Friday, October 18, 2024
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Ladli Behna Yojana: लो आगई लाड़ली बहना योजना की 9वीं किस्त, देखें इतने आए खाते में

Ladli Behna Yojana 9th Installment : मध्य प्रदेश में आज, यानी शनिवार 10 फरवरी, एक विशेष दिन है, क्योंकि आज प्रदेश की बीजेपी सरकार लगभग 1.29 करोड़ लाड़ली बहनों के लिए “लाड़ली बहना योजना की 9वीं किस्त” के रूप में तय नगद राशि उनके खातों में ट्रांसफर करेगी।

आईए जानते हैं कितने रुपये Ladli Behna Yojana 9th Installment के रूप मे हमारी माताओं बहनों को प्राप्त हो रहे हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सुबह 11 बजे मंडला पहुंचें। वे आज मुख्यमंत्री पद के बाद दूसरी बार लाड़ली बहनों के बैंक खातों में राशि जमा करने के लिए जा रहे हैं। लाड़ली बहना योजना के तहत आज 1576 रुपये की राशि जमा की जाएगी। साथ ही, 56 लाख सामाजिक सुरक्षा पेंशन लाभार्थियों के खातों में 340 करोड़ रुपये की राशि सिंगल क्लिक से होगी अंतरित।

‘x’ पर जारी की गई सूचना Ladli Behna Yojana 9th Installment जारी

इस अवसर पर 134 करोड़ रुपये के विकास कार्यों का लोकार्पण और भूमि पूजन भी किया जाएगा। मध्य प्रदेश बीजेपी के एक्स अकाउंट से भी इसके बारे में जानकारी दी गई है।

कब जारी होती है Ladli Behna Yojana की किश्त

मुख्यमंत्री मोहन यादव आज प्रदेश की लाड़ली बहना योजना की 9 वीं किस्त Ladli Behna Yojana 9th Installment के रूप में राज्य की 1.29 करोड़ लाड़ली बहनों के खातों में 1576 करोड़ रुपए की राशि जमा करेंगे। यह ध्याननीय है कि हर महीने की 10 तारीख को लाड़ली बहना योजना के तहत प्रदेश की सभी पात्र महिलाओं के खातों में धनराशि ट्रांसफर की जाती है।

शिवराज सिंह की तरह X पर की घोषणा

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लाड़ली बहना योजना की 9वीं किस्त (Ladli Behna Yojana 9th Installment) को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट के जरिए जानकारी दी। उन्होंने लिखा-

“सक्षम नारी, सशक्त प्रदेश… आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के नेतृत्व में चारों दिशाओं में प्रगति करती नारी शक्ति बनी, भाजपा सरकार की पहचान। आज मध्यप्रदेश की लाड़ली बहनों के खातों में ‘लाड़ली बहना योजना’ की 9वीं किस्त हस्तांतरित की जा रही है जिसके अंतर्गत बहनों के खातों में 1250 रुपये आ रहे हैं।”

शिवराज सरकार ने मई 2023 में लाड़ली बहना योजना (Ladli Behna Yojana) की शुरुआत की थी। इस योजना के अंतर्गत, मध्यप्रदेश की 21 से 60 साल की महिलाओं को प्रतिमाह 1000 रुपये देने का निर्णय लिया गया था। बाद में, 2023 में, रक्षाबंधन के मौके पर इस राशि को 1250 रुपये में बढ़ा दिया गया था। योजना की किस्तें प्रतिमाह 10 तारीख को जारी की जा रही हैं।

 

Farm Pond Subsidy : खेत में तालाब बनाने पर 1 लाख 35 हजार की सब्सिडी, जाने आवेदन की प्रक्रिया

Farm Pond Subsidy : सरकार द्वारा किसानों को खेत में तालाब बनाने के लिए 1 लाख 35 हजार रुपए की सब्सिडी प्रदान की जा रही है। इस सब्सिडी के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया जानने के लिए हमारे साथ बने रहे…

आवेदन प्रक्रिया के बाद, आपका आवेदन समीक्षा किया जाएगा और फिर आपको सब्सिडी की स्वीकृति की सूचना दी जाएगी, आईए जानते हैं आवेदन प्रक्रिया और पूरी जानकारी…

Farm Pond Subsidy Yojana खेत में तालाब बनाने पर 1 लाख 35 हजार की सब्सिडी

राजस्थान प्रदेश में भूमि में पानी की कमी के कारण किसानों को खेती में सीधा प्रभाव महसूस हो रहा है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए, प्रदेश सरकार ने कई योजनाएं आरंभ की हैं। राजस्थान प्रदेश सरकार की तरफ से खेतों में तालाब निर्माण Farm Pond Subsidy Yojana के लिए किसानों को 1 लाख 35 हजार रुपए की सब्सिडी प्रदान की जा रही है।

खेतों में तालाब निर्माण करने से जब बारिश होती है, तो उस पानी को इकट्ठा करने में सहायता मिलती है। इससे किसानों को बंजर भूमि पर खेती करने में सुविधा मिलती है, क्योंकि खेती में पानी का उपयोग सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है।

इतनी मिलेगी सब्सिडी

राजस्थान कृषि विभाग के अनुसार, खेतों में Farm Pond बनाने पर सब्सिडी Farm Pond Subsidy प्रदान की जाएगी। किसानों को जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सीमांत किसान हैं, उन्हें 73500 रुपए या 70% का अनुदान मिलेगा। इसके अतिरिक्त, प्लास्टिक लाइनिंग Farm Pond के लिए जो किसान आवेदन करते हैं, उन्हें 1 लाख 35 हजार यानी 90% की सब्सिडी प्रदान की जाएगी।

Farm Pond Subsidy Yojana के तहत, सामान्य श्रेणी के किसानों को भी लाभ प्रदान किया जाएगा। उन्हें खर्च होने वाले पैसे का 60% यानी 63 हजार रुपए का अनुदान मिलेगा। प्लास्टिक लाइनिंग Farm Pond पर, 80% यानी 1 लाख 20 हजार रुपए की सहायता उपलब्ध होगी। किसानों को कम से कम 400 घनमीटर क्षमता का Farm Pond बनाने की आवश्यकता है।

इन किसानों को मिलेगा लाभ

कृषि विभाग के अनुसार, तालाब निर्माण में सब्सिडी Farm Pond Subsidy के लिए किसान की खेती की भूमि का आकार महत्वपूर्ण है। इसके अनुसार, किसान के पास कम से कम 0.3 हेक्टेयर खेती की भूमि होनी चाहिए ताकि वह तालाब निर्माण के लिए सब्सिडी के लिए योग्य हो। विपरीत, संयुक्त खातेदारी में शामिल किसान के पास कम से कम 0.5 हेक्टेयर कृषि भूमि होनी चाहिए।

इस तरह करें आवेदन

कृषि विभाग की ओर से, तालाब निर्माण के लिए अनुदान का आवश्यकता और इच्छुकता देखते हुए, किसानों को आसानी से आवेदन करने का मार्ग प्रदान किया जा रहा है। वे अपने आवेदन को राज किसान साथी पोर्टल (Raj Kisan Saathi Portal) पर जमा कर सकते हैं या अपने पास के ई-मित्र e-Mitra केंद्र पर भी जा सकते हैं और वहां आवेदन प्रक्रिया को पूरा कर सकते हैं।

आवेदन करते समय, किसानों को अपने खेत के नक्शा और जमाबंदी की नकल जमा करनी होगी, जो राजस्व विभाग द्वारा जारी की जाती है। उनके आवेदन को स्वीकृति प्राप्त होने पर, कृषि विभाग उन्हें खेत में तालाब निर्माण की अनुमति देगा, और इस सूचना को वे अपने मोबाइल नंबर के माध्यम से प्राप्त करेंगे।

 

किसानों को है अगर इनकम की कमी, तो इस तरह करें सेवंती फूल की खेती, हो जाएंगे मालामाल – Floriculture In Chhattisgarh

रायपुर : सेवंती फूल को गुलदाउदी और चंद्रमलिका के नाम से भी जाना जाता है. फूलों का नाम आते ही गुलाब पहले नंबर पर आता है और दूसरे नंबर पर सेवंती फूल आता है. सेवंती फूल केवल भारत में नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब पसंद किया जाता है. सेवंती फूल की खेती प्रदेश के किसान अगर करना चाहें तो साल भर कर सकते हैं. इसको लगाते समय फरवरी-मार्च से लेकर सितंबर तक का समय अच्छा माना जाता है.

सेवंती की खेती में अपनाएं ये तकनीक : महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुल सचिव आर एल खरे ने बताया, “सेवंती फूल तीन तरीकों से लगाए जा सकते हैं. सेवंती फूल अलग-अलग रंगों में लगाए जा सकते हैं. कंद और बीज के माध्यम से भी इसे लगाया जा सकता है. कटिंग के माध्यम से सेवंती फूल के पौधे को लगाया जाना सबसे कारगर होता है.”

“सेवंती फूल की व्यवसायिक खेती करने के लिए जमीन की बात की जाए, तो बलुवी दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त मानी गई है. इसके साथ ही सेवंती फूल का पौधा अगर गमले में उगाना हो तो वर्मी कंपोस्ट सही मात्रा में मिलाया जाना चाहिए.” – आर एल खरे, कुलसचिव, महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, रायपुर

सूर्य की रोशनी और तापमान का रखें ध्यान : सेवंती फूल लगाने के लिए तापमान सेवंती फूल के अनुकूल होना चाहिए. फूल खिलते समय सूर्य की रोशनी अच्छी होनी चाहिए. जिस समय सेवंती की कली निकलती है, उस दरमियान सूर्य की रोशनी कम होनी चाहिए. सेवंती फूल को लगातार 14 घंटे तक सूर्य की रोशनी मिलती रहे, तो इसका फूल अच्छा रहता है.”

सेवंती की किस्मों का रखें ध्यान : सेवंती फूल की किस्मों में बीरबल, साहनी, मदर टेरेसा, अनमोल जैसे प्रसिद्ध किस्म हैं. इन्हें लगाकर किसान अच्छा उत्पादन और लाभ अर्जित कर सकते हैं. सेवंती फूल की खेती करते हैं तो कीट का प्रकोप भी देखने को मिलता है. किसानों को चाहिए कि वह सेवंती फूल की खेती में जल निकासी का ध्यान रखें.

 

आलू ने रसोई का बजट बिगाड़ा, 8 दिन में कीमतों में 5 फीसदी का उछाल, आखिर कब मिलेगी महंगाई से राहत?

आलू की बढ़ती कीमतों ने रसोई का बजट बिगाड़ रखा है. लगातार थोक कीमतों में उछाल से परेशानी बढ़ी है. 1 अप्रैल से 20 मई तक आलू की थोक कीमतों में 25 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है. कीमतों में उछाल की वजह गर्मियों के दौरान खपत बढ़ने की तुलना में कोल्ड स्टोरेज से आलू बाजारों में नहीं पहुंच पा रहा है. ट्रेडर्स का अनुमान है कि नवंबर तक आलू की कीमतें ऊपर ही रहने वाली हैं.

आलू के प्रमुख उत्पादक राज्यों पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश में रबी सीजन की आलू कटाई के समय जनवरी-फरवरी में बेमौसम बारिश से फसल पर बुरा असर पड़ा है, जिससे उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है. अकेले उत्तर प्रदेश में प्रति एकड़ 35 क्विंटल आलू की उपज कम हुई है. आंकड़ों के अनुसार बीते वर्षों में प्रति एकड़ 151 क्विंटल प्रति एकड़ आलू का उत्पादन दर्ज किया गया, जबकि इस बार केवल 115 क्विंटल प्रति एकड़ ही उत्पादन हुआ है.

यूपी में अप्रैल से अब तक 25 फीसदी दाम बढ़े

इन स्थितियों के चलते आलू की कीमत में करीब 2 माह से लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है. अकेले 8 दिनों में ही उत्तर प्रदेश के लखनऊ में आलू 4 फीसदी प्रति क्विंटल महंगी हो गई है. लखनऊ में 8 दिन पहले आलू का मॉडल रेट 1750 रुपये प्रति क्विंटल था वो अब 21 मई को बढ़कर 1860 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है. जबकि, 1 अप्रैल से अबतक की कीमतें देखें तो आलू 25 फीसदी महंगी हुई है.

आजादपुर मंडी में 15 दिनों में 5 फीसदी दाम उछले

दिल्ली की आजादपुर मंडी में भी आलू के भाव में लगातार तेजी ने दिल्ली एनसीआर के उपभोक्ताओं की रसोई का बजट बिगाड़ दिया है. हरियाणा, उत्तर प्रदेश से आवक बढ़ने पर कीमतों में कुछ नरमी जरूर देखी गई है. सरकारी कमोडिटी प्लेटफॉर्म एगमार्कनेट के आंकड़ों के अनुसार बीते 15 दिनों में आलू की कीमतों में 5 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है. 2 अप्रैल से 21 मई 2024 तक आलू की कीमत में 32 फीसदी का रिकॉर्ड उछाल दर्ज किया गया है. 2 अप्रैल को आलू की थोक मॉडल कीमत 1055 रुपये प्रति क्विंटल थी जो आज 21 मई को बढ़कर 1560 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई है.

कब मिलेगी आलू की महंगी कीमत से राहत

रबी सीजन में आलू के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है. फसल कटाई के बाद कुल आलू उत्पादन का 60 फीसदी कोल्ड स्टोरेज में स्टॉक हो चुका है, 15 फीसदी आलू ही बाजार में आया और बाकी बीज के रूप में इस्तेमाल करने के लिए किसान अपने पास रोके हुए हैं. अब गर्मियों के चलते आलू की खपत में बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि, कोल्ड स्टोरेज से आलू को निकालकर बाजार में ट्रेडर्स नहीं ला रहे हैं. आमतौर पर जुलाई-अगस्त के दौरान कोल्ड स्टोर का आलू बाजार में आता है. लेकिन, इस बार जरूरत पहले ही पड़ती दिख रही है. हालांकि, नवंबर से पहले कीमतों में गिरावट का अनुमान नहीं है.

Chhattisgarh Job Vacancy: कृषि विभाग में बंपर भर्ती, व्यापमं कराएगा परीक्षा, जाने कब से शुरू होगी आवेदन प्रक्रिया

Chhattisgarh Agriculture Vacancy 2024: कृषि विभाग की ओर से प्रदेश में बड़ी भर्ती की तैयारी की जा रही है। इसके तहत 500 से अधिक पदों के लिए वैकेंसी निकाली जाएगी। बता दें की इन भर्तियों के लिए शासन से मंजूरी मिल चुकी है।

कई पदों के लिए व्यापमं से परीक्षा ली जाएगी। जबकि कई पदों के लिए कृषि विभाग की ओर से जिला स्तर पर आवेदन मंगाए जाएंगे। कृषि वैज्ञानिक से लेकर इंजीनियर तक के पद रहेंगे। सब कुछ ठीक रहा तो जुलाई से आवेदन की प्रक्रिया शुरू होगी।

कृषि विभाग में नई नियुक्तियां ब्लॉक से लेकर जिला और संभाग स्तर पर निकाली जाएगी। जिसके लिए प्रक्रिया जुलाई में शुरू होगी।

कहां कितनी होगी वैकेंसी

सरगुजा में कृषि विभाग उर्वरक गुणवत्ता परीक्षण (Agriculture Department Fertilizer Quality Testing) के लिए एक नई लैब खोलने जा रहा है। जिसके लिए 12 से अधिक नए पदों का सृजन किया जा रहा है। इसमें सहायक संचालक कृषि, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, प्रयोगशाला तकनीशियन, सहायक तकनीशियन, कंप्यूटर आपरेटर जैसे पद रहेंगे।

इसी तरह बलरामपुर, कोरिया, कोरबा, बेमतरा, राजनांदगांव, कोंडागांव में सहायक कृषि यंत्री कार्यालय की स्थापना भी हो रही है। कृषि यंत्री, सहायक कृषि यंत्री, कंप्यूटर आपरेटर, फील्ड अफसर जैसे कई नए पदों पर वैकेंसी आएगी। इन पदों की संख्या 180 से ज्यादा होने की संभावना है।

इसी तरह ड्रायवर, प्यून कर्मचारी के पद भी निकाले जाएंगे। इसके अलावा दुर्ग और सरगुजा संभाग में कृषि अभियांत्रिकी कार्यालय (Agricultural Engineering Office) भी खोलने की तैयारी है। इसमें 60 से अधिक पोस्ट पर भर्ती की संभावना है। इसके अलावा कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय में 29 से अधिक पदों के लिए प्रस्ताव बनाए जा रहे हैं।

किस पोस्ट पर कितनी वैकेंसी

सरगुजा संभाग उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला-12

दुर्ग सरगुजा में कृषि अभियांत्रिकी कार्यालय-60

कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय-29

सात जिलों में सहायक कृषि यंत्री कार्यालय-182

सात जिलों में सहायक कृषि यंत्री कार्यालय-246

ब्लॉक स्तर पर निकलेगी 246 आवेदन की वैकेंसी

जानकारी के मुताबिक एग्रीकल्चर व हार्टीकल्चर (Agriculture and Horticulture) में 246 से ज्यादा पदों पर वैकेंसी निकालने की तैयारी है। 34 विकासखंड में उद्यानिकी विस्तार अधिकारी, माली, चौकीदार आदि जैसे अन्य पदों पर भर्तियां निकलेगी।

जानकारी के अनुसार इन भर्तियों के लिए शासन की ओर से मंजूरी दी जा चुकी है। व्यापमं के अलावा जिला स्तर पर कृषि विभाग की ओर से भी भर्तियों के लिए आवेदन मंगवाए जाएंगे।

Bastar News: बस्तर के किसान सीख रहे ड्रोन चलाना, 10 मिनट में होगा 1 एकड़ भूमि में कीटनाशक का छिड़काव

Bastar News: बस्तर के किसानों में ड्रोन तकनीक की ओर रुझान बढ़ रहा है। बकावंड, सोनारपाल सहित 14 क्षेत्रों के किसान ड्रोन तकनीकि को अपनाकर फसल पर कीटनाशक कर छिड़काव कर रहे हैं। कम समय कम लागत में अच्छा परिणाम आने की उमीद है। किसानों को इसके लिए प्रेरित करने के लिए दवा कंपनी इन्सेस्टीसाइड इंडिया लिमिटेड ने बस्तर के 14 जगहों पर किसानों को ड्रोन से दवा छिड़काव का डेमो दिया था।

शुरुआती दौर में की किसानों की रुचि को देखते हुए अब जिले के प्रत्येक ग्राम में ड्रोन के जरिये यूरिया छिड़काव का डेमो दिया जाएगा, ताकि नेनो यूरिया को बढ़ावा मिल सके। कृषि एवं उद्यानिकी विभाग का कहना है कि देश की दवा कंपनी इन्सेस्टीसाइड इंडिया लिमिटेड के द्वारा सोनारपाल और बकावंड के बड़े किसानों को यह डेमो दिया गया था, जिसमें यह किस तरह काम करता है, जिसमें कम मेहनत और कम समय लगता है। एग्री ड्रोन के माध्यम से नैनो यूरिया के अलावा अन्य दवाओं का छिड़काव तकनीक का प्रदर्शन किया गया।

जिसे यहां के किसानों ने पसंद किया। बस्तर में आज किसान पारंपरिक कृषि के साथ ही आधुनिक कृषि को भी अपना रहे हैं। दशक भर में कैश क्राप करने वाले किसानों की संया में बढ़ी है। कैश क्राप की फसल के लिए ड्रोन का इस्तेमाल अब बड़े शहरों की तरह बस्तर के किसान भी करने लगे हैं। इस ड्रोन से एक स्थान पर खड़े होकर 15 किलोमीटर दायरे में दवा का छिड़काव किया जा सकता है।

ड्रोन पर 40 से 100 फीसदी तक अनुदान

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा कीटनाकश और पोषक तत्वों के उपयोग के लिए एग्री ड्रोन का एसओपी जारी किया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थान , कृषि विज्ञान केन्द्र और राज्य कृषि विश्वविद्यालय को किसान के खेतों पर इसके प्रदर्शन के लिए आकस्मिक व्यय के साथ-साथ ड्रोन की खरीद के लिए लागत के 100 प्रतिशत की दर से वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है।

इसके अलावा किसान उत्पाक संगठनों को ड्रोन के लिए 75 फीसदी अनुदान, किसान सहकारी समिति, किसान उत्पादक संगठनों एवं ग्रामीण उद्यमियों को ड्रोन के लिए 40 फीसदी की दर से या 4 लाख तक की वित्तीय सहायता राशि प्रदान की जाती है। सीएचसी स्थापित करने व कृषि स्नातक को ड्रोन के लिए 50 फीसदी वित्तीय सहायता राशि का प्रावधान है।

यह है ड्रोन के इस्तेमाल के फायदे

ड्रो न तकनीक भविष्य की खेती का एक ऐसा चेहरा है, जिससे खेती में किसानों की मेहनत और लागत दोनों कम हो जाएगी। ड्रोन तकनीक के मध्यम से महज 10 मिनट में 20 लीटर पानी में दवा मिलाकर एक एकड़ खेत में दवा या कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं, जबकि हस्त चलित स्प्रे पंप से एक एकड़ में छिड़काव के लिए 400 से 500 लीटर पानी की जरुरत होती है और इसके अनुपात में दवा और कीटनाशक भी अधिक लगता है, जो किसान को काफी महंगा पड़ता है। साथ ही बड़े क्षेत्रफल में छिड़ाव करने के लिए मजदूर दिन भर काम करते हैं।

Agri Quiz: किस सब्जी की किस्म है NSC Queen? किस सीजन में और कैसे करते हैं इसकी खेती

सब्जियां आमतौर पर विटामिन्स, मिनरल्स, और फाइबर का अच्छा स्रोत होती हैं, जो हमारे शरीर के लिए आवश्यक होते हैं. इनमें विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन के, पोटैशियम, और फोलेट शामिल हैं. सब्जियों में लो-कैलोरी होती हैं और उनमें फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जिससे आपका भोजन संतुलित और भरपूर महसूस होता है. इतना ही नहीं इससे वजन नियंत्रण में मदद मिलती है. सब्जियों में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो पाचन क्रिया को सुधारने में मदद कर सकती है और कब्ज से राहत दिला सकती है. ऐसे में आइए जानते हैं सब्जी की किस्म को ‘NSC Queen’ कहा गया है और क्यों? साथ ही यह भी जानेंगे की किस सीजन में ‘NSC Queen’ की खेती कर सकते हैं.

देसी और हाइब्रिड किस्म में अंतर

करेले की दो किस्में होती हैं एक देशी और दूसरी हाइब्रिड. करेले की हाइब्रिड किस्म तेजी से बढ़ती है और देशी किस्म की तुलना में जल्दी तैयार हो जाती है. इसमें फलों का आकार सामान्य किस्म के करेले से बड़ा होता है. बाजार में इसकी कीमतें भी अच्छी हैं. इसलिए ज्यादातर किसान हाइब्रिड करेले के बीज का इस्तेमाल करते हैं. हालाँकि, हाइब्रिड करेले के बीज स्थानीय बीजों की तुलना में थोड़े अधिक महंगे हैं. आपको बता दें NSC Queen एक हाइब्रिड किस्म है.

NSC Queen किस्म की खासियत

आपको बता दें NSC करेला को NSC Queen का दर्जा दिया गया है. किसान फसलों की खेती के अलावा सब्जियों की खेती करके भी आसानी से अपनी आय बढ़ा सकते हैं. अगर आप भी सब्जियों की खेती करने की सोच रहे हैं तो इस महीने में करेले की खेती कर सकते हैं. करेले की खेती भारत के लगभग सभी राज्यों में की जाती है. करेले में कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं, जिसके कारण इसकी मांग बाजारों में हमेशा बनी रहती है. करेले की खेती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि करेले की खेती में लागत से अधिक आय होती है. करेले की उन्नत किस्म ‘NSC Queen’ की खेती करके किसान प्रति एकड़ 60 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं करेले की इस उन्नत किस्म के बारे में.

बुवाई के लिए खेत की तैयारी

बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार किया जाना चाहिए और उसमें खरपतवार नहीं होने चाहिए. साथ ही जल निकास की अच्छी सुविधा होनी चाहिए. 1-2 गहरी जुताई, मिट्टी को सूरज की रोशनी में रखना चाहिए, बारीक जुताई के लिए 3 से 4 बार हैरो से जुताई करें. अंतिम हैरो से पहले, मिट्टी में पैदा होने वाले कवक को नियंत्रित करने के लिए 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा के साथ 8 – 10 मीट्रिक टन अच्छी तरह से विघटित एफवाईएम/एकड़ का प्रयोग करें.

कब करें करेला की बुवाई

भारत में अधिकतर किसान साल में दो बार करेले की खेती करते हैं. जहां सर्दी के मौसम में किसान करेले की किस्मों की बुआई जनवरी-फरवरी में करते हैं और इसकी पैदावार मई-जून में प्राप्त करते हैं. वहीं गर्मी के मौसम में करेले की बुआई जून और जुलाई में करने के बाद दिसंबर तक इसकी पैदावार प्राप्त की जा सकती है.

PM Kisan: नई सरकार में क्‍या नए रूप लेगी पीएम किसान सम्‍मान निधि योजना! नीति आयोग क्‍यों करा रहा मूल्‍यांकन

देश में नई सरकार जून के आखिरी सप्‍ताह तक अपना आकार ले लेगी. मसलन, प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण के साथ ही केंद्रीय कैबिनेट भी गठित होने की उम्‍मीद है. इसके साथ ही नई सरकार का 100 दिन का एजेंडा भी सेट होने की संंभावनाएं हैं. मसलन, किसी भी सरकार का पहले 100 दिन के कार्यकाल की समीक्षा से उसके 5 साल के एजेंडे को समझने में मदद मिलती है.

मतलब, नई सरकार का पहले 100 दिनी कार्यकाल ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं’ वाली कहावत को चरितार्थ करता है. ऐसे में इस बार भी नई सरकार के पहले 100 दिन के एजेंडे पर सबकी नजर होगी, जिसमें पीएम किसान याेजना को लेकर कोई बड़ी घोषणा होने की उम्‍मीद दिखाई दे रही है. जिसके तहत उम्‍मीद लगाई जा रही है कि नई सरकार में पीएम किसान सम्‍मान निधि योजना नया रूप ले सकती है.

साथ ही ये भी ये भी कहा जा रहा है कि नई सरकार में पीएम किसान सम्‍मान निधि में बढ़ोतरी हो सकती है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि नई सरकार के पहले 100 दिन के एजेंडे में पीएम किसान सम्‍मान निधि शामिल दिखाई पड़ रही है. आइए समझते हैं कि पूरा मामला क्‍या है.

PM Kisan योजना का मूल्‍यांकन कराने जा रही सरकार

नई सरकार में पीएम किसान योजना नए रूप में आएगी, इसको लेकर अटकलों का बाजार इस वजह से गर्म है, क्‍योंकि नीति आयोग ने पीएम किसान योजना का मूल्‍यांकन कराने का फैसला किया है. इसके लिए नीति आयोग के विकास निगरानी और मूल्यांकन कार्यालय (डीएमईओ) ने संबंधित एजेंसियों से मूल्‍यांकन के लिए रिक्‍वेस्‍ट ऑफ प्रपोजल मांगा है. साथ ही डीएमईओ ने मूल्‍यांकन का कार्यक्रम भी जारी किया है, जिसके तहत 29 जुलाई तक मूल्‍यांकन के लिए एजेंसियों को काम आंवटित कर दिया जाएगा. मूल्‍यांकन के लिए 90 दिनों का समय निर्धारित किया गया है.

कहां होगा पीएम किसान योजना का मूल्‍यांकन

पीएम किसान योजना को मोदी सरकार ने फरवरी 2019 में शुरू किया था, जो केंद्र सरकार की किसानों के लिए प्रमुख डीबीटी योजना है. जिसके तहत किसानों के बैंक खातों में सालाना 6 हजार रुपये सीधे भेजे जाते हैं. अब 5 साल पूरे होने पर इस योजना के मूल्‍यांकन की कार्ययोजना बनाई गई है, जिसके तहत देश के 24 राज्‍याें 5000 किसान परिवारों का सर्वे किया जाएगा.

इन 24 राज्‍यों में यूपी, महाराष्‍ट्र, मध्‍य प्रदेश, बिहार, राजस्‍थान, गुजरात, कर्नाटक, वेस्‍ट बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, तेलांगना, केरल, ओडिशा, छत्‍तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, पंंजाब, असम, जम्‍मू-कश्‍मीर, त्रिपुरा, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय और गोवा शामिल हैं. नीति आयोग की तरफ से जारी रिक्‍वेस्‍ट ऑफ प्रपोजल में कहा गया है कि इस सूची में पहले 17 राज्‍यों में पीएम किसान योजना के लाभार्थी किसानों की संख्‍या 95 फीसदी हैं.

क्‍या योजना अपना लक्ष्‍य पूरा कर पाई!

पीएम किसान योजना का मूल्‍यांकन नीति आयोग करने जा रहा है. नीति आयोग ने मूल्‍यांकन के उद्देश्‍य की जानकारी भी अपने रिक्‍वेस्‍ट ऑफ प्रपोजल में दी है, जिसके अनुसार योजना अपने लक्ष्‍य को पूरा कर पाई या नहीं और योजना के क्रियान्‍वयन का आंकलन के बिंदुओं पर योजना का मूल्‍यांकन किया जाएगा.

योजना किस हद तक फसल विविधीकरण, भंडारण, बाजार पहुंच, अन्‍य घरेलू जरूरतों में योगदान, साहूकारों पर निर्भरता को कम करने में किसानों की वित्‍तीय जरूरतों को पूरा कर पाई, इन पैरामीटरों पर मूल्‍यांकन किया जाएगा. इसके साथ ही किसानों की इनकम पर पीएम किसान याेजना का प्रभाव का भी अध्‍ययन करेगी. इसी तरह योजना के तहत किसानों के नामांकन में सुधार के लिए विभिन्न राज्य पहलों का अध्ययन करना, किश्तों के वितरण और शिकायत निवारण की समयबद्धता का अध्‍ययन किया जाएगा. ये महत्‍वपूर्ण है कि इसके मूल्‍यांकन के लिए पीएम किसान योजना की संदर्भ अवधि 2020-21 से 2023-24 तक निर्धारित की गई है.

बस्तर में जैविक खेती से किसानों की बदल रही किस्मत, 9 साल में 80 से 26 हजार हेक्टेयर हुआ खेती का रकबा

Bastar News Today: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करने की पहल साल 2015 में शुरू की गई, यह पहल अब कारगर साबित हो रही है. जिले के किसान जैविक खेती के लिए लगातार आगे आ रहे हैं. जिले में जैविक खेती का रकबा बढ़कर 26 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है.

उम्मीद की जा रही है कि इस साल खरीफ सीजन में पहली बार जिले में करीब 22 हजार किसान जैविक तरीके से खेती करेंगे. इससे अगले साल तक जिले में जैविक खेती का रकबा करीब 30 हजार हेक्टेयर तक पहुंच जाएगा.

जैविक खेती में किसान दिखा रहे रूचि

खास बात यह है कि नक्सल प्रभावित दरभा ब्लॉक के ही करीब 12 हजार किसान जैविक खेती कर रहे हैं. अन्य ब्लॉकों में भी किसानों को प्रोत्साहित कर जैविक खेती करने के लिए कहा जा रहा है. हालिया दिनों में किसान जैविक खेती करने के लिए बढ़चढ़कर रुचि दिखा रहे हैं.

जैविक खेती के लिए 2015 से दी जा रही ट्रेनिंग

देश के अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी उद्यानिकी विभाग और कृषि विभाग के द्वारा किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. साल 2015 से ही जैविक खेती को लेकर किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही थी. अब आलम यह है कि जिले में करीब 26 हजार हेक्टेयर में हजारों किसानों के द्वारा जैविक खेती की जा रही है.

बस्तर के कलेक्टर विजय दयाराम का कहना है कि बस्तर जिले में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए की जा रही कोशिश काफी सफल साबित हो रही है. दरभा ब्लॉक को जैविक ब्लॉक घोषित कर दिया गया है. बड़ी संख्या में बस्तानार ब्लॉक के किसान रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का उपयोग कर फायदा ले रहे हैं.

30 हजार हेक्टेयर में जैविक खेती का लक्ष्य

इन दोनों ब्लॉक में इस समय 12 हजार से ज्यादा किसान करीब 15 हजार हेक्टेयर रकबे में खेती कर रहे हैं, यह रकबा आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है. जैविक खेती को बढ़ावा देने के तहत जैविक मिशन की शुरुआत साल 2015-16 से हुई थी. उस समय कृषि विभाग ने 80 हेक्टेयर में 200 किसान के माध्यम से इसकी शुरुआत की थी.

यह मिशन जिले में कामयाब हुआ और मौजूदा स्थिति में करीब 22 हजार किसान 26 हजार हेक्टेयर में जैविक खेती कर रहे हैं. जिला कलेक्टर के मुताबिक, अगले साल तक जिले में जैविक खेती का रकबा 30 हजार तक पहुंचाया जाएगा. साथ ही ज्यादा से ज्यादा किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.

‘जैविक खेती हो रही है फायदेमंद साबित’

इसके लिए उद्यानिकी विभाग और कृषि विभाग ने एक तय लक्ष्य के तहत काम कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि कम लागत में जैविक खेती होती है, जिससे यह काफी फायदेमंद साबित हो रहा है और यही वजह है कि बस्तर जिले के साथ-साथ अन्य जिलों में भी जैविक खेती से उगाई जाने वाली सब्जियों और फसलों की डिमांड बढ़ रही है.

World Bee Day 2024: सेब और सूरजमुखी समेत कई फसलों की उपज बढ़ाती हैं मधुमक्खियां, इकोसिस्टम को हेल्दी रखती हैं

वातावरण को शुद्ध रखने के साथ ही ह्यूमन बॉडी को हेल्दी बनाए रखने में मधुमक्खियों की बड़ी भूमिका है. मधुमक्खियां बादाम, सेब, ब्लूबेरी और सूरजमुखी सहित कई फसलों की उपज बढ़ाने में मददगार तो हैं ही ये अपनी परागकण जुटाने की प्रक्रिया से पर्यावरण को स्वस्थ रखती हैं. जबकि, अपने शहद से लोगों को शुगर जैसी बीमारी से बचने का विकल्प देती हैं. 20 मई को दुनियाभर में विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जाता है, इसके तहत मधुमक्खियों के पालन, विकास और उनके योगदान के प्रति दुनियाभर में जागरूकता फैलाई जाती है.

एग्रीकल्चर सेक्टर में काम करने वाली कंपनी एफएमसी कॉर्पोरेशन इंडिया के इंडस्ट्री और पब्लिक अफेयर्स के डायरेक्टर राजू कपूर ने कहा कि मधुमक्खियां हमारे इकोसिस्टम के लिए बड़ा महत्व रखती हैं और दुनिया भर में कृषि और जैव विविधता के अस्तित्व के लिए इनकी बेहद जरूरत है. मधुमक्खियां न केवल हमारी फसल की पैदावार बढ़ाती हैं, बल्कि खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित करती हैं. बादाम, सेब, ब्लूबेरी और सूरजमुखी सहित कई फसलों की उपज बढ़ाने में मधुमक्खियों की परागकण जुटाने की प्रक्रिया बेहद कारगर साबित होती है.

मधुमक्खी पालन इकोसिस्टम को हेल्दी बनाने में मददगार

भारत और उत्तरी क्षेत्रों में सरसों, बादाम, सेब, ब्लूबेरी और सूरजमुखी फसलों की अत्यधिक खेती और खपत होती है. ऐसे में इन क्षेत्रों की महिलाओं और युवाओं को मधुमक्खी पालन के लिए प्रेरित करना जरूरी है. जबकि, युवा पीढ़ी और ग्रामीण महिलाओं को मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग उपलब्ध कराना भी जरूरी है. मधुमक्खी पालन दुनिया भर के इकोसिस्टम को हेल्दी बनाए रखने में मदद करता है.

मधु शक्ति प्रोजेक्ट से जुड़ीं 8 हजार महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार

मधुमक्खी पालन के माध्यम से उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाओं के बीच उद्यमशीलता विकसित करने और हमारे इकोसिस्टम के भविष्य की सुरक्षा के उद्देश्य से एग्रीकल्चर सेक्टर में काम करने वाली कंपनी एफएमसी ने 2022 में ‘मधु शक्ति’ प्रोजेक्ट शुरू किया है. राजू कपूर ने कहा कि जब से इस प्रोजेक्ट को शुरू किया गया है तब से इससे जुड़ी 8,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को अपना जीवन बेहतर करने का जरिया मिला है. उन्हें इस प्रोजेक्ट से जोड़कर कृषि उद्यमी बनाया जा रहा है और मधुमक्खी अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

 

पॉलीहाउस और शेड नेट लगाने पर 50 फीसदी सब्सिडी दे रही है ये सरकार, जानिए कैसे करें आवेदन

बेहतर आय के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से किसानों को हमेशा प्रोत्साहित किया जाता है. वहीं सरकार की ओर से आए दिन कई नई-नई योजनाएं चलाई जाती हैं, जिससे किसानों को आर्थिक स्थिति में मदद मिलती है. इसी कड़ी में बिहार सरकार किसानों के लिए संरक्षित खेती द्वारा बागवानी विकास योजना के अंतर्गत पॉलीहाउस और शेड नेट की व्यवस्था मुहैया करा रही है. इससे न सिर्फ किसानों की आय बढ़ेगी बल्कि पॉलीहाउस और शेड नेट की मदद से उत्पादन में बढ़ोतरी भी होगी.

इस योजना के तहत किसानों को पॉलीहाउस और शेड नेट लगाने के लिए बिहार सरकार सब्सिडी दे रही है. इस स्कीम का लाभ लेने के लिए किसानों को ऑनलाइन आवेदन करना होगा. ऐसे में पूरी खबर जानने के लिए नीचे दी गई डिटेल को पढ़ें.

किसानों को कितनी मिलेगी सब्सिडी

बिहार कृषि विभाग की ओर से किए गए ट्वीट के अनुसार, संरक्षित खेती द्वारा बागवानी विकास योजना के अंतर्गत पॉलीहाउस और शेड नेट की मदद से फसलों की खेती करने के लिए सरकार 50 फीसदी की सब्सिडी दे रही है. इसमें किसानों को पॉलीहाउस लगाने के लिए प्रति वर्ग मीटर की इकाई लागत 935 रुपये पर 50 फीसदी यानी 467 रुपये दिया जाएगा. साथ ही शेड नेट के लिए प्रति वर्ग मीटर की इकाई 710 रुपये पर 50 फीसदी 355 रुपये दिया जाएगा.

पॉलीहाउस और शेड नेट के फायदे

अगर आप बिहार के किसान हैं और पॉलीहाउस और शेड नेट तकनीक से फसलों की खेती करना चाहते हैं, तो इसके कई फायदे हैं. दरअसल इन तकनीकों के इस्तेमाल से खेती करने में 90 फीसदी कीट आक्रमण में कमी आती है. साथ ही इसमें आप सालों भर फलों और सब्जी की खेती आसानी से कर सकते हैं. इसके अलावा ड्रिप सिंचाई द्वारा 90 फीसदी पानी का भी बचाव होता है. वहीं, किसानों की आय में दोगुना लाभ होता है. वहीं तेज हवा चलने पर भी फसलों को नुकसान नहीं होता है.

किसान ऐसे कर सकते हैं आवेदन

  • किसानों को सबसे पहले बागवानी विभाग की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाना होगा.
  • होम पेज पर आपको उद्यान निदेशालय अंतर्गत संचालित योजनाओं का लाभ लेने के लिए Online Portal के ऑप्शन पर क्लिक करना होगा.
  • वहां पर आपको संरक्षित खेती द्वारा बागवानी विकास योजना के लिए आवेदन का ऑप्शन आएगा जिस पर आपको क्लिक करना होगा.
  • इसके बाद आपके सामने नए पेज पर कुछ नियम और शर्तें आएंगी.
  • आपको इन नियम और शर्तों को ध्यानपूर्वक पढ़कर जानकारी से सहमत वाले ऑप्शन पर क्लिक करना होगा. ऐसा करते ही आपके सामने आवेदन फॉर्म खुल जाएगा.
  • अब आपको आवेदन फॉर्म में मांगी गई सभी आवश्यक जानकारी को ध्यानपूर्वक भरना होगा.
  • सभी जानकारी दर्ज करने के बाद आपको मांगे गए आवश्यक दस्तावेजों को भी अपलोड करना होगा.
    अंत में आपको सबमिट के ऑप्शन पर क्लिक करना होगा.
  • इस प्रकार आप सफलतापूर्वक इस योजना के तहत ऑनलाइन आवेदन हो जाएगा

जानकारी के लिए यहां करें संपर्क

यदि आप बिहार के किसान हैं और पॉलीहाउस और शेड नेट की मदद से खेती करना चाहते हैं, तो आप इस योजना के लिए सब्सिडी का लाभ ले सकते हैं. इसके लिए बिहार कृषि विभाग, बागवानी निदेशालय की ऑफिशियल वेबसाइट लिंक पर विजिट कर सकते हैं. वहीं इस बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए किसान अपने जिले के उद्यान विभाग के सहायक निदेशक से भी संपर्क कर सकते हैं.

 

 

Cattle Farmers: गिर गाय के दूध से यूपी के पशुपालक भी कर सकते है मोटी कमाई, जानिए एक्सपर्ट की राय

Gir Cow business: यूपी में गिर गाय का पालन धीरे-धीरे बढ़ गया है. इसका कारण है इससे मिलने वाली दूध, गोबर और मूत्र. ये तीनों काफी उपयोगी हैं. किसानों के लिए गिर गाय आय का बड़ा जरिया बन सकती है. सहारनपुर के पशु चिकित्सा कल्याण अधिकारी डॉ. संदीप मिश्रा ने किसान तक से बातचीत में बताया उत्तर प्रदेश में पशुपालक गिर गाय को पाल रहे है. इसके दूध में ए2 तत्व पाए जाते है जो स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होता है. इस नस्ल की गाय गुजरात में पाई जाती है. पशु चिकित्सा अधिकारी ने आगे बताया कि गिर गाय की दूध देने की अवधि करीब 300 दिन की होती है. इस तरह से एक सीजन में यह 2000 लीटर से अधिक ही दूध देती है. शुरुआती दिनों में यह 7-8 लीटर तक दूध देती है जबकि पीक टाइम पर 12 से 15 लीटर तक हो जाता है. इसकी डेयरी से किसान अपनी इनकम में इजाफा कर सकते हैं. गिर गाय का जीवनकाल 12 से 15 साल का होता है. इस दौरान यह 10 से 12 बच्चों (बछड़ों) को जन्म देती है.

गिर गाय के दूध में कई पोषक तत्व

डॉ. मिश्रा बताते हैं कि गिर गाय, एक देसी नस्ल की गाय है, यह गाय अपने पोषण से भरपूर दूध के लिए प्रसिद्ध है, यह दूध प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन ए, बी12, और डी जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर होता है. इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं जैसे कि हृदय स्वास्थ्य, पाचन तंत्र के लिए अच्छा, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना, हड्डियों और दांतों के लिए अच्छा, त्वचा बाल, मधुमेह के लिए फायदेमंद,है. इसके अतिरिक्त, यह दूध बच्चों, बुजुर्गों, और गर्भवती महिलाओं के लिए भी फायदेमंद है.

गिर गाय कम पड़ती हैं बीमार

उन्होंने बताया कि इस नस्ल का मूल स्थान गुजरात के दक्षिण काठियावाड़ में है. गिर नस्ल की गाय को आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके शरीर पर गहरे लाल या चॉकलेटी रंग के धब्बे होते हैं जो इसकी पहचान हैं. ये आकार में अन्य देसी गायों की तुलना में बड़ी होती हैं. इसके कान लंबे होते हैं. माथे में एक उभार होता है. वहीं, सींग पीछे की तरफ मुड़े होते हैं. इसका आकार मध्यम से लेकर बड़ा होता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता सही होने के कारण यह गाय कम बीमार पड़ती हैं.

देसी गिर गाय के पालन पर मिलेगी सब्सिडी

सहारनपुर के पशु चिकित्सा कल्याण अधिकारी डॉ. संदीप मिश्रा ने बताया कि यूपी सरकार ने प्रदेश में गौवंशीय पशुओं की नस्ल सुधार और दूध उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए नन्द बाबा मिशन के तहत नंदिनी कृषक समृद्धि योजना की शुरूआत की है. इस योजना से किसान साहीवाल, गिर, थारपारकर और गंगातीरी प्रजाति की गायों का पालन कर सकते हैं. इस योजना के तहत लाभार्थी किसानों को 25 दुधारू गायों की 35 यूनिट स्थापित करने के लिए गायों की खरीद से लेकर उनके संरक्षण और भरण पोषण के लिए सब्सिडी दी जाएगी. अगर आप भी किसान हैं तो आप आसानी से अपने घर में इस गाय को पालकर अच्छी-खासी कमाई कर सकते हैं.

ओडिशा में मछुआरों के लिए 10 लाख तक की सब्सिडी, इन कागजातों और शर्तों पर मिलेगा लाभ

ओडिशा के लाखों समुद्री मछुआरे के लिए खुशखबरी है. इनकी इनकम बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. कहा जा रहा है कि एमएमकेवाई योजना के तहत मछुआरे को आर्थिक सहायता दी जाएगी. उन्हें सरकार की ओर से समुद्री मछली पकड़े के लिए सब्सिडी मिलेगी, ताकि वे उन पैसों से नाव, इंजन और जाल खरीद सकें. राज्य सरकार का मानना है कि इससे प्रदेश में मछली उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही रोजगार भी सृजन होगा.

दरअसल, ओडिशा में समुंद्री तटरेखा 480 किलोमीटर में फैला हुआ है. राज्य में करीब 5.18 लाख मछुआरे अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह से मछली पकड़ने पर निर्भर हैं. यही वजह है कि ओडिशा सरकार ने मछुआरों को नाव, इंजन और जाल खरीद के लिए 10 लाख रुपये तक सब्सिडी देने का फैसला किया है. खास बात यह है कि एमएमकेवाई के लाभार्थियों के लिए नाव खरीदना अनिवार्य किया गया है. लेकिन इंजन और जाल को वैकल्पिक में रखा गया है. एससी/एसटी/महिला/पीडब्ल्यूडी/ट्रांसजेंडर लाभार्थियों को 60 फीसदी सब्सिडी मिलेगी. वहीं, सामान्य वर्ग के लिए 40 प्रतिशत सब्सिडी निर्धारित की गई है. सब्सिडी सीधे लाभार्थी के आधार से जुड़े बैंक खाते में जारी की जाएगी.

4.50 लाख रुपये मुफ्त में मिलेंगे

खास बात यह है कि राज्य सरकार ने नाव बनवाने लिए 7.50 लाख रुपये लागत तय की है. इसके ऊपर सामान्य वर्ग के लाभार्थियों को 40 फीसदी सब्सिडी मिलेगी. यानी लाभार्थियों को सरकार की तरफ से 3 लाख रुपये मुफ्त में दिए जाएंगे. इसी तरह एससी/एसटी/महिला/पीडब्ल्यूडी/ट्रांसजेंडर लाभार्थियों को नाव खरीदने के लिए कुल लागत के ऊपर 60 फीसदी का अनुदान मिलेगा. इसका मतलब यह हुआ कि इन्हें 4.50 लाख रुपये मुफ्त में मिलेंगे.

ऐसे उठाएं योजना का फायदा

इसी तरह नाव में लगने वाले मोटर इंजन के लिए सरकार ने 1.40 लाख रुपये की लागत निर्धारित की है. इसके अलावा 10 हजार रुपये लाइफ जैकेट खरीदने के लिए तय किए गए हैं. इसके ऊपर भी सभी श्रेणी के लाभार्थियों को सब्सिडी मिलेगी. फिश जाल खरीदने के लिए 1 लाख रुपये निर्धारित की गई है. इसके ऊपर भी सामान्य वर्ग के लाभार्थियों को 40 फीसदी और एससी/एसटी/महिला/पीडब्ल्यूडी/ट्रांसजेंडर लाभार्थियों को 60 फीसदी सब्सिडी मिलेगी. इस तरह एमएमकेवाई योजना के तहत मछुआरे सब्सिडी पर कुल 10 लाख रुपये का लाभ उठा सकते हैं.

इन दस्तावेजों की पड़ेगी जरूरत

1. पहचान पत्र की फोटो कॉपी
2. पासपोर्ट साइज फोटो
3. जाति प्रमाण पत्र की फोटो कॉपी
4. आधार कार्ड
5. बैंक पासबुक
6. आवश्यकतानुसार अन्य प्रासंगिक दस्तावेज

PM Kusum Yojana की बड़ी खबर! अब सोलर पंप खरीदने में किसानों की मदद करेगी सरकार, जल्द आएगा नया प्लान

केंद्र सरकार की तरफ से सोलर एनर्जी यानी सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की स्‍कीम चलाई गई हैं. इनमें से ही एक स्‍कीम है पीएम कुसुम योजना जिसका मकसद सौर ऊर्जा की मदद से किसानों का पैसा बचाने और उनकी खेती की आमदनी बढ़ाना है. अब सरकार इसी कुसुम योजना के तहत सोलर पंप लगाने के लिए एक राष्‍ट्रीय पोर्टल लाने की योजना बना रही है. पिछले दिनों आई एक मीडिया रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है.

आएगा एक राष्‍ट्रीय पोर्टल

इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार पीएम कुसुम योजना के तहत सोलर पंप लगाने के लिए किसानों को सीधे डीलर्स से जोड़ने के लिए एक राष्‍ट्रीय पोर्टल के प्रस्‍ताव पर विचार कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि इस राष्‍ट्रीय पोर्टल के जरिये किसानों को अपनी जरूरत के हिसाब से पंप चुनने में मदद मिलेगी. साथ ही पंप लगाने में लगने वाला समय भी कम लगेगा. पीएम कुसुम योजना में किसानों को सोलर पंप के लिए सब्सिडी दी जाती है.

कुछ सुधार की जरूरत

किसानों की आय बढ़ाने और कृषि क्षेत्र में सिंचाई और डी-डीजलाइजेशन के लिए स्रोत मुहैया कराने के मकसद से पीएम कुसुम योजना को लॉन्‍च किया गया था. केंद्र सरकार की तरफ से 2019 में इस योजना की शुरुआत की गई थी. रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि यह अभी शुरुआती चरण में है और इस पर विचार विमर्श जारी है. अधिकारियों की मानें तो पीएम कुसुम योजना के कुछ हिस्सों में कुछ सुधार की जरूरत महसूस हो रही है. योजना टेंडरिंग से जुड़ी देरी के कारण कई तरह से फंस जाती है.

रिपोर्ट के अनुसार, सोलर पंप लगवाने के लिए एक राष्‍ट्रीय पोर्टल पर विचार किया जा सकता है. यह इस योजना के तीन तत्‍वों में से एक है. रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्‍ट्रीय पोर्टल के जरिये से किसान अपनी जरूरतों को सीधे विक्रेताओं के पास रख सकते हैं. इससे राज्यों की तरफ से पंपों के लिए टेंडरिंग की जरूरत खत्म हो जाएगी.

योजना के 3 अहम काम

इस योजना में तीन कंपोनेंट्स शामिल हैं – कंपोनेंट ए, 2 मेगावाट तक की क्षमता वाले छोटे पावर प्‍लांट्स को इंस्‍टॉल करके 10,000 मेगावाट सोलर कैपेसिटी वाले प्‍लांट के लिए है. कंपोनेंट बी में 20 लाख स्टैंडअलोन सोलर एनर्जी ऑपरेटेड कृषि पंपों की स्थापना के लिए है. कंपोनेंट सी में 15 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों के सोलराइजेशन के लिए है. रिपोर्ट में सब्सिडी में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा है. हालांकि सरकार रियायतों के लिए एक बेंचमार्क रख सकती है.

क‍िसानों के बैंक खाते में पहुंचे 46,347 करोड़ रुपये, जान‍िए क‍ितने लोगों को म‍िला गेहूं की एमएसपी का फायदा

गेहूं की सरकारी खरीद 254 लाख मीट्रिक टन के पार पहुंच गई है. अब तक देश के 16 लाख से अधिक किसानों को इसकी एमएसपी का फायदा मिल चुका है. इस साल किसानों से सरकार 2275 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर गेहूं खरीद रही है. केंद्रीय खाद्य आपूर्ति विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 15 मई तक 46,347 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है. यह रकम किसानों के खाते में पहुंच चुकी है. इस बार ज्यादातर सूबों में 72 घंटे में भुगतान का दावा किया जा रहा है, हालांकि मध्य प्रदेश के किसानों का कहना है कि वहां सरकारी खरीद केंद्रों पर गेहूं बेचने के बाद पैसे के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.

इस साल सरकार ने 372.9 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा हुआ है. लेकिन, अब सरकारी खरीद की चाल काफी सुस्त हो चुकी है. कुछ राज्यों के खरीद केंद्रों पर सन्नाटा पसर गया है. अभी लगभग 119 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद होगी तब जाकर सरकार का लक्ष्य पूरा होगा. लेकिन, अब मंडियों में आवक कम हो गई है. खरीद के आंकड़ों को देखकर इसका साफ पता चलता है. बहरहाल, कुछ सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस साल खरीद 300 लाख मीट्रिक तक पहुंच सकती है.

क‍िस राज्य को क‍ितना भुगतान

पंजाब में गेहूं की एमएसपी के तौर पर सबसे ज्यादा 26863 करोड़ रुपये का भुगतान हो चुका है. राज्य के 7,42,717 क‍िसानों को एमएसपी का पैसा म‍िल चुका है. इसी तर‍ह हर‍ियाणा में 8224.8 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है, जबक‍ि यहां के 2,61,248 क‍िसानों को इसका फायदा म‍िला है. मध्य प्रदेश में 8138.1 करोड़ रुपये का भुगतान क‍िया गया है. यहां अब तक 4,33,406 क‍िसानों को गेहूं की एमएसपी का लाभ हास‍िल हुआ है. जबक‍ि उत्तर प्रदेश के क‍िसानों को अब तक 1544.4 करोड़ रुपये की पेमेंट की गई है. राज्य में अब तक 1,09,852 क‍िसानों ने एमएसपी पर गेहूं बेचा है.

क‍िस राज्य में क‍ितनी हुई खरीद

केंद्र सरकार ने पंजाब को 130 लाख मीट्र‍िक गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था, जबक‍ि 15 मई तक 122 लाख मीट्र‍िक टन से ज्यादा की खरीद हो चुकी है. हर‍ियाणा में 80 लाख मीट्र‍िक टन के टारगेट के मुकाबले अब तक 70 लाख मीट्र‍िक टन गेहूं की खरीद की गई है. जबक‍ि मध्य प्रदेश में 80 लाख टन का लक्ष्य है और अब तक 46 लाख मीट्र‍िक टन की खरीद हुई है. उत्तर प्रदेश में 8,46,903 और राजस्थान में 8,12,923 मीट्र‍िक टन की खरीद हो चुकी है.

 

बुवाई के बाद खेत में सोयाबीन का बीज जमेगा या नहीं? इन आसान तरीकों से करें पता

सोयाबीन की खेती कर रहे किसान इसकी बुवाई जून के पहले सप्ताह से कर सकते हैं. सोयाबीन की खेती से बंपर पैदावार लेने के लिए किसान इसकी उन्नत किस्मों की बुवाई कर आसानी से अच्छी कमाई कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए बुवाई की सही जानकारी का होना बहुत जरूरी है. बाजारों सोयाबीन किसानों को अच्छे दाम मिलते हैं क्योंकि सोयाबीन से तेल निकाला जाता है. इसके अलावा सोयाबीन से सोया बड़ी, सोया दूध, सोया पनीर आदि चीजें बनाई जाती हैं. आपको बता दें कि सोयाबीन तिलहन फसलों के अंतर्गत आता है और इसकी खेती देश के कई राज्यों में की जाती है. इसकी खेती मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में की जाती है.

इन राज्यों में होती है सबसे अधिक खेती

भारत में 12 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन होता है. भारत में सोयाबीन का सर्वाधिक उत्पादन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में होता है. सोयाबीन की खेती कर रहे किसानों के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि बुवाई के बाद खेतों में सोयाबीन का बीज जमेगा या नहीं. इसके लिए आप इन आसान तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं.

मानसून की बारिश के बाद करें खेती

मानसून की बारिश शुरू होने के बाद बुआई की तैयारी के साथ-साथ बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के बाद भी किसानों को यह चिंता सताती रहती है कि जो बीज वे बो रहे हैं वह अच्छे से अंकुरित हो. इसलिए कृषि विशेषज्ञ डॉ. वी.पी. भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर के सिंह बुंदेला ने दस मिनट में सोयाबीन के स्वस्थ बीजों की पहचान करने का अपना व्यावहारिक अनुभव साझा किया है.

बुवाई के लिए अच्छी बीज का करें इस्तेमाल

डॉ. बुंदेला कहते हैं कि बुवाई के लिए उपलब्ध बीज शुद्ध होना चाहिए. इसमें किसी अन्य किस्म के बीज नहीं मिलाने चाहिए और इसकी अंकुरण क्षमता अच्छी होनी चाहिए. बीज का अंकुरण कई कारणों से प्रभावित होता है. इनमें बीजों की नमी., हड़म्बा (राजस्थानी मशीन) से गहाई करने पर सोयाबीन के बीज का ऊपरी छिलका और बीज का आवरण फट जाता है. जिस गर्भ से बीज अंकुरित होता है वह भी प्रभावित होता है.

इस तरह करें बीज की जांच

बीज की शुद्धता और अंकुरण परीक्षण चार प्रकार से किया जाता है. सबसे पहले, आप बीज को अपने हाथ में लेकर उन्हें आकार, रंग, हाइलम रंग और अन्य सोयाबीन प्रजातियों के बीज के अनुसार अलग कर सकते हैं. परीक्षण में सोयाबीन के कुछ दाने अपने मुंह में रखें और उन्हें दांतों से दबाएं. यदि बीज टूटने की आवाज सुनाई दे तो समझ लें कि बीज सूखा हुआ है. केवल सूखे बीज ही अंकुरित होते हैं. तीसरे परीक्षण में यदि बीज टूटने की आवाज न आए तो बीज में नमी की स्थिति समझ लें. यदि आप ऐसे बीजों को ध्यान से देखेंगे जो भंडारण के कारण खराब हो गए हैं, तो आप पाएंगे कि उनकी चमक कम हो गई है और उनका रंग लाल हो गया है. ऐसे लाल बीज अंकुरित नहीं होंगे. चौथे परीक्षण में यह जांचा जाता है कि जहां से बीज उगता है उसका भ्रूण (fetus) स्वस्थ है या नहीं. यदि किसी कारण से भ्रूण क्षतिग्रस्त हो जाए तो बीज चमकदार तो हो सकता है परंतु अंकुरित नहीं हो पाएगा.

इस राज्य में सूखा प्रभावित किसानों के लिए खुशखबरी, 16 लाख परिवारों को मिलेंगे 3-3 हजार रुपये

कर्नाटक के राजस्व मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा ने लघु और सीमांत किसानों की मदद करने के लिए बड़ी घोषणा की है. उन्होंने कहा है कि राज्य के करीब 16 लाख किसान परिवारों को 3,000 रुपये का भुगतान किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सरकार ने बिजली गिरने से होने वाली जानमाल की हानि को रोकने के लिए उपाय तैयार किए हैं. उनके मुताबिक, सूखे के कारण किसानों की आजीविका के नुकसान की भरपाई के लिए उनको 3,000 रुपये की आर्थिक मदद देने का निर्णय लिया गया है.

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि इसका भुगतान किसानों को एसडीआरएफ और एनडीआरएफ दोनों फंडों से किया जाएगा. साथ ही राज्य सरकार के फंड से भी किया जाएगा. इसके लिए करीब 460 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे. वहीं, अधिकारियों को इस पर काम करने के लिए निर्देशित किया गया है.

3,000 करोड़ रुपये जमा किए गए

कर्नाटक ने 240 तालुकों में से 223 को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था. उनमें से 196 को गंभीर रूप से सूखा प्रभावित के रूप में वर्गीकृत किया गया था. यह देखते हुए कि सूखा राहत के रूप में राज्य में किसानों के खातों में कुल मिलाकर लगभग 4,300 करोड़ रुपये जमा किए जाएंगे. मंत्री ने कहा कि इस प्रक्रिया को पूरा करने में 20 दिन लग सकते हैं और पहले ही लगभग 32 लाख से अधिक किसानों के बैंक खातों में 3,000 करोड़ रुपये जमा किए जा चुके हैं.

32.12 लाख किसानों को फायदा

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जाने और कानूनी लड़ाई के बाद अब तक केंद्र सरकार से लगभग 3,454 करोड़ रुपये सूखा राहत के रूप में आए हैं, जिसे सरकार ने पिछले सोमवार से ही किसानों के बैंक खातों में जमा करना शुरू कर दिया है. अब तक 32.12 लाख किसानों के खाते में पूरी राहत पहुंचा दी गई है.

उन्होंने कहा कि पहली और दूसरी किस्त मिलाकर अब तक किसानों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से 3,000 करोड़ जमा किए जा चुके हैं. यह देखते हुए कि राहत की दूसरी किस्त अभी भी लगभग 1.5 लाख किसानों के खातों में जमा नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि यह मामूली तकनीकी मुद्दों के कारण सत्यापन चरण में है. उन्होंने कहा कि एक बार यह मंजूरी हो जाने के बाद, 33 लाख से अधिक किसानों के खातों में राहत पहुंच जाएगी.

10 दिनों के भीतर होगा सत्यापण

उन्होंने कहा कि इसके अलावा, यह निर्णय लिया गया है कि वर्षा आधारित और सिंचित फसलों के लिए मुआवजा वितरित किया जाएगा, जो पात्र होने के बावजूद कुछ तालुकों में सूखा राहत सूची में शामिल नहीं थे. लगभग 3 लाख पात्र किसानों को कुल मिलाकर 400-500 करोड़ की राहत मिलेगी. उन्होंने कहा कि प्रक्रिया शुरू हो गई है और जिलों के उपायुक्तों द्वारा सत्यापन के बाद 10 दिनों के भीतर यह किया जाएगा.

 

Success Story: दुबई तक सप्लाई होती है गाजीपुर के इस किसान की हरी मिर्च, सालाना 5 करोड़ का टर्नओवर

Green Chilli Farming: आज हम आपको उत्तर प्रदेश के एक ऐसे सफल किसान की कहानी बताएंगे जिसने ऑर्गेनिक खेती कर दुनियाभर में अपनी एक खास पहचान बनाई हैं. गाजीपुर (Ghazipur News) जिले में स्थित मुहम्मदाबाद क्षेत्र के जोगा मुसाहिब के किसान डॉ. रामकुमार राय बड़े पैमाने में हरी मिर्च की खेती करते है. उनकी हरी मिर्च की सप्लाई खाड़ी देशों जैसे दुबई, शारजाह, ओमान और कतर में होती है. उनका आज सालाना इनकम 5 करोड़ के करीब है. किसान तक से बातचीत में डॉ. रामकुमार राय ने बताया कि हरी मिर्च के 3580 बाक्स को लखनऊ स्थित पैक हाउस (रहमानखेड़ा) से दुबई भेजा गया है. एक बाक्स में 4 किलो मिर्च है. दुबई के जवरअली पोर्ट पर इससे उतार कर अलावीर सब्जी मंडी भेजा जाएगा. एक बाक्स 4 किलो का भारत में 210 से 220 रुपये की कीमत आती है. जबकि दुबई में 290 रुपये प्रति बाक्स के रेट से बिक जाता है. इससे पहले 4 हजार हरी मिर्च के बाक्स दुबई भेजा गया था. एक बार में 12 से 16 हजार किलो हरी मिर्च की सप्लाई दुबई के लिए की जाती है.

दुबई में 130-145 रुपये प्रति किलो हरी मिर्च

डॉ. रामकुमार राय बताते हैं कि अब 24 घंटे में मिर्च विदेश पहुंच जाएगी. पहले ऐसा नहीं होता था. यही मिर्च भेजने में 5-6 दिन लग जाते थे. इससे लागत का खर्च उठाना मुश्किल हो जाता था. मिर्च की गुणवत्ता प्रभावित होती थी. उन्होंने बताया कि गाजीपुर की जो मिर्च बाजार में 30 रुपये प्रति किलोग्राम में मिल रही है, उसे किसानों से 40 रुपये में खरीदा गया.

इसका मतलब है कि प्रति किलोग्राम मिर्च के पीछे किसानों को 10 रुपये का फायदा हुआ है. विदेश भेजने में कस्टम, ग्रेडिंग और पैकिंग खर्च समेत कुल 94 रुपये खर्च आते हैं. यही मिर्च दुबई में 130-145 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकती है.

2020-21 में मिला था एक्सपोर्ट का लाइसेंस

साल 2015 में खेती शुरू करने वाले गाजीपुर के किसान उत्पादक संगठन के निदेशक डॉ. रामकुमार राय ने बताया कि 2020-21 में उन्हें एक्सपोर्ट करने का लाइसेंस मिला था. एपीडा (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) ने उन्हें यह लाइसेंस दिया था. उसके बाद से हरी मिर्च का एक्सपोर्ट कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि आज गाजीपुर जिले में 615 किसान मिलकर 400 हेक्टेअर में खेती कर रहे हैं. जहां हर किसान लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहा है.

टीचर की नौकरी छोड़ बने किसान

जोगा मुसाहिब गांव निवासी डॉ. रामकुमार राय की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई. इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद चले गए. वहां वकालत और पीएचडी करने के बाद अध्यापक की नौकरी की लेकिन मन में तो किसान था, इसलिए नौकरी छोड़कर किसानी में लग गए. अब वह गाजीपुर समेत कई जिलों में किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए है.

सीएम योगी समेत कई बड़ी हस्तियों ने किया सम्मानित

बता दें कि डॉ. राजकुमार राय ने सिर्फ खेती किसानी में ही अपनी अलग पहचान नहीं बनाई है, बल्कि उन्होंने उच्च शिक्षा भी ग्रहण की है. रामकुमार राय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि ले चुके हैं. सफल ऑर्गेनिक किसान के तौर पर उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन, मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ समेत कई बड़ी हस्तियों ने उनको सम्मानित कर चुकी हैं. डॉ. राय ने बताया कि हमारे देश में हरी व लाल मिर्च दोनों उगाई जाती हैं. यहां हर मौसम में मिर्च उगाई जाती है. निर्यात के मामले में भारत प्रमुख मिर्च निर्यातक है. इसलिए बाजार में इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है.

 

कोरोना में नौकरी गई तो घर में तैयार कर दी मशरूम कॉफी, आज देश-विदेश से मिल रही डिमांड

साल 2020 अब तक भारत और दुनिया के लिए बेहद खराब रहा है. इसने हर स्तर पर घाव दिये हैं. वैश्विक मंदी के इस दौर में कोरोना का घाव इतना गहरा है कि कई देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. बेरोजगारी और भुखमरी बहुत बढ़ गई थी. इतना ही नहीं लाखों लोगों की नौकरियां भी चली गईं. नौकरी की तलाश में कई लोगों ने अपना रोजगार शुरू किया तो कई लोगों ने खेती में रुचि दिखाई और इस दिशा में बेहतर काम किया. इसी कड़ी में आज हम एक ऐसे किसान की कहानी लेकर आए हैं, जिसकी कोरोना काल में नौकरी चली गई. लेकिन जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए उन्होंने घर पर ही मशरूम कॉफी की खेती शुरू कर दी. आजकल उनकी मशरूम कॉफी की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बढ़ती जा रही है. आइये जानते हैं क्या है उनकी सफलता की कहानी.

नौकरी छूटी तो शुरू की मशरूम की खेती

लालू थॉमस, 45 वर्षीय जो पेशे से शेफ और संयुक्त अरब अमीरात के एक पूर्व प्रवासी रह चुके हैं. इन्होंने वर्ष 2019 में कोरोना संकट के कारण अपनी अत्यधिक पारिश्रमिक वाली नौकरी को खो दिया था. नौकरी खो जाने की वजह से लालू को कोल्लम जिले में अपने पैतृक गांव, थलावूर लौटने के लिए मजबूर कर दिया. उनकी विशेषज्ञता के अनुरूप नौकरी ढूंढना बहुत कठिन था. इन्होंने अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए रास्ते तलाशने शुरू कर दिए. जिसके बाद लालू ने मशरूम की खेती कर उसे बाजार में बेचने का काम शुरू कर दिया. उन्होंने बाजार की मांग, मशरूम की सेल्फ लाइफ बढ़ाने और मांग पर कटाई के बारे में कई नई चीजें सीखीं. लालू के लिए सबसे बड़ी चुनौती मशरूमों की सेल्फ लाइफ को बढ़ाने की थी.

मशरूम की शेल्फ लाइफ को कैसे बढ़ाया जाए

आपको बता दें मशरूम की कटाई के कुछ ही दिनों बाद मशरूम की ताजगी खत्म हो जाती थी. जिस वजह से बाज़ारों में मशरूम की कीमत उतनी नहीं मिल पाती थी. बाजार में कीमत अधिक मिल सके इसके लिए उन्होंने शेल्फ लाइफ के तरीकों के बारे में सोचने लगे. इस कड़ी में, उन्होंने मशरूम की शेल्फ लाइफ को कैसे बढ़ाया जाए इसके लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र, कोल्लम से संपर्क किया. इसके बाद उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा आयोजित मशरूम के मूल्यवर्धित उत्पादों पर दिए गए ट्रेनिंग में भी भाग लिया. इस कार्यक्रम ने उन्हें मशरूम आधारित उत्पाद विकसित करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने मशरूम पर आधारित विभिन्न उत्पादों का कारोबार किया, जैसे- हेल्दी ड्रिंक, सूप पाउडर, सूखे पदार्थ, स्नैक्स, चॉकलेट, साबुन इत्यादि. इन्होंने केन्द्र के वैज्ञानिकों के दिशानिर्देश के साथ अपने घर पर ही उत्पादन और रिसर्च शुरू किया.

मशरूम की खेती में शुरू किए कई प्रयोग

मशरूम की खेती कर रहे लालू के लिए सबसे बड़ी कामयाबी यह थी कि इनके उत्पादों को कृषि विज्ञान केन्द्र, कोल्लम की 17वीं एसएसी बैठक के दौरान तत्कालीन विस्तार निदेशक द्वारा लॉन्च किया गया था. शुरूआत में मशरूम की शेल्फ लाइफ कम होने के कारण उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा फिर, उन्होंने ट्रेनिंग लिया और मशरूम स्पॉन उत्पादन शुरू किया. इतना ही नहीं इन्होंने मशरूम की खेती में कई प्रयोग भी शुरू किए. इसी प्रयोग से मशरूम कॉफी यानी ला बे मशरूम कॉफी का विचार आया. केन्द्र के गृह विज्ञान वैज्ञानिकों ने उन्हें विभिन्न मशरूमों के साथ कॉफी का एक अनोखा मिश्रण सफलतापूर्वक तैयार करने में मदद की. जिला उद्योग केंद्र ने लालू को पीएमएफएमई योजना में शामिल किया. इससे वह 10 लाख रुपये की लागत से अपनी नई इकाई स्थापित करने में सफल हुए. उत्पाद के लिए कॉफी बीन सीधे वायनाड जिले के किसानों से खरीदी जा रही है.

मशरूम और कॉफी से बनाए जा रहे उत्पाद

ला बे मशरूम कॉफी 70 प्रतिशत मशरूम और 30 प्रतिशत कॉफी बीन पाउडर से तैयार प्रॉडक्ट है. यह मशरूम कॉफी 5 अलग-अलग मशरूमों का मिश्रण है. कीटाणुरहित मशरूम को विशेष रूप से तैयार किए गए सोलर ड्रायर का उपयोग करके सुखाया जाता है और पल्वराइजर का उपयोग करके इसका पाउडर बनाया जाता है. भुनी और पिसी हुई कॉफी बीन को मशरूम के साथ मिलाया जाता है. इसके 250 कि.ग्रा. तैयार उत्पाद बनाने के लिए लगभग 3000 कि.ग्रा. ताजे मशरूम की आवश्यकता होती है. उत्पाद को केरल सरकार में उद्योग, कानून और कॉयर के मंत्री द्वारा लॉन्च किया गया था.

विदेशों में भी बढ़ रही मशरूम कॉफी की मांग

मशरूम कॉफी के इस प्रीमियम उत्पाद की कीमत 450 रुपये प्रति 100 ग्राम है. इनकी कंपनी को अबू धाबी स्थित मार्केटिंग कंपनी से 250 कि.ग्रा. का ऑर्डर मिला है. कई अन्य कंपनियां भी अपना ऑर्डर देने के लिए तैयार हैं, लेकिन कच्चा माल एक समस्या है. इस समस्या के समाधान के लिए, कृषि विज्ञान केन्द्र ने कृषि भवन के साथ मिलकर मशरूम उत्पादन के लिए ग्रामीण स्तर पर एक मॉडल समूह-आधारित उत्पादन शुरू किया है. मॉडल मशरूम विलेज 300 से अधिक शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा करेगा. लालू की इस सफलता को आईसीएआर ने अपनी पत्रिका में विशेष स्थान दिया है. जिसकी मदद से यह आज लाखों लोगों तक पहुंच रहा है.

बेमौसम बारिश से बस्तर के किसान परेशान, फसल खराब होने से लाखों का नुकसान, सब्जियां महंगी

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Bastar News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी बेमौसम बारिश ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पिछले दो दिनों से मौसम में आ रहे बदलाव और झमाझम बारिश और आंधी तूफान से बस्तर के भी किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.

जिले के कई किसान जिन्होंने अपने खेतों में अलग-अलग सब्जियों की और मक्का की फसल उगाई थी वह ओलावृष्टि और तेज आंधी तूफान की वजह से पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं, जिसका असर जिले के सब्जी मंडियों में भी देखने को मिल रहा है. फसल खराब होने की वजह से हरी सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं. वहीं किसानों ने भी सरकार से उनके खराब हुए फसलों खेतों का सर्वे कराकर उचित मुआवजा देने की मांग की है.

किसानों को लाखों रुपये का नुकसान

मौसम वैज्ञानिक एचपी चंद्रा ने बताया कि सिनोप्टिक सिस्टम एक चक्रवार्ती परिसंचरण दक्षिणी झारखंड और आसपास के क्षेत्र में समुद्र तल से 0.9 किलोमीटर ऊपर स्थित है. एक ट्रफ रेखा दक्षिण झारखंड से पश्चिम मध्य प्रदेश तक चक्रवर्ती परिसंचरण के ऊपर से समुद्र तल से 0.9 किलोमीटर बनी हुई है, समुद्र तल से 0.9 किलोमीटर ऊपर पूर्वी विदर्भ से लेकर तेलंगाना- रायलसीमा -दक्षिण आंतरिक कर्नाटक से दक्षिण तमिलनाडु तक एक ट्रफ/ हवा का विच्छेदन बना हुआ है, जिसकी वजह से छत्तीसगढ़ में भी इसका असर देखने को मिल रहा है.

बस्तर में आंधी और बारिश

दो दिन से छत्तीसगढ़ के बस्तर और कई हिस्सों में तेज हवा अंधड़ चलने के साथ झमाझम मूसलाधार बारिश हो रही है. बस्तर जिले में शाम होते ही बारिश से एक तरफ जहां लोगों को गर्मी से राहत मिल रही है. वहीं दूसरी तरफ किसानों की मुश्किलें बढ़ गई है. खासकर बस्तर जिले के बकावंड, बस्तर और तोकापाल के अलावा दरभा, लोहंडीगुड़ा और जगदलपुर ब्लॉक में सब्जी की खेती करने वाले किसानों को बेमौसम बारिश की वजह से काफी नुकसान उठाना पड़ा है.

बेमौसम बारिश के कारण जिले में करीब 50 हेक्टेयर यानी करीब 70 एकड़ से ज्यादा सब्जियों की फसल खराब हो गई है, जिसमें लौकी, बैंगन, भिंडी, करेला, कुंदरू, तरबूज, टमाटर, मिर्ची और बरबट्टी के अलावा फूलगोभी के साथ ही पपीता एयर आम के फसलों को भी भारी नुकसान पहुंचा है.

किसानों ने बताया कि फरवरी माह से अभी तक इस साल सब्जी उत्पादक किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है. केवल ओला और बारिश के चलते ही करीब 20 से 30 लाख रुपये का नुकसान बस्तर के किसानों को हुआ है.

नुकसान का आकलन करेगा प्रशासन

इधर बस्तर जिला पंचायत के सीईओ प्रकाश कुमार सर्वे का कहना है कि बारिश की वजह से किसानों के सब्जियों के फसल को नुकसान पहुंचने की जानकारी मिली है. इसके लिए कृषि और उद्यानिकी विभाग की एक टीम बनाकर किसानों को हुए नुकसान का सर्वे कराया जाएगा और जिसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.

उन्होंने कहा कि हालांकि अब तक आकलन नहीं हो पाया है कि कितने किसानों को इस बेमौसम बारिश की वजह से उनके फसलों को नुकसान पहुंचा है. एक तरफ जहां बारिश ने सब्जियों के फसल को नुकसान पहुंचाया है. वहीं तेज आंधी तूफान ने किसानों के मवेशी पर भी असर डाला है. दो दिन में 10 मवेशियों की बिजली गिरने से मौत हो गई है, जबकि कई ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली के पोल उखड़ जाने से विद्युत व्यवस्था भी ढप हो गई है.