Friday, October 18, 2024
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प्लास्टिक से बढ़ा सकते हैं मछलियों का साइज, पहाड़ी इलाकों में काम आती है ये खास तकनीक

देश के पहाड़ी क्षेत्रों में मछली पालन करना थोड़ा मुश्किल है. इसलिए वहां मछली पालन करने के लिए गर्मी के दिनों में ही तालाब को तैयार करना बेहतर होता है. साथ ही वहां विदेशी कार्प प्रजाति की मछलियों को पाला जाता है.

देश में कई राज्यों के किसान अब खेती के साथ-साथ बड़े स्तर पर मछली पालन की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं. इससे किसानों की अच्छी कमाई हो रही है. साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से भी मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सब्सिडी मुहैया कराई जाती रही है. लेकिन कई बार किसानों के पास मछली पालन से जुड़ी जरूरी जानकारी नहीं होने से वह सही तरीके से मछली पालन नहीं कर पाते हैं और नुकसान हो जाता है.

नुकसान से बचने के लिए यह जानना जरूरी है कि मछली पालन में कौन-कौन से तकनीक को अपनाने से फायदे हो सकते हैं. ऐसे में आज आपको बताएंगे कि कैसे प्लास्टिक के इस्तेमाल से मछली की साइज को बढ़ा सकते हैं. वहीं इस खास तकनीक का इस्तेमाल पहाड़ी इलाकों में किया जाता है.

प्लास्टिक है खास तकनीक

देश के पहाड़ी क्षेत्रों में मछली पालन करना थोड़ा मुश्किल है. इसलिए वहां मछली पालन करने के लिए गर्मी के दिनों में ही तालाब को तैयार करना बेहतर होता है. साथ ही वहां विदेशी कार्प प्रजाति की मछलियों को पाला जाता है. वहां तालाबों में किसान प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं. मछली पालन में प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से मछलियों की साइज बढ़ने लगता है. दरअसल पॉलीथीन के उपयोग से पानी का तापमान 2 से 6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, जो मछलियों को बढ़ने में मदद करता है. इसलिए पहाड़ों में किसान प्लास्टिक का उपयोग मछली पालन में अधिक करते हैं. इससे पानी का तापमान बनाए रखने में भी मदद मिलती है.

कैसे तैयार करते हैं तालाब

पहाड़ी राज्यों में मछली पालन के लिए 100 से 200 वर्ग मीटर का तालाब बेहतर माना जाता है. वहीं तालाब बनाने से पहले मिट्टी और पानी की गुणवत्ता की जांच करना आवश्यक होता है. ऐसे में चिकनी दोमट मिट्टी पानी को कम सोखने के लिए उत्तम मानी जाती है. वहीं तालाब को बनाते समय पॉलीथिन बिछाना चाहिए. ऐसा करने से मछली पालन में अधिक उत्पादन होता है.

इन मछलियों का करें पालन

जो मछली पालक इस तकनीक से मछली पालन करना चाहते हैं, वे मछली पालन से पहले तालाब तैयार होने के बाद उसमें चूने और गोबर का लेप करें. इसके दो सप्ताह के बाद विदेशी कार्प मछलियों को तालाब में डालें, इसमें सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प किस्म की मछलियां शामिल हैं. इन मछलियों का पालन करने से अधिक उत्पादन होती है.

महाराष्ट्र में बार‍िश ने बढ़ाई क‍िसानों की मुसीबत, फसलों को बड़े पैमाने पर हुआ नुकसान

बार‍िश से अकोला जिले में 4060 हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई है. इसमें सबसे अधिक पातुर तालुका में 24 गांवों की 2866 हेक्टेयर भूमि में फसलें क्षतिग्रस्त हुई हैं. तेल्हारा तालुका में 1000 हेक्टेयर और बालापुर में 250 हेक्टेयर में प्याज, ज्वार, सब्जियां, आम, नींबू, पपीता, केला, गेहूं, तरबूज-तरबूज जैसी विभिन्न फसलों को नुकसान हुआ है.

महाराष्ट्र में एक तरफ जहां किसान उपज का उचित दाम नहीं मिलने से परेशान हैं तो वहीं दूसरी तरफ बेमौसम बारिश के चलते उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. राज्य के अकोला जिले में लगातार दूसरे दिन बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों की तैयार फसल बर्बाद हो गई है. तेज हवा के साथ हुई बारिश से नींबू और आमों के बागों को भारी नुकसान हुआ है. कई बागों के उजड़ने से किसान आर्थिक रूप से तबाह हो गए हैं. पश्चिमी विदर्भ के अकोला, बुलढाना और वाशिम जिलों में लगातार दो दिनों तक बेमौसम बारिश हुई है. बारिश के साथ तेज हवा चलने से नुकसान और बढ़ गया.

मंगलवार की आपदा में अकोला जिले में 4060 हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. इसमें सबसे अधिक पातुर तालुका में 24 गांवों की 2866 हेक्टेयर भूमि में फसलें क्षतिग्रस्त हुई हैं. तेल्हारा तालुका में 1000 हेक्टेयर और बालापुर में 250 हेक्टेयर में प्याज, ज्वार, सब्जियां, आम, नींबू, पपीता, केला, गेहूं, तरबूज-तरबूज जैसी विभिन्न फसलों को नुकसान हुआ है. उसके बाद बुधवार की शाम फिर हुई बारिश ने काफी नुकसान पहुंचाया. पातुर तालुका सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ. इस तालुका में 25 गांवों में बड़े पैमाने पर फसलों को नुकसान पहुंचा है. क‍िसान अब सर्वे करवाकर मुआवजा की मांग कर रहे हैं.

किसानों ने क्या कहा

किसानों का कहना है कि बारिश के कारण सबसे ज्यादा नींबू के पेड़ों और आम के बागों का नुकसान हुआ है. तूफानी बारिश के साथ ओलावृष्टि रबी सीजन की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा गई. किसान हरीश धोत्रे बताते हैं कि वो दस साल पहले तीन एकड़ में नींबू के पौधे लगाए थे. मूसलाधार बारिश और आंधी के कारण तीन एकड़ में लगे 350 पेड़ों में से केवल 25 से 30 ही बचे हैं. अन्य सभी पेड़ उखड़ गए. गांव के अन्य किसानों के बगीचे भी बर्बाद हो गए हैं. गांव को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है. सरकार को तत्काल सर्वे कराकर सहायता देनी चाहिए.

पुणे में भी बारिश से किसान परेशान

पुणे में भी बेमौसम बारिश के कराण फसलों का नुकसान हुआ है. जिले में बारिश के कारण तीन हजार हेक्टेयर फसल को नुकसान हुआ है. ऐसा अनुमान लगाया गया है. जिसमें केला, मक्का, गेहूं और अन्य फसलें शामिल हैं. सबसे ज्यादा नुकसान जामनेर और बोदवड इलाके में हुआ है. कृषि विभाग ने पंचनामा शुरू कर दिया है. प्रशासन ने 3 हजार 411 हेक्टेयर में नुकसान की जानकारी दी है. जामनेर तालुका में तूफानी हवाओं के साथ बारिश हुई. इस बेमौसम बारिश के कारण खेत में खड़ा केला औंधे मुंह गिर गया. मक्का, ज्वार, गेहूं और नींबू जैसी ग्रीष्मकालीन फसलों को भी नुकसान हुआ. इसके साथ ही कई किसानों के घर का जरूरी अन्य सामान भी पानी में बह गया. बारिश के कारण खड़की-बोरगांव, महूखेड़ा, लोनी, अमखेड़ा, सावरला, तालेगांव आदि गांव काफी प्रभावित हुए हैं.

Lok sabha Election 2024: पूर्वी यूपी के किसानों के लिए MSP नहीं है मुद्दा, नाराजगी की वजह कुछ और है

पूर्वांचल के किसान अधिकतर छोटे जोत के किसान हैं, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की संख्या थोड़ी बड़ी है. हालांकि सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस को एमएसपी के मुद्दे से फायदा होगा, जिसमें उन्होंने किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है या क्या मतदाता किसानों के लिए किए गए काम के आधार पर बीजेपी को चुनेंगे.

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर पिछले चार-पांच महीनों से किसान आंदोलन हो रहा है. इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने किसानों को अपनी पार्टी की तरफ झुकाव और समर्थन पाने के लिए अपने घोषणा पत्र में MSP को लागू करने का वादा किया है. उत्तर प्रदेश को अगर दो भागों में विभाजित किया जाए, तो पूर्वांचल के किसान अधिकतर छोटे जोत के किसान हैं, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की संख्या थोड़ी बड़ी है. पूर्वांचल के किसानों का कहना है कि अगर MSP लागू होगी तो इससे अधिकांश लाभ बड़े किसानों को ही मिलेगा, क्योंकि वे अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं. किसानों ने कहा कि पूर्वांचल के किसानों के मुद्दे अलग हैं क्योंकि उनके यहां अधिकतर छोटे जोत के किसान हैं.

किसानों को कर्जदार नहीं बनाना, समृद्धि की जरूरत

गांव मनोलेपुर में जिला वाराणसी के किसान राममनोहर सिह के पास पांच एकड़ खेत है, जहां वे धान, गेहूं और मक्का की खेती करते हैं. जब किसान तक की टीम ने पूछा कि इस चुनाव में एमएसपी कितना अहम होगा, तो उन्होंने बताया कि हमारे इलाके में किसानों के लिए एमएसपी कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है. इस मुद्दे पर इस इलाके में किसान वोट नहीं करेंगे, क्योंकि हमारे पास जमीन कम है और हमारे परिवार के उपयोग के लिए ही वह काफी है. बाजार में बेचने के लिए हमें अपनी उपज कम देनी पड़ती है, इसलिए एमएसपी से कोई लाभ नहीं होता.

जब कर्जमाफी के मुद्दे पर बात की गई, तो उन्होंने कहा कि किसानों को कर्जदार क्यों बना जाए जिससे कि वह कर्जा ले. उन्नति और समृद्धि की बात होनी चाहिए जिससे किसान कर्जदार नहीं बने और विकास कर सके. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार किसानों के विकास की बात करती है और उन्हें कर्जमाफी के बजाय साल में 6000 रुपये की मदद मिल रही है. छोटे किसानों के लिए सरकार ने 5 किलो अनाज देने का निर्णय किया है, जो खेत से उत्पन्न होने वाले अनाज की कमी को पूरा करता है. वे इससे खुश हैं.

पहले खाने का नहीं था, अब उपज की बचत

गांव प्राणपट्टी, जिला वाराणसी के किसान फौजदार यादव के पास 2.5 एकड़ जमीन है. किसान तक से उनका कहना था कि बीजेपी सरकार किसानों के लिए मदद कर रही है, क्योंकि सरकार ने किसानों को साल में 6000 रुपये देने का निर्णय किया है. इससे किसानों को काफी मदद मिल रही है. दूसरा, पांच किलो अनाज मिल रहा है, तो उससे किसानों को पहले खाने के लिए खरीदना पड़ता था, लेकिन अब हमें कुछ उपज बच जाती है. इसको बेचकर उन्हें कुछ फायदा ही मिल रहा है. इस छोटे किसानों के लिए सरकार बेहतर काम कर रही है.

समस्याओं का हो समाधान, उसको होगा वोट

गांव चितावा, जिला अयोध्या के किसान सीताराम वर्मा के पास दो एकड़ खेत है, जहां वे गन्ना, गेहूं और धान की खेती करते हैं. किसान तक से उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की मुख्य परेशानी पर ध्यान नहीं दे रही है. उन्होंने बताया कि हमारे इलाके में सबसे बड़ी परेशानी आवारा पशु और नीलगाय की समस्या है, जिससे फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है. उनका कहना है कि सरकार 6000 हजार रुपये की मदद कर रही है, लेकिन उससे भी ज्यादा नीलगाय और आवारा पशु नुकसान कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि आवारा पशु और नीलगाय की वजह से दलहन और तिलहन की फसलें बोना छोड़ रहे हैं. किसानों के बच्चों को नौकरी नहीं मिल रही है, जिससे बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है. किसानों की आमदनी कम होने से वे बच्चों को महंगी फीस देने में सक्षम नहीं हो रहे हैं. वे कहते हैं, हम इन समस्याओं का निवारण करने वाले को ही वोट देंगे.

किसानों की बढ़ी फसल की लागत पर चिंता

खंजूरडीह, जिला अम्बेडकर नगर के किसान अश्वनी कुमार ने भी इसी तरह का जवाब दिया. उन्होंने कहा कि उनके परिवार में 10 लोग हैं और उनके पास 5 एकड़ खेत है. लेकिन यूरिया, डीएपी, और पोटाश के दामों में वृद्धि के कारण किसानों की लागत बढ़ गई है. उन्होंने बताया कि पहले 50 किलो यूरिया 300 रुपये में मिलती था, लेकिन अब 40 किलो यूरिया 300 रुपये में मिल रही है. इसके अलावा, डीएपी और पोटाश के दाम डेढ़ से दोगुना बढ़ गए हैं, जिससे किसानों की लागत और बढ़ गई है. इसलिए, उन्हें लगता है कि सरकार किसानों की हितैषी नहीं है.

अमेठी में क्यों है अलग सोच?

ग्राम सोनारी, जिला अमेठी के किसान श्री राम त्रिपाठी के पास पांच एकड़ खेत हैं. उन्होंने किसान तक को बताया कि बीजेपी सरकार किसानों के लिए बेहतर है, क्योंकि वह 6000 हजार रुपये दे रही है और कई योजनाओं को लागू कर रही है. इसलिए अधिकांश किसान बीजेपी को वोट देंगे. लेकिन इस बार, अमेठी से अगर राहुल गांधी चुनाव लड़ते हैं, तो अमेठी की जनता उन्हें वोट करेगी क्योंकि राहुल गांधी ने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है. इसमें आंवला प्लांटेशन का काम शामिल है. अमेठी की जनता उन्हें अपना मानती है. उन्होंने कहा कि पिछली बार की तरह यह गलती दोहराई नहीं जाएगी क्योंकि राहुल गांधी भविष्य में पीएम बन सकते हैं और फिर अमेठी का विकास होगा.

इन सबके बीच सवाल उठता है कि क्या क्रांग्रेस को एमएसपी के मुद्दे पर फायदा मिलेगा, जिसमें उन्होंने किसानों के हित के लिए प्रतिबद्धता जताई है, या फिर बीजेपी को किसानों के लिए किए गए काम को देखकर लोग वोट करेंगे? इसके अलावा, क्या नीलगाय और आवारा पशु से हो रहे नुकसान के मुद्दे पर भी ध्यान दिया जाएगा.

 

Onion Price: यहां बिक रहा 1,2 और 3 रुपये किलो प्याज, किसानों ने सुनाई आपबीती

राहुरी में 2 रुपये और जुन्नर (नरायणगांव) में न्यूनतम दाम 3 रुपये किलो रहा. अधिकांश मंडियों में अधिकतम दाम सिर्फ 15 रुपये किलो रहा. किसान इतने कम दाम से काफी निराश हैं बाजीराव गागरे का कहना है कि प्याज का दाम सरकार की नीतियों की वजह से कम हुआ है मांग और आपूर्ति के कारण नहीं. निर्यातबन्दी न होती तो किसानों को 30 से 40 रुपये किलो दाम मिल रहा होता.

देश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक महाराष्ट्र की कुछ मंडियों में प्याज की कीमत काफी गिर गई है. कहीं 1, कहीं 2 तो कहीं 3 रुपये किलो के न्यूनतम दाम पर प्याज बिक रहा है. लेकिन इस दाम पर आपको प्याज नहीं मिलेगा बल्कि इस दाम पर किसान बेचने को मजबूर हैं. चार महीने से अधिक समय से लागू प्याज की निर्यातबन्दी की वजह से दाम काफी गिर गए हैं. लगातार दो सीजन से जारी निर्यातबन्दी ने किसानों की कमर तोड़ दी है. काफी किसानों ने कम दाम से परेशान होकर पहले ही खेती कम कर दी थी, अब तो वो पूरी तरह से इसे बंद करने की बात करने लगे हैं. उनका कहना है घाटे में खेती करने से अच्छा है कि खेत में कुछ और उगाया जाए.

महाराष्ट्र की संगमनेर मंडी में 11 अप्रैल को प्याज का न्यूनतम दाम सिर्फ 100 रुपये क्विंटल मतलब एक रुपये किलो था. राहुरी में 2 रुपये और जुन्नर (नरायणगांव) में न्यूनतम दाम 3 रुपये किलो रहा. अधिकांश मंडियों में अधिकतम दाम सिर्फ 15 रुपये किलो रहा. किसान इतने कम दाम से काफी निराश हैं क्योकि इससे ज्यादा तो लागत आ रही है. इतना कम दाम प्याज को खेत से निकलकर मंडी में पहुंचाकर मिल रहा है. इसलिए किसानों में सरकार के खिलाफ गुस्सा है.

किसान ने सरकार के लिए क्या कहा

अहमदनगर महाराष्ट्र का प्रमुख प्याज उत्पादक जिला है. यहां के किसान बाजीराव गागरे का कहना है कि प्याज का दाम सरकार की नीतियों की वजह से कम हुआ है मांग और आपूर्ति के कारण नहीं. निर्यातबन्दी न होती तो किसानों को 30 से 40 रुपये किलो दाम मिल रहा होता. लेकिन सरकार ने 7 दिसंबर 2023 से निर्यातबन्दी करके किसानों को बर्बाद कर दिया है. पहले खरीफ सीजन में दाम नहीं मिला और अब रबी सीजन भी बर्बाद हो रहा है, जबकि इस सीजन में किसान ज्यादा प्याज लगाते हैं. अब किसान प्याज की खेती और कम कर देंगे.

क‍िस मंडी में क‍ितना है दाम

  • शिरीगोंडा मंडी में 11 अप्रैल को 479 क्विंटल प्याज की आवक हुई. यहां न्यूनतम दाम 200, अधिकतम 1400 और औसत दाम 1100 रुपये प्रति क्विंटल रहा.
  • जुन्नर मंडी में 16 क्विंटल प्याज की आवक हुई. यहां न्यूनतम दाम 300,अधिकतम और1500 औसत दाम 1000 रुपये प्रति क्विंटल रहा.
  • पुणे मंडी में 9825 क्विंटल प्याज की आवक हुई. यहां न्यूनतम दाम 600, अधिकतम 1600 और औसत दाम 1100 रुपये प्रति क्विंटल रहा.
  • अकलुज मंडी में 225 क्विंटल प्याज की आवक हुई. यहां न्यूनतम दाम 300, अधिकतम 1600 और औसत दाम 1000 रुपये प्रति क्विंटल रहा.

सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी की MSP के ल‍िए तरसे क‍िसान, भारत में त‍िलहन त‍िरस्कार का है इंटरनेशनल कनेक्शन!

Oilseed Crops Price: अपनी एक र‍िपोर्ट में कृष‍ि मंत्रालय ने खुद स्वीकार क‍िया है क‍ि ओपन मार्केट में मूंगफली, सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी का दाम एमएसपी से कम है. हालांक‍ि, इन सभी फसलों के दाम की दुर्गत‍ि को देखते हुए यह सवाल महत्वपूर्ण हो गया है क‍ि खाद्य तेलों का आयातक होने के बावजूद भारत के क‍िसानों को त‍िलहन फसलों का एमएसपी भी क्यों नसीब नहीं हो रहा है?

खाद्य तेल वाली फसलों की भारी कमी के बावजूद क‍िसानों को इसका सही दाम नहीं म‍िल रहा है, जबक‍ि भारत सालाना लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात कर रहा है. इस वक्त चार प्रमुख त‍िलहन फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के ल‍िए भी तरस रही हैं. मूंगफली, सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी इन सभी की खेती करने वाले क‍िसान इस बात को लेकर हैरान हैं क‍ि एक तरफ खाने वाला तेल आयात हो रहा है तो दूसरी ओर उनकी फसलों को सही कीमत क्यों नहीं म‍िल पा रही है. सवाल यह है क‍ि क्या इसी तरह से भारत खाद्य तेलों में आत्मन‍िर्भर बनेगा? जब क‍िसानों को सही दाम ही नहीं म‍िलेगा तो फ‍िर वो त‍िलहन की खेती को क्यों आगे बढ़ाएंगे. दरअसल, भारत में त‍िलहन फसलों के इस त‍िरस्कार का एक इंटरनेशनल कनेक्शन भी है.

कृष‍ि मंत्रालय ने खुद स्वीकार क‍िया है क‍ि इन चार फसलों की खेती करने वाले क‍िसानों को इस साल अब तक ओपन मार्केट में एमएसपी नहीं म‍िल पाया है. हालांक‍ि, इन सभी फसलों के दाम की दुर्गत‍ि को देखते हुए यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क‍ि खाद्य तेलों का आयातक होने के बावजूद भारत के क‍िसानों को त‍िलहन फसलों का एमएसपी भी क्यों नसीब नहीं हो रहा है. कायदे से तो त‍िलहन फसलों को बहुत अच्छा दाम म‍िलना चाह‍िए. आख‍िर क्यों क‍िसान इसकी सही कीमत के ल‍िए तरस रहे हैं?

रूस और यूक्रेन कनेक्शन

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है क‍ि सरकार की आयात पॉल‍िसी की वजह से ऐसा हो रहा है. दूसरी ओर खाद्य तेलों के कारोबार से जुड़े लोग इस हालात के पीछे एक और वजह को जोड़ते हैं, ज‍िसका कनेक्शन रूस और यूक्रेन से है. अख‍िल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर का कहना है इस वक्त रूस और यूक्रेन दोनों देश बहुत सस्ता सूरजमुखी तेल बेच रहे हैं. इसल‍िए भारत के खाद्य तेल कारोबारी इसका फायदा उठा रहे हैं. आमतौर पर यहां सबसे ज्यादा पाम ऑयल आयात होता है, लेक‍िन प‍िछले तीन महीन में सूरजमुखी ने पाम ऑयल का स्थान ले ल‍िया है.

इंपोर्ट ड्यूटी का झटका

आमतौर पर सूरजमुखी तेल पाम और सोयाबीन से महंगा होता है लेक‍िन इस समय यह सबसे सस्ता हो गया है. इसल‍िए इसका आयात बढ़ गया है. आयात बढ़ने के कारण भारत के क‍िसानों को त‍िलहन फसलों का दाम सही नहीं म‍िल रहा है. अगर क‍िसानों को एमएसपी भी नहीं म‍िलेगा तो वो हतोत्साह‍ित होंगे और अगले साल तक त‍िलहन फसलों का रकबा घट जाएगा.

क‍िसानों को हो रहे नुकसान की एक और वजह खाद्य तेलों पर कम इंपोर्ट ड्यूटी भी है. सरकार ने खाद्य तेलों की महंगाई घटाने के ल‍िए प‍िछले वर्षों के मुकाबले इसे काफी कम कर द‍िया था. अभी दाम काबू में हैं लेक‍िन सरकार की च‍िंता चुनाव है, इसल‍िए वो इसे बढ़ा नहीं रही है. इंपोर्ट ड्यूटी कम रहने से आयात ज्यादा होता है ज‍िससे दाम घट जाता है.

क‍िसान व‍िरोधी आयात पॉल‍िसी

सरसों के सही दाम को लेकर सत्याग्रह करने वाले क‍िसान नेता रामपाल जाट का कहना है क‍ि मूंगफली, सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी ये भारत की प्रमुख तिलहन फसलें हैं. इन्हें उगाने वाले किसानों को तो इसलिए पुरस्कार मिलना चाहिए कि वो ऐसी फसल उगा रहे हैं जिसमें भारत आत्मनिर्भर नहीं है. लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें पुरस्कार की जगह कम दाम का ‘सरकारी’ दंड मिल रहा है.

केंद्र सरकार की आयात पॉल‍िसी क‍िसान व‍िरोधी है. यह ऐसी पॉल‍िसी है ज‍िससे भारत के किसानों की बजाय दूसरे देशों के किसानों को पैसा मिल रहा है. भारत का पैसा रूस-यूक्रेन, अर्जेंटीना, इंडोनेश‍िया और मलेश‍िया के पास जा रहा है. आखिर भारत के किसानों ने ऐसी कौन सी गलती की है ज‍िसकी वजह से उन्हें सरकार तिलहन की फसल उगाने के बावजूद सही दाम नहीं द‍िला पा रही.

दो साल में क‍ितना बदला दाम

  • मूंगफली का दाम 8 अप्रैल 2024 को 6013.01 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल था, जो खरीफ मार्केट‍िंग सीजन 2023-24 के ल‍िए तय इसकी एमएसपी 6377 रुपये से कम है. दो साल पहले यानी 8 अप्रैल 2022 को इसका दाम 5847.74 रुपये क्व‍िंटल था. हालांक‍ि तब (2021-22) में इसका एमएसपी 5550 रुपये था. यानी ओपन मार्केट में क‍िसानों को मूंगफली का दाम एमएसपी से ज्यादा म‍िल रहा था.
  • सरसों का दाम 8 अप्रैल 2024 को 5183.65 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. जबक‍ि रबी मार्केट‍िंग सीजन 2024-25 में इसकी एमएसपी 5650 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तय की गई है. दो साल पहले यानी 8 अप्रैल 2022 को दाम 6274.84 रुपये था. हालांक‍ि तब (2022-23) में इसका एमएसपी 5050 रुपये क्व‍िंटल था. यानी दो साल पहले सरसों क‍िसानों को एमएसपी से ज्यादा भाव म‍िल रहा था.
  • सोयाबीन का दाम 8 अप्रैल 2024 को 4551.44 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. जबक‍ि खरीफ मार्केट‍िंग सीजन 2023-24 में इसका एमएसपी 4600 रुपये तय है. अगर दो साल पहले 8 अप्रैल 2022 का आंकड़ा देखें तो ओपन मार्केट में दाम 7177.97 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल था. हालांक‍ि उस वक्त (2021-22) में इसका एमएसपी 3950 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल था. यानी क‍िसानों को ओपन मार्केट में सोयाबीन का दाम एमएसपी से काफी ज्यादा म‍िल रहा था.
  • सूरजमुखी का दाम 8 अप्रैल 2024 को स‍िर्फ 3851 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. जबक‍ि खरीफ मार्केट‍िंग सीजन 2023-24 में इसका एमएसपी 6760 रुपये तय है. दो साल पहले 8 अप्रैल 2022 को ओपन मार्केट में सूरजमुखी का दाम 6259.42 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल था. हालांक‍ि तब (2021-22) में इसका एमएसपी 6015 रुपये था. यानी तब क‍िसानों को सूरजमुखी का एमएसपी से ज्यादा दाम म‍िल रहा था.

RO Water : RO का पानी बना रहा है बीमार, जानिए सेहत के लिए कितना होना चाहिए TDS

आरओ (RO) के पानी के फायदे पर लोग आंख बंद कर भरोसा कर लेते हैं. हालांकि आरओ का पानी आपकी सेहत पर बुरा प्रभाव डाल रहा है. ज्यादातर लोगों का मानना है कि पानी की शुद्धता को बरकरार रखने के लिए फिल्टर के पानी का प्रयोग करना उचित है. लेकिन हालिया शोध के मुताबिक आरओ की मदद से भले ही पानी शुद्ध हो जाता हो, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आपकी सेहत को फायदा पहुंचाने वाले कई सारे जरूरी तत्व भी पानी से बाहर हो जाते हैं. इसकी वजह से आरओ से साफ किया हुआ पानी आपकी सेहत को नुकसान भी पहुंचा सकता है.

लखनऊ स्थित भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक सत्यकम पटनायक ने किसान तक को बताया कि हालिया शोध के मुताबिक 1000 टीडीएस तक पानी बड़े आराम से पिया जा सकता है. इसका सेहत पर नुकसान भी नहीं है. अगर पानी 1000 टीडीएस के ऊपर है तो इसको उबाल कर भी हम पी सकते हैं. एनजीटी ने भी अभी एक निर्देश जारी किया है. पानी का टीडीएस 500 से कम नहीं होना चाहिए लेकिन ज्यादातर आरओ बनाने वाली कंपनियां लोगों को भ्रमित करती हैं और टीडीएस को 100 से नीचे रखती हैं जो सेहत के लिए काफी ज्यादा नुकसानदायक होता है.

क्या होता है टीडीएस

टीडीएस का मतलब होता है टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स. आरओ कंपनियां टीडीएस को कम कर कर रखती हैं जो सेहत के लिए नुकसानदायक होता है. पानी में घुले हुए तत्व जिनकी वजह से स्वाद खराब हो जाता है उनमें कैल्शियम, नाइट्रेट, आयरन, सल्फर और कार्बनिक यौगिक होते हैं. इनमें से कई तत्व सेहत के लिए जरूरी होते हैं लेकिन आरओ तकनीक के जरिए पानी को शुद्ध करने वाली झिल्ली इसे पूरी तरीके से निकाल देती है. शोध के अनुसार माना गया है कि पानी का टीडीएस 500 से कम हो तो पानी पिया जा सकता है. घर में टीडीएस को 65 से 70 रखा जाता है जो पूरी तरीके से गलत है. पीने के पानी का टीडीएस 350 पर सेट करें. प्रधान वैज्ञानिक भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान सत्यकम पटनायक ने बताया कि अगर टीडीएस 100 से नीचे है तो पानी में चीजों के घुलने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में प्लास्टिक की बोतल में इस तरह के पानी पीने से कैंसर का कारण भी बन सकता है.

सबसे कम टीडीएस से सेहत को खतरा

पानी के वैज्ञानिकों का कहना है कि घरों में ज्यादातर लोग अपने आरओ का टीडीएस 100 से नीचे रखते हैं जो बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है. चिकित्सकों का भी मानना है कि पीने का पानी 100 से 400 के बीच होना चाहिए. अगर टीडीएस 100 के नीचे रहता है तो इससे शरीर को कई सारे खतरे होते हैं. पानी दुनिया की सबसे कीमती चीजों में से एक है. इसके स्वाद को बेहतर बनाने के लिए लोग वॉटर प्यूरीफायर या आरओ का इस्तेमाल करते हैं.

पानी से बढ़ रहीं पेट की समस्याएं

जब भी प्यास लगने पर पानी पिया जाता है तो गुर्दे में रक्त से पानी को अवशोषित करने के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस प्रक्रिया होती है. आरओ का इस्तेमाल तभी करना चाहिए जब पानी खारा हो या 1000 टीडीएस की मात्रा से ज्यादा हो. जिन स्थानों पर पानी मीठा होता है वहां पर आरओ का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए .आरओ के इस्तेमाल की वजह से हड्डियां न सिर्फ कमजोर हो रही हैं बल्कि पेट संबंधी समस्याएं भी बढ़ रही हैं. आरओ का पानी पीने से पेट में ब्लोटिंग, सीने में जलन जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं.

Mango: लखनऊ में इस साल ‘दशहरी आम’ को टक्कर देगी नई वैरायटी, किसानों को होगा बंपर मुनाफा

Lucknow Mango News: लखनऊ के मलिहाबाद के दशहरी आम (Dussehri Aam) सदियों से बाजार में अपनी धाक जमाए हुए हैं. इसलिए देश- विदेश तक इसकी डिमांड हैं. लेकिन, पिछले कुछ वक्त से देखने को मिला है कि दशहरी आमों का स्वाद लोगों को अब कम पसंद आ रहा है. ऐसे में मलिहाबाद के किसानों ने भी अब दशहरी आम की जगह रंग-बिरंगे नई वैरायटी के आम लगाकर कमाई करने का फैसला लिया है. यही वजह है कि किसान अब दशहरी की जगह दूसरी वैरायटी के आम लगा रहे हैं. इस साल बाजार में मलिहाबाद क्षेत्र के कई किसान अपने नए आम बाजार में पहली बार उतारेंगे. इनका स्वाद दशहरी से भी कई गुना अच्छा होगा. ये देखने में भी बेहद खूबसूरत लगेंगे, जिससे किसानों की कमाई काफी अच्छी होगी.

दशहरी आम से किसानों को नहीं मिल रहा फायदा

आम उत्पादक एवं बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि दशहरी आम जल्दी खराब हो जाते हैं. इन्हें लगाने से किसानों को अब उतना फायदा नहीं होता है जितना पहले हुआ करता था. क्योंकि, अब दशहरी को टक्कर देने के लिए विदेशी प्रजाति के साथ ही कई नए आम बाजार में आ गए हैं. लोग उनके स्वाद को ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

नई वैरायटी के आम देखने में भी खूबसूरत

उन्होंने बताया कि लोग दशहरी से ज्यादा उन आमों को खरीद रहे हैं. ऐसे में किसान अपने फायदे के लिए अब दशहरी के साथ-साथ नई किस्म के आम भी लगा रहे हैं. इस बार भी बाजार में मलिहाबाद के किसानों के कई रंग-बिरंगे आम देखने के लिए मिलेंगे. इनकी कीमत दशहरी से ज्यादा होगी. ये आम मार्केट में अच्छी कीमतों पर बिकेंगे. देखने में भी खूबसूरत लगते हैं, जिससे किसानों को फायदा होगा. वहीं नई वैरायटी के आम लोगों को जुलाई और अगस्त तक खाने को मिलेगा.

जानिए आमों की नई वैरायटी के नाम

आम के प्रगतिशील किसान ने बताया कि बाजार में अब जो नए आम आएंगे वह अगस्त, मटका गोला, आमीन, जामुन, मुंजजर आमीन, तुखमी हीरा आम, टॉमी एटकिन,अंबिका, पूसा अरुणिमा, पूसा सूर्या, पूसा प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ, पूसा लालिमा और पूसा पीताम्बर आम होंगे. सेंसेशन भी नया आम है. इन सभी नए आमों को मलिहाबाद के किसानों ने लगाया है. आने वाले वक्त में यही नए आम ज्यादातर लोगों को खाने के लिए मिलेंगे. जिसका स्वाद दशहरी आम से ज्यादा अच्छा होगा.

चुनाव में ‘Modi Mango’ की चर्चा

उपेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि सदियों से आम की दुनिया में अपनी बादशाहत कायम रखने वाले दशहरी, लंगड़ा और चौसा जैसे आमों का अस्तित्व मोदी मैंगो के आने के बाद खतरे में पड़ जाएगा, क्योंकि यह आम खाने में इतना लजीज और ठोस है कि एक आम खाने से ही आपका पेट भर जाएगा. एक आम 500 ग्राम का होगा. उन्होंने बताया कि मोदी मैंगो आम का पेड़ उन्होंने लगाया था. इस पर इस बार अच्छे बौर आए हैं.

शौक को पेशे में बदला और शुरू की मछली की खेती, अब सालाना 7 लाख की करते हैं कमाई

लालडिंगलियाना मिजोरम के किसान हैं जिन्होंने खेती को छोड़कर अपनी आय को बढ़ाने के लिए मछली पालन को अपनाया है. दरअसल मछली के स्वास्थ्य लाभ और उचित बाजार मूल्य और मांग को देखते हुए उन्होंने मछली पालन की ओर रुख किया.

व्यावसायिक स्तर पर मछली पालन से खूब मुनाफा कमाया जा सकता है. मछली पालन वैसे तो विश्व भर में बहुत पहले से की जाती रही है. लेकिन भारत में इसका व्यावसायिक पालन काफी तेजी से फैल रहा है. इसमें कई राज्यों के किसान मछली पालन करके बेहतर कमाई कर रहे हैं. इसमें उन्हें लागत के अनुरूप अच्छा मुनाफा भी हो रहा है. ऐसे ही एक किसान हैं जो मछली पालन को शौक बनाकर आज सालाना 7 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं. इस किसान का नाम है लालडिंगलियाना.

मिजोरम के चम्फाई जिले के कहरवत गांव के रहने वाले लालडिंगलियाना मछली पालन करते हैं. साथ ही वह अपने ग्राम परिषद के सदस्य भी हैं. मछली पालन शुरू करने से पहले वह खेती-किसानी भी करते थे, जिसमें उन्हें अधिक लागत और कम मुनाफा होता था.

19 तालाबों में करते हैं मछली पालन

लालडिंगलियाना ने खेती को छोड़कर अपनी आय को बढ़ाने के लिए मछली पालन को अपनाया. दरअसल मछली के स्वास्थ्य लाभ और उचित बाजार मूल्य और मांग को देखते हुए उन्होंने मछली पालन की ओर रुख किया. उन्होंने 2017 के दौरान नीली क्रांति योजना के तहत “नए तालाबों के निर्माण” के लिए आवेदन किया था. इस योजना की मदद से उन्होंने अपने 2 हेक्टेयर क्षेत्र में 19 तालाबों का सफलतापूर्वक निर्माण करवाया. इसमें उन्हें 8 लाख रुपये की कुल परियोजना लागत की तुलना में 1.73 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्राप्त हुई. वहीं तालाबों के निर्माण में किसान लालडिंगलियाना ने 6.27 लाख रुपये का निवेश किया.

कॉमन कार्प प्रजनन में किया सुधार

लालडिंगलियाना पिछले पांच वर्षों में कुल मछली उत्पादन 8 टन था. जिसमें उन्हें 10 लाख का खर्च आया. साथ ही इसमें उन्हें 31 लाख रुपये का रिटर्न मिला जिसमें उन्हें 21 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ. मछली पालन के 5 वर्षों के अभ्यास के बाद उन्होंने कॉमन कार्प प्रजनन में अपने सुधार किया, इससे उन्होंने अपनी जलकृषि गतिविधि को बनाए रखने में मदद मिली.

सालाना 7 लाख रुपये की कमाई

इसके बाद उन्होंने अपने फार्म में मिश्रित मछली पालन तकनीक को अपनाया. इस तकनीक को अपनाने के बाद लालडिंगलियाना मछली पालन से अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं, जिससे उनकी बचत में भी बढ़ोतरी हुई है. इसके अलावा उन्होंने अपने मछली पालन में आठ मछुआरों को रोजगार के अवसर प्रदान किए हैं. उनका उद्देश्य बेहतर आजीविका के लिए मछली पालन में सुधार करना है. उन्हें 2019 में (पूर्वोत्तर राज्यों से) सर्वश्रेष्ठ मत्स्य किसान पुरस्कार मिल चुका है. वहीं वह सालाना 7 लाख रुपये की कमाई करते हैं.

Farming Machines : छोटे किसानों के लिए कमाल की है फसल काटने की ये मशीन

रबी सीजन में गेहूं और खरीफ सीजन में धान की कटाई Harvester Machine से कराने की मजबूरी के कारण किसानों के लिए उपज की लागत में खासा इजाफा हो जाता है. बड़ी जोत वाले किसानों के लिए भारी भरकम हार्वेस्टर मशीन से कटाई कराना भले ही मुफीद हो, लेकिन छोटे खेतों पर खेती कर रहे लघु एवं सीमांत किसानों के लिए हार्वेस्टर मशीन खर्चे को बढ़ाने वाली साबित होती है. छोटे किसानों की इस समस्या को ध्यान में रखते हुए छोटी Reaper Machine अब फसलों की कटाई के लिए उपलब्ध है. हालांकि इसकी बाजार कीमत लघु एवं सीमांत किसानों के लिए ज्यादा होने के कारण तमाम राज्य सरकारें इसकी खरीद पर Subsidy भी दे रही हैं.

एमपी में हो रहा खूब इस्तेमाल

खेती में Labour Crisis लगातार बढ़ती जा रही है. इसे देखते हुए खेती के काम को आसान बनाने के लिए बाजार में नई नई मशीनें भी आ रही हैं. खेती को आधुनिक तरीकों से आसान बनाने वाली मशीनों की एमपी के किसानों में भरपूर मांग रहती है. राज्य का नर्मदापुरम इलाका इस दिशा में अग्रणी रहा है. वहीं, Tribal Dominated बैतूल और छिंदवाड़ा में भी किसान आधुनिक मशीनों का खेती में भरपूर इस्तेमाल करते हैं.

छिंदवाड़ा जिले का चारगांव भाट सब्जी की खेती के लिए मशहूर गांव है. इस गांव में छोटी जोत के किसानों की संख्या बहुतायत में है. इसलिए गांव के किसानों ने गेहूं और धान की खेती के साथ बागवानी को भी अपनाया है. गांव का हर किसान ड्रिप, स्प्रिंकलर और मल्चिंग विधि से सब्जी की खेती करता हैं. वहीं, गेहूं और धान की खेती के लिए भी Modern Equipment पर ही किसानों की निर्भरता है. इन दिनों गेहूं की कटाई का सीजन चल रहा है. ऐसे में गांव के एक युवा किसान ने छोटे खेतों में उपज क‍ी कटाई के लिए मुफीद मानी गई रीपर मशीन के इस्तेमाल को शुरू किया है.

किसान प्रद्युमन यदुवंशी ने 3 साल पहले ही यह मशीन खरीद ली थी. इससे वह अपने खेतों के अलावा दूसरे किसानों की फसल भी काटने का काम करते हैं. यदुवंशी ने बताया कि उनके गांव में खेतों का रकबा कम होने के कारण किसान हार्वेस्टर मशीन से कटाई नहीं कराते हैं. इसके बजाय छोटी रीपर मशीन से गेहूं और धान की कटाई को लाभप्रद मान कर अपनाया गया है. उन्होंने कहा कि इससे उनकी अतिरिक्त आय भी हो जाती है और किसानों को कम कीमत पर कटाई कराने का लाभ भी मिल जाता है.

ये हैं खास बातें रीपर मशीन

यदुवंशी ने बताया कि देसी तकनीक से बनी रीपर मशीन का आकार ई रिक्शा के लगभग बराबर होने के कारण यह छोटे खेतों में आसानी से चल पाती है. जबकि ट्रक के आकार वाली हार्वेस्टर मशीन को छोटे खेतों में चलाना परेशानी भरा होता है.

उन्होंने बताया कि रीपर मशीन से 1 घंटे में लगभग 1 एकड़ खेत की फसल कट जाती है. अगर खेत, ऊबड़ खाबड़ नहीं है और मौसम की मार के कारण फसल गिरी नहीं है, ताे इस मशीन से 1 घंटे में 1.5 एकड़ खेत की फसल आसानी से कट जाती है. यदुवंशी ने बताया कि यह मशीन डीजल से चलती है. इसमें डीजल की खपत एक घंटे में लगभग 1 लीटर होती है. उन्होंने बताया कि अगर किसान इसे संभाल कर चलाते हैं तो इस मशीन का रखरखाव भी बहुत खर्चीला नहीं है. इसकी बाजार कीमत लगभग 5.25 लाख रुपये है. एमपी सरकार से अनुदान पर यदुवंशी को 3.25 लाख रुपये में यह मशीन मिली है.

उन्होंने बताया कि यह मशीन उपज काटने के साथ फसल के बंडल भी बना देती है. इसके लिए मशीन में खास किस्म के धागे का बंडल लगता है. इस बंडल की बाजार में कीमत लगभग 300 रुपये है. एक एकड़ खेत की फसल काटने में लगभग 3 बंडल धागा लग जाता है. उन्होंने बताया कि इन सभी खर्चों को मिलाकर वह किसान से 1000 रुपये प्रति घंटा किराया लेते हैं.

कैसे है किफायती

यदुवंशी ने हार्वेस्टर मशीन से रीपर मशीन की तुलना करते हुए बताया कि हार्वेस्टर से फसल काटने पर किसानों को भूसा नहीं मिलता है. जो किसान अब पशुपालन नहीं करते हैं, उनके लिए हार्वेस्टर से फसल काटना मुफीद है, लेकिन गांवों में अभी भी लगभग 80 फीसदी किसान दूध की अपनी घरेलू जरूरत काे ही पूरा करने के लिए एक दो गाय जरूर रखते हैं. ऐसे में हार्वेस्टर से फसल काटने वाले किसानों को स्ट्रॉ रीपर मशीन से भूसा बनाना पड़ता है.

इसी प्रकार रीपर मशीन से कटाई कराने पर किसानों को गेहूं निकालने के लिए थ्रेसर की जरूरत पड़ती है. हार्वेस्टर से कटाई कराने और Straw Reaper Machine से भूसा बनवाने में जो खर्च आता है, वह रीपर मशीन से कटाई कराने और थ्रेसर से गेहूं निकालने की तुलना में कम खर्चीला है.

इसका एक और फायदा बताते हुए यदुवंशी ने कहा कि पिछले कुछ सालों से मौसम खराब होने के कारण गेहूं और धान की फसल बड़े पैमाने पर गिर जाती है. ऐसे में हार्वेस्टर मशीन से खेत में गिरी फसल काे काटना बहुत नुकसानदायक साबित होता है. क्योंकि हार्वेस्टर मशीन 1 – 1.5 फुट ऊंची फसल को ही काटती है. ऐसे में फसल गिरने की हालत में बड़ी मात्रा में फसल खेत में ही छूट जाती है. इसका नुकसान किसान को ही उठाना पड़ता है. वहीं रीपर मशीन जमीन की सतह से फसल काे काटती है. इससे मौसम की मार से गिरी फसल भी कट जाती है.

अखबार ने बदल दी अजय स्वामी की जिंदगी! पहले चाय बेचते थे, अब खेती में करते हैं बड़ा कारोबार

आज हम आपको एक ऐसे शख्‍स की सफलता के बारे में बता रहे हैं जिसने एलोवेरा की खेती से अपना वर्तमान तो संवारा ही साथ ही साथ अपना भविष्‍य भी सुरक्षित कर लिया है. राजस्‍थान के हनुमानगढ़ के परलीका गांव में रहने वाल अजय स्‍वामी आज खेती-किसानी में अपनी जिंदगी संवार रहे हैं. 31 साल के अजय को एक दिन न्‍यूजपेपर में कुछ ऐसा नजर आया जो उनके लिए सक्‍सेस मंत्र बन गया. अजय को अखबार में एलोवेरा की खेती के बारे में पता चला और इसमें उनकी रूचि बढ़ गई. पिता की अचानक मृत्‍यु के बाद वह चाय की दुकान चला रहे थे. अजय ने अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करने की ठान ली थी क्‍योंकि उन्‍हें अपने परिवार को एक बेहतर जिंदगी देनी थी. आगे जानिए कि आखिर उन्‍होंने एलोवेरा की खेती में ऐसा क्‍या किया जो आज वह अपने साथियों के बीच एक प्रेरणा बन गए हैं.

कब्रिस्‍तान से लाए एलोवेरा के पौधे

अजय को अपने पिता से एक एकड़ जमीन विरासत में मिली थी. उनके पास खेती का कोई अनुभव नहीं था लेकिन फिर भी उन्‍होंने इस जमीन का प्रयोग करने का फैसला किया. इंटरनेट ने उनका साथ दिया और अजय ने एलोवेरा की खेती के बारे में खूब रिसर्च की. साथ ही उन किसानों से बात करना शुरू किया जो इसकी खेती के बारे में जानते थे. अजय ने उन्होंने दूसरे गांव से एलोवेरा के कुछ पौधे खरीदे. आपको जानकर हैरानी होगी कि अजय को चुरू के एक कब्रिस्तान में एलोवेरा पौधा उगे होने की जानकारी मिली. वहां से किसी तरह गाड़ी में भरकर वह एलोवेरा के पौधे लाए और खेत में लगा दिए. ये पौधे सही तरह से बढ़ें इसके लिए उन्‍होंने अच्छे उर्वरकों का प्रयोग किया.

नहीं मिल रहे थे खरीदार

डेढ़ साल के बाद अच्छी फसल उगी. लेकिन अब इस फसल के लिए खरीदार नहीं मिल रहे थे और उन्‍हें तलाशना काफी मुश्किल था. इस चुनौती से निपटने के लिए अजय ने एलोवेरा जूस के साथ ही इससे कई तरह के उत्‍पाद बनाने का फैसला किया. जैसे-जैसे उनके उत्पादों की मांग बढ़ती गई, उन्होंने पूरी तरह से खेती पर ध्यानदेने के लिए चाय की दुकान बंद कर दी. अजय ने कृषि विज्ञान केंद्र में एलोवेरा कई कई उत्पाद बनाना सीखा. इन उत्‍पादों में साबुन, शैंपू, क्रीम, मिठाई और उनका सबसे अधिक बिकने वाला उत्पाद, एलोवेरा लड्डू शामिल है. इस लड्डू की कीमत 350 रुपये प्रति किलोग्राम है. अजय ने अपनी जमीन पर प्रोसेसिंग यूनिट लगाई और अपना ब्रांड लॉन्च किया.

एलोवेरा की खेती में हुए 12 साल

आज अजय की कंपनी 45 अलग-अलग एलोवेरा उत्पाद बेचती है और उन्‍हें यह खेती करते-करते 12 साल हो गए हैं. इसका सालाना कारोबार 10 लाख रुपये से ज्‍यादा है. अजय की सफलता की कहानी इस बात का सबूत है कि कैसे एक साधारण सा विचार भी आपके जीवन को बदल सकता है. साथ ही दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से कोई भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है. अजय को आज इस सफलता के मैदान में 12 साल हो गए हैं.

अरहर-मसूर दाल और मक्का बिक्री के लिए ई-समृद्धि पोर्टल पर रजिस्टर करें किसान, तुरंत भुगतान का लाभ उठाएं

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केंद्र सरकार ने दाल किसानों की उपज बिक्री के लिए ऑनलाइन पोर्टल ई-समृद्धि की सुविधा दी है. सहकारिता मंत्रालय ने किसानों से कहा है कि वह अपनी फसल बिक्री के लिए तुरंत पोर्टल पर रजिस्टर कर लें. सरकार बफर स्टॉक के लिए अरहर और मसूर दाल की खरीद कर रही है. पोर्टल पर उपज बिक्री पर सहकारी समितियों NAFED और NCCF के जरिए किसानों को सीधे उपज का भुगतान मिलेगा. पोर्टल के जरिए केवल दाल ही नहीं मक्का समेत कुछ अन्य फसलों की बिक्री भी किसान कर सकते हैं.

सहकारिता मंत्रालय ने दालों के बफर स्टॉक के लिए 6 लाख टन दाल खरीद रहा है. यह खरीद प्रक्रिया ई-समृद्धि के जरिए ऑनलाइन की जा रही है, जिसमें सहकारी समितियां NAFED और NCCF दालों की मात्रा, क्वालिटी और भुगतान प्रक्रिया संभाल रही हैं. 6 लाख टन दाल खरीद प्रक्रिया जनवरी से चल रही है और मई तक दालों की खरीद जारी रहने की संभावना है, क्योंकि मार्च के अंतिम सप्ताह तक 8 हजार टन दाल की खरीद की गई है, जबकि खरीद टारगेट अधिक है.

सहकारिता मंत्रालय ने दालों के बफर स्टॉक के लिए 6 लाख टन दाल खरीद रहा है. यह खरीद प्रक्रिया ई-समृद्धि के जरिए ऑनलाइन की जा रही है, जिसमें सहकारी समितियां NAFED और NCCF दालों की मात्रा, क्वालिटी और भुगतान प्रक्रिया संभाल रही हैं. 6 लाख टन दाल खरीद प्रक्रिया जनवरी से चल रही है और मई तक दालों की खरीद जारी रहने की संभावना है, क्योंकि मार्च के अंतिम सप्ताह तक 8 हजार टन दाल की खरीद की गई है, जबकि खरीद टारगेट अधिक है.

उपज मूल्य सीधे किसान के बैंक खाते में आएगा

सहकारिता मंत्रालय ने कहा है कि किसान अपनी उपज बेचने के लिए ऑफिशियल वेबसाइट https://esamridhi.in/#/ पर जाकर रजिस्ट्रेशन करा लें. ताकि दलहन उत्पादक किसान ऑनलाइन बिक्री कर सकें. ई-समृद्धि पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कर दलहन उत्पादक किसान अपनी उपज सीधे बाजार में बेच सकते हैं और उपज का मूल्य सीधे अपने बैंक खाते में पा सकते हैं.

ई-समृद्धि पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन का तरीका

ई-समृद्धि पोर्टल पर दाल, मक्का समेत अन्य फसलों की बिक्री के लिए किसान रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. नीचे दिए गए तरीके को फॉलो करें-

  1. सबसे पहले ऑफिशियल वेबसाइट https://esamridhi.in/#/ पर जाना होगा.
  2. इसके बाद वेबसाइट पेज के दाहिनी ओर फार्मर रजिस्ट्रेशन और एजेंसी रजिस्ट्रेशन ऑप्शन दिखेगा.
  3. आप किसान हैं तो आपको फार्मर रजिस्ट्रेशन ऑप्शन को चुनना होगा और उस पर क्लिक करना होगा.
  4. इसके बाद लॉगइन के लिए नई विंडो खुलेगी.
  5. अब मांगे गए मोबाइल नंबर को कॉलम में दर्ज करें.
  6. कैप्चा कोड दर्ज करके सबमिट कर दें.
  7. इसके बाद मोबाइल नंबर पर ओटीपी आएगा.
  8. ओटीपी को दर्ज करके लॉगइन पर क्लिक करें.
  9. इस तरह से रजिस्ट्रेशन पूरा हो जाएगा.

इस राज्य में भीषण गर्मी से झुलस गई टमाटर फसल, उत्पादन में गिरावट आने से 300 फीसदी बढ़ी कीमत

तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में बढ़ती गर्मी के कारण टमाटर की फसल खेतों में खड़ी-खड़ी सूख रही है. इससे राज्य के सबसे बड़े पलाकोड थोक बाजार में टमाटर की सप्लाई कम हो गई है. व्यापारियों का कहना है कि फसल सूखने के चलते अब टमाटर की आवक 100 टन से घटकर तीन टन प्रति दिन से भी कम हो गई है. इससे टमाटर की कीमत में बंपर बढ़ोतरी दर्ज की गई है. कहा जा रहा है कि जो टमाटर कुछ हफ्ते पहले तक 7 से 10 रुपये प्रति किलो बिकता था, अब उसकी कीमत 26 से 30 रुपये किलो हो गई है. यानी कीमत में 300 फसदी की बढ़ोतरी हुई है. इससे आम जनता के किचन का बजट बिगड़ गया है.

किसानों का कहना है कि जिले में अधिक गर्मी पड़ने की वजह से टमाटर की फसल खेतों में सूख रही है. ऐसे में किसानों ने सरकार से मुआवजे की मांग की है. मार्च 2023 और फरवरी 2024 के बीच, जिले में 11,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में टमाटर की खेती की गई. इसमें प्रत्येक एकड़ में 35 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक का उत्पादन हुआ है.

और खराब हो सकती है स्थिति

पलाकोड बाजार के एक व्यापारी पी गणेशन ने कहा कि आमतौर पर अप्रैल का महीना टमाटर उत्पादन का पीक सीजन होता है. इस महीने में कम से कम रोज 100 टन तक टमाटर की आवक होती है. लेकिन इस साल हमें रोज तीन टन से भी कम मिल रहा है. हालांकि, आमतौर पर मई में उत्पादन कम हो जाता था, लेकिन इस साल स्थिति बेहद गंभीर है. गर्मियों में यह स्थिति और खराब हो सकती है.

41 डिग्री के पार हुआ तापमान

टीएनआईई से बात करते हुए, पलाकोड के एक किसान के राजकुमार ने कहा कि पिछले हफ्ते गर्मी इतनी अधिक थी कि तापमान 41 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया था. यह आमतौर पर मई के मध्य में होता है. इसके साथ ही पलाकोड और पेन्नाग्राम में सूखे जैसी स्थिति के कारण टमाटर के पौधों का जीवित रहना मुश्किल हो गया है. उत्पादन को बनाए रखने के लिए पानी की भारी कमी है, जिससे फूल मुरझा जाते हैं. हमें उम्मीद है कि सरकार स्थिति का आकलन करेगी और प्रति एकड़ 20,000 रुपये का मुआवजा देगी.

टमाटर की खेती में कितना है खर्च

मरांडाहल्ली के एक अन्य किसान आर पूमानी ने कहा कि एक एकड़ में खेती करने के लिए, किसान 18,000 रुपये से 25,000 रुपये के बीच खर्च करते हैं. औसतन हमें 9 टन से 12 टन तक की उपज मिलती है. हमें सरकारी सहायता की आवश्यकता है, क्योंकि गर्मी की लहर के कारण सैकड़ों किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान का सामना करना पड़ा है. बागवानी के उप निदेशक फातिमा ने कहा कि जहां तक टमाटर का सवाल है, अप्रैल पहला सीजन है और नुकसान की घोषणा करने के लिए हमारे पास अपर्याप्त डेटा है. हम केवल जून में फसल के नुकसान का आकलन कर सकते हैं.

क्यों आई उत्पादन में गिरावट

उन्होंने कहा कि धर्मपुरी जिले में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है. ऐसे में उत्पादन में गिरावट होना सामान्य बात है. आमतौर पर, सीजन के दौरान हमारे पास केवल 300 से 400 हेक्टेयर खेती होती थी. पिछले साल हमारे सामने ऐसी स्थिति नहीं थी. हमने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं कि आपूर्ति चिंताजनक रूप से कम न हो जाए.

Success Story: अमेठी के युवाओं ने फूलों की खेती में किया कमाल, कम लागत में कमा रहे मोटा मुनाफा

Flowers Farming: उत्तर प्रदेश में अब बहुत से किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर अलग-अलग तरह की फसलों की खेती कर रहे हैं. जिसमें फूलों की खेती शामिल है. इसी कड़ी में अमेठी में कुछ युवा किसान फूलों की खेती से अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं. अमेठी के तिलोई तहसील के रहने वाले संदीप मौर्य ने करीब 5 वर्ष पहले फूलों की खेती शुरू की. पहले संदीप मौर्य सिर्फ अपने खेत में धान, गेहूं की फसल तैयार करते थे. संदीप मौर्य ने बताया कि मेरे मन में सुझाव आया की फूलों की खेती में ज्यादा फायदा है, तो उन्होंने पहले छोटे पैमाने पर फूलों की खेती की. लेकिन जब उन्हें फायदा होने लगा तो आज वह करीब 10 हेक्टेयर में फूलों की खेती कर रहे हैं और इससे वह सीजन में 1 लाख से अधिक रुपए की कमाई करते हैं.

फूलों की खेती से गुलदस्ता करते तैयार

संदीप मौर्य बताते हैं कि फूलों की खेती में धान गेहूं की अपेक्षा अधिक फायदा है. इस वजह से वह फूलों की खेती करते हैं. उन्होंने बताया कि समय-समय पर विभाग की तरफ से उन्हें मदद मिलती है और आज उन्हें फायदा हो रहा है. वहीं एक और युवा किसान सूरज माली अमेठी के गौरीगंज जिला मुख्यालय पर फूलों की खेती कर रहे हैं.

सूरज के पिता ने इस व्यवसाय को शुरू किया था. सूरज आज फूलों की खेती से गुलदस्ता तैयार करते हैं. यह किसान अपने खेतों में विभिन्न प्रकार के गेंदा के फूलों की प्रजातियों के पौधे लगा करके फूलों की पैदावार कर रहा है. जिसे वह अपने नजदीकी मंडी में ले जाकर फूलों को बेचकर सालाना लाखों रुपए की आमदनी कर रहा है.

फूलों की खेती पर उद्यान विभाग से मिलता अनुदान

इस किसान को देखकर दूसरे युवा किसान भी गेंदा के फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि इस खेती में किसान की लागत भी कम रहती है और थोड़े ही समय में अच्छा मुनाफा भी किसान को मिलता है. फूल से साज-सजावट के साथ ही सौंदर्य उत्पाद एवं कई दवाओं के निर्माण में उपयोग में लाया जाता है. इसलिए बाजारों में इसकी मांग अधिक रहती है. आपको बता दें कि फूलों की खेती के लिए विभाग की तरफ से अनुदान दिया जाता है. लाभार्थी को आवेदन करने के लिए अपने आधार कार्ड, फोटो, बैंक पासबुक के साथ आवेदन करना होता है. उसके बाद आवेदन होते ही लाभार्थी को काइन डीबीटी के माध्यम से हेक्टेयर के अनुसार अनुदान की धनराशि उपलब्ध कराया जाता है.

 

ग्रामीण क्षेत्र की महिला उद्यमियों के लिए डिजिटल बैंकिंग यूनिट बनेंगी, सरकारी स्कीम के जरिए वित्तीय मदद तेज की जाएगी

ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार डिजिटल बैंकिंग यूनिट स्थापित करने जा रही है, जिसके तहत महिलाओं को निवेश आसानी से मिल सके. इससे पीएम स्वनिधि, लखपति दीदी जैसी प्रमुख योजनाओं से जुड़ी महिलाओं को भी लाभ मिलेगा.

महिलाओं को उद्यम के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार डिजिटल बैंकिंग यूनिट बनाने की योजना पर काम कर रही है. इसके लिए बैंक और बीमा कंपनियां कैंपेन शुरू करेंगी. इससे पीएम स्वनिधि, लखपति दीदी जैसी प्रमुख योजनाओं का लाभ तेजी से ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की महिला कारोबारियों को मिल सकेगा और उनकी वित्तीय जरूरत, फाइनेंशियल ट्रेनिंग, कारोबार सलाह, बीमा कवरेज की सुविधा देने के साथ ही इसके प्रति जागरूता भी बढ़ाई जाएगी.

सरकार बिजनेस सेक्टर में वित्तीय एडजस्टमेंट स्ट्रेटजी के अगले वर्जन को तैयार कर रही, जो महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने और पीएम स्वनिधि जैसी प्रमुख योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगा. रिपोर्ट के अनुसार इसके लिए बैंक और बीमा कंपनियां अभियान शुरू करेंगी और पहुंच बढ़ाने के लिए डिजिटल बैंकिंग इकाइयों (डीबीयू) का लाभ उठाएंगी. इसके लिए तिमाही टारगेट के साथ रोडमैप बनाया जा रहा है, जो महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने और फाइनेंस करने के लिए लोन, सलाह, बीमा कवरेज और वित्तीय जागरूकता के जरिए सुरक्षा मिल सकेगी.

पीएम स्वनिधि, लखपति दीदी योजनाओं पर फोकस

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024-25 के अंतरिम बजट में ‘लखपति दीदी’ योजना का लक्ष्य मौजूदा 20 मिलियन से बढ़ाकर 30 मिलियन कर दिया था. इस योजना का उद्देश्य महिला स्वयं सहायता समूहों को अपने गांवों के भीतर छोटे कारोबार स्थापित करके प्रति वर्ष कम से कम 1 लाख रुपये की स्थायी कमाई करने के लिए ट्रेंड करना है. इसके अलावा पीएम स्वनिधि योजना के जरिए महिला उद्यमियों को वित्तीय मदद को बढ़ाना और आसान करना है.

डिजिटल बैंकिंग यूनिट से कई फायदे मिलेंगे

सरकार के प्लान के तहत योजनाओं के लाभार्थियों को डिजिटल तरीके से बैंकों से जोड़ना है, ताकि उनके खाते खोले जा सकें और निष्क्रिय खातों की संख्या को कम किए जाने पर भी फोकस होगा. योजनाओं के लाभार्थी डिजिटल भुगतान की ओर बढ़ाना भी लक्ष्य है. इसके लिए डिजिटस बैंकिंग यूनिट (डीबीयू) को स्थापित किया जाएगा. इसके तहत बैंक और बीमा कंपनियां विशेष अभियान भी चलाएंगे और लोन आवेदनों और बीमा पॉलिसियों के लिए सरल और आसान तरीके से दस्तावेजों की उपलब्धता पक्का करेंगे. एक्सपर्ट का कहना है कि फाइनेंशियल ट्रेनिंग और कोचिंग प्रोग्राम महिलाओं के लिए वित्तीय रूप से आगे लाने में अहम रोल निभाएंगे.

 

सफेद बैंगन की खेती में बंपर मुनाफा, किसान सालाना कमा सकते हैं 10 लाख रुपये, आमदनी का गणित समझिए

सफेद बैंगन की खेती मार्च और अप्रैल महीने के शुरूआती सप्ताह में की जाती है, इसके साथ ही देश के कई इलाकों में इसकी खेती दिंसबर के महीने में भी की जाती है. बाजार में यह बैंगन कम ही दिखाई देता है इसलिए इसकी कीमत अच्छी मिलती है. अंडे की तरह दिखाई देनेवाले इस बैंगन की मांग देश के अलावा विदेशों में भी होती है.

बैंगन की खेती अब देश के अलग-अलग हिस्सों में पूरे साल की जाती है. बैंगन देश के हर घर के रसोई में बनाई जाती है इसलिए इसकी मांग भी खूब होती है. यही कारण है कि इसकी खेती करने से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. एक बैंगन सामान्य तौर पर हरे रंग वाली होती है और बैंगनी रंग वाली होती. पर आज इस खबर में हम आपको सफेद बैंगन के बारे में बताएंगे. यह बैंगन की एक अलग औऱ बेहतरी किस्म है. सफेद बैंगन का पूरी तरह सफेद होता हौ और इसके डंठल हरे रंग के होते हैं. सफेद बैंगन की आजकल बाजार में खूब मांग है यह खूब बिक रहा है.

बैंगन की खेती पूरे साल में किसान कभी भी कर सकते हैं. सर्दी,गर्मी और बरसात तीनों ही मौसम में इसकी खेती की जाती है. चूंकि इसका उत्पादन खूब होता है और इसमें लागत कम आती है. साथ ही बैंगन की खेती की खासियत यह होती है कि यह लंबे समय तक फल देती है और लंबे समय तक किसानों को फायदा पहुंचाती है इससे किसानों की कमाई बढ़ती है. सफेद बैंगन की खेती करके आप कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. सफ़ेद बैंगन एक ऐसी सब्जी है जिसे साल भर उगाया जा सकता है.

कमाई का गणित

एक हेक्टेयर जमीन में बैंगन की खेती करने में रोपाई से लेकर पहली बार की तुड़ाई तक में करीब दो लाख रुपये का खर्च आता है. अगर अच्छे तरीके से और अच्छी किस्म के बैंगन की खेती की जाए और इसके साथ ही इसमें सही समय पर सिंचाई की जाए और सही मात्रा में खाद और दवा का छिड़काव किया जाए को एक हेक्टेयर में औसतन एक साल में 100 टन तक बैंगन की पैदावार हासिल की जा सकती है. बाजार में बैंगन औसतन 10 से 15 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है. इस तरह से किसान एक साल में इसकी खेती से 10 से 15 लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं. सफेद बैंगन की खेती में भी किसान इसी तरह का मुनाफा कमा सकते हैं.

अंडे की तरह दिखता है बैंगन

सफेद बैंगन की खेती मार्च और अप्रैल महीने के शुरूआती सप्ताह में की जाती है, इसके साथ ही देश के कई इलाकों में इसकी खेती दिंसबर के महीने में भी की जाती है. बाजार में यह बैंगन कम ही दिखाई देता है इसलिए इसकी कीमत अच्छी मिलती है. अंडे की तरह दिखाई देनेवाले इस बैंगन की मांग देश के अलावा विदेशों में भी होती है. सफेद बैंगन की खेती के लिए सबसे पहले नर्सरी तैयार की जाती है. नर्सरी में छोटे पौधें तैयार होते हैं इसके बाद इसके पौधों की रोपाई की जाती है. ये बैंगन सामान्य बैंगन से अधिक पौष्टिक होते हैं.

सेब की खेती में स्विट्जरलैंड का मुकाबला करने को तैयार भारत, वैज्ञान‍िकों को म‍िली बड़ी सफलता

Apple Farming: दुनिया में सबसे ज्‍यादा 60 टन प्रति हेक्‍टेयर की उत्‍पादकता स्विट्जरलैंड में है. भारत में अब तक औसत उत्‍पादकता सिर्फ 8 टन है. श्रीनगर स्थ‍ित केंद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञान‍िकों ने नई तकनीक से खेती करके र‍िसर्च फार्म में 60 टन तक की उत्‍पादकता हास‍िल कर ली है.

भले ही भारत दुनिया भर में बागवानी फसलों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, फ‍िर भी उत्पादकता के मामले में अभी हम कई फसलों में बहुत सारे देशों और व‍िश्व औसत से काफी पीछे हैं. सेब इनमें से एक है. सेहत के ल‍िए बेहद गुणकारी होने की वजह से सेब लगभग हर देश में उगाया जाता है. लेकिन जलवायु से जुड़ी परिस्थितियों और तकनीक की वजह से कुछ देश दूसरों की तुलना में बहुत अधिक सेब का उत्पादन करते हैं और कुछ बहुत कम. भारत की बात करें तो हम लोग इसकी उत्पादकता में बहुत पीछे हैं. यहां तक की व‍िश्व औसत के भी आसपास नहीं हैं. लेक‍िन अब श्रीनगर स्थ‍ित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ टेंपरेट हॉर्ट‍िकल्चर (CITH) ने दुन‍िया में सेब की उत्पादकता के मामले में नंबर वन स्विट्जरलैंड का मुकाबला करने के ल‍िए फार्मूला तैयार कर ल‍िया है.

इस फार्मूले का सीआईटीएच कैंपस में ट्रॉयल भी हो चुका है, ज‍िसमें भारत को सेब की खेती में 60 टन तक की उत्‍पादकता म‍िली है. अब इस मंत्र को आम क‍िसानों के खेतों तक ले जाना है, ताक‍ि उत्पादकता में बहुत पीछे रहने की बात करने वाले देशों के मुंह पर ताला लग जाए. एक तरफ हमारे यहां सेब की उत्पादकता स‍िर्फ 8.87 टन प्रत‍ि हेक्टेयर है तो वहीं इस मामले में 60.05 टन प्रत‍ि हेक्टेयर के साथ स्विट्जरलैंड दुन‍िया में नंबर वन है. व‍िश्व औसत 17.56 टन है.

क‍िसानों को म‍िलेगा फायदा

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने उत्पादन बढ़ाने का नया फार्मूला न‍िकाला है. इसके तहत व‍िदेशी क‍िस्मों की उत्पादकता बढ़ाने के ल‍िए देसी प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी व‍िकस‍ित की है. यह सेब की खेती में सबसे बड़ी क्रांत‍ि होगी, ज‍िससे अंतत: क‍िसानों को सबसे बड़ा फायदा म‍िलने वाला है. उत्पादकता बढ़ने का मतलब है कम जगह में ज्यादा उत्पादन ले लेना. सीआईटीएच यानी केंद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान के डायरेक्टर डॉ. एमके वर्मा ने श्रीनगर में ‘क‍िसान तक’ से बातचीत करते हुए बताया क‍ि सेब की वर्तमान में प्रचल‍ित व‍िदेशी क‍िस्मों को ही वैज्ञान‍िकों ने उसकी खेती की तकनीक बदलकर उत्पादकता बढ़ाने का काम क‍िया है.

कैसे बढ़ी उत्पादकता

वर्मा ने बताया क‍ि हम नई तकनीक में सेब के पेड़ की लंबाई मैकेन‍िकली कंट्रोल करते हैं. पौधों को वायर और लकड़ी का सपोर्ट देते हैं. इस तरह पौधों की ऊंचाई 12 से 14 फुट तक पहुंच जाती है. यह कमाल की तकनीक है, ज‍िसे कोई भी क‍िसान अपना सकता है. इस त‍कनीक से हमने 60 टन प्रत‍ि हेक्टेयर तक की पैदावार ली है. अब भारत में सेब की खेती क‍िसानों को पहले से अध‍िक मुनाफा देगी.

भारत में सबसे ज्यादा सेब कहां होता है?

 
राज्य एर‍िया (हेक्टे) उत्पादन (मीट्रिक टन) उत्पादकता (टन/हेक्टे) 
जम्मू-कश्मीर 1,68,570 18,9,859 11.26
हिमाचल प्रदेश 1,15,020 6,11,900 5.32
उत्तराखंड 25,980 64,880 2.50
अरुणाचल प्रदेश 4,440 6,830 1.54
नागालैंड 240 1,780 7.41
Source: CITH/2021-22

भारत में सेब का उत्पादन

  • सीआईटीएच ने अपनी ए‍क र‍िपोर्ट में बताया है क‍ि साल 2021-22 के दौरान भारत में 315000 हेक्टेयर में सेब की खेती हो रही थी. जबक‍ि कुल उत्पादन 2589000 मीट्र‍िक टन हुआ था.
  • भारत सेब का आयातक है. ऐसे में अब नई तकनीक से उत्पादकता बढ़ेगी तो आयात पर न‍िर्भरता कम होगी. हम भूटान तक से सेब मंगाते हैं. अमेर‍िका बड़े पैमाने पर अपने यहां पैदा वाश‍िंगटन एप्पल भारत भेजता है.
  • जहां दुन‍िया का सबसे बड़ा सेब उत्पादक चीन है वहीं भारत का सबसे बड़ा सेब उत्पादक जम्मू कश्मीर है. दूसरे नंबर पर ह‍िमाचल फ‍िर उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश का नंबर आता है.

 

 

गेहूं खरीद कर रहे निजी साइलो के विरोध में उतरे किसान, कॉरपोरेट घरानों को मिला खरीद परमिट रद्द करने की मांग

पंजाब में एमएसपी पर गेहूं की खरीद जारी है. गेहूं खरीद के लिए राज्य सरकार ने सरकारी संस्थाओं के आलावा निजी साइलो (निजी भंडारण केंद्र) को भी जिम्मेदारी दी है. इसके अलावा कई कॉरपोरेट घरानों को भी गेहूं खरीद के लिए परमिट दिया गया है, जिसका किसान संगठन विरोध कर रहे हैं. किसान यूनियन बीकेयू (एकता उग्राहा) ने पंजाब सरकार से राज्य के सभी निजी साइलो को अपने कब्जे में लेने का अनुरोध किया है. साथ ही मांग की है कि गेहूं खरीद के लिए कॉरपोरेट घरानों को दी गई परमिट को रद्द किया जा जाए. किसान यूनियन बीकेयू (एकता उग्राहा) ने यह भी कहा कि किसान अपनी इन मांगों को आगे बढ़ाने के लिए 11 अप्रैल को साइलो (निजी भंडारण केंद्र) पर विरोध प्रदर्शन भी करेंगे.

किसान यूनियन चाहती है कि सभी साइलो पर सरकार नियंत्रण होना चाहिए. किसानों ने यह भी कहा कि भले ही सरकार यह दावा करती है कि सरकार ने रबी सीजने के लिए खरीद केंद्रों के रूप में 12 साइलो की अधिसूचना वापस ले ली थी, पर कॉरपोरेट घरानों को गेहूं खरीद की जिम्मेंदारी सौंपकर सरकार के इरादे सामने आ गए हैं कि सरकार किस तरह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली को धवस्त करना चाहती है. सभी किसान इसका विरोघ करते हैं. किसान यूनियन के नेताओं ने कहा कि सभी किसान इसका विरोध करने के लिए तैयार हो जाएं.

सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे किसान

गौतलब है कि पंजाब सरकार ने पिछले वर्ष की तरह इस साल भी पंजाब के नौ जिलों में 11 निजी साइलो को गेहूं खरीद, भंडारण और प्रस्संकरण के लिए घोषित किया है. इसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा था कि वो राज्य सरकार के इस कदम का विरोध करेगा. मोर्चा का कहना है कि राज्य सरकार का यह कदम किसान विरोधी है . इस कदम से सरकार सरकारी मंडियों को कॉरपोरेट घरानों को सौंपने का है. संयुक्त किसान मोर्चा ने यह भी कहा कि कॉरपोरेट्सके लाभ के लिए साइलो क्षेत्रों में आने वाली 26 कृषि उपज बाजार समितियों को भंग करने के पंजाब सरकार के फैसले के खिलाफ आठ अप्रैल को चंडीगढ़ में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.

पंजाब की एपीएमसी पर पड़ रहा प्रभाव

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार एसकेएम राष्ट्रीय समन्वय समिति (एनसीसी) के सदस्य बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि पंजाब मंडी बोर्ड के मुताबिक पिछले साल भी सरकार ने साइलोज को गेहूं का खरीद केंद्र घोषित किया था. सरकार के कदम का विरोध करते हुए बीकेयू (उगराहां) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने कहा था कि इससे पंजाब मंडी बोर्ड के 26 एपीएमसी प्रभावित हो रहे हैं, उनका काम इन निजी साइलो में स्थानांतरित हो जाएगा. उन्होंने कहा कि इस कारण से 2020 में कृषि कानूनों पर आपत्ति जताई. अब पंजाब सरकार भी वही कर रही है. हम इस कदम का विरोध करेंगे.

 

मुर्गा-मछली पालकों को एंटीबॉयोटिक इस्तेमाल पर सचेत कर रही सरकार, AMR के खिलाफ FSSAI ने बनाया ये प्लान

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) की केंद्रीय सलाहकार समिति (CAC) और खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने मिलकर मिलकर एक प्लान तैयार किया है. इस प्लान के तहत दोनों विभागों की टीम पोल्ट्री फार्म और फिश पॉन्ड पर जाएंगी. मुर्गे और मछली पालन करने वाले किसानों से मिलेंगी. उन्हें पोल्ट्री और मछली पालन में एंटीबायोटिक दवाईयों के इस्तेमाल के खिलाफ जागरुक किया जाएगा. साथ ही स्कूलों में भी ये जागरुकता कार्यक्रम चलाया जाएगा. गौरतलब रहे सोशल मीडिया समेत कई दूसरे प्लेटफार्म पर इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं.

ऐसा दावा किया जाता है कि पोल्ट्री बाजार में तरह-तरह की एंटीबायोटिक दवाईयों का बेतहशा इस्तेमाल बढ़ रहा है. ब्रॉयलर मुर्गे का वजन बढ़ाने और अंडे ज्यादा मिलें इसके लिए मुर्गियों को एंटीबायोटिक की खुराक दी जा रही हैं. वहीं मछलियों में भी बीमारी ना फैले इसके लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल हो रहा है. शायद यही वजह है कि नवंबर में वर्ल्ड AMR अवेयरनेस वीक मनाया जाता है. समय-समय पर केन्द्रीय डेयरी और पशुपालन मंत्रालय भी इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी करता रहता है.

पशुओं में एंटीबायोटिक को इसलिए माना जाता है खतरनाक

एनिमल एक्सपर्ट का मानना है कि पशुओं और इंसानों के साथ ही एंटीबायोटिक दवाएं पर्यावरण के लिए भी बेहद खतरनाक होती हैं. होता ये है कि ज्यादा एंटीबायोटिक देने से जानवरों में एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस (AMR) पैदा हो जाता है. एएमआर एक ऐसी स्टेज है जिसमें किसी बीमारी को ठीक करने के लिए जो दवा या एंटीबायोटिक दी जाती है वो काम करना बंद कर देती है. कुछ बैक्टीरिया कई दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता डवलप कर लेते हैं जिससे वो दवाएं असर करना बंद कर देती हैं. इस कंडीशन को सुपर बग कहा जाता है. सुपर बग कंडिशन से हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है.

एंटीबायोटिक का इस्तेमाल घटाने के लिए अपनाएं ये उपाय

  • एंटीबायोटिक का इस्तेसमाल सिर्फ बीमार मुर्गी का इलाज करने और उसके संपर्क में आई मुर्गियों पर ही करें. बीमारी की रोकथाम के लिए पहले से न खिलाएं.
  • बायो सिक्योरिटी का पालन अच्छे से करें.
  • बीमारी को रोकने और उसे फैलने से रोकने के लिए फार्म में धूप अच्छे से आए इसका इंतजाम रखें. हवा के लिए वेंटीलेशन भी अच्छा हो.
  • फार्म पर क्षमता से ज्या्दा मुर्गी की भीड़भाड़ न हो.

सप्लीमेंट्री फीड के साथ स्पेशल एडीटिव भी दें

प्री बायोटिक, प्रो बायोटिक, आर्गेनिक एसिड, एसेंशियल ऑयल्स और इनसूलेबल फाइबर दें. साथ ही यह पक्का कर लें कि मुर्गी को जरूरत का खाना और मौसम के हिसाब से बचाने के उपाय अपनाए जा रहे हैं या नहीं.
हर रोज पोल्ट्री फार्म पर बराबर नजर रखें. इस बात की तसल्ली करें कि मुर्गियों की हैल्थ ठीक है, उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आ रहा है.

Betel Cultivation: उजड़ रही है बनारसी पान की खेती, बचाने के लिए किसानों को 50 फीसदी अनुदान दे रही सरकार

काशी की पहचान बनारसी पान से भी होती है. बनारसी पान पूरी दुनिया में मशहूर है और यह देश के कई हिस्सों में सप्लाई किया जाता है. पान की खेती बनारस के अलावा पश्चिंब बंगाल और बिहार के साथ कुछ अन्य इलाकों में भी होती है. बनारस में पान की खेती करने वाले किसानों की संख्या लगातार घटती जा रही है. सरकार के प्रयास भी जारी हैं लेकिन इसके बावजूद भी बनारस में पान की खेती करने वाले किसान लगातार कम हो रहे हैं. ऐसे में सरकार का फोकस पान की खेती को बढ़ावा देने पर है. इसीलिए सरकार पान की खेती के लिए किसानों को 50 प्रतिशत का अनुदान भी दे रही है.

बनारस में पान की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना चलाई जा रही है. इसके अंतर्गत पान की उपज को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वाराणसी में किसानों को पान की खेती करने वाले इलाकों का भ्रमण कराया जा रहा है. जबकि, समय समय पर किसानों को जागरूक करने के लिए कैंप लगाए जा रहे हैं.

पान की खेती करने वाले किसान घटते जा रहे

बनारस जिले में बच्छाव गांव में सिर्फ दो किसान पान की खेती करते है जिनमे झन्नू लाल भी शामिल है. पान की खेती करके वाले झन्नू लाल ने बताया की उनके परिवार में कई पीढ़ी से पान की खेती होती आ रही है. उनको भी 15 साल से ज्यादा हो गया पान की खेती करते हुए वो 10 बिस्वा जमीन से ₹50 हजार रुपया सालाना कमा लेते हैं. पहले वो एक बीघा में खेती करते थे पर संसाधनों की कमी के कारण कम खेती कर रहे है. सरकार सुविधाएं बढ़ा देगी तो किसानों को और काम करने में अच्छा होता.

पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए अनुदान

बनारस में पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना अंतर्गत किसानों को जागरूक करने के लिए काशी के सभी आठ ब्लाकों के 50 से अधिक किसानों को पान की खेती करने वाले क्षेत्र में जाकर भ्रमण कराया गया. इस दौरान पान की खेती को कैसे करके मुनाफा कमाया जा सकता है. सहायक उद्यान निरीक्षक रोशन कुमार सोनकर ने बताया कि बनारस में पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए हम किसानों को बच्छाव गांव लाए हैं ताकि वे जान सकें की पान की खेती कैसे की जाती है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा किसानों को पान की खेती करने पर लागत का 50 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है. अनुदान की बात सुनकर बहुत से किसानों ने पान की खेती करने की इच्छा जताई है.

देशभर में सप्लाई होता है बनारसी पान

पान भले ही बनारस का मशहूर हो लेकिन पान की खेती लगातार जिले में सिमटती जा रही है. पान की आपूर्ति पूर्वांचल समेत बिहार ,बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों से होती है. पान व्यापारी का कहना है कि अकेले बनारस में पान का व्यवसाय 15 करोड़ का हर रोज होता है.

Wheat procurement: सिरसा में इस बार बंपर होगा गेहूं का उत्पादन, 950000 टन सरकारी खरीद की है उम्मीद

इस साल हरियाणा के सिरसा जिले में बंपर गेहूं उत्पादन की उम्मीद की जा रही है. सिरसा प्रशासन ने 1 अप्रैल से शुरू होने वाले रबी विपणन सीजन के दौरान लगभग 9,50,000 मीट्रिक टन (एमटी) गेहूं की खरीद का अनुमान लगाया है. यह पिछले वर्ष खरीदी गई मात्रा से लगभग 18 प्रतिशत अधिक होगी. उपायुक्त आरके सिंह ने कहा कि गेहूं की खरीद 1 अप्रैल से शुरू होगी. इसलिए मंडियों और खरीद केंद्रों पर सभी आवश्यक व्यवस्थाएं समय पर सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि किसानों और आम जनता को किसी भी असुविधा का सामना न करना पड़े.

उन्होंने कहा कि गेहूं खरीद के लिए सभी आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी और खरीद संघ मिलकर काम करें, ताकि किसानों को अपनी फसल बेचने में किसी परेशानी का सामना न करना पड़े.

8,07,003 मीट्रिक टन हुई थी गेहूं की खरीद

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023-24 में जिले में कुल 8,07,003 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी. मंडियों से खरीदा गया गेहूं सीधे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को दिया जाता है. इसी तरह, 2024-25 के लिए, एफसीआई को गेहूं की सीधी डिलीवरी की योजना बनाई गई है और उनके पास गेहूं के लिए पर्याप्त भंडारण स्थान है. इसके अतिरिक्त, खरीद एजेंसियों के पास भंडारण के लिए पर्याप्त जगह भी है, इसलिए जिले में भंडारण संबंधी कोई समस्या नहीं है.

95,000 मीट्रिक टन सरसों की आवक होगी

कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, सिरसा जिले में कुल 2,72,360 हेक्टेयर में गेहूं की बुआई की गई है, जिसमें लगभग 1,500,000 मीट्रिक टन गेहूं का उत्पादन होने का अनुमान है. उम्मीद है कि मंडियों में करीब 9,50,000 मीट्रिक टन गेहूं की आवक होगी. जबकि जिले में कुल 85,200 हेक्टेयर में सरसों की बुआई की गई है, जिसका अनुमानित उत्पादन 1,70,400 मीट्रिक टन है. उम्मीद है कि मंडियों में करीब 95,000 मीट्रिक टन सरसों की आवक होगी.

केंद्रों की संख्या 59 से बढ़कर 63 हो गई है

सिरसा की अनाज मंडियों में सरसों की आवक 10 मार्च से ही शुरू हो गई थी, लेकिन सरकारी खरीद 26 मार्च से शुरू होगी. अधिकारी पिछले साल की तुलना में दोगुना उत्पादन होने की उम्मीद जता रहे हैं. इसके आधार पर मार्केटिंग बोर्ड ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं, लेकिन अभी तक खरीद के लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. उम्मीद है कि एक सप्ताह के भीतर बड़े पैमाने पर सरसों मंडियों में पहुंचने लगेगी. यही कारण है कि सरकार ने किसानों की मांगों के जवाब में चार नए खरीद केंद्र स्थापित किए हैं, जिससे जिले में केंद्रों की संख्या 59 से बढ़कर 63 हो गई है.