Wednesday, November 20, 2024
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छत्तीसगढ़ के किसान 31 जुलाई तक करा सकेंगे फसल बीमा:धान, उड़द, मक्का, कोदो और कुटकी का इंश्योरेंस, फसल नुकसान पर मिलेगा मुआवजा

छत्तीसगढ़ के किसान अपनी फसल का बीमा करवा सकते हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना मौसम खरीफ साल 2024 के लिए ये बीमा किया जा रहा है। इस योजना में योजना में धान, उड़द, मूंग, मूंगफली, कोदो, कुटकी, मक्का, अरहर /तुअर, रागी और सोयाबीन को शामिल किया गया है।

इस बीमा योजना से किसानों को मौसम की मार से राहत मिल सकती है। किसानों को सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसलों को होने वाले नुकसान की भरपाई में मदद मिलेगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए 31 जुलाई तक का समय दिया गया है।

ये दस्तावेज लगेंगे

किसान अपने जिले के कलेक्टर, पंचायत या फिर कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि याेजना का फायदा लेने के लिए किसानों को अपना आधार कार्ड 31 जुलाई से पहले बैंक अपडेट करवाना होगा। फसल बीमा पोर्टल पर इसके बीना बीमा नहीं दिया जाएगा।

किसानों को आधार कार्ड की फोटो कॉपी, नवीनतम भूमि प्रमाण-पत्र (बी-1, खसरा) की कॉपी, बैंक पासबुक के पहले पन्ने की कॉपी जिस पर अकाउंट, IFSC कोड, बैंक का पता साफ-साफ दिख रहा हो। फसल बुवाई प्रमाण-पत्र, किसान का वैध मोबाइल नंबर और बटाईदार, कास्तकार, साझेदार किसानों के लिए फसल साझा, कास्तकार का घोषणा पत्र लगेगा।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की राशि

फसल का नाम बीमा राशि प्रीमियम
धान सिंचित 60 हजार प्रति हेक्टेयर 1200 रुपए
असिंचित फसल 43 हजार प्रति हेक्टेयर 860 रुपए
उड़द-मूंग 22 हजार प्रति हेक्टेयर 460 रुपए
मूंगफली 42 हजार प्रति हेक्टेयर 840 रुपए
कोदो 16 हजार प्रति हेक्टेयर 320 रुपए
कुटकी 36 हजार प्रति हेक्टेयर 720 रुपए
अरहर 15 हजार प्रति हेक्टेयर 700 रुपए
रागी 15 हजार प्रति हेक्टेयर 300 रुपए
सोयाबीन 41 हजार प्रति हेक्टेयर 820 रुपए

सरकार दे रही खाद बीज

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के निर्देश पर प्रदेश के किसानों को उनकी मांग के अनुसार खाद-बीज दिया जा रहा है। कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने अफसरों को इस पर निगरानी रखने को कहा है। प्रदेश के किसानों को अब तक 8 लाख 61 हजार मीट्रिक टन खाद और 7 लाख 85 हजार क्विंटल प्रमाणित बीज दिया जा चुका है।

48 लाख 63 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फसल बोनी का लक्ष्य

कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में मानसून की बौछारों के साथ शुरू हुए खेती-किसानी में बोनी का रकबा भी निरंतर बढ़ते जा रहा है। राज्य में अब तक 23.02 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न फसलों की बोनी हो चुकी है। राज्य सरकार द्वारा इस खरीफ सीजन में 48 लाख 63 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न फसलों की बोनी का लक्ष्य रखा गया है।

 

भेड़-बकरियों को जलभराव से बचाएगा ये रेडीमेड दो मंजिला मकान, जानें कीमत और फायदे

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मॉनसून यानि बरसात के मौसम में पशुओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसमे सबसे बड़ी परेशानी है बारिश होने के बाद फैलने वाली बीमारियां. और इसके बाद अगर कुछ है तो वो है शेड यानि बाड़े में पानी भरने की परेशानी. बाड़े में पानी भरने यानि जलभराव होने के बाद गाय-भैंस की बात तो छोडि़ए भेड़-बकरियां भी ना तो ठीक से खड़ी ही हो पाती हैं और ना ही जमीन पर बैठ पाती हैं. दिन तो दिन उन्हें पूरी-पूरी रात खड़े होकर गुजारती पड़ती है. ऐसे में खुरपका और मुंहपका जैसी जानलेवा बीमारी के साथ ही और दूसरी बीमारियों का खतरा भी बना रहता है.

पेट में कीड़े होने की परेशानी भी इसी दौरान सामने आती है. खासतौर पर भेड़-बकरी पालकों को बरसात के दौरान होने वाली इन सारी परेशानियों को देखते हुए केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने एक खास तरीके का मकान तैयार किया है. ये दो मंजिला मकान है. इसे बकरियों का डुप्लेक्स भी कहा जाता है.

इस मकान में बकरी के बच्चों को जल्दी नहीं लगती हैं बीमारियां

सीआईआरजी के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अरविंद कुमार ने किसान तक को बताया कि बेशक दो मंजिला मकान से जगह की कमी और बचत होती है. लेकिन इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि बकरी के बच्चे बीमारियों से बच जाते हैं. वो बीमारियां जिन पर अच्छी खासी रकम खर्च हो जाती है. इस तरह के मकान में नीचे बड़ी बकरियां रखी जाती हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर छोटे बच्चे रखे जाते हैं. ऊपरी मंजिल पर रहने के चलते बच्चे मिट्टी के संपर्क में नहीं आ पाते हैं तो इससे वो मिट्टी खाने से बच जाते हैं. वर्ना छोटे बच्चे मिट्टी खाते हैं तो इससे उनके पेट में कीड़े हो जाते हैं. बड़े बकरे-बकरियों के खुर भी जलभराव में नहीं भीगते हैं तो उन्हें बीमारियां नहीं लगती हैं.

1.80 लाख रुपये में तैयार होता है दो मंजिला मकान

डॉ. अरविंद कुमार का कहना है कि एक बड़ी बकरी को डेढ़ स्क्वायर मीटर जगह की जरूरत होती है. हमने दो मंजिला मकान का जो मॉडल बनाया है वो 10 मीटर चौड़ा और 15 मीटर लम्बा है. इस मॉडल के मकान में नीचे 10 से 12 बड़ी बकरी रख सकते हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर 17 से 18 बकरी के बच्चों को बड़ी ही आसानी से रख सकते हैं. और इस साइज के मकान की लागत 1.80 लाख रुपये आती है. इस मकान को बनाने में इस्तेमाल होने वाली लोहे की एंगिल और प्लास्टिक की शीट बाजार में आसानी से मिल जाती है. रहा सवाल ऊपरी मंजिल पर बनाए गए फर्श का तो कई कंपनियां इस तरह का फर्श बना रही हैं और आनलाइन मिल भी रहा है. एक बार बनाने के बाद 18 से 20 साल तक यह मकान चल जाते हैं.

 

Apple Farming: गोरखपुर के किसान ने पहली बार की ‘शिमला सेब’ की खेती, बोले- कुछ नया करना मेरा जुनून

Gorakhpur News: शिमला का सेब (Shimla Apple) तराई में! है न चौंकाने वाली बात. पर चौंकिए मत. यह मुकम्मल सच है. ठंडे और ऊंचे पहाड़ों से शिमला के सेब को तराई में लाने की पहल हो चुकी है. ये पहल की है गोरखपुर जनपद के बेलीपार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) ने. तीन साल पहले (2021) केंद्र ने सेब की कुछ प्रजातियां हिमाचल से मंगाकर लगाईं. 2023 में इनमें फल आने लगे. इससे प्रेरित होकर पिपराइच स्थित उनौला गांव के प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र सिंह ने 2022 में हिमाचल से मंगाकर सेब के 50 पौधे लगाए. इस साल उनके भी पौधों में फल आए. इससे उत्साहित होकर वह इस साल एक एकड़ में सेब के बाग लगाने की तैयारी कर रहे हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र से जरूरी सलाह

प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि 2022 में उन्होंने हिमाचल से लाकर सेब के 50 पौधे लगाए. प्रजातियां थीं अन्ना और हरमन 99. इस साल उनमें फल भी आए. सेब की खेती के बाबत कैसे सोचे? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कुछ नया करना मेरा जुनून है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में खेतीबाड़ी पर खासा फोकस है. आसानी से पारदर्शी तरीके से तय अनुदान मिल जाता है. साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र से जरूरी सलाह भी. इन सबकी वजह से सेब की खेती शुरू की. सिंह ने बताया कि शिमला सेब की खेती के लिए अब इसे विस्तार देने की तैयारी है. पौधों का ऑर्डर दे चुका हूं. रोपण के लिए हिमाचल से उनके आने की प्रतीक्षा है.

अन्ना, हरमन-99 और डोरसेट गोल्डन प्रजातियां तराई क्षेत्र के अनुकूल

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के अनुसार जनवरी 2021 में सेब की तीन प्रजातियों अन्ना, हरमन- 99, डोरसेट गोल्डन को हिमाचल प्रदेश से मंगाकर केंद्र पर पौधरोपण कराया गया. 2 वर्ष बाद ही इनमें फल आ गए. यही तीनों प्रजातियां पूर्वांचल के कृषि जलवायु क्षेत्र के भी अनुकूल हैं.

कैसे करें सेब की खेती

धर्मेंद्र सिंह ने आगे बताया कि संस्तुत प्रजातियों का ही चयन करें. अन्ना, हरमन – 99, डोरसेट गोल्डन आदि का ही प्रयोग करें. बाग में कम से कम दो प्रजातियां का पौध रोपण करें. उन्होंने बताया कि इससे परागण अच्छी प्रकार से होता है एवं फलों की संख्या अच्छी मिलती है. फल अमूमन 4/4 के गुच्छे में आते हैं. शुरुआत में ही कुछ फलों को निकाल देने से शेष फलों की साइज और गुणवत्ता बेहतर हो जाती है.

नवंबर से फरवरी रोपण का उचित समय

पौधों के रोपण का उचित समय नवंबर से फरवरी है. जनवरी-फरवरी में पौध लगाना सर्वोत्तम होता है.

लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी 10/12 फीट रखें

पौधों का रोपण लाइन से लाइन व पौधे से पौधा 10 से 12 फीट की दूरी पर करें. इस प्रकार प्रति एकड़ लगभग 400 पौधे का रोपण किया जा सकेगा.

3-4 वर्ष में ही 80 फीसद पौधों में आने लगते फल

रोपाई के तीन से चार वर्ष में 80 फीसद पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं. 6 वर्ष में पूरी फलत आने लगती है. इस तरह कम समय की बागवानी के लिए भी सेब अनुकूल है.

सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए इस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी, जानें स्टेप बाय स्टेप प्रोसेस

मध्य प्रदेश सरकार राज्य के किसानों के विकास के लिए लगातार कार्य कर रही है. किसानों को सरकार की तरफ से चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है और उनके लिए सरकारी लाभ लेना आसान हो सके, इसलिए प्रक्रिया को और आसान बनाया जा रहा है. प्रदेश के किसानों के सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने में आसानी कएमपी किसान पोर्टल तैयार किया गया है. इतना ही नहीं किसानों को राज्य में चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए राज्य के किसानों को इस किसान पोर्टल पर रजिस्टर कराना होगा. रजिस्ट्रेशन कराने के बाद किसान बीज, सिंचाई संबंधित योजनाओं का लाभ आसानी से ले सकते हैं.

किसान पोर्टल पर रजिस्टर कराने के लिए किसान अपने नजदीकी एमपी ऑनलाइन केंद्र में जाकर रजिस्टर कर सकते हैं. किसान Kisan.mp.gov.in की वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं या फिर खुद से भी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं. पंजीकरण कराने के लिए किसानों को कृषि योजना का लाभ लेने के लिए पंजीकरण लिंक पर क्लिक करना होगा. पंजीकरण करने के लिए कई जरूरी दस्तावेजों की जरूरत होती है. किसान ध्यान रखें की उससे पहले अपने पास सभी कागजात रख लें. इस खबर में हम आपको बताएंगे की रजिस्ट्रेशन करने का पूरा प्रोसेस क्या है.

यहां समझे प्रोसेस

  • सबसे पहले किसान Kisan.mp.gov.in की अधिकारिक वेबसाइट पर जाएं.
  • जैसे ही इस पोर्टल का होम पेज खुलेगा स्क्रिन पर एक पॉप अप आएगा. जिसमें यह लिखा रहेगा की किसान 12 मिनट के अंदर अपना रजिस्ट्रेशन पूरा कर लें.
  • होम पेज पर लिखी तमाम जानकारी को अच्छे से पढ़ें
  • होम पेज पर ही आप रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी दस्तावेज की जानकारी हासिल कर सकते हैं.
  • होम पर नीचे कृषि योजना पर पंजीयन करने का विकल्प आएगा.
  • इस विकल्प पर क्लिक करने के बाद एक नया पेज खुल जाएगा, जिसमें लिखा रहेगा की आप आधार कार्ड के जरिए रजिस्ट्रेशन करना चाहते हैं या फिर जमीन के कागजात की जानकारी के जरिए रजिस्टर करना चाहते हैं.
  • अगर आप आधार पंजीयन का विकल्प चुनते हैं को ओटीपी पंजीयन या बॉयोमिट्रीक पंजीयन का विकल्प आएगा.
    अगर आप आधार पंजीयन का विकल्प चुनते है तो आपको आधार नंबर डालने के लिए कहा जाएगा, फिर आपके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर एक ओटीपी आएगा. इसे भरने के बाद रजिस्ट्रेशन के लिए पेज खुल जाएगा, जहां पर आपको पूरी जानकारी भरनी होगी .
  • अगर आप बॉयोमेट्रिक पंजीयन का विकल्प चुनते हैं तो आपको अपना बॉयोमेट्रिक देना होगा, फिर पूरी जानकारी भरनी होगी.
  • जो किसान भू अभिलेख के जरिए पंजीयन कराना चाहते हैं वो भू अभिलेख द्वारा पंजीयन पर क्लिक कर सकते हैं.
  • इसके बाद एक पेज खुलेगा जहां किसान को अपनी जमीन से संबंधित जानकारी भरनी होगी. इस तरह से किसान इस पोर्टल पर रजिस्टर कर सकते हैं.

रजिस्ट्रेशने के लिए दस्तावेज

  • किसान का आधार कार्ड
  • जमीन से संबंधित कागजात
  • किसान का जाति प्रमाण पत्र
  • फोटो

छत्तीसगढ़ में यहां है इकलौता किसान स्कूल, धरोहर के तौर रखा गया है पुराने कृषि यंत्र, जानिए इसका मकसद

जांजगीर चांपा: छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिला स्थित बहेराडीह ग्राम में प्रदेश का एक मात्र किसान स्कूल है, जहां किसानों को खेती से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी दी जाती है. साथ ही विलुप्त हो हरे कृषि औजार को धरोहर के तौर पर सहेजकर रखा गया है. ये ऐसे कृषि औजार हैं, जिसका 80 से 90 के दशक के बीच किसान खेती में उपयोग करते थे. इन कृषि औजारों को नई पीढ़ी के लिए सहेजकर रखा गया है. इसमें किसान स्कूल संचालक दीनदयाल यादव का अहम याेगदान है.

प्रदेश का एकमात्र किसान स्कूल यहां होता है संचालित

संचालक दीनदयाल ने बताया कि बहेराडीह किसान स्कूल प्रदेश का पहला ऐसा स्कूल है जो पूरी तरह से किसानों को समर्पित है. जिले के पत्रकार स्व. कुंज बिहारी के नाम पर इस किसान स्कूल का नाम रखा गया है. यहां छत्तीसगढ़ का अलावा अलग-अलग राज्यों के किसान सहित अन्य लोग मिलकर भारत की जो परंपरागत कृषि है, उसको बचाने के लिए अभियान चला रहे हैं. इस अभियान को नाम “पुरखा का सुरक्षा” रखा गया है. इस पुरखा का सुरक्षा अभियान में पुरानी चीजें जो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया है, उसका संरक्षण और संवर्धन नई पीढ़ी के लिए किया जा रहा है. वहीं इस संग्रहालय का नाम धरोहर रखा है.

संग्रहालय में सहेजकर रखा गया है पुराने कृषि यंत्र

संचालक दीनदयाल ने बताया कि बहेराडीह किसान स्कूल में पुरानी कृषि पद्धति और पुराने यंत्र को सहेजकर रखा गया है. उन्होंने बताया कि किसान स्कूल में धरोहर अपने आप में एक मात्र ऐसा संग्रहालय होगा, जहां पुराने कृषि यंत्रों को सहेज कर रखा जा रहा है. कृषि यंत्र में दौरी, नागर हल, बेलन श्सीामिल है. वहीं जब बिजली का आविष्कार नहीं हुआ था तो उस समय कंडील और गैस (मेंटल युक्त) चिमनी (मिट्टी तेल से जलने वाला) जाटा (सुखा अनाज पीसने वाला आटा चक्की), लकड़ी से खाना बनाने वाला दुकलहा चूल्हा, धान से चावल कूटने के लिए ढेकी, धान को नापने के लिए काठा, कोनी जैसे कई पुराने चीजों को सहेजकर रखा गया है. इस धरोहर में सेल्फी जोन है, क्योंकि लोग घूमने के ख्याल से पुरानी चीजों को देखने आते हैं.यहां खुमरी (बांस से बनी टोपी) पहनकर लोग सेल्फी लेते है.

 

छत्तीसगढ़ के बाजार में आ गई बगैर खेती के उगने वाली सब्जी, 2000 रुपये प्रति किलो है कीमत

मॉनसून की बारिश के साथ ही छत्तीसगढ़ और झारखंड के जंगलों से एक खास प्रकार की सब्जी बाजारों में आने लगती है. जो बेहद महंगी बिकती है. इसकी खासियत यह होती है कि इसकी खेती करने के लिए किसानों को ना कोई बीज डालना पड़ता है और ना ही मेहनत करनी पड़ती है. यह जंगलों में प्राकृतिक रूप से तैयार होती है, जिसे जमीन से निकालकर बाजार में लाकर बेचा जाता है. यह सिर्फ बरसात के सीजन में एक महीने के लिए मिलता है. इसलिए इसकी कीमत बहुत अधिक रहती है. बरसात के सीजन में खास कर नॉनवेज खाने वाले लोग इस सब्जी को खूब पसंद करते हैं. इस खास सब्जी को पुटू कहा जाता है.

छत्तीसगढ़ के सरगुजा और बस्तर जिले के जंगलों में बरसात के दिनों में यह पाई जाती है. स्थानीय ग्रामीण जंगल में जाकर उस सब्जी को जमीन से निकालते हैं और बाजार में लाकर बेचते हैं. फिलहाल बाजार में इसकी कीमत 2000 रुपये प्रति किलोग्राम है.स्थानीय भाष में पु्ट्टू कही जाने यह सब्जी मशरूम की एक प्रजाति होती है. दिखने में यह सफेद और छोटी गोली की तरह गोल-गोल होती है. बारिश का मौसम आते ही सरगुजा , बस्तर जिलें के अलावा राज्य के अन्य जिलों में भी यह सब्जी बिकती है. यह ट्राइबल संस्कृति और खानपान का हिस्सा है. यह से इस खास सब्जी की सप्लाई देश के और भी दूसरे राज्यों में होती है.

भूरे रंग की होती है यह सब्जी

यह सब्जी इसलिए भी महंगी बिकती है क्योंकि लोग इसे खाने के लिए पूरे साल इंतजार करते हैं. इस सब्जी के हो जाने के बाद इसे खाने और बेचने वाले दोनों की खुश हो जाते हैं. पुटू जमीन में उगने वाली एक जंगली खाद्य सब्जी है. यह सब्जी साल पेड़ के नीचे से निकलती है. बारिश से होने वाली उमस में यह सब्जी जमीन के अंदर आकर ले लेती है ,जो कि आलू से भी छोटा होता है. पुटू सब्जी के दो प्रकार होते हैं. इस सब्जी का रंग भूरा होता है. जिसमें ऊपर की परत पतली रहती है और अंदर का गुदा सफ़ेद रंग का होता है. सरगुजा संभाग में साल वृक्ष क्षेत्र ज्यादा है इसलिए यहां यह सब्जी होती है.

औषधीय गुणों से भरपूर है सब्जी

बारिश की शुरूआत में जब यह सब्जी बाजार में आती है उस वक्त यह 2000 रुपये प्रति किलो की दर से बिकती है. पर उसके बाद धीरे-धीरे इसकी कीमत कम होती है और यह 200-300 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकती है. पुटू में प्रोटीन और विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं. डाइटीशियन अक्सर वजन संतुलित रखने के लिए पुटू के इस्तेमाल की सलाह देते हैं. क्योंकि इसमें कैलोरी काफी कम होती है. इसमें औषधीय गुण होते हैं जो हृदय की समस्याओं और हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती हैं. साथ ही यह अन्य बीमारियों को ठीक करने में भी मदद कर सकता है

पूरे साल इस सब्जी का होता है इंतजार

पुटू खरीद रहे एक ग्राहक ने कहा कि इस सब्जी का इंतजार हम लंबे समय से करते हैं. साल भर इंतजार करने के बाद बारिश के मौसम में यह सब्जी बाजार में आता है. खास बात यह है कि इसकी खेती नहीं है. यह जंगलों में मिलता है. पुटू देश की इकलौती ऐसी सब्जी है जो सरगुजा और बस्तर के जंगलों में मिलती है. कीमत भी अच्छी खासी महंगी होने के बावजूद हम यह सब्जी खरीद कर खाते हैं. इस सब्जी के स्वाद के आगे नॉनवेज भी फेल है.

Seeds Distribution : छत्तीसगढ़ सरकार हुई नकली खाद बीज के वितरण पर सख्त, पर्याप्त उपलब्धता का दिया भरोसा

छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय सरकार ने किसानों को खरीफ सीजन में खाद और बीज आदि संसाधन जुटाने के लिए छोटे ऋण बिना किसी परेशानी के वितरित कराने के पुख्ता इंतजाम करने का दावा किया है. इसके समानांतर सरकार ने किसानों को Cooperative Societies के माध्यम से Seeds, Pesticides and Chemical Fertilizer के वितरण का काम भी तेज कर दिया है. वहीं, बाजार में खाद बीज की बढ़ती मांग को देखते हुए किसानों को नकली खाद बीज वितरित किए जाने के खतरे के मद्देनजर निगरानी तंत्र को चाक चौबंद कर दिया है. सरकार की तरफ से भरोसा दिलाया गया है कि चालू खरीफ सीजन में खाद वितरण के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, उसकी तुलना में आधे से ज्यादा हिस्सा किसानों को वितरित किया जा चुका है. साथ ही खरीफ सीजन की फसलों को बोने के लिए किसानों को जिन अन्य संसाधनों की जरूरत होती है, उन्हें पूरा करने के लिए किसानों को अब तक 5 हजार करोड़ रुपये का Agriculture Loan सरकार से दिया जा चुका है.

खूब बंट रही खाद

छत्तीसगढ़ में खरीफ सीजन के लिए किसानों को विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों की कमी न हो, इसके लिए सरकार ने पुख्ता इंतजाम करने का दावा किया है. कृष‍ि विभाग की ओर से बताया गया कि गत 8 जुलाई तक किसानों को 8 लाख 61 हजार 606 मीट्रिक टन रासायनिक खाद का वितरण किया जा चुका है.

विभागीय आंकड़ों के मुताबिक इसमें 4 लाख 10 हजार 199 मीट्रिक टन Urea, 2 लाख 5 हजार 397 मीट्रिक टन DAP, 98 हजार 329 मीट्रिक टन NPK, 39 हजार 40 मीट्रिक टन पोटाश तथा एक लाख 8 हजार 662 मीट्रिक टन Super Phosphate शामिल है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक किसानों को इस सीजन में जितना खाद उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया गया है, उसका 63 फीसदी खाद अब तक वितरित किया जा चुका है.
गौरतलब है कि चालू खरीफ सीजन के लिए राज्य में सहकारिता एवं निजी क्षेत्र के माध्यम से किसानों को 13 लाख 68 हजार मीट्रिक टन खाद वितरि‍त करने का लक्ष्य निर्धारित है. इसके मुताबिक अब तक 12 लाख 79 हजार 915 मीट्रिक टन का खाद का भंडारण करा लिया गया है. सहकारिता एवं निजी क्षेत्र में अभी भी 4 लाख 18 हजार 308 मीट्रिक टन रासायनिक उर्वरक किसानों के लिए उपलब्ध है.

कृष‍ि ऋण भी हो रहा वितरित

विभाग की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक सरकार ने चालू खरीफ सीजन में किसानों को 7 हजार 300 करोड़ रुपये का कृषि ऋण वितरित किए जाने का लक्ष्य तय किया है. इसकी तुलना में अब तक 4 हजार 965 करोड़ 70 लाख रुपये का ऋण किसानों को दिया जा चुका है. यह निर्धारित लक्ष्य का 68 प्रतिशत है.

आसान शर्तों पर मिलने वाले इस इस ऋण की मदद से किसान खरीफ सीजन की फसलों के लिए जरूरी संसाधन जुटा सकते है. सरकार का कहना है कि पिछले साल की तुलना में इस साल किसानों को ज्यादा कृष‍ि ऋण वितरित किया गया है. पिछले साल इसी अवधि में राज्य के किसानों को 4 हजार 762 करोड़ रुपये का कृष‍ि ऋण दिया गया था. खरीफ वर्ष 2023 में किसानों को कुल 7 हजार 40 करोड़ 7 लाख रुपये का कृषि ऋण दिया गया था. सरकार ने दावा किया है कि चालू खरीफ सीजन में कृष‍ि ऋण पिछले साल की सीमा को पीछे छोड़ देगा.

खाद-बीज की गुणवत्ता पर सख्त निगरानी

सीएम विष्णु देव साय ने किसानों को नकली या खराब खाद बीज और कीटनाशक दवाओं के वितरण पर सख्ती से रोक लगाने का निर्देश दिया है. इस पर अमल करते हुए कृष‍ि विभाग ने पूरे राज्य में रासायनिक खाद, बीज एवं फसल की दवाओं की गुणवत्ता पर सख्त निगरानी रखने का दावा किया है. कृषि विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी अपने-अपने इलाकों में लगातार छापेमारी करके बीज, खाद और कीटनाशक औषधियों के Sample Collect कर रहे हैं. इसकी जांच Quality Control Lab में की जा रही है. इस कार्रवाई में अब तक बीज के 71 नमूने, रासायनिक खाद के 18 नमूने तथा दवाओं के 19 नमूने जांच में नाकाम साबित हुए हैं. इनके विक्रय पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाकर संबंधित फर्मों को कृषि विभाग ने नोटिस जारी किया है.

विभाग की ओर से बताया गया कि रासायनिक खाद के 2638 नमूने एकत्र कर जांच के लिए प्रयोगशाला भेजे गए हैं. अभी तक प्राप्त रिपोर्ट में 896 नमूने मानक स्तर पर खरे उतरे हैं और 18 नमूने मानकों की कसौटी पर नाकाम साबित हुए हैं. इनमें से 1664 नमूने अभी जांच की प्रक्रिया में हैं, जबकि 60 नमूने किन्हीं कारणों से निरस्त कर दिए गए हैं. खाद, बीज और कीटनाशक आदि दवाओं के मानकों का पालन सुनिश्चित कराने की दिशा में की गई कार्रवाई के आधार पर Legal Action लिया गया है. विभाग ने इस दिशा में आगे भी इसी तरह की कार्रवाई जारी रखने का भरोसा दिलाया है.

इन महिलाओं को सरकार दे रही 450 रुपये में गैस सिलेंडर, महंगाई से मिली राहत

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि देश के लगभग सभी राज्यों में सामान्य गैस सिलेंडर की कीमत 800 रुपये से अधिक हो गई है. उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्य हैं जहां वर्तमान में गैस सिलेंडर 1120 रुपये की कीमत पर उपलब्ध है. वहीं दूसरी ओर सरकार ने अब गैस सिलेंडर की कीमत घटाकर मात्र 450 रुपये कर दी है. इससे कई नागरिकों को राहत मिली है.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मध्य प्रदेश सरकार ने अपने नागरिकों को गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमत से राहत दिलाने के लिए एक बहुत बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है. मध्य प्रदेश सरकार ने उस योजना का नाम मुख्यमंत्री गैस सिलेंडर योजना रखा है जिसके तहत वह मध्य प्रदेश के नागरिकों को कम कीमत पर सिलेंडर उपलब्ध कराएगी.

मुख्यमंत्री गैस सिलेंडर सब्सिडी योजना

हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मध्य प्रदेश की महिलाओं के लिए एक नई योजना शुरू की गई है. मध्य प्रदेश सरकार ने इस नई योजना का नाम मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री गैस सिलेंडर सब्सिडी योजना रखा है. इस योजना के तहत मध्य प्रदेश सरकार अब मध्य प्रदेश की महिलाओं को बहुत ही कम कीमत पर गैस सिलेंडर उपलब्ध कराएगी.

यह मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है. इस महत्वपूर्ण कदम का मुख्य उद्देश्य नारी शक्ति को मजबूत करना है. इस योजना के तहत मध्य प्रदेश की महिलाएं अब मात्र 450 रुपये में गैस सिलेंडर प्राप्त कर सकती हैं.

इन महिलाओं को मिलेगा लाभ

इस योजना के तहत जो महिला लाडली बहन योजना के लिए आवेदन कर रही है, वह इस योजना के तहत लाभ प्राप्त कर सकती है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस योजना के तहत सब्सिडी का पैसा उन महिलाओं के बैंक खाते में जाएगा, जिन्होंने अपना गैस कनेक्शन बैंक खाते से लिंक करा रखा है. इस योजना के तहत एक महिला 1 साल में कुल 12 गैस सिलेंडर ले सकती है. प्रत्येक गैस सिलेंडर की कीमत मात्र 450 रुपये होगी.

गैस सिलेंडर सब्सिडी योजना के लाभ

  • मध्य प्रदेश सरकार इस योजना का लाभ उन महिलाओं को देगी जिनके नाम पर गैस कनेक्शन है.
  • इस योजना के तहत अब महिलाओं को गैस सिलेंडर के लिए मात्र 450 रुपये देने होंगे.
  • इस योजना के तहत महिलाओं को साल में 12 गैस सिलेंडर मिलेंगे और वो भी 450 रुपये की कीमत पर.
  • सामान्य तौर पर देखा जाए तो मध्य प्रदेश में एक गैस सिलेंडर की कीमत 900 रुपये है. इस हिसाब से इस योजना के तहत महिलाओं को काफी राहत मिल रही है.
  • इतना ही नहीं इस योजना के तहत अगर कोई महिला महीने में एक गैस सिलेंडर की मरम्मत कराती है तो उस महिला को सीधे उसके बैंक खाते में 300 रुपये की सब्सिडी भी मिलेगी.
  • इस योजना के तहत मध्य प्रदेश सरकार में 1200 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है.

इन योजना के लिए पात्रता

  • इस योजना में आप तभी आवेदन कर पाएंगे जब आप मध्य प्रदेश के स्थायी निवासी होंगे.
  • यानी इस योजना में केवल मध्य प्रदेश के स्थायी निवासी ही आवेदन कर सकते हैं.
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत लाभ पाने वाली महिला भी इस योजना के लिए पात्र मानी जाएगी.
  • इस योजना के लिए केवल वही महिलाएं पात्र हैं जिनका बैंक खाता आधार कार्ड से जुड़ा है और जिनके नाम पर गैस कनेक्शन है.
  • इस योजना के लिए केवल मध्य प्रदेश में रहने वाली गरीब महिलाएं ही पात्र हैं.

कम दिनों में धान तैयार करना है तो अपनाएं डैपोग विधि, मात्र 4 दिनों में उग आएगा बिचड़ा

धान की खेती के लिए ज्यादातर किसान बारिश पर निर्भर रहते हैं. जिसके कारण इसकी खेती बारिश के मौसम यानी मॉनसून के मौसम में की जाती है. लेकिन कई बार बारिश के पैटर्न में बदलाव की वजह से बारिश में कमी देखी जाती है. जिसका असर धान की खेती पर भी दिखाई देता है. अब इस समस्या को दूर करने के लिए किसान डैपोग विधि को अपनाकर आसानी से धान की खेती कर सकते हैं. इस विधि के माध्य से मात्र 4 दिनों धान का बिचड़ा निकल आता है. क्या है ये खास विधि आइए जानते हैं.

फिलीपींस में हुई थी खोज

डैपोग विधि धान की नर्सरी तैयार करने की एक प्रकार की विधि है. इस विधि का विकास फिलीपींस में हुआ था. किसान कम बीज, कम क्षेत्र, कम सिंचाई और कम मेहनत में आसानी से धान की नर्सरी तैयार कर सकते हैं. इस विधि में लागत कम होने के साथ-साथ यह नर्सरी कम समय यानी मात्र 14 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है. इसके अलावा इस विधि में तैयार पौधों को रोपाई के लिए खेतों में ले जाना भी बहुत आसान है.

क्या है डैपोग विधि?

डैपोग विधि एक आसान और सरलता से अपनाई जाने वाली नर्सरी विधि है. इस विधि से एक हेक्टेयर खेत में रोपाई और नर्सरी तैयार करने के लिए 70% खेत की मिट्टी, 20% सड़ी हुई गोबर की खाद, 10% धान की भूसी और 1.50 किलोग्राम डीएपी खाद का मिश्रण तैयार कर लें. इसके बाद खेत के एक कोने पर 10 से 20 मीटर लम्बा, 1 मीटर चौड़ा एवं थोड़ा ऊंचा चबूतरा बना लेना चाहिए. फिर उस पर उसी आकार की एक प्लास्टिक शीट बिछा लेनी चाहिए. इस बिछाई गई शीट के चारों ओर 4 सेमी ऊंची मेड़ बना लेनी चाहिए. अब मिट्टी और खाद को अच्छी तरह मिलाकर इस शीट पर 1 सेमी मोटी परत के रूप में फैला देना चाहिए.

इन खादों का करें इस्तेमाल

इसके बाद किसान को पहले से चयनित 9 से 12 किलोग्राम स्वस्थ बीजों को 5 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन के घोल में डुबोकर सायनोबैक्टीरिया जैसे जैव उर्वरकों से उपचारित कर पूरी शीट पर समान रूप से छिड़क देना चाहिए. छिड़के गए बीजों पर मिश्रित मिट्टी की एक और 1 सेमी मोटी परत डालनी चाहिए ताकि बीज उस परत से अच्छी तरह ढक जाएं. इसके बाद इस नर्सरी प्लेटफॉर्म के एक किनारे से कम बहाव वाली पानी की धारा छोड़नी चाहिए ताकि बोई गई मिट्टी और बीज बह न जाएं. अब इस प्लेटफॉर्म को 1 सेमी ऊंचाई तक पानी से भर दें और 7 दिनों तक ऐसे ही रहने दें. फिर पानी निकाल दें. 2 से 3 दिनों के बाद अगर नर्सरी सूखने लगे तो हल्का पानी देकर इसकी नमी बनाए रखनी चाहिए. 14 दिनों के बाद पौधे नर्सरी में लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं.

इन बातों का रखें ध्यान

  • किसान ध्यान रखें कि अगर पौधा छोटा दिखे या पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगे तो नर्सरी में रोपने के नौ दिन बाद 0.5% यूरिया का घोल बनाकर छिड़काव करें, पौधा फिर से हरा हो जाएगा.
  • नर्सरी में अगर जलभराव हो तो पौधे को उखाड़ने से 2 दिन पहले पानी निकाल दें. इससे उसे निकालना आसान हो जाता है.
  • इस विधि में पौधे को छोटे-छोटे चौकोर टुकड़ों में काटकर ले जाने की सुविधा मिलती है, इससे खेतों तक उसका परिवहन भी आसान हो जाता है और मजदूरी भी कम लगती है.
  • स्वस्थ बीजों का चयन करने के लिए बीज के लिए लाए गए पूरे धान को 10% नमक के घोल में डुबोएं, खराब और हल्के बीज इस पानी पर तैरने लगेंगे. जो भारी बीज नीचे बैठ जाएं, उन्हें ही उपचारित करके नर्सरी में इस्तेमाल करना चाहिए.

Moong Farming: खरीफ मूंग दाल की बुवाई के वक्त इन बातों का ध्यान रखें किसान, मिलेगी बंपर उपज

मॉनसूनी बारिश देश के लगभग हर हिस्से में शुरू हो गई है. ऐसे में खरीफ सीजन के लिए मूंग दाल की बुवाई भी शुरू हो गई है. इस बार अनुमान है कि बीते साल की तुलना में मूंग का उत्पादन बढ़ेगा. मूंग दाल की बुवाई कर रहे किसानों को खेत तैयार करने से लेकर बीज की मात्रा, उर्वरक समेत कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. क्योंकि, लापरवाही उत्पादन पर असर डाल सकती है.

किसान कल्याण और कृषि विकास विभाग मध्य प्रदेश एक्सपर्ट के अनुसार खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह में रहता है. बुवाई में देरी होने पर फूल आते समय तापमान में बढ़ोत्तरी उत्पादन को प्रभावित कर देती है, क्योंकि पौधे में फलियां कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है.

सही तरीके से खेत को तैयार करना जरूरी

खरीफ की फसल के लिए एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. बारिश शुरू होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से खेत की जुताई करनी चाहिए. इससे खरपतवार खत्म हो जाता है. इसके बाद खेत में पाटा चलाकर मिट्टी को समतल करना भी जरूरी होता है. इसके अलावा पौधे को दीमक से बचाव के लिये क्लोरपायरीफॉस 1.5 फीसदी पाउडर 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए.

बीज की मात्रा और उपचार

खरीफ सीजन में मूंग दाल की बुवाई कतार विधि से करनी चाहिए. खरीफ सीजन के लिए 20 किलोग्राम मूंग बीज पर्याप्त है. बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम + केप्टान (1+2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से ट्रीटमेंट करना चाहिए. इसके अलावा बीज को राईजोबियम कल्चर की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से बुवाई करनी चाहिए.

बीज बुआई का तरीका

बारिश के मौसम में मूंग फसल से अच्छी उपज पाने के लिए हल के पीछे बनने वाली पंक्तियों या कतारों में बीज की बुआई करना सही रहता है. खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 सेंटीमीटर होनी चाहिए.

Rice Export: चावल एक्सपोर्ट पर बड़ा फैसला ले सकती है सरकार, क्या कम होगा बासमती का एमईपी?

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केंद्र सरकार गैर-बासमती चावल के एक्सपोर्ट को लेकर जल्द ही बड़ा फैसला ले सकती है. सूत्रों के अनुसार गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाले मंत्रियों का पैनल इसी सप्ताह गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 500 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) तय करने के प्रस्ताव पर फैसला कर सकती है. हालांक‍ि, सालाना करीब 50 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा कमाने वाले बासमती चावल की एमईपी कम करने के प्रस्ताव को टाला जा सकता है. बासमती चावल का एमईपी इस समय 950 डॉलर प्रति टन है, ज‍िसे कम करने का व‍िचार चल रहा था. क्योंक‍ि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें कम हो गई हैं.

बहरहाल, सूत्रों ने बताया कि पिछले सप्ताह वाणिज्य मंत्रालय ने एक्सपोर्टरों की चिंताओं को समझने के लिए उनके साथ बैठक की थी. इसके बाद मंत्रिस्तरीय कमेटी को व‍िचार करने के ल‍िए कुछ प्रस्तावों को अंतिम रूप दिया था. हालांकि, उद्योग सूत्रों ने कहा कि उनकी मांग गैर बासमती चावल पर लगे 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क को 90 डॉलर प्रति टन पर फ‍िक्स करने की थी. लेकिन सरकार ने 500 डॉलर प्रति टन के संभावित एमईपी पर विचार करने के बाद निर्यात शुल्क 100 डॉलर प्रति टन पर अंतिम रूप दिया है. यह फ‍िक्स न‍िर्यात शुल्क नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड (एनसीईएल) के माध्यम से भेजे जाने वाले सफेद चावल और उबले चावल दोनों पर मान्य होगा.

बासमती की एमईपी का क्या होगा?

सूत्रों ने बताया कि बासमती के एमईपी को घटाकर 800-850 डॉलर प्रति टन करने की उद्योग जगत की मांग को फिलहाल सरकार ठंडे बस्ते में डाल सकती है. सरकार ने प‍िछले साल ही बासमती की एमईपी को 1200 डॉलर प्रत‍ि टन से घटाकर 950 डॉलर क‍िया था. उद्योग जगत की मांग पर इसे और घटाने की चर्चा थी. उद्योग जगत का कहना है क‍ि बासमती की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम हो गई है इसल‍िए इसकी एमईपी को घटाने की जरूरत है.

बासमती के दाम पर दावा

हालांक‍ि, बासमती चावल का एक्सपोर्ट करने वाली इंडस्ट्री के दावों से अलग केंद्र ने दाम का अलग आंकड़ा द‍िया है. सरकारी आंकड़ों के मुताब‍िक इस साल अप्रैल में बासमती चावल का दाम 1,070 डॉलर प्रति टन म‍िला था, जो मई में थोड़ा बढ़कर 1,080 डॉलर प्रति टन हो गया. दूसरी ओर, गैर-बासमती चावल का औसत निर्यात मूल्य अप्रैल में लगभग 476 डॉलर प्रति टन और मई में 474 डॉलर प्रति टन रहा. बासमती चावल का एक्सपोर्ट भी बढ़ा है. हालांक‍ि गैर-बासमती चावल का निर्यात घट गया है.

PM Kisan की राशि बढ़ा सकती है सरकार, बजट से पहले वित्त मंत्री ने कृषि विशेषज्ञों से की मुलाकात

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आगामी बजट से पहले कृषि विशेषज्ञों से मुलाकात की है. ऐसे में कहा जा रहा है कि कृषि विशेषज्ञों ने पीएम-किसान की किस्त को 6,000 रुपये से बढ़ाकर 8,000 रुपये सालाना करने का आग्रह किया है. उन्होंने बजट 2024 में कृषि अनुसंधान के लिए अतिरिक्त धनराशि के साथ-साथ सभी सब्सिडी को सीधे डीबीटी के माध्यम से किसानों को ट्रांसफर करने की भी मांग की है. 24 फरवरी, 2019 को शुरू की गई पीएम-किसान योजना का उद्देश्य भूमि-धारक किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है, बशर्ते वे विशिष्ट आय-आधारित मानदंडों को पूरा करते हों.

पीएम किसान योजना के तहत, भारत भर में पात्र किसान परिवारों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से हर चार महीने में तीन किस्तों में सालाना 6,000 रुपये मिलते हैं. अब तक, 11 करोड़ से अधिक किसानों को कुल 3.04 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया गया है. आगामी किस्त के साथ, योजना की शुरुआत से अब तक कुल भुगतान 3.24 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा. हाल ही में, अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17वीं किस्त जारी की, जिससे 9.3 करोड़ किसानों को लाभ हुआ और लगभग 20,000 करोड़ रुपये का वितरण हुआ.

1.27 लाख करोड़ रुपये का आवंटन

पीएम-किसान योजना, एक केंद्रीय क्षेत्र की पहल है जो देश भर में सभी भूमिधारक किसानों के परिवारों को आय सहायता प्रदान करती है. इस वित्तीय सहायता का उद्देश्य कृषि इनपुट खरीदने और घरेलू खर्चों को पूरा करने में सहायता करना है. अंतरिम बजट के दस्तावेजों से पता चलता है कि 2024-25 वित्तीय वर्ष में कृषि मंत्रालय के लिए 1.27 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो चालू वित्त वर्ष से थोड़ा अधिक है.

ऐसे करें पीएम किसान के लिए रजिस्ट्रेशन

pmkisan.gov.in पर जाएं.
किसान कॉर्नर पर जाएं.
“नया किसान पंजीकरण” चुनें.
ग्रामीण या शहरी किसान पंजीकरण चुनें.
आधार संख्या, मोबाइल नंबर, राज्य दर्ज करें और ‘OTP प्राप्त करें’ पर क्लिक करें.
OTP प्रदान करें, आधार प्रमाणीकरण पूरा करें और आधार के अनुसार भूमि और बैंक विवरण दर्ज करें.

लाभार्थी ऑनलाइन जांच करें अपनी स्थिति

आधिकारिक PM किसान वेबसाइट पर जाएं.
लाभार्थी स्थिति पृष्ठ पर पहुंचें.
आधार संख्या या खाता संख्या दर्ज करें.
स्थिति और भुगतान विवरण देखने के लिए ‘डेटा प्राप्त करें’ पर क्लिक करें.

क्या 15 सेमी की दूरी पर धान की रोपाई करने से पानी की होती है बचत, कृषि विभाग ने शुरू किया अभियान

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पंजाब में तेजी से गिरत भूजल स्तर पर ब्रेक लगाने को लेकर पंजाब सरकार सतर्क हो गई है. वह प्रदेश में डीएसआर तकनीक से धान की सीधी बुवाई करने के लिए किसानों को प्रेरित कर रही है. साथ ही सरकार धान की सीधी वुवाई करने वाले किसानों को 1500 रुपये प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि भी दे रही है. लेकिन इसके अलावा वह भूजल को बचाने के लिए दूसरे विकल्पों पर भी ध्यान दे रही है. कृषि विभाग ने किसानों को धान के लिए 20 सेमी पंक्ति-से-पंक्ति और 15 सेमी पौधे-से-पौधे की अनुशंसित दूरी का पालन करने के लिए एक अभियान शुरू किया है. इस अभियान के तहत प्रति वर्ग मीटर में 33 पौधों की रोपाई करने की अनुमति है. खास बात यह है कि इससे भूजल के उपयोग कम करने में मदद मिलती है.

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में कपास के तहत क्षेत्र लगातार घट रहा है, इस बार राज्य में धान की खेती अब तक के सबसे अधिक क्षेत्र में होने की संभावना है. भूजल के घटते स्तर की चिंताओं के बीच यह राज्य के लिए एक चिंताजनक प्रवृत्ति है, राज्य के आठ जिलों में कपास की खेती की जाती है, जिनमें से बठिंडा, मानसा, फाजिल्का और मुक्तसर सबसे बड़े हिस्से हैं. पिछले साल, कपास के तहत कुल क्षेत्रफल घटकर 1.73 लाख हेक्टेयर रह गया – जो 2022 में 2.48 लाख हेक्टेयर से कम है.जबकि राज्य का लक्ष्य 3 लाख हेक्टेयर है.

50 फीसदी से अधिक क्षेत्र में कपास की खेती

एक कृषि अधिकारी ने कहा कि धान की उचित रोपाई वाष्पीकरण के कारण होने वाले पानी के नुकसान को कम करती है और बेहतर उपज भी देती है. प्रवासी मजदूरों में आमतौर पर जल्दबाजी में बड़े अंतराल पर पौधे रोपने की प्रवृत्ति होती है और इस पर अंकुश लगाने की जरूरत है. हाल ही में हुई दो बारिशों के बीच अब तक 50 फीसदी से अधिक क्षेत्र में कपास की खेती की जा चुकी है. पंजाब सरकार ने दावा किया है कि चालू धान के मौसम में अधिक किसान डीएसआर पद्धति को अपना रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप पिछले साल की तुलना में पानी बचाने वाली तकनीक का उपयोग करने वाले क्षेत्र में 15 फीसदी की वृद्धि हुई है.

2 लाख एकड़ में धान की सीधी बुवाई

अधिकारी ने कहा कि इस साल डीएसआर तकनीक का उपयोग करके पहले ही 2 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में बुवाई की जा चुकी है, जो पिछले साल पूरे खरीफ सीजन में 1.72 लाख एकड़ थी. हालांकि, राज्य डीएसआर का उपयोग करके 7 लाख हेक्टेयर खेती करने के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकता है.

Success Story: एग्रीकल्चर ड्रोन ने बदली कौशांबी की नेहा की किस्मत, 30 दिन में कर रहीं 90 हजार रुपये की कमाई

UP News: ड्रोन दीदी योजना के जरिये ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अपने सपनों को एक उड़ान दे रही हैं. साथ ही समाज में अपनी अलग पहचान बना रही हैं. उत्तर प्रदेश के कौशांबी की एक ऐसी ही महिला नेहा यादव हैं, जो 29 वर्ष की उम्र में अब ड्रोन पायलट के रूप में अपनी पहचान बना रही हैं. इंडिया टुडे के किसान तक से खास बातचीत में कौशांबी जिले के ब्लॉक-चायल की रहने वाली नेहा यादव ने बताया कि 10 अक्टूबर 2023 को यूपी फूलपुर में (इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव) IFFCO की ट्रेनिंग कैंप में पहुंचे थे. वहां पर हमको प्रैक्टिकल के साथ ड्रोन उड़ाने की पूरी जानकारी दी गई. टेस्ट में पास होने के बाद मुझे ड्रोन पायलट का लाइसेंस दिया गया. 9 जनवरी 2023 को मुझे IFFCO की तरफ से मुफ्त में ड्रोन के साथ पूरा किट बैग दिया गया था.

एक दिन में 10 एकड़ खेती में कर रहीं छिड़काव

उन्होंने बताया कि पहली बार अपने गांव रामनगर में ड्रोन के जरिए किसान के एक एकड़ खेत में दवा का छिड़काव किया था. उस वक्त मुझे एक एकड़ का 300 रुपये मिला था. नेहा बताती हैं कि अब सुबह शाम मिलाकर 10 एकड़ खेत में दवा का छिड़काव कर रही है. जिससे 3 हजार रुपये प्रतिदिन आय हो जा रही है. यानी एक महीने में 90 हजार की कमाई. वहीं मुझे रोज काम मिलता रहता है. क्योंकि एक एकड़ खेत में दवा का छिड़काव 5-7 मिनट में कर देते हैं. 10 लीटर पानी में पूरे खेत में छिड़काव हो जाता है, इससे कम पानी में पूरे खेत में आसानी से किसानों के खेत में दवा का छिड़काव किया जा सकता हैं. वहीं फसल भी खराब नहीं होती.

एग्री ड्रोन ने बढ़ाया मेरा आत्मविश्वास

नेहा ने आगे बताया कि मैं साइकिल चला लेती हूं, लेकिन जब ड्रोन का रिमोट आता है, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ जाता है. परिवार के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि मेरा संयुक्त परिवार है. पति जेसीबी मशीन का कारोबार करते थे, वहीं मेरी दो बेटियां हैं.

उन्होंने बताया कि जब हम ड्रोन उड़ाते हैं तो सैकड़ों की संख्या में भीड़ जुट जाती है. आने वाले समय में ड्रोन खेती के लिए बहुत अहम यंत्र साबित होगा. देश और प्रदेश का हर किसान खेती के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करेंगे. एमए और बीएड तक पढ़ाई कर चुकी नेहा यादव ने बताया कि इस बार धान के सीजन में उन्हें खूब काम मिलेगा. वो अपने गांव में किसानों को ड्रोन के इस्तेमाल से होने वाले फायदे को बताती हैं. इससे अधिक से अधिक संख्या में किसान भी जागरूक हो रहे हैं.

क्या है ड्रोन दीदी योजना?

प्रधानमंत्री ड्रोन दीदी योजना 30 नवंबर 2023 को शुरू की गई थी. इस योजना का लक्ष्य स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 15,000 से अधिक महिलाओं को ड्रोन दीदी बनने का अवसर प्रदान करके सशक्त बनाना है. इसके अतिरिक्त, इस योजना में महिलाओं के लिए 15-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शामिल है, जो उन्हें ड्रोन चलाने और फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव करने में सक्षम बनाता है.

पीएम ड्रोन दीदी योजना के माध्यम से महिलाएं आत्मनिर्भर बनेंगी और कृषि कार्यों में प्रभावी ढंग से योगदान देंगी. इसके अतिरिक्त, लाभार्थियों को ड्रोन संचालन के लिए 15,000 रुपये का मासिक अनुदान भी मिलेगा. प्रधानमंत्री द्रोण दीदी योजना कृषि क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण और तकनीकी उन्नति की दिशा में एक कदम है, जो कृषि क्षेत्र की वृद्धि और विकास को सुनिश्चित करता है.

योजना में मिलेंगे यह लाभ

नमो ड्रोन दीदी योजना के तहत महिलाओं को 15 दिन ट्रेनिंग दी जाती है. जिसके स्टाइपेंड के तौर पर उन्हें 15 हजार भी दिए जाते हैं. यह राशि उनके खाते में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए भेज दी जाती है. सरकार का लक्ष्य है 10 करोड़ से अधिक स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं में से 15 हजार को इस योजना के तहत लाभान्वित किया जाए. इस योजना के तहत सरकार की ओर से ट्रेनिंग कंप्लीट होने के बाद महिलाओं को ड्रोन भी दिया जाता है.

CM ने लॉन्च की पेंशन स्कीम, अब बुजुर्गों के अलावा इन्हें भी मिलेंगे हर महीने 4000 रुपये

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का शपथ लेते ही चंद्रबाबू नायडू एक्शन मोड में आ गए हैं. वे जनता के हित में ताबड़तोड़ फैसले ले रहे हैं. उन्होंने सोमवार को अमरावती के मंगलगिरी विधानसभा क्षेत्र स्थित पेनुमाका गांव में एनटीआर भरोसा पेंशन योजना की शुरुआत की. उन्होंने एक परिवार को निजी रूप से राशि सौंपकर इस पेंशन योजना की शुरुआत की. खास बात यह है कि सीएम चंद्रबाबू नायडू ने चुनाव से पहले पेंशन राशि बढ़ाने का वादा भी किया था. उन्होंने अपने वादे के अनुसार, पेंशन को 3,000 रुपये से बढ़ाकर 4,000 रुपये कर दिया. यानी अब आर्थिक रूप से गरीब लोगों को पेंशन के रूप में 4000 रुपये मिलेंगे. इस योजना के तहत राज्य भर में 65.31 लाख लाभार्थियों को कुल 4,408 करोड़ रुपये पेंशन के रूप में वितरित किए जाएंगे.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने पेनुमाका गांव की एसटी कॉलोनी में रहने वाली इस्लावथ साई और उनकी झोपड़ी में रहने वाले उनके परिवार को सहायता प्रदान की. साई, उनके पिता बनवथ पमुल्यनायक और मां बनवथ सीता सभी दिहाड़ी मजदूर हैं. वहीं, इस मौके पर गांव वालों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने एनटीआर भरोसा पेंशन के शुभारंभ को ऐतिहासिक बताया. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार लोगों को आर्थिक रूप से सहायता करने के लिए इस योजना को शुरू की है. उन्होंने कहा कि मेरा अंतिम लक्ष्य आंध्र प्रदेश को गरीबी मुक्त बनाना है.

4,408 करोड़ रुपये होंगे वितरित

सीएम चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि पिछली सरकार ने द्वेष के कारण बुजुर्गों और बीमार लोगों को अपनी पेंशन लेने के लिए चिलचिलाती धूप में सचिवालय जाने के लिए मजबूर किया. इस फैसले ने 33 निर्दोष लोगों की जान ले ली. उन्होंने कहा कि पूरे राज्य में 65.31 लाख लाभार्थियों को 1.2 लाख सचिवालय कर्मचारी कुल 4,408 करोड़ रुपये वितरित करेंगे. सीएम ने कहा कि टीडीपी संस्थापक और पूर्व सीएम एनटी रामाराव थे, जिन्होंने 35 रुपये प्रति माह की शुरुआती राशि के साथ यह पेंशन योजना शुरू की थी. उन्होंने कहा कि टीडीपी के सत्ता में रहने के दौरान इस राशि को बढ़ाकर 75 रुपये, 200 रुपये, 1,000 रुपये और फिर 2014-19 के दौरान 2,000 रुपये कर दिया था. उन्होंने कहा कि अब उनकी सरकार ने पेंशन को 3,000 रुपये से बढ़ाकर 4,000 रुपये कर दिया है.

5 साल के लिए इतने करोड़ होंगे खर्च

मुख्यमंत्री ने कहा कि पेंशन पर खर्च की जाने वाली कुल राशि 33,100 करोड़ रुपये प्रति वर्ष और पांच साल के लिए 1.65 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो पिछली वाईएसआरसी सरकार द्वारा खर्च की गई राशि से बहुत अधिक है. उन्होंने कहा कि लोगों से किए गए वादों को पूरा करने और आर्थिक विषमताओं को पाटने की दिशा में यह हमारा पहला कदम है.

दिव्यांगों को मिलेंगे 6,000 रुपये

सीएम चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि अब बुजुर्गों, विधवाओं, अकेली महिलाओं, हथकरघा श्रमिकों, ताड़ी निकालने वालों, मछुआरों, ट्रांसजेंडरों और कलाकारों को हर महीने 4,000 रुपये मिलेंगे, जबकि दिव्यांगों को 6,000 रुपये मिलेंगे. वहीं, गंभीर बीमारियों से पीड़ित और बिस्तर पर पड़े 24,318 लाभार्थियों की पेंशन के रूप में 15,000 रुपये मिलेंगे. जबकि पहले यह राशि पहले 5,000 रुपये थी. उन्होंने बताया कि इससे राजकोष पर 819 करोड़ रुपये प्रति माह का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.

Basmati Rice: बासमती चावल का न्यूनतम न‍िर्यात मूल्य घटा सकती है सरकार, इंडस्ट्री ने उठाई मांग

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केंद्र सरकार बासमती चावल के एक्सपोर्ट पर पिछले साल लगाए गए 950 डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) को कम करने पर विचार कर सकती है. वजह यह है क‍ि सुगंधित चावल की कुछ किस्मों की वैश्विक कीमतें पहले ही मजबूत आपूर्ति के कारण एमईपी से नीचे आ चुकी हैं. बासमती के निर्यातकों ने कहा कि ज्यादा एमईपी से अगले सीजन के लिए बासमती चावल की घरेलू खरीद पर खराब प्रभाव पड़ सकता है और किसानों की आय प्रभावित हो सकती है. भारतीय किस्मों पूसा 6 और पूसा 1509 की कीमतें वर्तमान में लगभग 750-800 डॉलर प्रति टन के बीच चल रही हैं, जो क‍ि पाकिस्तान में इसी तरह के चावल की कीमतों के बराबर है.

प‍िछले साल ही सरकार ने बासमती पर 1200 डॉलर प्रत‍ि टन का एमईपी लगा द‍िया था. ज‍िसका इंडस्ट्री और क‍िसानों की ओर से भारी व‍िरोध क‍िया गया था. व‍िरोध के बाद सरकार ने इसे घटाकर 950 डॉलर प्रत‍ि टन कर द‍िया था, जो अब तक कायम है. सूत्रों का कहना है क‍ि मंत्रियों की एक कमेटी जल्द ही अक्टूबर, 2023 में लगाए गए एमईपी को हटाने या कम करने पर विचार करने के लिए बैठक करने वाली है.

गैर बासमती चावल का क्या होगा?

सूत्रों ने कहा क‍ि पिछले साल गैर-बासमती चावल के एक्सपोर्ट पर लगाए गए प्रतिबंधों में ढील देने और केंद्रीय पूल स्टॉक में रखे एक्स्ट्रा चावल के निपटान के उपायों जैसे कई प्रस्तावों पर मुहर लग सकती है. सरकार ने गैर बासमती चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा रखा है, जबक‍ि बासमती के एक्सपोर्ट पर 950 डॉलर प्रत‍ि टन की एमईपी की शर्त लगी हुई है. बहरहाल, सरकार ने वर्ष 2024-25 की अप्रैल-मई अवधि के दौरान 9.6 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया है, जो पिछले साल की इसी अवध‍ि की तुलना में 15 फीसदी अधिक है.

सुगंध‍ित चावल का बंपर उत्पादन

बासमती के एक्सपोर्टर विजय सेतिया के अनुसार आयात करने वाले देशों ने पिछले वित्त वर्ष में बासमती चावल का एक बड़ा स्टॉक बनाया है. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में अगले कुछ महीनों में नई फसल आने की उम्मीद है, इसलिए सरकार को एमईपी को कम करना चाहिए या खत्म कर देना चाहिए. ताकि किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके. व्यापार सूत्रों के मुताब‍िक खरीफ सीजन, 2023 में, देश ने 80 लाख टन सुगंधित चावल का उत्पादन किया है, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 20 फीसदी अधिक है.

एमईपी कम करने की मांग

बासमती सुगंध‍ित चावल है. घरेलू स्तर पर लगभग 15 लाख टन की खपत होती है. बाकी का एक्सपोर्ट क‍िया जाता है. न‍िर्यातकों का कहना है क‍ि खरीफ 2024 में बंपर फसल की उम्मीद है. मॉनसून ‘सामान्य’ रहने का अनुमान है. अगर उत्पादन प‍िछले साल के मुकाबले बढ़ा तो घरेलू स्टॉक में और वृद्धि होगी. इससे कीमतों में और गिरावट आ जाएगी. इसल‍िए सरकार को एमईपी घटा देनी चाह‍िए.

काबुली चना सहित तुअर-चना पर स्टॉक लिमिट लागू, महंगाई रोकने के लिए सरकार का बड़ा फैसला

केंद्र सरकार ने काबुली चना सहित तुअर और चना पर 30 सितंबर, 2024 तक स्टॉक सीमा लागू की है. प्रत्येक दाल के लिए स्टॉक सीमा थोक विक्रेताओं के लिए 200 मीट्रिक टन है. खुदरा विक्रेताओं के लिए 5 मीट्रिक टन, प्रत्येक खुदरा दुकान पर 5 मीट्रिक टन और बड़ी बिजनेस चेन के खुदरा विक्रेताओं के लिए डिपो पर 200 मीट्रिक टन की स्टॉक लिमिट तय की गई है.

अनाज की बढ़ती कीमतों को देखते हुए केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय ने बड़ी कार्यवाही की है. केंद्र ने काबुली चना सहित तुअर और चना पर 30 सितंबर, 2024 तक स्टॉक सीमा लागू कर दी है. दालों की जमाखोरी, सट्टेबाजी को रोकने और उपभोक्‍ताओं को किफायती दर पर तुअर और चना की उपलब्‍धता को बेहतर बनाने के लिए भारत सरकार ने आदेश जारी किया है. इसके तहत थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़ी बिजनेस चेन के खुदरा विक्रेताओं, मिल मालिकों और आयातकों के लिए दालों पर स्टॉक सीमा लागू की गई है.

क्या है आदेश

आदेश के तहत, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 30 सितंबर, 2024 तक काबुली चना सहित तुअर और चना के लिए स्टॉक सीमा निर्धारित की गई है. प्रत्येक दाल पर व्यक्तिगत रूप से लागू स्टॉक सीमा थोक विक्रेताओं के लिए 200 मीट्रिक टन, खुदरा विक्रेताओं के लिए 5 मीट्रिक टन, प्रत्येक खुदरा दुकान पर 5 मीट्रिक टन और बड़ी चेन के खुदरा विक्रेताओं के लिए डिपो पर 200 मीट्रिक टन, मिल मालिकों के लिए उत्पादन के अंतिम 3 महीने या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 परसेंट, जो भी अधिक हो, होगी. आयातकों के संबंध में कहा गया है कि आयातकों को सीमा शुल्क निकासी की तारीख से 45 दिनों से अधिक समय तक आयातित स्टॉक को अपने पास नहीं रखना है.

सरकार ने तेजी से बढ़ती महंगाई को देखते हुए यह फैसला लिया है. भारी गर्मी से दाल की फसलें भी चौपट हुई हैं जिसे देखते हुए भविष्य में इसकी सप्लाई घटने और दाम में इजाफा की आशंका है. इस पर समय पर काबू पाने के लिए सरकार ने स्टॉक लिमिट लागू कर दी है. सरकार ने अपने फैसले में मिलर्स, रिटेलर्स, बड़ी चेन के रिटेलर, आयातक और होलसेलर्स के लिए एक साथ स्टॉक लिमिट लगा दी है. इससे पहले सरकार ने प्राइवेट चेन रिटेलर्स से कहा था कि वे दालों के अपने स्टॉक को सप्ताह में दो बार घोषित करें, जैसा कि अन्य संस्थाओं के लिए साप्ताहिक है. अप्रैल में सरकार ने आयातित पीली मटर सहित सभी दालों के साप्ताहिक स्टॉक का खुलासा अनिवार्य कर दिया था, ताकि जमाखोरी को रोका जा सके.

दालों की महंगाई

तेजी से बढ़ती महंगाई को देखते हुए सरकार ने यह फैसला लिया है. दालों की कीमतें पिछले एक साल से बढ़ रही हैं. महाराष्ट्र के सोलापुर में तुअर और चना की कीमतें 11,100-12,250 रुपये प्रति क्विंटल और दिल्ली के प्रमुख बाजारों में 7,075-7,175 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई हैं, जहां मध्य प्रदेश और राजस्थान से सप्लाई होती है. खुदरा बाजार में, तुअर दाल की अखिल भारतीय औसत कीमत 161.3 रुपये प्रति किलोग्राम थी, जो साल-दर-साल 26 परसेंट की वृद्धि थी और चना की कीमत 88.1 रुपये प्रति किलोग्राम थी, जो साल-दर-साल 17.6 परसेंट अधिक थी. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने अभी हाल में ये आंकड़े दिए थे.

Agri Drone: यूरोपियन देशों में जलवा दिखाएगा एग्री ड्रोन विराज, एक बार चार्ज होने पर 4 एकड़ में करता है छिड़काव

भारतीय ड्रोन कंपनी AVPL इंटरनेशनल के लिए यूरोपियन देशों में अपने एग्री ड्रोन विराज को बिक्री करने का रास्ता खुल गया है. दरअसल, कंपनी के मॉडर्न ड्रोन VIRAJ को यूरोपियन यूनियन की एविएशन सेफ्टी एजेंसी (EASA) से उसके के लिए दोहरा सर्टिफिकेशन मिला है. VIRAJ ड्रोन ईयू की सुरक्षा मानकों और गुणवत्ता पर खरा उतरा है और यह पहला ड्रोन है जिसे यह प्रमाणपत्र हासिल हुआ है. कंपनी ने कहा कि इस उपलब्धि से भारत के एग्रीकल्चर ड्रोन इकोसिस्टम को वैश्विक स्तर पर विस्तार करने में मदद मिलेगी.

कृषि क्षेत्र में ड्रोन इकोसिस्टम को विकसित करने में जुटी फर्म AVPL इंटरनेशनल ने कहा कि अत्याधुनिक VIRAJ ड्रोन के लिए यूरोपीय संघ विमानन सुरक्षा एजेंसी (EASA) से दोहरा सर्टिफिकेशन हासिल हुआ है. इससे कंपनी को पूरे यूरोप में अपनी उन्नत तकनीक को व्यावसायिक रूप से तैनात करने का रास्ता खुल गया है. बताया गया कि दोहरा प्रमाणन VIRAJ ड्रोन के उच्चतम सुरक्षा और प्रदर्शन मानकों के पालन को पुख्ता करता है.

ड्रोन इकोसिस्टम में आगे बढ़ेगा भारत

AVPL इंटरनेशनल की सह-संस्थापक और अध्यक्ष प्रीत संधू ने कहा कि हमें अपने VIRAJ ड्रोन के लिए दोहरा सर्टिफिकेशन मिलने वाली भारत की पहली ड्रोन कंपनी बनने पर गर्व है. यह प्रमाणन हमें वैश्विक उद्योग में हाइटेक ड्रोन सॉल्यूशन लाते हुए यूरोपीय बाज़ार में और विस्तार करने की अनुमति देता है. हमारा मानना ​​है कि इस सर्टिफिकेशन के साथ हम वैश्विक ड्रोन प्रमुख कंपनी बनने की ओर अग्रसर हैं. हमारी उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण क्योंकि भारत वैश्विक ड्रोन इकोसिस्टम में और आगे बढ़ेगा.

एक बार चार्ज होने पर 4 एकड़ में छिड़काव करेगा विराज

स्मॉल कैटेगरी के मानव रहित विमान के तहत कैटेगरी में शामिल विराज ड्रोन को कृषि कार्यों में दक्षता के लिए डिजाइन किया गया है. यह एक जुड़वां बैटरी ऑपरेटेड सिस्टम का उपयोग करके चलता है. ड्रोन में उर्वरकों और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए 10 लीटर का टैंक और 10 लीटर का बीज डिस्पेंसर दिया गया है. एक बार चार्ज करने पर यह ड्रोन 30 मिनट तक की उड़ान भरता है और छिड़काव या बीज बोने के लिए हर बार चार्ज होने के बाद 3-4 एकड़ को कवर कर सकता है.

वैश्विक बाजार में पैठ बढ़ेगी

AVPL इंटरनेशनल के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक दीप सिहाग ने कहा कि यह सर्टिफिकेशन पाना सुरक्षा और गुणवत्ता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है. यह निस्संदेह बाजार में हमारी पैठ को बढ़ावा देगा. यूरोपीय बाजार में प्रवेश करते समय हम इनोवेशन और उत्कृष्टता की अपनी परंपरा को जारी रखने के लिए उत्साहित हैं, जिससे ड्रोन टेक्नोलॉजी के भविष्य को नई ऊंचाइयों पर ले जाया जा सके. उन्होंने कहा कि हम हम निकट भविष्य में ऑस्ट्रेलियाई बाजार के लिए CASA सर्टिफिकेट पाने की कोशिशों में जुटे हैं. AVPL इंटरनेशनल के सीईओ हिमांशु शर्मा ने कहा कि यूरोपीय बाजार AVPL इंटरनेशनल के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है.

जानिए, खरीफ की फसलों पर MSP में वृद्धि के फैसले को लेकर यूपी के किसानो नें क्या कहा!

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खरीफ सीजन शुरू होते ही केंद्र सरकार ने 14 फसलों के दाम बढ़ा दिए हैं. इसको लेकर आजतक ने लखीमपुर खीरी जिले के किसानों से बात की. कई किसान खुश दिखे तो कई यह भी मांग करते नजर आए कि भविष्य में डीजल, खाद, बिजली और पानी के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं होनी चाहिए.

तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट ने किसानों के लिए कई फैसले लिए हैं. जिसमें 14 खरीफ फसलों के एमएसपी में बढ़ोतरी का फैसला भी काफी अहम माना जा रहा है. कैबिनेट के फैसले के मुताबिक, एमएसपी में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी तिलहन और दलहन फसलों के लिए की गई है. जिसमें नाइजरसीड तिल और अरहर शामिल हैं. इसके साथ ही तूर दाल, उड़द दाल, मूंग, धान बाजार और मक्का समेत 14 खरीफ फसलें शामिल हैं. मोदी कैबिनेट द्वारा इन फसलों का एसपी बढ़ाए जाने के बाद आजतक की टीम ने धान का कटोरा कहे जाने वाले चंदौली, बांदा, कानपुर, लखीमपुर और गोरखपुर के किसानों से बात की. एसपी बढ़ाए जाने पर किसानों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

एमएसपी बढ़ाने का फैसला

ये तस्वीरें पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली की हैं. दरअसल चंदौली को धान का कटोरा कहा जाता है क्योंकि यहां चावल की पैदावार काफी अच्छी होती है. मोदी कैबिनेट के एमएसपी बढ़ाने के फैसले को लेकर हमने चंदौली के किसानों से बात की. यहां कुछ किसानों ने इस फैसले की तारीफ की तो कुछ किसान असंतुष्ट दिखे. उनका कहना था कि जो एमएसपी तय की गई है, उससे कहीं ज्यादा होनी चाहिए थी. चंदौली जिले के नियामताबाद के रहने वाले किसान अनुराग सिंह ने कहा कि जिस तरह से सरकार ने एमएसपी में बढ़ोतरी की है, उसके लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को धन्यवाद देना चाहता हूं. अनुराग सिंह ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह से साल दर साल फसलों की एमएसपी बढ़ा रहे हैं, वो हमेशा किसानों का हित चाहते हैं.

किसानों ने बिचौलियों पर चिंता जताई

किसान संजय चौरिहा ने कहा कि खरीफ फसलों में एमएसपी के दाम बढ़ाकर बहुत अच्छा काम किया गया है. अब हमें अपनी लागत के साथ-साथ अपनी फसलों का उचित मूल्य मिलेगा. सरकार हमारे साथ है तो हम सरकार के साथ हैं. किसान संजय ने बिचौलियों पर चिंता जताते हुए सरकार से मांग की है कि इन्हें हटाया जाए और क्रय केंद्रों पर किसानों की लंबी कतारों पर निर्णय लिया जाए. जिससे हमारा समय बर्बाद न हो. बुजुर्ग किसान राममिलन ने कहा कि मोदी जी ने बहुत अच्छा निर्णय लिया है, इससे हमें बहुत लाभ होगा. किसान राजन ने कहा कि निर्णय बहुत अच्छा है, अब हमारी फसलों की लागत भी निकल आएगी और हमें मुनाफा भी होगा. किसान विकास ने भी सरकार के इस निर्णय पर खुशी जताई है और धन्यवाद दिया है. सभी ने बिचौलियों पर चिंता जताई है, क्रय केंद्रों में लंबी कतारों के कारण किसान क्रय केंद्रों में धान नहीं बेच पा रहा है. उसे मजबूरी में इन बिचौलियों को ही बेचना पड़ रहा है, इन किसानों ने भी सरकार से इस ओर ध्यान देने और इस पर विचार करने की मांग की है.

केंद्र सरकार ने बढ़ाए 14 फसलों के दाम

खरीफ सीजन शुरू होते ही केंद्र सरकार ने 14 फसलों के दाम बढ़ा दिए हैं. इसको लेकर आजतक ने लखीमपुर खीरी जिले के किसानों से बात की. कई किसान खुश दिखे तो कई यह भी मांग करते नजर आए कि भविष्य में डीजल, खाद, बिजली और पानी के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं होनी चाहिए. मक्का की खेती करने वाले किसान राजकुमार का कहना है कि जब यह तैयार हो जाएगा तो हम इसे बाजार में ले जाएंगे तब पता चलेगा कि इसका रेट कितना बढ़ाया गया है. सरकार हमारे प्रति इतनी सजग है, हम इसका स्वागत करते हैं. अगर रेट बढ़ाया जाता है तो हम सरकार को धन्यवाद देते हैं. किसान वैसे भी हर समस्या से जूझ रहे हैं, अगर सरकार खाद-बीज पर ध्यान दे, उसमें सब्सिडी दे, बिजली और पानी की व्यवस्था सही हो तो तहसील सरकार किसानों के लिए ही कही जाएगी. यह बहुत अच्छी बात है कि एमएसपी बढ़ा दी गई है. अब रेट ज्यादा होगा तभी किसान खुशहाल होगा, वह अब मक्का की खेती ज्यादा करेगा.

धान पर एमएसपी में 170 की हुई बढ़त

किसान अश्वनी कुमार दुबे ने कहा कि इससे किसानों को काफी राहत महसूस हो रही है. धान पर एमएसपी में 170 रुपए की बढ़ोतरी हुई है क्योंकि पूर्वांचल में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है. कुछ और बढ़ोतरी होनी चाहिए थी क्योंकि मजदूरी और खाद का खर्च पहले ही बढ़ चुका है. फिर भी किसानों को काफी राहत मिली है. युवा किसान विनोद दुबे ने कहा कि निश्चित तौर पर जो किसान परंपरागत खेती करते आ रहे हैं. पूर्वांचल की मुख्य फसलें गेहूं, धान और अरहर रही हैं जिनके दाम बढ़ाए गए हैं. सरकार द्वारा एमएसपी किसानों के हित में है क्योंकि डूबता हुआ आदमी तिनके का सहारा लेता है. क्योंकि आप देख सकते हैं कि भीषण गर्मी पड़ रही है और किसान उसी हालत में काम कर रहा है. डीजल से पानी चला रहा है और लू चलने के कारण काम भी कम हो रहा है

Digital Crop Survey : छत्तीसगढ़ में हर खेत की फसल का दर्ज होगा ब्योरा, किसानों को मिलेगा उपज का पूरा लाभ

देश में कृष‍ि भूमि का संपूर्ण राजस्व रिकॉर्ड Digital Format में दर्ज करने का अभियान तेज गति से चल रहा है. इसका मकसद किसानों के हर खेत में बोई गई फसल और उससे होने वाली उपज का सटीक ब्योरा दर्ज कर किसानों को फसल बीमा सहित अन्य योजनाओं का माकूल लाभ दिलाना है. इस मकसद से छत्तीसगढ़ में Digital Crop Survey कराया जा रहा है.

सरकार, डिजिटल क्रॉप सर्वे में Satellite based Mobile App के जरिए हर गांव में हर किसान के प्रत्येक खेत में बोई गई फसलों की पुख्ता जानकारी दर्ज करती है. सरकार इस सर्वे की जानकारी को एग्री स्टैक पोर्टल में दर्ज करती है. इससे सरकार के पास यह डाटा उपलब्ध रहता है कि किस खेत में कौन सी फसल बोई गई है और किन खेतों में फसल नहीं बोई गई है. इसके आधार पर सरकार फसल की संभावित उपज और वास्तविक उपज के आंकड़ों का मिलान करके जमीन की उत्पादन क्षमता और Crop Insurance का आकलन करने सहित अन्य योजनाओं में किसानों को लाभ देना सुनिश्चित कर पाती है. इतना ही नहीं इस आंकड़ों के आधार पर किसानों को उपज के लिए उचित बाजार भी मुहैया कराना आसान होता है. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से बताया गया कि डिजिटल क्रॉप सर्वे का काम राज्य में तेज गति से पूरा किया जा रहा है, जिससे किसानों को जल्द इसका लाभ मिल सकेगा.

बाजार की श्रृंखला से जुड़ेंगे किसान

छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार राज्य में किए जा रहे डिजिटल क्रॉप सर्वे के आंकड़ों को Agristack Portal पर डाला जाएगा. इसके जरिए किसानों को उनकी उपज के लिए उचित बाजार उपलब्ध कराने में भी सहायता मिलेगी. इसके लिए राज्यव्यापी स्तर पर Master Trainers का प्रशिक्षण किया गया है.

सरकार का कहना है कि छत्तीसगढ़ में हर खेत में लगी फसल का अब डिजिटल सर्वे होने के बाद किसानों की फसलों की सभी जानकारियां एग्री स्टैक पोर्टल में दर्ज हो जाएंगी. इसके आधार पर किसानों को फसल उत्पादकता के लिए जरूरी इनपुट जैसे फसल ऋण की जानकारी के अलावा विशेषज्ञों की सलाह लेकर बाजार उपलब्ध कराने में भारत सरकार का एग्री स्टैक पोर्टल से मदद मिलेगी. डिजिटल क्रॉप सर्वे करने के लिए राजस्व विभाग के मास्टर ट्रेनरों को दिल्ली स्थित कृषि मंत्रालय के अधिकारियों प्रशिक्षण रायपुर में प्रशिक्षण दिया. इसमें बताया गया कि अब Geo Referencing Technology की मदद से डिजिटल क्रॉप सर्वे किया जाएगा.

हर किसान को मिलेगी आईडी

अधिकारियों ने बताया कि डिजिटल क्रॉप सर्वे की संपूर्ण जानकारी एग्री स्टैक पोर्टल में Online उपलब्ध रहेगी. सर्वे में शामिल हर खेत के मालिक के रूप में किसानों का एग्री स्टैक पोर्टल में ही पंजीयन होगा. पोर्टल पर किसानों का पंजीयन होने के बाद उन्हें एक Farmer ID दी जाएगी. इस आईडी के माध्यम से किसानों को बताया जाएगा कि उन्हें अपने किस खेत की कौन सी फसल में कब कितना खाद पानी देना है.

इस पोर्टल के माध्यम से राज्य के किसानों को अब न केवल जमीन बल्कि जमीन में लगी फसल और उपज को बेचने के लिए बाजार भी उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी. राज्य के भू-अभिलेख संचालक रमेश शर्मा ने प्रशिक्षण में कहा कि इस पोर्टल के जरिए ही किसानों को केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं से भी लाभान्वित किया जाएगा.

उन्होंने बताया कि इस पोर्टल का उद्देश्य किसानों, केंद्र सरकार और राज्य सरकार को एक डिजिटल छतरी के नीचे लाना है. भू-अभिलेख विभाग के अपर आयुक्त डॉ. संतोष देवांगन ने बताया कि इस प्रशिक्षण से राज्य के किसानों को लाभ मिलेगा. एग्री स्टेक में किसान का पंजीयन हो जाने से उन्हें जरूरत के मुताबिक खाद और बीज मिल सकेगा. इसके साथ ही किसानों को आवश्यकतानुसार बैंक ऋण लेने की भी सुविधा मिलेगी. प्रशिक्षण में सभी जिलों के भू-अभिलेख अधिकारी और भू-अभिलेख अधीक्षक शामिल हुए.