting Vegetable Seeds In Summer in Hindi

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गर्मियों का सीजन प्रारंभ हो चुका है। जिन लोगों को अपने किचन गार्डन (Kitchen Garden) या होम गार्डन (Home Garden) में बागवानी कर सब्जियां उगाना पसंद करते हैं, उन्होंने भी गर्मियों की सब्जी उगाने की तैयारी कर ली है। जब हम गर्मियों में सब्जियों के बीज को लगाते हैं, तो हमें कई सारी सावधानियों का ध्यान रखना होता है। जो लोग बागवानी में नए होते हैं, वह सीजन के अनुसार सब्जियों का चयन नहीं कर पाते। ऐसे में गर्मी के सीजन में वह गलत सब्जियों को चुन लेते हैं। उनके द्वारा लगाई गई सब्जियों के बीज ठीक तरह से ग्रो नहीं कर पाते। आज के इस खास आर्टिकल में हम बताएंगे कि गर्मियों में सब्जियों के बीज लगाने के टिप्स क्या है। साथ ही यह भी जानकारी दी जाएगी की कौन सी 5 सब्जियों को आप आसानी से गर्मियों के सीजन में उगा सकते है।

गर्मियों में सब्जियों के बीज लगाने के लिए टिप्स- Garmiyon Mein Sabjiyon Ke Beej Lagane Ke Liye Tips

गर्मी के मौसम में सब्जी उगाने से पूर्व हमें कई सारी बातों का ध्यान रखना होता है। तब जाकर बीज से पौधा फिर पौधा सब्जी दे योग्य बनता है। बुवाई करने के 2 से 3 महीने पश्चात् ही हमें पौधों पर सब्जियां देखने को मिलती हैं। इस दौरान मिट्टी तैयार करने से लेकर बीजों की बुवाई करना, नियमित पानी व धूप समेत अन्य बातों का ध्यान रखना होता है। आइये आपको गर्मियों में सब्जियों के बीज लगाने के लिए टिप्स बताते हैं।

सही सब्जी का करें चयन- Choose the right Vegetable

गर्मियों में सब्जी लगाने से पहले आप सिर्फ उन सब्जियों के बीजों का चयन करें, जिन्हें गर्मी के सीजन में लगाया जाता है। यदि आप अन्य सीजन की सब्जियों को गर्मी में उगाएंगे तो आपको बेहतर परिणाम देखने को नहीं मिलेंगे। गर्मियों के सीजन में हरी मिर्च, टमाटर, पेठा, तोरई, खीरा, मक्का, टिंडा, बैंगन, शिमला मिर्च, पालक, लोकी जैसी सब्जियों को ज्यादा उगाया जाता है।

बुवाई से पहले तापमान का रखें ध्यान- Check Temperature Before Sowing

गर्मियों वाली सब्जी होने से यह मतलब नहीं है कि इनके बीजों को आप अधिक तापमान में भी लगा सकते हैं। इन सब्जियों के बीज लगाने से पहले भी आपको तापमान का खास ध्यान रखना होगा। यदि आप ज्यादा तापमान में बीजों की बुवाई करेंगे तो शायद ही आपके पौधे उम्मीद के अनुसार ग्रो कर पाएं। गर्मियों वाली सब्जी के बीजों को बोने का सही तापमान 15 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। ऐसे में आप फरवरी और मार्च महीने में बीजों की बुवाई कर सकते हैं। इस समय तापमान संतुलित रहता है।

मिट्टी को करें तैयार- Prepare the soil

बीजों की बुवाई से पहले आपको अच्छी तरह से मिट्टी तैयार कर लेना है। इसके लिए मिट्टी में आपको गोबर की खाद (Cow Dung) या वर्मीकंपोस्ट, पत्थर का चूरा व नीम खली डालकर अच्छी तरह से मिक्स कर लेना है। इससे मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाएगी, जोकि पौधों की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे।

सही ग्रो बैग का करें चयन- Choose the Right grow Bag

जब भी आप सब्जी के बीज या पौधे को रोपित करें तो इस बात का ध्यान रखें कि पौधे की जड़ किस तरह से बढ़ती है। जिन पौधों की जड़ सीधे व नीचे की तरफ बढ़ती है, उनके लिए आप गहराई वाले ग्रो बैग (Grow Bag) का इस्तेमाल करें। बेल व पत्तेदार सब्जियों की जड़ें आसपास फैलती हैं, इसलिए इन्हें अधिक जगह की भी आवश्यकता होती है। छोटे ग्रो बैग (Grow Bag) में उन्हें यह स्थान नहीं मिल पाता। इसलिए आप ऐसी सब्जियों के पौधों हेतु गहराई के साथ ही चौड़ाई वाले ग्रो बैग का इस्तेमाल करें, जिससे कि आपको सब्जियों की उपज अच्छी मिल पाए।

बीज लगाने का तरीका- Correct Way to Plant seeds

यदि आप सब्जी के बीजों की बुवाई करने जा रहे हैं तो एक रात्रि पहले आपको इन्हें भिगोकर रखना चाहिए। अगले दिन जब आप इन बीजों को मिट्टी में लगाएंगे तो ध्यान रहे की बीजों के उस हिस्से को नीचे की तरफ रखें जिसका मुंह खुला हुआ है। क्योंकि यहां से पौधे की जड़ निकलती है, वही ऊपरी हिस्से यानी दूसरा सिरा ऊपर की तरफ होना चाहिए। यहां से बीज अंकुरित होता है।

नियमित देखभाल है जरूरी- Regular Care is Important

बीजों व पौधों की बुवाई के बाद आपको उनकी नियमित देखभाल भी करना है। इस बात का खासतौर पर ध्यान रखना है कि पौधों को सही समय पर पानी मिले। गर्मियों में पौधों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। बाहर का तापमान ज्यादा होने की वजह से मिट्टी भी गर्म हो जाती है। फलस्वरूप जल्द ही मिट्टी नमी खो देती है। इसलिए आपको नियमित रूप से पौधों को पानी देना है, जिससे कि यह हरे-भरे बने रहें।

गर्मियों में उगाई जाने वाली मुख्य सब्जियां व उनसे संबंधित जरूरी बातें

वैसे तो गर्मियों में कई सारी सब्जियां उगाई जाती हैं। आगे हम आपको ऐसी कुछ सब्जियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें आप आसानी से अपने होम गार्डन या किचन गार्डन में स्थान दे सकते हैं। साथ ही आपको यह भी बताएंगे कि किस तरह के ग्रो बैग में आपको इन सब्जियों के बीज व पौधों को लगाना है।

टिंडे की सब्जी (Apple Gourd)

टिंडे को गर्मियों के सीजन में ही लगाया जाता है। इसके लिए आपको गहरी और चौड़ाई वाले ग्रो बैग की आवश्यकता होगी। आप इसके बीज (Apple Gourd Seed) को पौधे में रूपांतरित कर ग्रो बैग में रोपित कर सकते हैं। यदि आप छोटे पोर्ट में पौधे को तैयार करते हैं तो दो से तीन हफ्तों के बीच में इसे बड़े ग्रो बैग में लगा दें।

गर्मी में टिंडे की सब्जी कैसे लगाएं- How to plant Apple Gourd Vegetable in Summer

  • जब आप टिंडे के पौधे को लगा देते हैं, तो नियमित रूप से इसे पानी देना चाहिए।
  • आपको ग्रो बाग ऐसे स्थान पर रखना है, जहां पर पौधे को धूप मिलती रहे।
  • समय-समय पर आपको खाद व अन्य पोषक तत्व भी मिट्टी में मिलाने होंगे।
  • जब टिंडे की लताएं 6 इंच या इससे अधिक हो जाएँ, तब इसमें आपको खाद व अन्य पोषक तत्व मिलाने होंगे।
  • डेढ़ से दो महीने में ही इसमें आपको फूल देखने को मिल जाएंगे।
  • 65 से 70 दिनों के बाद आपको टिंडे लगते हुए दिखाई देंगे।
  • जब टिंडों का आकार बड़ा हो जाए, तब आप इनकी तुड़ाई कर सकते हैं।

भिंडी की सब्जी (Ladyfinger)

भिंडी के पौधे को भी गर्मियों में ही लगाया जाता है। इसके पौधे को तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती। सीधा ही भिंडी के बीजों (Ladyfinger Seed) को आप ग्रो बैग में लगा सकते हैं। ध्यान रहे कि इसके लिए आपको गहराई वाले ग्रो बैग का चयन करना है।

गर्मी में भिंडी की सब्जी कैसे लगाएं- How to plant Ladyfinger Vegetable in Summer

  • भिंडी का बीज (Ladyfinger Seed) लगाने से पहले आपको मिट्टी में खाद, नीम खली मिलाकर इसे ग्रो बैग में डाल लें।
  • अब समान दूरी पर भिंडी के बीज को लगा दें।
  • जब आप इसमें बीज लगा दें तो एकदम से पानी ना डालते हुए थोड़े से पानी का छिड़काव करें।
  • करीब एक सप्ताह में बीज अंकुरित होकर पौधा तैयार होना शुरू हो जाएगा।
  • नियमित रूप से पानी दें और पौधे को अच्छी धूप दिखाते रहें।
  • जब पौधा बड़ा हो जाए तो कुछ दिन बाद आप थोड़ी सी मिट्टी हटाकर पत्तों या फिर गोबर की खाद डाल सकते हैं, जिससे कि पौधे को पोषक तत्व मिलेंगे।
  • करीब ढाई महीने के पश्चात् आपको पौधे में भिंडी देखने को मिलेगी।

चौलाई साग (Amaranth Greens)

गर्मियों में आप अपने किचन गार्डन में काम स्थान में ही चौलाई साग को उगा सकते हैं। इसके लिए आपको चौड़ाई वाले ग्रो बैग की आवश्यकता होगी। ध्यान रहे की बहुत ज्यादा गर्मी में इसके बीजों को ना लगाते हुए आप फरवरी या मार्च में ही इनकी बुवाई करें।

गर्मी में चौलाई साग कैसे लगाएं- How to plant Amaranth Greens in Summer

  • चौलाई साग के लिए जब आप मिट्टी तैयार करें तो इसमें थोड़ी सी रेत और गोबर के खाद को जरूर मिक्स कर दें।
  • मिट्टी तैयार हो जाने के बाद समान दूरी पर बीज (Amaranth Greens Seed) लगाएं और थोड़ा सा पानी छिड़क दें।
  • 10 दिन के भीतर ही बीज अंकुरित होना प्रारंभ हो जाएंगे।
  • समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार पौधे को पानी देते रहें।
  • 40 से 50 दिनों के भीतर ही इसके पौधे इतने बड़े हो जाएंगे कि आप कटाई कर इसकी सब्जी बना सकते हैं।

अरबी (Taro Root)

अरबी को भी आप ग्रो बैग या गमले में लगा सकते हैं। इसके लिए आपको बीज या पौधे की भी जरूरत नहीं होगी। बाजार से अरबी खरीद कर ही आप इसे अपने किचन गार्डन में लगा सकते हैं। इसके लिए आपको ऐसे गो बैक और गमले का चयन करना है, जिसकी चौड़ाई ज्यादा हो।

गर्मी में अरबी की सब्जी कैसे लगाएं- How to plant Taro Root in Summer

अरबी को लगाने से पहले आपको ग्रो बैग में सामान्य मिट्टी के साथ रेत और गोबर के खाद को अच्छी तरह से मिला लेना है।
अब ग्रो बैग में बराबर दूरी पर बड वाली अरबी की गांठ को लगा दें।
इसके बाद ऊपर से थोड़ा सा पानी छिड़क दें।
बता दें कि अरबी जड़ वाली सब्जी होती है, इसलिए आपको सीमित मात्रा में ही इसे पानी देना है।
लगभग 1 महीने में अरबी पनप जाएगी, इसके लिए आपको पानी, धूप और खाद समय पर देना चाहिए।
5 से 6 महीने में अरबी तैयार हो जाएगी, जिसे मिट्टी से निकालकर आप उपयोग कर सकते हैं।

लौकी (Bottle Gourd)

लौकी भी गर्मियों में मुख्य सब्जी होती है। आप इसे भी अपने किचन गार्डन का हिस्सा बना सकते हैं। अच्छे किस्म के बीजों का चयन कर आप ग्रो बैग या गमले में लौकी को उगा सकते हैं।

गर्मी में लौकी की सब्जी कैसे लगाएं- How to Grow Bottle Gourd in Summer

  • लौकी के बीज लगाने से पहले एक रात्री पहले आप बीजों (Bottle Gourd Seeds) को पानी में भिगो कर रख दें।
  • मिट्टी को पहले धूप में सुखाकर इसमें गोबर के खाद को अच्छी तरह से मिक्स कर दें।
  • अब मिट्टी को गमले में डालें और फिर मिट्टी के अंदर बीजों को लगभग 1-2 इंच दबाकर बुवाई कर दें।
  • इसके पश्चात् थोड़ा सा पानी छिड़क दें।
  • आपको मिट्टी में नमी को बनाए रखना है, लेकिन उस बात का भी ध्यान रखना है कि ज्यादा मात्रा में पानी ना दें।
  • एक से दो सप्ताह में लौकी का बीज अंकुरित हो जाता है।
  • 60 से 70 दिनों के अंदर लौकी तुड़ाई हेतु तैयार हो जाती है।

निष्कर्ष: इस आर्टिकल से आप गर्मियों में सब्जियों के बीज लगाने की टिप्स सम्बंधित जानकारी हासिल कर चुके हैं। साथ ही आपको गर्मियों में उगाई जाने वाली मुख्य सब्जियों के बीज लगाने का तरीका भी बताया। यदि आपको गर्मियों में बीजों की बुवाई से सम्बंधित अन्य जानकारी चाहिए तो आप कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। हमारी टीम के द्वारा आके सवालों का जवाब जरूर दिया जाएगा

घर पर कोकोपीट कैसे बनाएं और गार्डनिंग में इसके फायदे क्या है

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कोकोपीट क्या है | What Is Cocopeat

कोकोपीट, जिसे कायर पीट या नारियल कायर के रूप में भी जाना जाता है, नारियल की भूसी से बनाए एक प्राकृतिक,जैविक खेती का माध्यम है | यह नारियल उद्योग का उत्पाद है और बागवानी और बागवानी में पारंपरिक मिट्टी के विकल्प के रूप में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है |

कोकोपीट प्राप्त करने की प्रक्रिया में नारियल की भूसी को नरम करने के लिए पानी में भिगो ना शामिल है | फिर, रेशेदार सामग्री को कायर फाइबर से अलग किया जाता है, जिसका उपयोग राशियों और चटाई जैसे विभिन्न उत्पादों के लिए किया जाता है शेष बारिक, दानेदार पदार्थ को हम कोकोपीट के नाम से जानते हैं |

घर पर कोकोपीट कैसे बनाये | How To Make Cocopeat At Home

घर पर कोकोपीट बनाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इसके लिए ताजा नारियल की भूसी और प्रसंस्करण के लिए कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है | हालांकि यदि आपके पास नारियल का पेड़ है या आप ताजा नारियल की भूसी मिल सकती है, तो आप घर पर कोकोपीट को बना सकते हैं |

इसके लिए सबसे पहले रेशे हटाए, भूसी तक पहुंचने के लिए नारियल को तोड़कर शुरुआत करें |भूसी की भीतरी सतह पर लगे नारियल के रेशे को हटा दें | या हाथ से या तेज चाकू या नारियल खुरचनी की मदद से किया जा सकता है |

भूसी भिगोए साफ नारियल की भूसी को एक बड़े कंटेनर या बाल्टी में रखें | कंटेनर को पानी से भरे , यह सुनिश्चित करते हुए की भूसी पूरी तरह से डूबी हुई है | भूसी को कई दिनों तक पानी में भीगने दें | यह प्रक्रिया रेशों को नरम करने में मदद करती है, जिसे बाद में कायर को अलग करना आसान हो जाता है |

कुछ दिनों तक भिगोने के बाद, नारियल की भूसी नरम और लचीली होनी चाहिए | प्रत्येक भूसी लें और रेशेदार सामग्री से रेशे को अलग करने के लिए इसे मोड़े | यह एक समय लेने वाली प्रक्रिया हो सकती है, क्योंकि आपको महीन काया सामग्री को सुरक्षित करते हुए रेशो को हटाने की आवश्यकता होगी |

एक बार जब आप रेशो से कायर को अलग कर लें तो, कायर को एक साथ और सुखी सतह, जैसे छत या जमीन पर समान रूप से फैलाएं | कायर को कई दिनों तक धूप में सूखने दें जब तक कि यह पूरी तरह से सूख न जाए | सुखाने की प्रक्रिया के दौरान कायर को समान रूप से सुखाने के लिए कभी-कभी पलट दें |

एक बार जब कोकोपीट पूरी तरह से सूख जाए, तो आप इसे एक सूखे और एयरटाइट कंटेनर में तब तक स्टोर कर सकते हैं जब तक कि आप इसे बढ़ते माध्यम के रूप में उपयोग करने के लिए तैयार ना हो जाए |

कोकोपीट का ब्लॉक कैसे बनाएं | How To Make Cocopeat Block

ब्लॉक बनाने से पहले, आपको कोकोपीट को सही नमी की मात्रा तक गिला करना होगा | यह बेहतर संपीड़न और ब्लॉक निर्माण में मदद करता है | कोकोपीट में धीरे-धीरे पानी डालें और इसे तब तक अच्छी तरह मिलाएं जब तक यह वंछित नमी के स्तर तक तक न पहुंच जाए | यह नम होना चाहिए लेकिन गिला नहीं होना चाहिए |

यदि आप मैनुअल ब्लॉक बनाने वाली मशीन का उपयोग कर रहे हैं, तो एक सपाट सतह पर धातु या लकड़ी का सांचा रखे | सांचे को नम कोकोपीट से भरे, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह समान रूप से फैला हुआ और संकुचित है |

ब्लॉक बनाने वाली मशीन का उपयोग करके, मोल्ड के भीतर कोकोपीट को संपीड़ित करने के लिए दबाव डालें | मशीन वांछित आकार और आयामों के साथ कसकर संपीड़ित ब्लॉक बनाने में मदद करेगी | यदि आपके पास ब्लॉक बनाने वाली मशीन नहीं है, तो आप भारी वजन या उपकरण का प्रयोग करके मोल्ड के भीतर कोकोपीट को मैनुअल रूप से सपीड़ित करने का प्रयास कर सकते हैं |

कंप्रेस्ड कोकोपीट ब्लॉक को सावधानीपूर्वक सांचे से निकालने और सूखने के लिए अलग रख दें | इसे अच्छी तरह हवादार क्षेत्र में रखें जहां यह प्राकृतिक रूप से सुख सके | नमी की मात्रा और पर्यावरण परिस्थितियों के आधार पर सुखाने की प्रक्रिया में कुछ दिन लग सकते हैं |

Cocopeat For Plant Uses | पौधों के उपयोग के लिए कोकोपीट

नारियल के भूसी से प्राप्त एक प्राकृतिक उत्पाद है या बागवानी ,बागवानी और हाइड्रोपोनिक्स में उपयोग किए जाने वाला एक लोकप्रिय उत्पादक माध्यम है | कोकोपीट के प्रमुख फायदों में से एक इसकी पानी को बनाए रखने की क्षमता है, साथ ही या अतिरिक्त पानी को हम निकल जाने देता है जिससे जलभराव और जड़ सड़न को रोका जा सकता है |

मिट्टी तैयार करना जब हम पौधे के लिए मिट्टी तैयार करते हैं तो कोकोपीट का प्रयोग करते हैं मिट्टी को हल्का बनाने के लिए और जल निकासी को बढ़ाने के लिए प्रयोग करते हैं मिट्टी में नमी हमेशा बनाए रखें उसके लिए भी प्रयोग करते हैं | यह मिट्टी की संरचना में सुधार करता है, जिससे यह पौधों के विकास के लिए अधिक अनुकूल हो जाती है |

बीजारोपण बीजों को अंकुरित करने के लिए कोकोपीट एक उत्कृष्ट माध्यम है | इसके नमी बनाए रखने के गुण और अंकुरो को खुद को स्थापित करने के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करते हैं |

मृदा और कंडीशनर पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी में संशोधन करने के लिए कोकोपीट को खाद्य आने कार्बनिक पदार्थ के साथ मिलाया जा सकता है जो पौधे के विकास को बढ़ावा देता हैं| या मिट्टी को स्थिर करने और पोषक तत्वों के बहाव को रोकने में मदद करता है |

मशरूम की खेती नमी बनाए रखने के गुणों के कारण कोकोपीट का उपयोग मशरूम उगाने के लिए एक सबस्ट्रेट के रूप में भी किया जाता है |

पौधों के लिए कोकोपीट के फायदे | Cocopeat Benefits For Plants

कोकोपीट पौधों को कई लाभ प्रदान करता है जिससे यह बागवानी बागवानी और हाइड्रोपोनिक्स के लिए एक लोकप्रिय और लाभप्रद विकास माध्यम बन जाता है पौधों के लिए कोकोपीट के उपयोग के कुछ प्रमुख लाभ हैं |

  • कोकोपीट उच्च जल धारण क्षमता होती है, जो इसे लंबे समय तक नमी बनाए रखने की अनुमति देती है| यह गुण पौधों की जड़ों को स्थिर और लगातार पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करता है, पानी देने की आवृत्ति को कम करता है और पौधे को सूखे की स्थिति से निपटने में मदद करता है |
  • पानी रोकने की अपनी क्षमता के बावजूद, कोकोपीट उत्कृष्ट जल निकासी भी प्रदान करता है, जलभराव को रोकता है और यह सुनिश्चित करता है कि पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन तक पहुंच मिले | स्वास्थ जड़ विकास और समग्र पौधे के विकास के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन का स्तर महत्वपूर्ण है |
  • कोकोपीट हल्का होता है, जिससे इसे परिवहन करना, संभालना और बढ़ते माध्यम के रूप में उपयोग करना आसान हो जाता है, यह कंटेनर बागवानी के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, जहां भारी पारंपरिक मिट्टी अव्यवहारिक हो सकती है |
    कोकोपीट का पीएच स्तर लगभग तटस्थ हैं, जिसका अर्थ है कि यह अम्लीय या क्षारीय नहीं है | यह तटस्थता इसे पौधों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए उपयुक्त एक बहुमुखी माध्यम बनाती है, क्योंकि यह विशिष्ट पौधों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पीएच के आसान समायोजन की अनुमति देती है |
  • कोकोपीट में प्राकृतिक एंटीफंगल गुण होते हैं, जो पौधे में मिट्टी से होने वाली बीमारियों और फंगल संक्रमण के खतरे को कम करने में मदद करते हैं | इसके अतिरिक्त, यह कीड़ों और क्यों जैसे आम बगीचे के कीड़ों के लिए उतना आकर्षक नहीं है जो एक स्वस्थ बढ़ते वातावरण में योगदान देता है |
  • कोकोपीट आमतौर पर खरपतवार के बीज और रोग जन को से मुक्त होता है जिसे बढ़ते माध्यम में खरपतवार प्रतिस्पर्धा और मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारियों का खतरा कम हो जाता है |
  • कोकोपीट की रेशेदार बनावट जोड़ों को आसानी से प्रवेश करने और अच्छी तरह से विकसित प्रणाली स्थापित करने की अनुमति देकर स्वस्थ जड़ विकास को बढ़ावा देती है

कोकोपीट कितने का मिलता है | Cocopeat price In Hindi

कोकोपीट आमतौर पर बाजार में कई रूपों में उपलब्ध होता है संपीड़ित ब्लॉक,ब्रिकेट, ढीली सामग्री इत्यादि | कोकोपीट की वर्तमान कीमत पर सबसे नवीनतम जानकारी प्राप्त करने के लिए, मैं स्थानीय बागवानी या बागवानी आपूर्ति स्टोर कृषि आपूर्तिकर्ताओं से जांच करने या आपके विशिष्ट क्षेत्र या देश में कोकोपीट की कीमतों के लिए ऑनलाइन खोज करने की सलाह देता हूं | मेरे पिछले अपडेट के बाद से कीमतें बदल गई होगी, इसलिए सटीक और प्रसांगिक मूल्य निर्धारण जानकारी के लिए वर्तमान स्रोतों को देखना हमेशा सर्वोत्तम होता है |

Cocopeat Meaning in hindi

कोकोपीट का व्यापक रूप से बागवानी, बागवानी और हाइड्रोपोनिक्स में बढ़ते माध्यम के रूप में उपयोग किया जाता है | इसकी जल धारण क्षमता, वातन गुण और मिट्टी की संरचना को बढ़ाने की क्षमता के लिए इसे महत्व दिया जाता है | अपनी उत्कृष्ट नमी धारण क्षमताओ और जल निकासी के कारण कोकोपीट पौधों की जड़ों के विकास और वृद्धि के लिए उत्कृष्ट वातावरण प्रदान करता है |

 

 

मार्च माह में बोई जाने वाली फसलें : इस माह बोएं ये 10 फसलें, होगा भरपूर मुनाफा……

किसान भाइयों की सुविधा के लिए हम हर माह, महीने के हिसाब से फसलों की बुवाई की जानकारी देते हैं। जिससे आप सही समय पर फसल की बुवाई कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सके। इसी क्रम में आज हम मार्च माह में बोई जाने वाली फसलों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इसी के साथ उनकी अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों से भी आपको अवगत करा रहे हैं ताकि आप अपने क्षेत्र के अनुकूल रहने वाली उन्नत किस्मों का चयन करके उत्पादन को बढ़ा सके। आशा करते हैं हमारे द्वारा दी जा रही ये जानकारी किसान भाइयों के लिए फायदेमंद साबित होगी। तो आइए जानते हैं मार्च माह में बोई जाने वाली फसलों के बारे में।

अरहर

सिंचित अवस्था में अरहर की टी-21, यूपीएएस 120 किस्में मार्च में लगाई जा सकती हैं। इसके लिए अच्छे जल निकाल वाली दोमट से हल्की दोमट मिट्टी में दोहरी जुताई करके खरपतवार निकाल लें तथा 1/3 बोरा यूरिया व 2 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालकर सुहागा लगा दें। अरहर का 7-6 कि.ग्रा.स्वस्थ्य बीज लेकर राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करके 16 इंच दूर लाइनों में बोयें। अरहर की 2 लाइनों के बीच यदि बैसाखी मूग लगाना है तो दूरी 20 इंच कर लें। बीजाई के 27 और 47 दिन बाद खरपतवारों की रोकथाम हेतु निराई-गुड़ाई करें। आवश्यतानुसार हल्की सिंचाई कर सकते हैं।

आलू

पहाड़ी क्षेत्रों में आलू लगाने के लिए झुलसा रोग-रोधक कुफरी ज्योति किस्म उपयुक्त है। अच्छे जल निकाल वाली दोमट मिट्टी में बीजाई के समय 1 लीटर क्लोरपाइरीफास 27 ईसी को 10 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर डालने से दीमक से सुरक्षा रहती हैं । आलू के 10-12 किवंटल मध्यम आकार के 2-3 आंख वाले टुकड़ों को 0.27 प्रतिशत एमीसान 6 के घोल में 6 घंटों तक डुबोएं। बीजाई के समय काफी नमी होनी चाहिए।

वहीं खेत तैयार करते समय 10 टन कम्पोस्ट, 1 बोरा यूरिया, 2 बोरे डी ए पी तथा 1 बोरा पोटशियम सल्फेट 10 इंच दूर कूड़ों में डालकर मिट्टी से ढक दें फिर उपर बीज आलू के टुकडे 8 इंच की दूरी रखकर मिट्टी से ढक दें। खरपतवार नियंत्रण के लिए बीजाई के 48 घंटों के अन्दर 700 ग्राम आइसोप्रोटोन 77 घुलनशील पाउडर 300 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ें। बारानी क्षेत्रों में नमी बनाएं रखने के लिए खेत पर सूखी घास बिछा दें।

अदरक

मार्च माह में अदरक के 7 कि.ग्रा. स्वस्थ कंदों को 18 ईंच लाइनों में तथा 12 इंच पौधों में दूरी रखकर लगाएं। खेत तैयारी पर 10 टन कम्पोस्ट, एक बोरा यूरिया, एक बोरा डी ए पी तथा एक बोरा पोटाशियम सल्फेट डालें। दो महिने बाद एक बोरा यूरिया गुडाई के समय दें।

मशरूम

मशरूम उगाने के लिए हल्के भीगे साफ गेहूं के भूसे या धान के पुआल में खुम्भ के बीज डालने से 3-4 सप्ताह बाद खुम्भ तोडऩे लायक हो जाते हैं। मशरूम उगाना बहुत आसान है तथा काफी आमदनी देती हैं। हमने मशरूम उत्पादन की तकनीक के बारें में पूरी जानकारी अलग से पिछले लेख में दी हुई हैं। आप इसके लिए हमारी पोस्ट मशरूम की खेती पढ़े।

बसंतकालीन गन्ना

बसंतकालीन गन्ना मार्च अंत तक बोया जा सकता है। गन्ने में शुरू में बढ़ोत्तरी धीमी होती है इसका लाभ उठाते हुए 2 लाइनों के बीच एक लाइन अल्प अवधि वाली वैशाखी मूंग, उर्द, लोबिया, मिंडी इत्यादि की मिश्रित फसल लगा सकते हैं, जिनके लिए अतिरिक्त खाद डालनी पड़ेगी। इससे अतिरिक्त फसल तो मिलती ही है तथा गन्ने में खरपतवार नियंत्रण भी रहता है।

आंवला

आंवले के लिए कांचन, कृष्णा, नरेन्द्र आंवला-6, नरेन्द्र आंवला-7, नरेन्द्र आंवला-10 यह किस्में लगाई जा सकती है। बीज को बोने से 12 घंटे पहले पानी में भिगो देना चाहिए। जो बीज पानी में तैरने लगे उन बीजों को फेंक देना चाहिए।

चारा वाली 4 फसलें

ज्वार : ज्वार हरे चारे की लोकप्रिय फसल है जो पोषक तत्वों से परिपूर्ण, पौष्टिक और स्वादिष्ट पशुचारा है। पशुओं को हरा ज्वार या सूखा ज्वार करबी के रूप में खिलाया जाता है। ज्वार की उजे एस 20, एच सी 136, एच एसी 171, एच सी 260, एच सी 308 किस्में 150-200 क्विंटल हरा चारा देती हैं । इनके 17 कि.ग्रा. बीज को 10 इंच दूर लाइनों में लगाएं।

बाजरा : बाजरे का दाना व कड़बी पशु चारे में काम आती है। बाजरा की कोई भी किस्म के 3-4 कि.ग्रा. बीज को 12 इंच दूर लाइनों में बोयें इससे 70-77 दिन बाद 160 क्विंटल हरा चारा प्राप्त हो जाता हैं । दोनों फसलों में बीजाई के समय 1 बोरा यूरिया डालें तथा 1 महीने बाद आधा बोरा यूरिया और डाल दें। रेतीली मिट्टी में 1 बोरा सिंगल सुपर फासफेट भी बीजाई पर डालें।

लोबिया : लोबिया तेजी से बढऩे वाला दलहनी चारा है। इसे जायद और खरीफ सीजन में उगाया जाता है। लोबिया की एफओएस 1, न. 10, एच एफ सी 42-1, सी एस 88 किस्में 100-170 क्विंटल हरा चारा 2 महिनों में देती हैं । इनका 16-20 कि.ग्रा. बीज को राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करने के बाद 12 इंच दूर लाइनों बोयें। बीजाई पर आधा बोरा यूरिया तथा 3 बोरे सिंगल सुपर फासफेट डालें ।

हाथी घास : हाथी घास पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा है। यह बहुत तेजी से बढ़ता है और इसकी लंबाई ज्यादा होने के कारण इसे हाथी घास कहा जाता है। संकर हाथी घास की नेपियर बाजरा संकर -21 किस्म सारा साल हरा चारा देती हैं । इसें जड़ों या तनों के टुकुडों द्वारा उगाया जाता हैं । 20 इंच लम्बे 2-3 गाठों वाले 11000 टुकड़े प्रति एकड़ लगते हैं। आधा टुकड़ा जमीन में तथा आधा हवा में रखकर 30 इंच लाइनों में तथा 24 ईंच पौधे में दूरी रखें। रोपाई से पहले खेते में 20 गाड़ी सड़े-गले गोबर की खाद दें। हर कटाई के बाद 1 बोरा यूरिया डालें। गर्मियों में 10-17 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहें।

 

 

 

 

महिला दिवस पर बकरियांवाली में आयोजित कार्यक्रम में महिलाओं ने दिखाया जोश………

8 मार्च खंड के गांव बकरियांवाली में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में शुक्रवार को महिला दिवस के अवसर पर एक शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम में अतिथि के रूप में स्वामी विवेकानंद स्कूल अरनियावाली की प्रिंसिपल कांता खोथ, गांव की सरपंच विद्या कासनिया, गांव धींगतानिया की समाजसेवी सुनीता सहारण और बकरियांवाली गांव की डॉक्टर सतवंती शामिल हुईं।

बकरियांवाली में आयोजित कार्यक्रम में महिला अतिथियों ने अपने जीवन के अनुभव साझा किए और महिलाओं को आत्मविश्वास, सकारात्मकता और स्वावलंबन की प्रेरणा दी। डॉक्टर सतवंती ने बताया कि उन्होंने अपने परिवार में रहते हुए भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए कभी हार नहीं मानी और अपने अंदर आत्मविश्वास को बनाए रखा। उन्होंने कहा कि महिलाओं को अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य और अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए और परिवार का सहयोग लेना चाहिए। वहीं बहन वर्षा ने महिलाओं को अपने अंदर की शक्ति को पहचानने और विकास करने का संदेश दिया।

उन्होंने कहा कि नारी अबला नहीं सबला है और शिव की शक्ति है। उन्होंने कहा कि नारी का कोई घर नहीं होता है, बल्कि वह हर घर का आधार है। उन्होंने महिलाओं को अपने आप को सम्मानित करने और समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। इस मौके पर कार्यक्रम में आई हुई सभी महिलाओं को स्मृति तिलक, सौगात और प्रसाद दिया गया। बच्चों ने नारी को सशक्त कैसे बनाया जाए इस विषय पर नृत्य के माध्यम से प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन बहन वर्षा ने किया। कार्यक्रम के अंत में बहन वर्षा ने सभी महिलाओं को महिला दिवस की शुभकामनाएं दीं और उन्हें अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए आशीर्वाद दिया।

 

मूंग की 5 टॉप वैरायटी जो देगी आपको अच्छा उत्पादन, देखें

आज हम आपको मूंग की खेती के बारे बात करेंगे। मूंग की फसल दो बार बोई जाती है एक बार गर्मियों में जिसे बसंत की मूंग भी कहते है. जिसे आप 15 फरवरी से 20 अप्रैल तक बो सकते है. दूसरी खरीफ की मूंग जिसे आप जून के मध्य से लेकर जुलाई के अंत तक बिजाई कर सकते है.

आज हम आपको इस आर्टिकल में खेत खजाना के मध्यम से मूंग की 10 वैरायटी के बारे बात करेंगे जो आपको अच्छी फसल उत्पादन का मौका मिलता है.

पंत मूंग : इसे जायद और खरीफ दोनों फसल में इस की खेती कर सकते है. यह अगेती किस्म है और दाने छोटे होते है. जायद में यह 65 दिन में और खरीफ में 70-75 दिन में पक्क कर तैयार हो जाती है. इस प्रकार के पौधे में कई तरह के जिवंत रोगाणुओं के प्रभावों को रोकने में काफी मददगार होता है और कई अन्य प्रकार के रोगों को रोकने में भी मदद करता है.

पूषा विशाल : इस किस्म को भी जायद और खरीफ दोनों में बो सकते है. यह वर्ष 2000 में ICAR द्वारा विकसित की गयी. यह किस्म 60-65 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसकी उपज 5-6 क्विंटल होती है.

TJM 3 : मूंग की इस किस्म की फसल की खेती को भी जायद और खरीफ दोनों में बिजाई कर सकते है. इस किस्म को पकने में 50-70 दिन लगते है. मूंग कि इस किस्म का उत्पादन 4-5 क्विंटल की होती है. इस किस्म जबलपुर को जवाहर लाल विश्वविधालय में इसको विकसित किया गया. इसकी फलिया गुच्छो में लगती है और हर एक फली में 10-१२ दाने देखने को मिलते है.

जवाहर मूंग 721 : इस किस्म को 1996 कृषि विश्वविधालय इंदौर द्वारा विकसित की गयी. यह किस्म मध्य्प्रदेश के किसानों के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती है. ये किस्म भी आपको अच्छा मुनाफा दे सकती है. जो की 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन देती है. इस फसल को भी खरीफ मौसम में बौ सकते है. इस फसल को भी पकने में 70-75 दिन का समय लगता है.

PDM 11 : इस किस्म की बात करें तो यह फसल भी आपको अच्छा अनाज उत्तपन्न करने सक्षम है. इस फसल को अपने खेत बौ कर आप 4-5 क्विंटल का उत्पादन कर सकते है. जो की 65-75 दिन के अंदर अंदर पककर आपके लिए काटने लायक हो जाती है. 1987 में भारतीय धरण अनुसंधान केंद्र कानपूर द्वारा विकसित किया गया. इसके पौधे मध्यम आकर के होते है. यह फसल अन्य कीटों के प्रभाव को रोकने में भी सक्षम है.

 

60 दिन में ही किसान हो जाएंगे मालामाल! सही समय पर बिजाइ कर दिया तो होगा 4 गुना मुनाफा

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अगर आप भी एक किसान हैं और अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं, तो मूंग की खेती आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। मूंग एक ऐसी फसल है, जो जल्दी पकती है, कम खर्च में उगाई जाती है और अच्छा मुनाफा देती है। मूंग की खेती से आप 60 दिन में ही लखपति बन सकते हैं। आइए जानते हैं कि मूंग की खेती कैसे करें और किन बातों का ध्यान रखें।

मूंग की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु

मूंग की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। इसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। भूमि का pH मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। मूंग की खेती खरीफ और रबी दोनों मौसम में की जा सकती है। मूंग को गर्मी और सूखे का सहनशीलता होता है। इसके लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है।

मूंग की खेती के लिए बीज चुनाव और बुवाई

मूंग की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। इससे फसल का उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ती है। कुछ प्रमुख उन्नत किस्में हैं- आरएमजी-62, आरएमजी-344, पूसा विशाल, साबरमती, समृति, आरएमजी-492, आरएमजी-668 आदि। बीज की बुवाई से पहले बीज उपचार करना चाहिए। इससे बीज की अंकुरण शक्ति बढ़ती है और रोगों और कीटों से बचाव होता है। बीज उपचार के लिए शाल, करबेंडाजिम, थायराम आदि दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है। बीज की बुवाई 15 मार्च से 10 अप्रैल के बीच करनी चाहिए। बीज की मात्रा 10 किलो प्रति एकड़ और 25 किलो प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। बीज की गहराई 3 से 4 सेमी होनी चाहिए। बीज की बुवाई ड्रिल मशीन या बीज बांटने वाली मशीन से करनी चाहिए।

मूंग की खेती के लिए खाद और कीटनाशक

मूंग की खेती के लिए खाद का प्रयोग कम करना चाहिए। मूंग एक दलहनी फसल होने के कारण वायुमण्डल की नाइट्रोजन को भूमि में जमा करती है। इसलिए इसे नाइट्रोजन युक्त खाद की जरूरत नहीं होती है। इसके लिए फसल के शुरू में 20 किलो प्रति एकड़ फॉस्फोरस और 10 किलो प्रति एकड़ पोटाश की खाद देनी चाहिए। इसके अलावा जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मीकंपोस्ट, नीम केक आदि का भी प्रयोग करना चाहिए। मूंग की फसल में कुछ कीट और रोग हो सकते हैं। जैसे फल छेदक, फली बोर, फली झुलसा, पीली चित्ती, बैक्टीरियल ब्लाइट आदि। इनसे बचाव के लिए उचित समय पर कीटनाशक और रोगनाशक का छिड़काव करना चाहिए।

PM Kisan की 16वीं किस्त आज होगी जारी, किसे मिलेगा पैसा किसको नहीं-जानिए सबकुछ

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मोदी सरकार की सबसे बड़ी किसान योजना ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ के तहत आज देश भर के किसानों को दो-दो हजार रुपये की सौगात उनके खातों में डाली जाएगी. रबी फसलों की कटाई से ठीक पहले मिल रहा है यह पैसा छोटे किसानों की खेती के लिए बहुत काम आएगा. किसान 4 महीने से इसका इंतजार कर रहे थे. अब इंतजार खत्म हुआ. योजना की यह 16वीं किस्त है. पीएम मोदी (PM Modi) इस दिन देशभर के किसानों के अकाउंट में यह किस्त डीबीटी के जरिए भेजेंगे. योजना के तहत किसानों को साल में तीन बार 2-2 हजार रुपये दिए जाते हैं. इस तरह से किसानों को साल में कुल 6,000 रुपए की राशि दी जाती है.

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की 15वीं किस्त 27 नवंबर 2024 को जारी की गई थी. पीएम किसान योजना को 24 फरवरी 2019 को किसान को किसानों को वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए शुरू किया गया था. फिलहाल इस बार 8 करोड़ से ज्यादा किसानों के खाते में राशि पहुंचेगी. पहले 11 करोड लोगों के खाते में यह पैसा पहुंचता था, लेकिन उसमें से करीब 3 करोड़ की छटनी हो गई क्योंकि वह योजना की शर्तों को पूरा नहीं कर रहे थे.

किन किसानों को मिलेगा लाभ

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का फायदा लेने के लिए किसानों की जमीनों के आगजात, बैंक खातों की आधार सीडिंग और पीएम किसान पोर्टल पर ई-केवाईसी का काम होना जरूरी है. किसान इसका रजिस्ट्रेशन करने के लिए योजना की आधिकारिक साइट pmkisan.gov.in की मदद ले सकते हैं. साथ ही पीएम किसान योजना के तहत अपना रजिस्ट्रेशन स्टेटस भी चेक कर सकते हैं. इस दौरान यह भी जांच कर लें कि कहीं कोई जानकारी गलत तो नहीं भरी गई है. अगर ऐसा है तो तुरंत सही कर लें.

कैसे चेक करें स्टेटस

1. पीएम किसान योजना को अधिकारिक वेबसाइट pmkisan.gov.in पर जाएं.
2. इसके बाद ‘Know Your Status’पर क्लिक करें.
3.फिर रजिस्ट्रेशन नंबर भरें.
4. इसके बाद स्क्रीन पर शो हो रहे कैप्चा को दर्ज करें.
5. सभी जानकारी को भरें और गेट डिटेल्स पर क्लिक करें.
6.अब आपको स्क्रीन पर स्टेटस शो होगा.

कैसे करें आवेदन

1. पीएम किसान सम्मान निधि योजना में आवेदन करने के लिए सबसे पहले आपको योजना की आधिकारिक वेबसाइट https://pmkisan.gov.in/ पर लॉग इन करें.
2. यहां New Farmer Registration का विकल्प चुनें.
3. एक नया पेज खुलकर आएगा. यहां पूछी गई सभी जरूरी डिटेल्स को भर दें.
4. यह करने के बाद इमेज कोड फिल करके ओटीपी के बटन पर क्लिक करें.
5. इसके बाद रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर आएं और ओटीपी को दर्ज करें.
6. नेक्स्ट स्टेप पर आधार से रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर जो ओटीपी आएगा उसे भी दर्ज करना होगा.
7. यह करने के बाद स्क्रीन पर एक नया पेज खुलेगा.
8. यहां आप पूछी गई जरूरी डिटेल्स भर दें और डाक्यूमेंट्स की सॉफ्ट कॉपी अपलोड कर दें.
9. आपका आवेदन पूरा हो जाएगा.

किसे योजना का मिलेगा लाभ और किसे नहीं

1. यदि आपने भू-सत्यापन का काम पूरा कर लिया है तो 16वीं किस्त से लाभ आपको मिलेगा. ऐसा नहीं करावाया है तो आपको राशि नहीं मिलेगी.

2. अपने आधार कार्ड को बैंक से लिंक नहीं करवाया है तो किस्त की राशि आपको नहीं मिलेगी. यदि आपने ऐसा किया है तो राशि आएगी.

3. इस योजना का लाभ उठाने के लिए ई-केवाईसी करना जरूरी है. यदि आपने ऐसा नहीं किया है तो 16वीं किस्त की राशि अटक सकती है.

4. यदि आपके आवेदन फॉर्म में कोई गलती है. आपने बैंक खाते की जानकारी सही नहीं दी हो तो भी आपके खाते में राशि नहीं आएगी. यदि आपने कोई गलती नहीं की है या इसे सुधरवा चुके हैं तो आपके खाते में योजना की राशि आएगी.

5. इस योजना का लाभ केवल किसानों को ही मिलता है. यदि आप कोई प्रोफेशनल व्यक्ति जैसे मान लीजिए कोई डॉक्टर, इंजीनियर आदि हैं तो आपको इसका लाभ नहीं मिलेंग..

6. किसी सीनियर सिटिजन को 10,000 रुपए से ज्यादा पेंशन मिलती है या वो किसी सरकारी नौकरी से रिटायर कर्मचारी है तो वो इस स्कीम का लाभ नहीं उठा सकता है.

7. तीसरा अगर कोई किसान या उसके परिवार का कोई सदस्य सरकार को टैक्स देता है तो वह भी इसमें कवर नहीं होगा. इसका मतलब यह हुआ कि पति-पत्नी में से किसी ने भीकर का भुगतान किया है तो वह इस योजना का फायदा नहीं ले सकते हैं.

Weather News Today: देश के मैदानी इलाकों को प्रभावित करेगा पश्चिमी विक्षोभ, कई जगह बारिश का अनुमान

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एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ के 29 फरवरी से पश्चिमी हिमालय क्षेत्र और 1 मार्च से 3 मार्च तक उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों को प्रभावित करने की संभावना है, जिसकी तीव्रता 1 और 2 मार्च को चरम पर होगी. 1 से 2 मार्च के दौरान अरब सागर से उत्तर पश्चिम भारत में उच्च नमी आने की भी संभावना है.

मौसम विभाग (IMD) ने अपने पूर्वानुमान में कहा है कि एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ के 29 फरवरी से पश्चिमी हिमालय क्षेत्र और 01 मार्च से 03 मार्च तक उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों को प्रभावित करने की संभावना है. मध्य और आसपास के पूर्वी भारत में आंधी, ओलावृष्टि और बिजली गिरने के साथ बारिश की गतिविधि जारी रहने की संभावना है. अभी देश के कई इलाकों में बारिश का दौर देखा जा रहा है. मंगलवार को मध्य प्रदेश के भोपाल में बेमौसम बारिश के साथ ओलावृष्टि और वज्रपात दर्ज किया गया.

जम्मू-कश्मीर-लद्दाख-गिलगित बाल्टिस्तान-मुजफ्फराबाद में कुछ स्थानों पर और अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अलग-अलग स्थानों पर हल्की से मध्यम वर्षा/बर्फबारी हुई. विदर्भ में कुछ स्थानों पर हल्की से मध्यम वर्षा, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और सिक्किम, छत्तीसगढ़, मध्य महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और तमिलनाडु में अलग-अलग स्थानों पर बारिश हुई. साथ ही पूर्वी मध्य प्रदेश में अलग-अलग स्थानों पर भारी वर्षा हुई.

पश्चिमी विक्षोभ का असर

एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ के 29 फरवरी से पश्चिमी हिमालय क्षेत्र और 1 मार्च से 3 मार्च तक उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों को प्रभावित करने की संभावना है, जिसकी तीव्रता 1 और 2 मार्च को चरम पर होगी. 1 से 2 मार्च के दौरान अरब सागर से उत्तर पश्चिम भारत में उच्च नमी आने की भी संभावना है.

1-3 मार्च के दौरान पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में गरज और बिजली के साथ हल्की/मध्यम वर्षा होने की संभावना है. पंजाब, हरियाणा-चंडीगढ़-दिल्ली में गरज और बिजली के साथ छिटपुट से लेकर व्यापक रूप से हल्की/मध्यम वर्षा होने की संभावना है और 1 और 2 मार्च को उत्तर प्रदेश, राजस्थान में छिटपुट से लेकर छिटपुट हल्की/मध्यम वर्षा होने की संभावना है.

जम्मू-कश्मीर-लद्दाख-गिलगितबाल्टिस्तान-मुजफ्फराबाद और हिमाचल प्रदेश में 1 तारीख को अलग-अलग स्थानों पर भारी वर्षा/बर्फबारी की संभावना है और 2 मार्च को अलग-अलग स्थानों पर भारी से बहुत भारी बारिश/बर्फबारी की संभावना है. उत्तराखंड में भी 2 स्थानों पर भारी बारिश/बर्फबारी की संभावना है और अलग-अलग स्थानों पर भारी बारिश/बर्फबारी की संभावना है.

कहां-कहां होगी बारिश

1 और 2 मार्च को हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अलग-अलग स्थानों पर ओलावृष्टि की भी संभावना है. 1 मार्च को राजस्थान और 2 मार्च को हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बारिश हो सकती है. 27 फरवरी को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, विदर्भ, ओडिशा, झारखंड और गंगीय पश्चिम बंगाल में गरज, बिजली, ओलावृष्टि और तेज़ हवाओं (40-50 किमी प्रति घंटे तक की गति) के साथ छिटपुट हल्की/मध्यम वर्षा होने की संभावना है.

अगले 6-7 दिनों के दौरान अरुणाचल प्रदेश में छिटपुट हल्की/मध्यम वर्षा/बर्फबारी की संभावना है. 28 फरवरी को असम, मेघालय,नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में हल्की/मध्यम बारिश होगी. अगले 5 दिनों के दौरान रायलसीमा और अगले 3 दिनों के दौरान केरल में गर्म और आर्द्र मौसम बने रहने की संभावना है.

 

जीरे की खेती बर्बाद कर देंगे ये 3 रोग, किसान ऐसे करें बचाव, सस्ता और आसान तरीका – Cumin Farming

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जीरे की खेती Cumin Farming राजस्थान की एक प्रमुख फसल है। जीरा एक ऐसी फसल है, जो सभी घरों के रसोईघर में पाई जाती है. छौंका लगाना हो या सब्‍जी का स्‍वाद बढ़ाना हो, जीरा हर जगह काम आता है।

लेकिन जीरे की खेती Cumin Farming में रोग लगना किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीर बन जाता है. ऐसे में एक्सपर्ट के जरिये हम आपको बताएंगे कि आप कम लागत में कैसे अपनी फसल को बचा सकते है और जीरे की उन्नत खेती कर सकते हैं.

कैसे लें जीरा की खेती Cumin Farming मे भरपूर उत्पादन?

किसान दिनेश कुमार बताते हैं कि जीरे की खेती Cumin Farming को विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में किया जा सकता है, चाहे वह मिट्टी रेतीली हो या चिकनी। हालांकि, वह सुझाव देते हैं कि चिकनी दोमट मिट्टी इसके लिए अधिक उपयुक्त होती है।

जीरा ठंडी जलवायु की फसल है, और इसकी बुआई नवम्बर के तीसरे सप्ताह से दिसम्बर के पहले सप्ताह तक की जाती है। इसके बाद जीरे की कटाई फरवरी-मार्च में होती है। जब बीज और पौधे भूरे रंग के हो जाएं और फसल पूरी तरह पक जाए, तो किसान त्वरित इसे काट लेते हैं।

पौधों को ध्यानपूर्वक सुखाने के बाद, उन्हें थ्रेसर से मैंडाई कर दाना अलग कर लिया जाता है। दाने को अच्छे से सुखाने के बाद ही उन्हें साफ बोरों में संग्रहित किया जाता है।

भरपूर लाभ के साथ रिस्की भी है जीरे की खेती

जीरे की खेती Cumin Farming में होने वाला लाभ के बारे में कृषि विशेषज्ञ डाॅ. रतनलाल शर्मा बताते हैं कि इसकी औसत उपज 7-8 क्विंटल जीरा प्रति हेक्टयर होती है। जीरे की खेती में लगभग 30 से 35 हजार रुपए प्रति हेक्टयर का खर्च आता है।

अगर जीरे के खेती Cumin Farming 100 रुपए प्रति किलो तक कीमत पर भी बनी रहती हैं, तो भी 40 से 45 हजार रुपए प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

लेकिन इसमें एक चुनौती भी है, क्योंकि जीरे की फसल Cumin Farming में लगने वाले रोगों के कारण किसान को कई बार भारी नुकसान भी झेलना पड़ता है।

जीरा की खेती बर्बाद कर सकते हैं ये 3 रोग

फसल में लगने वाले तीन प्रकार के रोगों के बारे में कृषि विशेषज्ञ डाॅ. रतनलाल शर्मा बताते हैं कि जीरे में प्रमुखतः तीन प्रकार के रोग पाए जाते हैं – छाचा रोग, झुलसा रोग, और उखटा या विल्ट रोग। ये रोग जीरे की खेती के लिए काफी हानिकारक हो सकते हैं।

इन रोगों को नियंत्रित करने के लिए, किसानों को प्रति हेक्टेयर 8 से 10 टन गोबर का खाद उपयोग करना चाहिए, जो कि एक सस्ता और प्रभावी रोग नियंत्रण का तरीका हो सकता है।

किसानों को यह ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें खेतों की सफाई भी बनाए रखनी चाहिए और जितनी भी खरपतवार हो, उन्हें काट देना चाहिए। जब जीरे की फसल तैयार हो जाए, तो गर्मियों में खेत में समर डिप फ्लाइंग करना भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

जैविक जीरे की खेती है अच्छा विकल्प

जैविक जीरा की मांग में वृद्धि होने के कारण, कृषि विशेषज्ञ डाॅ. रतनलाल शर्मा बताते हैं कि किसान इसे अपने खेतों में सफलता से उगा सकते हैं। उनका कहना है कि 100 किलो सड़े हुए गोबर में 1 किलो ट्राइकोडर्मा डालकर उसे अच्छे से मिला लें और छांव में कुछ दिनों तक रखें।

इसके बाद, 10-15 दिनों तक पानी का छिड़काव करें। इससे गोबर पर एक हरी परत बनती है, जिसमें ट्राइकोड्रोमा फंगस होता है।

इस तैयार गोबर का उपयोग खेत में बुआई करते समय किया जा सकता है। इससे मिट्टी के सभी रोगों का नियंत्रण होता है, एक सस्ता और प्रभावी तरीका जो खेती को रोगों से बचाने में मदद करता है।

सिर्फ 6 महीने में 15 लाख कमाई देगी यह खास फसल; बहुत कम लोगों को है जानकारी

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अगर आप खेती करना चाहते हैं और आप किसी ऐसी फसल की तलाश कर रहे हैं जिससे आप बहुत अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, तो वह फसल आपके लिए काफी उपयुक्त हो सकती है।

यदि आप इस फसल की खेती करते हैं, तो आपको बहुत अच्छा मुनाफा हो सकता है। लेकिन इसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी होती है, और इसके कारण उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

इसलिए, जब आप इस लेख को पढ़ेंगे, तो आपको अपनी सभी समस्याओं का समाधान मिल जाएगा। और फिर आप आसानी से इस फसल की खेती कर सकेंगे। तो ज्यादा देरी न करते हुए, चलिए इस फसल की खेती करने के तरीके के बारे में जानते हैं।

आखिर किस फसल से हो रही है 6 महीने मे 15 लाख की कमाई?

लिली फूल की खेती करके आप आसानी से ६ महीनों में १५ लाख रुपए कमा सकते हैं। लिली फूल नाम तो आपने सुना होगा, लेकिन इसकी खेती से इतना मुनाफा कमाने का राज कैसे? इसके लिए आपको कुछ तैयारी करनी पड़ेगी।

बहुत से लोगों को लिली फूल की खेती के बारे में जानकारी नहीं होती, जिससे वे नुकसान भी झेलते हैं या फिर मुनाफा नहीं कमा पाते हैं। इसलिए लिली फूल की खेती से जुड़े सभी महत्वपूर्ण बातें जानने में देरी न करें। तो चलिए जानते हैं इस मुनाफेदार खेती के बारे में

लिली की खेती कैसे करें

लिली की खेती करने से जुड़ी मुनाफे की संभावना को जानने के लिए, आपको यह समझना आवश्यक है कि इस फसल की खेती से कितना लाभ हो सकता है। बहुत से लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं होती, जिससे उनकी समस्याएं और बढ़ जाती हैं।

लिली की खेती के लिए, आपके क्षेत्र का मौसम ठंडा होना चाहिए, क्योंकि दिल्ली के उच्च तापमान में यह फसल उगाई नहीं जा सकती।

अगर आपके क्षेत्र का मौसम पहले से ठंडा नहीं है, तो आपको पॉलीहाउस का निर्माण करना होगा और उसमें लिली की खेती शुरू करनी होगी। यहाँ, लिली की खेती के लिए उपयुक्त तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से लेकर 30 डिग्री सेल्सियस के बीच में होना चाहिए।

मिट्टी की बात करें तो, भारत में हर प्रकार की मिट्टी मिलती है, और इन सभी प्रकार की मिट्टियों में लिली की खेती से अच्छा मुनाफा हो सकता है।

विदेश से आते हैं बीज, उत्पादन पर भी रखें नियंत्रण

लिली की खेती के लिए बाहरी बीज की आपको आवश्यकता होगी क्योंकि भारत में इसे उत्पादित करने वाले किसान बहुत कम हैं। इसे मंगवाने के बाद, आपको अपने पॉलीहाउस में इसे लगाना होगा।

लेकिन लगाते समय, ध्यान रखें कि आपको कभी भी सारे कंधे एक साथ नहीं लगाने चाहिए। ऐसा करने से एक साथ उत्पादन हो सकता है, जो की अनुपयुक्त हो सकता है।

बाजार में मांग कम होने पर आपके पास अधिक उत्पादन हो सकता है, जिससे आपको इसे कम दामों में बेचना पड़ सकता है। इसलिए, इसे लगते समय आपको 5 दिन का अंतर अवश्य रखना चाहिए।

आप जग को अलग-अलग भागों में विभाजित कर सकते हैं। इसकी खेती के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है, और ठंड के मौसम में इसे खेती करना शुरू किया जा सकता है। अब, यहां आता है आपकी कमाई का सवाल।

लिली की खेती से कितना मुनाफा कमाया जा सकता है?

लिली की खेती शुरू करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि आपको इससे कितना उत्पादन मिलेगा। यदि आप इसका एक गुलदस्ता तैयार कर बाजार में बेचते हैं, तो उसकी कीमत लगभग ₹1000 से ₹2000 के बीच होगी। यह बाजार के भाव पर निर्भर करेगा, साथ ही फूलों की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण होगी।

फूलों के बाजार में लिली की भरपूर मांग होती है। जब आप इसे बेचेंगे, तो आपकी कमाई 15 लाख रुपए के आसपास हो सकती है। जब मांग कम होती है, तो भी आपको अच्छी कमाई होती है। आपकी कमाई तब भी 7 से 8 लाख रुपए के आसपास हो सकती है। इस खेती से आपको 6 महीने में अच्छा मुनाफा हो सकता है।

 

सरसों की फसल के जानलेवा है ये 4 रोग, जानें लक्षण और रोकथाम के उपाय – Sarso Ki Kheti

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Sarso Ki Kheti : सरसों, एक ऐसी तिलहनों की राजा फसल है जो रबी के मौसम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस फसल का भारतीय अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख स्थान है, लेकिन वर्तमान में देश के कई राज्यों में सरसों की फसल को घेरे हुए कई रोग देखने को मिल रहे हैं।

हालांकि, इन दिनों कड़ाके की ठंड और कोहरे के कारण सरसों की फसल पर रोगों का भयंकर प्रकोप बढ़ रहा है। इससे स्पष्ट है कि किसानों के मन में सरसों की फसल के पैदावार के संबंध में चिंता बढ़ रही है, क्योंकि इन रोगों से उत्पादन में कमी हो सकती है और इससे किसानों पर आर्थिक दबाव बढ़ सकता है।

इन रोगों और कीटाणुओं का समय पर नियंत्रण करने से सरसों के उत्पादन में सुधार किया जा सकता है। आइए, सरसों की फसल को बचाने के लिए कुछ उपाय जानें।

ये चार रोग साबित हो रहे है सरसों के लिए घातक

सरसों की फसलों को देखभाल करते समय, तना गलन रोग, झुलसा रोग, सफेद रोली रोग, और तुलासिता रोग से बचाव करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये सरसों के मुख्य रोग हैं और इनके संक्रमण से उत्पादन में कमी हो सकती है।

इस रोग से प्रभावित होने पर, किसानों की मेहनत का परिणाम पानी में बह जाता है और सरसों के दाने उचित रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं।

Sarso Ki Kheti मे तना गलन रोग – लक्षण और उपाय

सरसों की फसलों Sarso Ki Kheti को बचाने के लिए तना गलन रोग से जुड़ी खबरें सामने आ रही हैं। इस खतरनाक रोग के कारण फसल में 35 फीसदी तक की कमी हो सकती है। खासकर तराई और जलभरे क्षेत्रों में इसका असर ज्यादा दिख रहा है।

सरसों की खेती मे तना गलन रोग लक्षणों पर ध्यान दें

इस रोग के लक्षणों में पौधों की मुरझाहट और तने के चारों ओर कवक जाल बनना शामिल हैं। साथ ही, पौधों की ग्रोथ में रुकावट आती है। यदि आपकी फसल इस समस्या से प्रभावित हो रही है, तो तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।

सरसों की खेती मे तना गलन रोग नियंत्रण के लिए उपाय

किसानों को सुझाया जा रहा है कि सरसों की बुआई के 50-60 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 0.1 फीसदी की 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। इसे 20 दिन के अंतराल पर फिर से करना चाहिए, यदि आवश्यक हो।

अगर Sarso Ki Kheti में तना गलन रोग का सही से सामना नहीं किया गया, तो फसल में नुकसान हो सकता है। इसलिए, किसानों से अनुरोध है कि वे अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए उपायों को ध्यानपूर्वक अपनाएं।

सरसों की खेती मे झुलसा रोग – लक्षण और उपाय

झुलसा रोग: बचाव और उपाय

सरसों की फसल Sarso Ki Kheti में झुलसा रोग के लक्षणों का सामना कर रहे हैं? इसे समझना अभी और भी आसान हो गया है। यह रोग पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होता है, जिससे पत्तियों पर छोले, हल्के काले, और गोल धब्बे बनते हैं। धब्बे में गोल छल्ले साफ नजर आते हैं, जिसे किसानों को ध्यान में रखना चाहिए।

रोकथाम के लिए सुझाव:

Sarso Ki Kheti मे झुलसा रोग से बचाव के लिए, सल्फर युक्त रसायनों का इस्तेमाल करना आपकी फसल के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। किसानों को इस रसायन का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करने की सिफारिश की जा रही है। यह छिड़काव हर 15 दिनों के अंतराल पर किया जाए, और यदि आवश्यक हो, तो इसे दोहराया जा सकता है।

अब, किसानों को इस समस्या से निपटने के लिए उपयुक्त उपायों की ओर कदम बढ़ाने का समय है।

सरसों की खेती मे सफेद रोली रोग – लक्षण और उपाय

सरसों की खेती मे सफेद रोली रोग: लक्षण और बचाव

Sarso Ki Kheti में सफेद रोली बीमारी के लक्षणों का सामना कर रहे हैं? इस बीमारी के कारण पौधे में भोजन लेने की क्षमता कम हो जाती है, और साथ ही रोली सरसों के पत्तों के साथ तने के रस को चूस लेती है, जिससे पौधा पनपता नहीं है और दाना कमजोर पड़ जाता है।
सरसों की खेती मे सफेद रोली रोग रोकथाम के उपाय:

किसानों को सफेद रोली बीमारी के खिलाफ सुरक्षा के लिए प्रति एकड़ 25 किलो सल्फर पाउडर का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, किसान क्रोफेन लिक्विड कीटनाशक का छिड़काव भी कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करेगा कि फसल सुरक्षित रहे और सही से विकसित हो।

Sarso Ki Kheti मे तुलासिता रोग – लक्षण और उपाय

सरसों की खेती मे तुलासिता रोग: लक्षण और बचाव

Sarso Ki Kheti मे तुलासिता रोग के लक्षणों के साथ निपटने का समय है। जब यह रोग पत्तियों की निचली स्तर पर प्रकट होता है, तो बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो समय के साथ बड़े हो जाते हैं। इससे रोग जनक की बैंगनी रंग की बढ़ोतरी रुई के समान लगती है। जब रोग पूर्ण रूप से विकसित होता है, तो फूल कलियां नष्ट हो जाती हैं।

सरसों की खेती मे तुलासिता रोग रोकथाम के उपाय:

Sarso Ki Kheti मे को इस खतरनाक रोग से बचाने के लिए, किसानों को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का उपयुक्त समाधान है। यह दवा को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर एक घोल बनाना चाहिए और फिर इसे फसल पर छिड़कना चाहिए। यदि आवश्यक हो, तो यह छिड़काव 20 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है। इससे सुनिश्चित होगा कि फसल स्वस्थ रहे और उत्पादन में वृद्धि हो।

निष्कर्ष (Conclusion):

सरसों के उत्पादन में रोगों के प्रकोप से निपटने के लिए इस समय का महत्वपूर्ण है। तना गलन, झुलसा, सफेद रोली, और तुलासिता रोग – इन सभी समस्याओं का Sarso Ki Kheti मे समाधान करने के लिए उचित उपायों का अनुसरण करना किसानों के लिए आवश्यक है।

खेतों में चूहे के आतंक से हैं परेशान, तो करें यह उपाय मिलेगी 100% राहत Rat Infestation in Fields

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किसानों को अपने खेतों में चूहे के प्रकोप Rat Infestation in Fields से निराशा हो रही है, और इस समस्या का समाधान तलाश रहे हैं। इस समस्या का समाधान करना बहुत जरूरी है। यहां हम बता रहे हैं कुछ उपाय, जिनसे किसान खुद ही इस समस्या का सामना कर सकते हैं।

चूहे की बढ़ती संख्या Rat Infestation in Fields को कैसे कम करें

किसान अपने खेतों में फसल की रक्षा के लिए अलग-अलग प्रकार की समस्याओं का सामना करते हैं, जैसे आवारा पशु, जंगली जानवर, और जहरीले सांप और बिच्छू। इसके अलावा, चूहे की संख्या बढ़ जाना Rat Infestation in Fields भी एक बड़ी समस्या है।

चूहों का प्रकोप Rat Infestation in Fields कैसे रोकें

जब गेहूं की फसल बड़ी होती है और दाने बनने लगते हैं, तो चूहों का प्रकोप Rat Infestation in Fields ज्यादा होता है। किसानों को इस समस्या से निपटने के लिए अपने खेत में जहरीला चारा बनाना चाहिए। इसके लिए, किसानों को 1 किलो आटा, 25 मिलीलीटर खाने वाला तेल, और 25 ग्राम जिंक फॉस्फाइड लेकर एक हरा चारा बना सकते हैं। इसे चूहों के बिलों के पास रखने से लाभ हो सकता है।

बिलों को पहचानने का तरीका

चूहों के प्रकोप Rat Infestation in Fields के समय, किसानों को अपने खेतों में बने बिलों को पहचानना बहुत महत्वपूर्ण है। चूहों के बिलों को पहचानने के लिए, किसानों को उनकी गोलियां बनाकर उन बिलों के पास रखना चाहिए। इससे चूहे की जनसंख्या को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।

सावधानियां

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बनाए गए गोलियों की मात्रा में सावधानी बरती जाए, और किसानों को विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए। सही मात्रा में इस्तेमाल करने से ही यह प्रभावी हो सकता है।

गेहूं में डाल दी खाद, नही बने कल्ले? ये है वजह… उपाय भी जान लें

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भारत, जो कृषि से प्रधान देश है, अब गेहूं के उत्पादन में नए रिकॉर्ड की तरफ बढ़ रहा है। यहां पर 75 फीसदी से अधिक लोगों की आजीविका कृषि पर ही निर्भर है और धान के साथ-साथ बड़े स्तर पर गेहूं की भी खेती हो रही है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और उत्तर प्रदेश, ये राज्य अब गेहूं के मुख्य उत्पादक बन चुके हैं।

इस बार इन राज्यों में किसानों ने गेहूं की बंपर बुवाई है, जिससे देशभर में 12 जनवरी तक गेहूं का क्षेत्रफल 336.96 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। मौसम भी किसानों के साथ है, क्योंकि शीतलहर और ठंडी गेहूं की फसल के लिए काफी फायदेमंद हैं।

लेकिन इसके बावजूद, किसानों को खाद और न्यूट्रिशन का सही तरीके से इस्तेमाल करना होगा। अगर खेतों में प्रचुर मात्रा में खाद और न्यूट्रिशन नहीं डालते हैं, तो गेहूं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

गेहूं की उन्नति के लिए सही समय पर सही खाद और न्यूट्रिशन बहुत महत्वपूर्ण

एक्सपर्ट्स के अनुसार, गेहूं की फसल के लिए सही खाद और न्यूट्रिशन बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है किसानों को समय पर सही तरीके से ध्यान देना। अगर किसान समय पर खेत में खाद और न्यूट्रिशन नहीं डालते हैं, तो यह पौधों पर सही प्रभाव नहीं डालता है।

किसानों को यह जानना चाहिए कि गेहूं के खेत में कब और कितनी मात्रा में खाद और न्यूट्रिशन डालें। यदि समय पर भी इसे नहीं दिया जाता है और फिर भी गेहूं की फसल तेजी से नहीं बढ़ रही है, तो तंग नहीं होना चाहिए। नीचे बताए गए तरीकों का इस्तेमाल करके किसान अपने खेतों को सही से खाद और न्यूट्रिशन से सजीव रख सकते हैं।

ऑर्गेनिक कार्बन से बढ़ाएं गेहूं के खेतों की उपज

गेहूं के खेतों में सल्फर, मैग्नीशियम, जिंक, और अन्य पोषक तत्वों को डालने के बावजूद, कई बार फसल में कल्ले तेजी से नहीं बनते हैं, इससे साफ है कि ऑर्गेनिक कार्बन की कमी हो सकती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी से पोषक तत्वों को पौधों तक पहुंचाता है।

यदि आपके खेतों में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी है, तो आप कैल्शियम नाइट्रेट का उपयोग कर सकते हैं। कैल्शियम की कमी से पौधे जमीन से पोषक तत्वों को सही ढंग से नहीं ले पाते हैं। 10 किलोग्राम कैल्शियम नाइट्रेट प्रति एकड़ छिड़काव करके आप अपने खेतों में कैल्शियम की मात्रा को बढ़ा सकते हैं।

जैविक खाद से बढ़ेंगे गेहूं मे कल्ले

गेहूं की उन्नति के लिए किसानों को खेत में हर साल जैविक खाद डालना चाहिए। चाहे तो गाय की गोबर और वर्मी कंपोस्ट भी मिला सकता है। इससे खेत में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा में वृद्धि होगी।

किसान अगर चाहे तो ह्यूमिक एसिड, जिसे सागरिका भी कहा जाता है, का भी खेत में छिड़काव कर सकता है। यह मार्केट में भी उपलब्ध है। विशेषज्ञों का कहना है कि सागरिका से मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा में वृद्धि होती है। इससे जमीन में पड़े तत्व पौधों तक आसानी से पहुंचते हैं, जिससे गेहूं की फसल में कल्लों का फुटाव बढ़ता है।

गेहूं की फसल को दें सुपर स्प्रे – कल्ले गिनते गिनते थक जाओगे

गेहूं की फसल को और बेहतर बनाने के लिए, किसान यहां बताए गए तरीके से माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का स्प्रे कर सकता है:

मैंगनीज सल्फेट – 500 ग्राम
यूरिया – 1 किलोग्राम
चेल्टेड जिंक – 100 ग्राम
मैग्नीशियम सल्फेट – 1 किलोग्राम
बोरोन – 100 ग्राम

इन सभी सामग्रियों को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर एक घोल तैयार करें। इसके बाद, इस घोल को प्रति एकड़ पर स्प्रे करें। यह आपकी गेहूं को और भी स्वस्थ बनाये रखने में मदद करेगा।